भारतीय न्यूजरूम्स में वंचित लिंग, जाति और समुदाय के लोगों का प्रतिनिधित्व काफी कम है। मुख्यधारा के विकास संबंधी विमर्श में उनके अनुभवों और कहानियों को अक्सर नजर अंदाज कर दिया जाता है। इन समुदायों के दृष्टिकोण की यह व्यवस्थागत अनदेखी, उनके विकास से जुड़ी चुनौतियों के असल कारणों को अस्पष्ट कर देती हैं।
ऑक्सफैम इंडिया और न्यूज़लॉन्ड्री के 2019 के एक अध्ययन में पाया गया है कि:
- अध्ययन में 121 न्यूज एजेंसियों का विश्लेषण किया गया और इनमें से 106 का नेतृत्व अगड़ी जाति के लोग कर रहे थे। 70% से ज्यादा फ्लैगशिप डिबेट शो में शामिल होने वाले अधिकांश पैनलिस्ट अगड़ी जातियों से आते थे।
- अंग्रेजी अखबारों में दलितों और आदिवासियों द्वारा 5% से लेख भी नहीं लिखे जाते हैं। वहीं, लगभग 10% की भागीदारी के साथ हिंदी अखबारों में स्थिति थोड़ी बेहतर है।
- प्रमुख प्राइम-टाइम टीवी शो में पांच पैनलिस्टों में से केवल एक महिला थी। अंग्रेजी दैनिक अखबारों में लिखे गए चार में से एक ही लेख महिलाओं द्वारा लिखा गया मिला।
विमर्श के इस मौजूदा स्वरूप को बदलने के लिए, एक वैकल्पिक मीडिया की तत्काल जरूरत है। एक ऐसा मीडिया जो वंचित तबकों के जबानी इतिहास, उनकी आवाज और उनके जीवन के अनुभवों से बने समुदाय-संचालित नजरिए और साक्ष्यों पर केंद्रित हो। समाजसेवी संस्थाओं ने इस अंतराल को भरने के लिए कई प्रयास किए हैं। सामुदायिक रेडियो जैसे स्थानीय माध्यमों से शुरुआत कर, इन संस्थाओं ने हाल ही में डिजिटल मीडिया में कदम रखा है जिसका इस्तेमाल अब भारतीय आबादी का एक बड़ा हिस्सा करता है। यहां कुछ ऐसे तरीकों पर बात की गई है जिनसे गैर-लाभकारी मीडिया आउटलेट कम प्रतिनिधित्व वाली आवाजों और मुद्दों को आगे ला रहे हैं:
1. परिप्रेक्ष्य-संचालित दृष्टिकोण को मजबूत करना
परिप्रेक्ष्य-संचालित दृष्टिकोण, लोगों के दैनिक जीवन के अनुभवों के आधार पर बनते हैं जो उनके जीवन पर गैर-बराबरी, हाशिये पर पहुंचने और अन्य व्यापक सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों के असर को एक जगह केन्द्रित कर देखते हैं। इस तरह के प्रयास मुख्यधारा की चर्चाओं से दूर मौजूद लोगों को, मीडिया में उनके अनुभवों को समझने और प्रसारित करने के तरीके पर फिर से नियंत्रण पाने में सक्षम बनाकर, उन्हें इन चर्चाओं में सक्रिय भागीदार बनने में मदद करते हैं। उदाहरण के लिए पीपल्स आर्काइव ऑफ रूरल इंडिया (परी), खुद को एक ‘जीवंत पत्रिका और एक दस्तावेज संग्रह’ बताता है जो भारत के ग्रामीण इलाकों के नजरियों को इकट्ठा करता है। परी ग्रामीण भारतीयों के लेख, वीडियो और ऑडियो रिपोर्ट प्रकाशित करता है, और कहानियां अक्सर बताने वाले की जुबान में होती हैं।
2. आंकड़ों पर आधारित कहानियां बताना
आंकड़ों के साथ, तथ्य-आधारित कहानियां कहना, प्रमाणों के साथ उपेक्षित मुद्दों, इलाकों और सामाजिक क्षेत्रों को सामने लाने में मदद करता है। यह, तकनीकी साक्ष्य – जैसे विकास पर सरकारी आंकड़ों – को व्यापक जनता के लिए उपलब्ध कराने पर ध्यान केन्द्रित करता है। साथ ही विभिन्न समूह जिनके हित इससे जुड़े होते हैं, उनके हितों को सामने लाने और प्रासंगिक बनाने पर भी ध्यान केंद्रित करता है। उदाहरण के लिए, इंडियास्पेंड एक डेटा-आधारित पत्रकारिता मंच है जो शिक्षा, स्वास्थ्य, जेंडर और जलवायु परिवर्तन जैसे विशिष्ट संदर्भों वाली दृष्टि के आधार पर भारत की सामाजिक और राजनीतिक अर्थव्यवस्था पर आंकड़े प्रसारित करता है।
3. विशिष्ट विकास दृष्टिकोण का प्रसार करना
