March 16, 2022

अनौपचारिक कर्मचारियों की मदद के लिए बनाई गई सरकारी योजनाओं में खामियाँ

ई-श्रम पोर्टल तक पहुँचने में आने वाली बाधाओं को दूर करना जरूरी है ताकि अनौपचारिक क्षेत्रों में काम करने वाले श्रमिक भी इसका लाभ उठा सकें।
9 मिनट लंबा लेख

भारत सरकार ने देश में 38 करोड़ असंगठित श्रमिकों को पंजीकृत करने के अधिदेश के साथ ई-श्रम पोर्टल लॉंच किया था। इस पोर्टल का उद्देश्य पंजीकरण के बाद ई-श्रम कार्ड (ओर श्रमिक कार्ड) जारी करके सामाजिक कल्याण और रोजगार लाभ तक पहुँचने में आने वाली बाधाओं को दूर करना है ताकि असंगठित श्रमिक भी इन सरकारी योजनाओं का लाभ उठा सकें। इस कार्ड के जरिये हर श्रमिक को एक अनोखी 12 अंकीय संख्या मिलती है जो सामाजिक सुरक्षा और रोजगार के लाभों तक की उनकी पहुँच को सक्षम बनाती है। सरकार की योजना यह है कि वह पोर्टल के माध्यम से एकत्र किए गए आंकड़े (डाटा) का उपयोग करके देश का पहला आधार-सीडेड असंगठित कामगारों का राष्ट्रीय डाटाबेस (एनडीयूडबल्यू) बनाएगी।

यह अपने तरह की एक अनूठी पहल है जिसका स्वागत किया जाना चाहिए क्योंकि इससे सभी असंगठित श्रमिक व्यवस्थित रूप से एक जगह आ जाएंगे। ‘श्रमिक’ शब्द की परिभाषा के दायरे का विस्तार करके यह बाहर रखे गए घरेलू और प्रवासी श्रमिकों की पूर्ववर्ती श्रेणियों को शामिल करने का काम करता है। इस पोर्टल पर ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों ही तरीके से पंजीकरण की सुविधा उपलब्ध है। हालांकि, जैसा नीचे बताया गया है, श्रमिकों के इस डिजिटल पोर्टल के इस्तेमाल के असफल प्रयासों ने गैर-डिजिटल ढांचे की महत्ता को रेखांकित किया है। यह गरीब और हाशिये पर जी रहे असंगठित श्रमिकों के लिए डिजिटल हस्तक्षेप की पहुँच और इसके प्रभाव को बेहतर करेगा, जिनकी सच्चाई एक डिजिटल विभाजन से प्रभावित है।

इसके अलावा, पोर्टल तक पहुँचने और पंजीकरण का प्रयास करने वाले श्रमिकों की अंतर्दृष्टि नियोक्ताओं, श्रमिक समूहों और नागरिक समाज संगठनों (सीएसओ) के बीच सक्रिय और प्रभावी सहयोग की जरूरत को उजागर करती है। इससे पोर्टल को उन लाभार्थियों तक पहुंचने में मदद मिलेगी जिन तक पहुँचना इसका लक्ष्य है।

डिवाइस और इंटरनेट तक पहुँचने की राह में आने वाली बाधाएँ

नई दिल्ली में काम करने वाले तीन प्रवासी घरेलू श्रमिकों के पंजीकरण की कोशिश की गई जिनमें से दो पश्चिम बंगाल (अमीरा और नूर) से थीं और एक मध्य प्रदेश (रीता देवी) की रहने वाली थी। इनके पंजीकरण की प्रक्रिया ने असमाहित समूह के लोगों को पहुँच, जागरूकता और कल्याण योजनाओं से जुड़े लाभों को पाने की क्षमता में आने वाली बाधाओं पर प्रकाश डाला। खुद को डिजिटल रूप से पंजीकृत करवाने की अमीरा की पहली कोशिश असफल हो गई क्योंकि वह बिना इन्टरनेट वाले अपने कीपैड फोन की मदद से ई-श्रम पोर्टल तक नहीं पहुँच सकती थी। अगली बारी नूर की थी—वह इस वेबसाइट तक इसलिए नहीं पहुँच पाई क्योंकि उसका 2G इंटरनेट वाला मोबाइल फोन इसके लिए अनुकूल नहीं था। और रीता खुद का फोन न होने के कारण अपने परिवार वालों से बात करने के लिए भी अपने नियोक्ता के फोन पर निर्भर है।

