June 14, 2022

ई-श्रम रजिस्ट्रेशन की प्रक्रियाओं से जुड़ी अव्यवस्था

अपने ई-श्रम कार्ड रजिस्ट्रेशन के लिए देश भर के अनौपचारिक मज़दूरों को आर्थिक लाभ से जुड़ी अफ़वाहों, धोखाधड़ी और मुश्किल प्रक्रियाओं का सामना करना पड़ता है।
9 मिनट लंबा लेख

31 जून 2021 को महामारी के दिनों में असंगठित मज़दूरों के संघर्षों से जुड़ी एक याचिका की सुनवाई हुई। इसमें भारत के सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को अनौपचारिक क्षेत्र में काम कर रहे श्रमिकों का डेटाबेस बनाने की प्रक्रिया में तेजी लाने का निर्देश दिया। इस फ़ैसले के जवाब में अगस्त 2021 में सरकार ने असंगठित मज़दूरों के राष्ट्रीय डेटाबेस ई-श्रम पोर्टल की शुरुआत की। 

ई-श्रम का लक्ष्य और इसके पीछे का विचार काफ़ी अच्छा है। ऐसा कोई भी व्यापक आँकड़ा नहीं है जो भारत भर में अनौपचारिक क्षेत्रों में काम करने वाले मज़दूरों से जुड़ी जानकारियाँ प्रदान करता हो। हालाँकि ई-श्रम पोर्टल पर मज़दूर का नाम, पेशा, पता, शैक्षणिक योग्यता, कौशल के प्रकार और परिवार की जानकारी उपलब्ध होती है। इसमें निर्माण के क्षेत्र में काम करने वाले मज़दूर, घरेलू सहायक, रेहड़ी-पटरी वाले, ब्यूटिशियन, वेटर, रिक्शा चालकों के साथ ऐसे अन्य मज़दूर शामिल होते हैं जिन्हें अमूमन सरकार द्वारा शुरू की गई योजनाओं और नीतियों के बारे में मालूम नहीं होता है और वे इन फ़ायदों से वंचित रह जाते हैं।

सरकार ने ई-श्रम रजिस्ट्रेशन के लिए देशव्यापी जागरूकता अभियानों में काफ़ी धन निवेश किया है। इसके लिए जगह-जगह इसके प्रचार में बैनर लगाए गए हैं और ज़मीनी स्तर पर स्वयंसेवी संस्थाओं के साथ मिलकर काम किया जा रहा है। खबरों के रिपोर्ट के अनुसार ऐसी उम्मीद की जा रही है कि नवम्बर 2021 के अंत तक  असंगठित क्षेत्र के 380 मिलियन मज़दूरों में से 91 मिलियन मज़दूरों ने इस पोर्टल पर अपना रजिस्ट्रेशन करवा लिया है। हालाँकि ये सब आँकड़े हैं। सच्चाई यह है कि ई-श्रम रजिस्ट्रेशन एक बहुत ही मुश्किल प्रक्रिया है और इसके फ़ायदों को लेकर मज़दूर वर्ग में ढ़ेरों भ्रम और आशंकाएँ हैं।

किस तरह के मज़दूर रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं?

1. ऐसे मज़दूर जिनके पास मोबाइल फ़ोन, आधार कार्ड और बैंक अकाउंट है

ई-श्रम पोर्टल पर सेल्फ़-रजिस्ट्रेशन के लिए आधार कार्ड से जुड़ा मोबाइल नम्बर आवश्यक है। यह योग्यता प्रवासी मज़दूरों के लिए अपने आप में एक बड़ी समस्या है क्योंकि अपने काम के कारण इन्हें एक जगह से दूसरी जगह जाना पड़ता है। और इसी कारण वे समय-समय पर अपना सिम कार्ड भी बदल लेते हैं। दिल्ली में  असंगठित मज़दूर संघों के लिए बनाए गए संगठन दिल्ली श्रमिक संगठन के संस्थापक सदस्य रमेंद्र कुमार का कहना है कि “प्रवासी मज़दूर अपने मोबाइल नम्बर को स्थायी नहीं मानते हैं। वे कई कारणों से अपने नम्बर बदलते रहते हैं। जैसे कि अपने गाँव वापस जाने पर वे अपना नम्बर बदल लेते हैं, कई बार उनका मोबाइल गुम जाता है या चोरी हो जाता है। कई मामलों में ऐसा भी होता है कि यदि उनके काम करने वाले इलाक़े में जियो का नेटवर्क बेहतर है तो वे अपना वोडाफ़ोन का सिम फेंककर जियो का नया सिम ख़रीद लेते हैं।”