विकास-केंद्रित विशिष्ट मीडिया संसाधन सामाजिक क्षेत्र से जुड़ी चुनौतियों, बाधाओं और प्रगति के बारे में बताते हैं। इंडिया डेवलपमेंट रिव्यू (आईडीआर) जैसे मंच और सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट के डाउन टू अर्थ जैसे प्रकाशन विशिष्ट मीडिया एजेंसियों के उदाहरण हैं। यह सक्रिय रूप से भारत में विकास क्षेत्र से जुड़ी चुनौतियों पर नजरियों को नया आकार दे रहे हैं और हाशिए के समुदायों की जरूरतों पर रौशनी डाल रहे हैं। जमीनी संगठनों के साथ मिलकर काम करके और सिविल सोसाइटी या नागरिक समाज के कार्यकर्ताओं के दृष्टिकोण को बढ़ावा देकर वह ऐसा कर पाते हैं। यह मॉडल इस आधार पर संचालित होता है कि गैर-लाभकारी संस्थाओं के कार्यकर्ताओं के पास अनुभव आधारित प्रचुर ज्ञान मौजूद है, और मुख्यधारा के विकास संवाद में और अधिक बारीकियों को शामिल करने के लिए इसे व्यापक रूप से फैलाए जाने की जरूरत है।
4. मीडिया एक्शन इकोसिस्टम को मजबूत करना
मीडिया की पहुंच बढ़ाने के लिए गैर-लाभकारी संस्थाएं दो अलग-अलग तरीकों से ईकोसिस्टम के स्तर पर प्रयास कर रही हैं। उदाहरण के लिए, डिजिटल प्रकाशन द थर्ड आई सार्वजनिक स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे क्षेत्रीय विषयों पर समुदाय के लोगों के साथ व्यक्तिगत निबंध और साक्षात्कार का मेल करता है। जमीनी स्तर तक ज्ञान पहुँचाने के लिए नारीवादी दृष्टिकोण के साथ अपनी मूल संस्था निरंतर ट्रस्ट के कई दशकों के जुड़ाव के आधार पर, यह जमीनी संगठनों में ऑफलाइन प्रशिक्षण और अनुभवों से मिली शिक्षा का आदान-प्रदान भी आयोजित करता है। इसी तरह, प्वाइंट ऑफ व्यू (पीओवी) अपने विभिन्न कार्यक्षेत्रों में लेख और शोध पत्र प्रकाशित करता है, जो ज्ञान प्रणालियों, डिजिटल नैतिकता, महिलाओं, क्वीयर समुदायों और विकलांग लोगों सहित हाशिए पर मौजूद समुदायों के अधिकारों पर ध्यान केंद्रित करता है। साथ ही, पीओवी इन समुदायों के लिए जागरूकता कार्यशालाएं और पाठ्यक्रम भी चलाता है और समावेशी सरकारी नीतियों की हिमायत करता है।
इस परिदृश्य में गैर-लाभकारी संस्थाओं की मुख्य चुनौतियां
तमाम प्रयासों के बावजूद, ये गैर-लाभकारी (मीडिया) संस्थाएं अभी भी अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं। भारत में निजी डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म कमाई के लिए सब्सक्रिप्शन और पेवॉल पर तेजी से निर्भर होते जा रहे हैं। हालांकि, गैर-लाभकारी संस्थाओं के लिए ऐसे मॉडल अपना पाना चुनौतीपूर्ण है। खासतौर पर इसलिए क्योंकि इन संस्थाओं का उद्देश्य महत्वपूर्ण जानकारियों और ज्ञान को आम जनता के लिए सुलभ और सहज बनाना है। सामाजिक क्षेत्र या विकास क्षेत्र से मिलने वाली फंडिंग का विकल्प भी इनके लिए मुश्किल होता है।
इस तरह की पहलों के लिए आर्थिक सहयोग हासिल करने में चुनौतियों का कारण यह हो सकता है कि इन संस्थाओं के परिणाम अक्सर क्रमिक होते हैं, उनमें व्यवहारिक परिवर्तन शामिल होते हैं, और इसलिए उन्हें मापना कठिन होता है। ऐसे में जहां बहुत से फंडर्स तुरंत दिखाई देने और मापे जा सकने वाले परिणामों को प्राथमिकता देते हैं, यह नुकसानदायक साबित होता है। हालांकि इनमें से कई संस्थाएं लंबे समय में प्रभाव दिखाने के अवसरों से लाभान्वित हो सकती हैं, लेकिन उनके पास अक्सर दूरगामी कार्यक्रम बनाने और उनके नतीजे हासिल करने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं होते हैं। लंबी अवधि के उपयोग के लिए निर्धारित फंडिंग के लचीले रूपों तक पहुंच इन गैर-लाभकारी संस्थाओं को फलने-फूलने और बड़े पैमाने पर प्रभाव हासिल करने में मदद कर सकती है।
समाजसेवी कैसे मदद कर सकते हैं?