Hindi Facebook ad banner for Hindi website

मोबाइल नंबर-सीडेड आधार तक पहुंचने में आने वाली बाधाएँ

उसके बाद हमने पंजीकरण के लिए डेस्कटॉप इंटरफेस का उपयोग किया। अमीरा का पंजीकरण फिर भी संभव नहीं हो पाया क्योंकि उसके आधार से जुड़ा मोबाइल नंबर उसके वर्तमान के मोबाइल नंबर से मेल नहीं खाता था। “ट्रेन से दिल्ली आने के दौरान मेरा वह नंबर खो गया जिसे मैं और मेरे पति इस्तेमाल करते थे…एक घरेलू श्रमिक के रूप में मैंने उस नंबर का इस्तेमाल करके किसी भी तरह का लाभ नहीं उठाया जो एक कर्मचारी को मिलता है…मुझे इन लाभों के बारे में मालूम भी नहीं था।” अमीरा ने पहले ऐसे किसी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ नहीं उठाया था जिसके लिए मोबाइल-आधार सत्यापन की जरूरत होती है। इसलिए वह सालों तक इस बात से अनजान थी कि उसे अपने आधार से जुड़ा मोबाइल नंबर अपडेट करवाने की जरूरत है। पंजीकरण की इस प्रक्रिया में अमीरा जिस बात से सबसे ज्यादा परेशान और संशय में थी वह यह था कि इस ऑनलाइन पोर्टल पर कहीं उसके आधार का दुरुपयोग न हो जाए। क्योंकि उसे ऐसे किसी पोर्टल के बारे में कोई सूचना नहीं थी। उसने कहा, “इससे बंगाल में मेरे परिवार की पीडीएस पात्रता समाप्त तो नहीं हो जाएगी न?”

नूर और रीता का ऑनलाइन पंजीकरण इसलिए असफल हो गया क्योंकि उनके आधार कार्ड मोबाइल से जुड़े हुए नहीं थे। ऑनलाइन ई-श्रम पोर्टल के लिए मोबाइल नंबर-आधार सत्यापन की जरूरत होती है। इसलिए ये श्रमिक अपने लाभ के लिए डिजिटल हस्तक्षेप का उपयोग करने में असमर्थ थे।

प्रवासी श्रमिकों की अनिश्चितता उनके आधार अपडेट करने की प्रक्रिया के दौरान आने वाली चुनौतियों के कारण प्रबल होती है।

तीनों ही मामलों में, ऑनलाइन पंजीकरण की असफलता आम सेवा केन्द्रों (सीएससी) और ऑनलाइन पंजीकरण के लिए बनाए गए किओस्क पर श्रमिकों के भरोसे की जरूरत पर प्रकाश डालती है। इन केन्द्रों पर श्रमिक ऑनलाइन पंजीकरण के लिए अपने मोबाइल से अपना आधार जोड़ने में मदद हासिल कर सकते हैं। इस प्रकार गैर-डिजिटल ढांचे पर निर्भर करने वाली कल्याणकारी योजनाएँ डिजिटल होने का दावा करती हैं। यह पिछली रिपोर्टों के निष्कर्षों के अनुरूप है जो यह दर्शाता है कि प्रवासी श्रमिकों की अनिश्चितता उनके आधार को अपडेट करने की प्रक्रिया के दौरान आने वाली चुनौतियों के कारण प्रबल होती है। वित्तीय समावेशन पहल करने वाली संस्था चलो नेटवर्क की टीम के साथ बातचीत से हमें यह पता चला कि प्रवासी श्रमिकों को इन बाधाओं का सामना कई कारणों से करना पड़ता है। सबसे पहला कारण यह है कि प्रक्रिया को लेकर बहुत ही सीमित जागरूकता है और दूसरा, इसमें समय और वित्तीय खर्च शामिल है। महामारी के दौरान यह बात विशेष रूप से सामने आई जब श्रमिकों को आधार के अपडेट प्रक्रिया के कारण कल्याणकारी योजनाओं का सीमित लाभ मिल पाया। जिसके कारण सहायता के लिए उनकी निर्भरता गैर-डिजिटल ढांचे पर और बिचौलियों पर हो गई।

ई-श्रम लाभार्थियों के लिए एक समावेशी और अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण