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एक काउंटर के दूसरी तरफ़ मज़दूर खड़े हैं_ई-श्रम
पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन करने के लिए मज़दूरों के पास उनके आधार कार्ड से जुड़ा बैंक अकाउंट होना चाहिए | चित्र साभार: © गेट्स आर्कायव्स/प्रशांत पंजियार

अगर मज़दूर के पास आधार कार्ड से जुड़ा मोबाइल फ़ोन नहीं है तो उसे इलाक़े के अनुमंडल पदाधिकारी के दफ़्तर में जाकर अपना मोबाइल दोबारा लिंक करवाना होता है। इसके लिए उसके बायोमेट्रिक सत्यापन की ज़रूरत होती है जिसकी अपनी चुनौतियाँ हैं। कुमार बताते हैं कि “बहुत लम्बी लाइन होती है और एक दिन में केवल 60 मज़दूरों का ही आधार लिंक हो पाता है। इसका दूसरा विकल्प सार्वजनिक सेवा केंद्रों पर जाना है।”

ऐसे भी कई मामले हैं जहां कई मज़दूर एक ही जगह रहते हैं और एक ही मोबाइल फ़ोन का इस्तेमाल करते हैं। सरकारी नियमों के अनुसार एक मोबाइल नम्बर से तीन लोगों का रजिस्ट्रेशन हो सकता है। लेकिन फिर बैंक अकाउंट की समस्या खड़ी हो जाती है। पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन करने के लिए एक चालू खाता होना ज़रूरी है जो मज़दूर के अपने आधार कार्ड से जुड़ा हो। सरकार द्वारा शुरू की गई जन धन योजना के तहत पिछले कुछ सालों में मज़दूरों के बैंक खाते खुले थे लेकिन उनमें से अधिकतर खाते निष्क्रिय अवस्था में हैं।

अन्य मामलों में उनके बैंक अकाउंट उनके आधार से नहीं जुड़े होते हैं। हक़दर्शक नागरिकों को सरकारी कल्याणकारी योजनाओं से जोड़ने के लिए तकनीक का इस्तेमाल करने वाला एक संगठन है। इस संगठन के लिए मुंबई में ई-श्रम रजिस्ट्रेशन की ज़िम्मेदारी उठाने वाले केदार अन्नम बताते हैं कि “लोगों के पास अक्सर अपना निजी बैंक अकाउंट नहीं होता है। वे सामूहिक बैंक अकाउंट से अपना काम चलाते हैं। इसलिए यदि किसी मज़दूर ने सामूहिक बैंक अकाउंट के नम्बर का इस्तेमाल करके अपना ई-श्रम कार्ड बनवाया है तो हम उसी नम्बर से उसकी पत्नी के लिए नया कार्ड बनाने की कोशिश करते हैं, लेकिन सिस्टम इसे स्वीकार नहीं करता है।”

2. युवा एवं डिजिटल रूप से साक्षर मज़दूर

शीला दिल्ली के सरिता विहार में घरेलू सहायिका है। वह अपना ई-श्रम कार्ड बनवाना चाहती है क्योंकि उसने अपने सहकर्मियों से इससे होने वाले आर्थिक फ़ायदों के बारे में सुना था। उसके लिए पैसा अब अधिक महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि महामारी के दौरान उसकी बढ़ती उम्र को देखते हुए उसे काम से निकाल दिया गया