ज्ञान का प्रसार और मीडिया की पहुंच और असर को बढ़ाने के क्षेत्रों को लेकर यह आम धारणा हैं कि इन्हें फंडिंग मिलने में मुश्किलें आती हैं। जैसे-जैसे डिजिटल मीडिया का विकास जारी है, दुष्प्रचार और गलत सूचना, नई नीतियों और कानूनी व्यवस्थाओं और परिदृश्य में बदलाव सहित अभूतपूर्व चुनौतियों के कारण यह धारणा और भी मजबूत हो गई है।
गैर-लाभकारी (मीडिया) संस्थाएं अभी भी अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं।
भारत में विविध भाषाई और सामाजिक-सांस्कृतिक समूहों के लिए काम करने वाला विविध डिजिटल मीडिया और संचार परिदृश्य, आज के समय की मांग है। इस पर काम करने वाली गैर-लाभकारी संस्थाओं के लिए व्यक्तिगत स्तर पर समाजसेवा, अपनी जोखिम उठाने की क्षमता और लचीलेपन के साथ एक मजबूत फंडिंग पाइपलाइन बनाने में मदद कर सकती है। उन्हें फंड करने से इस बात पर भी ध्यान दिया जा सकता है कि उनका काम विकास की चुनौतियों को हल करने में कैसे योगदान देता है और उनके द्वारा चलाए जाने वाले सकारात्मक परिणामों के बारे में अधिक जागरूकता पैदा करता है।
समुदाय-संचालित नजरिए और प्रभावों पर ध्यान केंद्रित करने वाले गैर-लाभकारी मीडिया की विभिन्न प्रकार की गतिविधियां होती हैं। यह कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें समाजसेवियों से मिलने वाली पूंजी बहुत मददगार साबित हो सकती है:
क्षमता निर्माण में सहायता: गैर-लाभकारी मीडिया संस्थानों में विविध समुदायों और संस्कृतियों का प्रतिनिधित्व करने वाले कार्यबल को तैयार करने के लिए क्षमता-निर्माण की पहल बहुत जरूरी है। यह पहल उपेक्षित और हाशिए के समुदायों के लिए सशक्त कहानीकार और रचनाकार बनने के अवसर पैदा करती है, जिससे मौलिक और प्रथम-व्यक्ति दृष्टिकोण के लिए मुख्यधारा में शामिल होने का बेहतर रास्ता बनता है।
प्रसार के नए रूपों में निवेश: जानकारी और ज्ञान तक हाशिये के समुदायों की पहुंच आसान और प्रासंगिक बनाने पर काम करने में गैर-लाभकारी संस्थाएं सबसे आगे रही हैं। बहुभाषी और मल्टीमीडिया प्रसार को आर्थिक सहयोग देकर कुछ सामाजिक-आर्थिक बाधाओं को पार किया जा सकता है जो बड़े पैमाने पर पहुंच बनाने में बाधा डालती हैं। इसका मतलब उन नई पहलों का सहयोग करना है जो यह तय करती हैं कि विकलांग लोगों जैसे हाशिए के समुदायों भी इनमें शामिल हैं।
प्रौद्योगिकी और नवाचार को आर्थिक सहयोग देना: पारंपरिक तरीकों से डिजिटल होने के बदलाव और नए मीडिया उपकरणों के विकास के लिए पूंजी की जरूरत होती है। बड़े, लाभकारी मीडिया प्लेटफार्मों के वर्चस्व वाले प्रसार परिदृश्य में गैर-लाभकारी संस्थाओं को प्रतिस्पर्धी और प्रासंगिक बने रहने के लिए तकनीकी समाधानों में निवेश करना महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। जैसे, कई भाषाओं में अधिक पॉडकास्ट और ऑडियो-विज़ुअल रिपोर्टिंग को फंड करने से गैर-लाभकारी संस्थाओं को ऐसा कंटेन्ट तैयार करने में मदद मिल सकती है जो अधिक सुलभ और प्रासंगिक है।
हालांकि गैर-लाभकारी मीडिया संगठन तुरंत नतीजे नहीं दे सकते हैं, लेकिन उनका दूरगामी असर वंचित समुदायों के दुनिया को देखने के नजरिए की उपेक्षा करने वाले गैर-बराबरी वाले समाज में महत्वपूर्ण हो सकता है। वे जनता की भलाई के लिए आसानी से उपलब्ध हो सकने वाले ज्ञान के भंडार (रिपोजिटरीस) के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। फंडर्स और समाजसेवियों के लिए इन संस्थाओं को पहचानना और इनमें निवेश करना महत्वपूर्ण है।
इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ें।
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