सरकार भारत के आधार-सीड एनडीयूडबल्यू के निर्माण की दिशा में कदम उठा रही है और असंगठित श्रमिकों की कल्याणकारी लाभों तक पहुँच को आसान बनाने का काम कर रही है। लेकिन योजनाओं और लाभार्थियों के बीच अब भी दूरी है और इस दूरी को पाटने का काम बाकी है। इस दूरी को कम करने की जरूरत इसलिए भी है ताकि कल्याणकारी योजनाओं में भारत के उन 90 प्रतिशत असंगठित कार्यबल को शामिल किया जा सके जो हाशिये पर हैं और जिन्हें रोजगार-संबंधी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है। सरकार और कल्याणकारी पारिस्थितिकी तंत्र को इस समस्या की ओर ध्यान देने की जरूरत है जिसके कारण श्रमिक इस बुनियादी ढांचे का प्रभावी रूप से उपयोग नहीं कर पाते हैं और इन लाभों से वंचित रह जाते हैं। कुछ प्रमुख क्षेत्र निम्नलिखित हैं जिन पर विचार करने की जरूरत है:

1. डिजिटल असमानता को कम करना

भारत के कुल कार्यबल का 92 प्रतिशत हिस्सा असंगठित श्रमिकों का है। भारत में ग्रामीण इलाकों में केवल 4.4 प्रतिशत और शहरी इलाकों में 42 प्रतिशत ही ऐसे घर हैं जहां इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध है। और यह अनुपात और कम हो जाता है जब हम इसमें लैंगिक और क्षेत्रीय असमानता को जोड़ते हैं।

इस डिजिटल रूप से असमान परिदृश्य में ई-श्रमिक के जैविक डिजिटल उत्थान की हमारी आशा दूर का सपना जैसा लगती है। हालांकि, पहले से मौजूद गैर-डिजिटल कल्याणकरी ढांचों का उपयोग—कल्याणकरी बोर्ड, उचित मूल्य की दुकानें (एफ़पीएस), सीएससी के एजेंट और सीएसओ—जो जमीनी स्तर पर असंगठित श्रमिकों के साथ काम कर रहे हैं, इसके तेजी और प्रभावशाली उत्थान में योगदान दे सकते हैं।

दो महिलाएं, एक अपने स्मार्टफोन को देख रही है और एक टैबलेट को देख रही है और ऐप का उपयोग कर रही है-ई-श्रम पोर्टल
असंगठित श्रमिकों के प्रभावी डिजिटल हस्तक्षेप के लिए एक मजबूत गैर-डिजिटल ढांचे के समर्थन की आवश्यकता है। | चित्र साभार: © बिल & मेलिंडा गेट्स फ़ाउंडेशन/प्रशांत पंजीयर

2. विश्वास और पहुँच को मजबूत बनाना

इतिहास को देखा जाये तो यह बात सामने आती है कि कई असंगठित श्रमिक राज्यों द्वारा रोजगार संबंधी लाभों के दायरे से बाहर ही रहे हैं। उन्हें पहली बार शामिल किए जाने वाली बात को ध्यान में रखते हुए, पोर्टल पर पंजीकरण के लाभों के बारे में लाभार्थियों और रोजगार पारिस्थितिकी तंत्र के बीच जागरूकता और विश्वास पैदा करने की जरूरत है। अनौपचारिकता न केवल राज्य-कार्यकर्ता संबंधों की बल्कि श्रमिक-नियोक्ता संबंधों की भी एक विशेषता बनी हुई है। इसलिए पहल के गुणों के बारे में श्रमिकों और उनके नियोक्ताओं के बीच विश्वास को सुदृढ़ करना महत्वपूर्ण है। यहां, बहुभाषी पोस्टरों और आवाज-आधारित जागरूकता पहलों के उपयोग के साथ जमीनी जागरूकता अभियान की जरूरत है। ऐसे अभियान विशेष रूप से उन प्रवासियों, महिलाओं और किशोर श्रमिकों को पंजीकरण के लिए प्रोत्साहित करने का काम करेंगे जो वर्तमान में साक्षरता और भाषा की कमी के कारण हाशिए पर हैं

3. गैर-डिजिटल ढांचे को मजबूत करना

असंगठित श्रमिकों के लिए प्रभावी डिजिटल हस्तक्षेप को एक मजबूत गैर-डिजिटल बुनियादी ढांचे द्वारा समर्थित किए जाने की आवश्यकता है। बड़े पैमाने पर प्रभाव पैदा करने के लिए, सरकार को सीएससी और कियोस्क सहित गैर-डिजिटल बुनियादी ढांचे के प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण में निवेश करना चाहिए। यह श्रमिकों के लिए पोर्टल का प्रभावी ढंग से उपयोग करने का पहला कदम होगा। इसके अलावा जागरूकता फैलाने और लाभार्थियों तक पहुँच को बढ़ाने के लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा), एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) जैसे अन्य सरकारी हस्तक्षेपों से अंतिम व्यक्ति तक वितरण पहुँचाने वाले एजेंटों के मौजूदा नेटवर्क को पूंजीकृत किया जा सकता है।