हालाँकि अपनी उम्र की वजह से ही शीला का रजिस्ट्रेशन नहीं हो सकता है। वह 60 साल की है और ई-श्रम पर केवल 16 से 59 साल के बीच के लोगों का ही रजिस्ट्रेशन सम्भव है। भारत में अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में काम करने वाले प्रवासी मज़दूरों पर लंदन स्कूल ऑफ़ इकॉनोमिक्स में शोध कर रही हर्षिता सिन्हा हमें बताती हैं कि “बहुत सारे लोग छूट जाएँगे क्योंकि अनौपचारिक क्षेत्र में 60 साल की उम्र से ज़्यादा के मज़दूर भी काम करते हैं।” कम-आय वाले लोगों के पास सेवानिवृति का विकल्प नहीं होता है। यह एक ऐसा बिंदु है जिसपर नीति निर्माताओं का ध्यान नहीं गया है। अन्नम चेतावनी देते हुए कहते हैं, “ऐसा कई बार होता है जब मज़दूर के आधार कार्ड पर उसकी जन्मतिथि ग़लत लिखी होती है। इसलिए चाहे उनकी वास्तविक उम्र कुछ भी हो, ग़लत काग़ज़ के कारण उनका रजिस्ट्रेशन ई-श्रम पोर्टल पर नहीं हो पाता है।”

सबसे दिलचस्प स्थिति वह होती है जब मज़दूर बिना किसी अधिक परेशानी के ई-श्रम पोर्टल पर अपना रजिस्ट्रेशन करवा लेते हैं। अन्नम कहते हैं, “ऐसे जवान मज़दूर जो किसी संघ या समूह का हिस्सा होते हैं उनके मोबाइल नंबर आधार कार्ड से जुड़े होते हैं। 35 से अधिक उम्र वाले मज़दूरों को इसमें परेशानी होती है।” कुमार अपनी सहमति जताते हुए कहते हैं कि “औपचारिक रूप से शिक्षित और डिजिटल ज्ञान रखने वाले मज़दूरों का संघर्ष कम है।”

3. ऐसा मज़दूर जो अनौपचारिक क्षेत्र का नहीं है

हालाँकि ई-श्रम की पूरी अवधारणा ही अनौपचारिक श्रमिकों की आबादी का डेटाबेस तैयार करना है लेकिन बावजूद इसके इसमें रजिस्ट्रेशन की योग्यता को लेकर कई तरह के संशय हैं। अन्नम कहते हैं, “सबसे बड़ी चिंता पोर्टल पर की गई वर्गीकरण से जुड़ी है। चूँकि कुछ पेशों के लिए निश्चित श्रेणी तय नहीं की गई है इसलिए हमें एक साझे पेशे पर निर्भर रहना पड़ता है। उदाहरण के लिए हम नहीं जानते हैं कि निर्माण क्षेत्र में सहायक के रूप में काम करने वाले मज़दूर को किस श्रेणी में रखा जाएगा। ‘सहायक’ नाम से एक आम श्रेणी है लेकिन वह सिर्फ़ कपड़ा उद्योग में काम कर रहे कपड़ा मज़दूरों के लिए है। सफ़ाई, निर्माण और ऑटोमोबाइल क्षेत्रों में सहायक वाली श्रेणी नहीं है। जब लोगों को सूची में अपना पेशा दिखाई नहीं पड़ता है तब वे ‘सहायक’ वाली श्रेणी चुन लेते हैं।” अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए वे कहते हैं कि अनौपचारिक रोज़गार में अक्सर दोहरा काम होता है और चूँकि पोर्टल की सूची में दूसरे पेशे वाली श्रेणी उपलब्ध नहीं है इसलिए लोग ग़लत विकल्प चुन लेते हैं।

सिन्हा इस बात से सहमत हैं कि श्रेणियों में मज़दूरों का एक अलग प्रतिनिधित्व हो सकता है जिसे पहचाने जाने की ज़रूरत है, “ड्राइवर, घरों में सफ़ाई का काम करने वाले लोग या बड़े-बड़े घरों में काम करने वालों के सहायक के रूप में काम करने वाले लोगों को घरेलू काम की श्रेणी में डाला जाता है। इसकी वजह से उनके प्रतिनिधित्व में थोड़ा बदलाव आ जाता है। एक दूसरी समस्या है कि कुछ श्रेणियों का हिंदी से अंग्रेज़ी अनुवाद ग़लत है। जैसे कि अगर आप निर्माण वाली जगह पर कारीगरी से जुड़ा कोई काम करते हैं तो उसके लिए ई-श्रम पोर्टल पर किसी तरह की श्रेणी उपलब्ध नहीं है।”

इसके अलावा भी कई समस्याएँ हैं। ऐसे मज़दूर जिनका प्रॉविडेंट फंड अकाउंट है वह अपना रजिस्ट्रेशन ई-श्रम पोर्टल पर नहीं कर सकते हैं। हालाँकि ऐसे लोगों की पहचान करना आसान नहीं है। हक़दर्शक के ऑपरेशंस के एसोसियेट वाइस-प्रेसिंडेट संजय परमार कहते हैं कि “दो प्रकार के पीएफ़ खाता धारक हैं: ऐसे लोग जो स्थायी कर्मचारी के रूप में काम करते हैं और वो लोग जो कांट्रैक्ट पर काम करते हैं। दूसरी श्रेणी के लोग तीन महीने एक जगह तो छः महीने दूसरी जगह काम करते हैं इसलिए उनका पीएफ़ अकाउंट बदलता रहता है। कई बार ऐसा होता है कि वे जिस कम्पनी में काम करते हैं वहाँ सरकारी नियमों के तहत उनके पीएफ़ अकाउंट खुल तो जाते हैं लेकिन नियोक्ता उनमें पैसे जमा नहीं करवाते हैं। इसलिए हम ऐसे लोगों का रजिस्ट्रेशन ई-श्रम पोर्टल पर करवाने में मदद करते हैं। ऐसे भी लोग हैं जिन्होंने पहले औपचारिक क्षेत्रों में काम किया है और वे पीएफ़ के हक़दार रह चुके हैं लेकिन अब नहीं हैं।”

परमार बताते हैं कि “कभी-कभी लोग झूठ भी बोलते हैं। उनका पीएफ़ अकाउंट सक्रिय होता है लेकिन वे मुकर जाते हैं। पीएफ़ पोर्टल पर इन चीजों की जाँच की सुविधा नहीं है।”

मज़दूर क्या सोचते हैं?

मज़दूरों के मन में आशंका है लेकिन उन्हें उम्मीद भी है। दिल्ली के पश्चिम  विहार में निर्माण कार्य करने वाले उमेर सिंह ने कहा कि “मैंने अपना रजिस्ट्रेशन करवा लिया क्योंकि लोगों ने मुझसे कहा कि उनके खाते में पैसे आते हैं।” वह घरेलू सहायिका का काम करने वाली अपनी पत्नी का भी रजिस्ट्रेशन करवा रहे हैं। सरिता विहार के घरों में काम करने वाली पुष्पा ने भी इसी उम्मीद में ई-श्रम पोर्टल पर अपना रजिस्ट्रेशन करवाया है। उसने कहा कि वह किसी ऐसे आदमी को जानती है जिसके एक जानने वाले को ई-श्रम पोर्टल में रजिस्ट्रेशन के बाद अकाउंट में पैसे मिले हैं।

इस भ्रम का कारण ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत 1.5 करोड़ मज़दूरों के खातों में आने वाले वह 1,000 रुपए है जो उत्तर प्रदेश सरकार ने विधान सभा चुनावों के पहले प्रत्येक मज़दूर को दिए थे। यह पैसा उन प्रवासी मज़दूरों के खातों में भी आया था जो दिल्ली जैसे पास के राज्यों में रहते हैं। इस पूरी प्रक्रिया से स्थानीय समुदाय के लोगों में एक झूठी उम्मीद पैदा हो गई है।

हालाँकि कई मज़दूर अब भी सावधान हैं। सिन्हा बताती हैं कि “मैंने मज़दूरों को कहते सुना है कि ‘आप लोग हमसे हमारी जानकारियाँ ले रहे हैं; इससे हमें कोई समस्या तो नहीं होगी न? क्या हमारे पैसे कटेंगे? हमें क्या मिलेगा?’” ऐसी अफ़वाहें भी उड़ाई गई कि ई-श्रम पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन के बाद लोगों के खाते से पैसे कट गए। इन अफ़वाहों ने आग में घी का काम किया और मज़दूरों के मन में बैठी आशंकाएँ और अधिक प्रबल हो गईं।

इस तथ्य से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि ई-श्रम जैसे डिजिटल उत्पाद श्रमिक और मज़दूर वर्ग के लोगों के लिए उपयुक्त नहीं है। ई-श्रम ‘कार्ड’ एक सॉफ़्ट कॉपी होती है। ऐसा संभव है कि रजिस्ट्रेशन के बाद किसी को उसका भौतिक कार्ड न मिल पाए। अन्नम कहते हैं कि “कार्ड पीडीएफ़ फ़ाइल के रूप में आती है और अक्सर लोग इसकी महत्ता नहीं समझते हैं। हमें इस पीडीएफ़ का प्रिंट निकालकर उन्हें देना पड़ता है ताकि उन्हें इस बात की तसल्ली हो कि उन्हें कुछ मिला है।”

ई-श्रम के फ़ायदों पर केंद्र सरकार द्वारा जारी निर्देशों में अस्पष्टता होने के कारण इससे मदद नहीं मिल पाती है। जन साहस हाशिए के मज़दूरों के अधिकारों की सुरक्षा पर काम करने वाली एक स्वयंसेवी संस्था है। इसके तेलंगाना इकाई में काम करने वाले मोहम्मद असद का कहना है कि “हम लोगों को लगातार इस बात की जानकारी दे रहे हैं कि अब तक का एकमात्र फ़ायदा प्रधान मंत्री सुरक्षा बीमा से मिलने वाला बीमा है। इस बीमा के तहत दुर्घटना होने पर 2 लाख रुपए की राशि और दुर्घटना के कारण विकलांग होने पर 1 लाख रुपए की राशि मिलती है। लेकिन समुदाय के लोगों का मानना है कि भविष्य में ज़्यादा फ़ायदा ई-श्रम से मिलेगा।” पोर्टल पर उपलब्ध बाक़ी सब पहले की योजनाएँ हैं, इन योजनाओं में जीवन ज्योति योजना या आयुष्मान भारत योजना है। इनका लाभ उठाने के लिए लोगों को प्रत्येक योजना के पोर्टल पर जाकर अलग-अलग आवेदन करना पड़ता है।

लेकिन ई-श्रम की लोकप्रियता से इंकार नहीं किया जा सकता है। मुश्किलों और इसकी जटिलताओं के बावजूद पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन करवाने के लिए सेवा केंद्रों और कैम्पों में मज़दूरों की भीड़ लगी होती है। जन साहस के माइग्रेंट्स रेज़िल्यन्स कलैबरेटिव में सामाजिक सुरक्षा की प्रमुख गरिमा साहनी ने कहा कि “हमें शायद यह देखकर आश्चर्य हो सकता है कि लोग एक ऐसे कार्ड के लिए क़तारों में क्यों खड़े हो रहे हैं जो सिर्फ़ एक बीमा का वादा करता है। लेकिन हम ऐसे लोगों की बात कर रहे हैं जिन्होंने अपना पूरा जीवन पेंशन पाने की कोशिश में लगा दिया पर उन्हें फिर भी उनका पेंशन नहीं मिला। या फिर लोगों ने अपने बीओसीडबल्यू कार्ड के लिए सरकारी दफ़्तरों के हज़ार चक्कर लगाए लेकिन उन्हें उनका कार्ड नहीं मिल पाया। अगर सरकार उन्हें किसी काम के अनुभव, स्थायी पता या ऐसे ही हज़ार तरह के काग़ज़ों के बिना ही कार्ड दे रही है तो वे लेंगे ही।”

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लेखक के बारे में
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देबोजीत दत्ता

देबोजीत दत्ता आईडीआर में संपादकीय सहायक हैं और लेखों के लिखने, संपादन, सोर्सिंग और प्रकाशन के जिम्मेदार हैं। इसके पहले उन्होने सहपीडिया, द क्विंट और द संडे गार्जियन के साथ संपादकीय भूमिकाओं में काम किया है, और एक साहित्यिक वेबज़ीन, एंटीसेरियस, के संस्थापक संपादक हैं। देबोजीत के लेख हिमल साउथेशियन, स्क्रॉल और वायर जैसे प्रकाशनों से प्रकाशित हैं।

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श्रेया अधिकारी

श्रेया अधिकारी आईडीआर में एक संपादकीय सहयोगी हैं। वे लेखन, संपादन, सोर्सिंग और प्रकाशन सामग्री के अलावा पॉडकास्ट के प्रबंधन से जुड़े काम करती हैं। श्रेया के पास मीडिया और संचार पेशेवर के रूप में सात साल से अधिक का अनुभव है। उन्होंने जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल सहित भारत और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न कला और संस्कृति उत्सवों के क्यूरेशन और प्रोडक्शन का काम भी किया है।

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