4. अपने लाभ के लिए श्रमिकों के स्व-चयन से बचना

ई-श्रम पोर्टल घरेलू और प्रवासी श्रमिकों जैसी श्रेणियों को सामाजिक कल्याण लाभ प्रदान करता है जिन्हें अब तक कल्याणकारी बुनियादी ढांचे से बाहर रखा गया है। यह उन श्रमिकों के बीच अधिकारों के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए विशेष ध्यान देने की बात करता है जिनके श्रम को नीति और सामाजिक दोनों ही क्षेत्र में बाहर रखा गया है। नीति के दायरे में महिलाओं के घरेलू काम के ऐतिहासिक लिंग आधारित बहिष्करण को ध्यान में रखते हुए अधिकांश घरेलू कामगार अपने अधिकारों और उन हकों से अनजान रहते हैं जिनके वे पात्र हैं। यह स्थिति तब और बदतर हो जाती है जब श्रमिक गंतव्य राज्यों में प्रवासी होते हैं। जहां उनके पास अपने नियोक्ताओं के मुकाबले सीमित सौदेबाजी की शक्ति होती है। इस संदर्भ में, एक सक्रिय जागरूकता अभियान श्रमिकों के आत्म-बहिष्करण से बचने और लाभार्थियों के रूप में समान समावेश को बढ़ावा देने में मदद करेगा।

5. हितधारकों के रूप में नियोक्ताओं और सीएसओ का समावेशन

अंत में, असंगठित क्षेत्र में नियोक्ताओं और कर्मचारियों के बीच अनौपचारिक संबंधों को ध्यान में रखते हुए, सीएसओ, नियोक्ताओं और बिचौलियों जैसे कि केदारों और ठेकेदारों के साथ काम करना महत्वपूर्ण है। इससे एक पारिस्थितिकी तंत्र को सक्षम किया जा सकेगा जो श्रमिकों के लाभ पर केंद्रित होगा। पंजीकरण को प्रोत्साहित करने के लिए नियोक्ताओं को उकसाने से संभावित लाभ हो सकता है। इसके अलावा यह भी बताए जाने की जरूरत है कि असंगठित श्रमिक अपने नियोक्ताओं को बिना किसी तरह का नुकसान पहुंचाए या दंड का भागी बनाए इन लाभ का फायदा उठा सकते हैं। विशेष रूप से, ई-श्रम के साथ सीएसओ एकीकरण को दो तरह से देखा जा सकता है। सबसे पहले, अपने मौजूदा कार्यक्रमों में गैर-सरकारी स्वयंसेवी-आधारित पंजीकरण के माध्यम से श्रमिकों तक पहुंच को सक्षम करके। दूसरा, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में पिछले प्रयासों के समान लाभों के प्रभावी वितरण के लिए सीएसओ के साथ भागीदारी करके। प्रभावी जमीनी एकीकरण असंगठित श्रमिकों के लिए कल्याणकारी पारिस्थितिकी तंत्र के सहयोग और मजबूती के लिए एक पथप्रदर्शक स्थान प्रदान कर सकता है।

इस लेख को अँग्रेजी में पढ़ें

अधिक जानें

अधिक करें

  • अपने पहचान के किसी अनौपचारिक श्रमिक या कर्मचारी से ई-श्रम प्लैटफ़ार्म के बारे में बात करें। पंजीकरण और इस प्लैटफ़ार्म के माध्यम से मिलने वाले लाभों तक पहुँचने में उनकी मदद करें।

लेखक के बारे में
हर्षिता सिन्हा-Image
हर्षिता सिन्हा

हर्षिता सिन्हा प्रवासी श्रमिकों और भारतीय अनौपचारिक श्रम बाजार पर काम करने वाले लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में पीएचडी उम्मीदवार हैं। वह इंडिया माइग्रेशन नाउ और बंधु अर्बन टेक की माइग्रेशन फेलो भी हैं। वह अपने काम के माध्यम से शहरी गंतव्य राज्यों में नागरिकता और अनौपचारिक श्रम व्यवस्था के प्रतिच्छेदन पर नजर बनाए रखती हैं। उन्होंने हाल ही में वॉयस ऑफ इनफॉर्मलिटी, एक ज्ञान मंच तैयार किया है जिसका उद्देश्य अभ्यास-आधारित कार्रवाई के लिए अनौपचारिकता पर जमीनी स्तर की कहानियों को सामने लाना है।

टिप्पणी

गोपनीयता बनाए रखने के लिए आपके ईमेल का पता सार्वजनिक नहीं किया जाएगा। आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *