May 5, 2025

अगली पीढ़ी के लिए कठिन वर्तमान और अनिश्चित भविष्य की वजह बनता जलवायु संकट

जानिए क्यों बच्चों की सुरक्षा और बेहतरी भी जलवायु संकट से जुड़ी चर्चाओं का विषय बननी चाहिए।
7 मिनट लंबा लेख

यूनीसेफ बच्चों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को आंकने के लिए क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स जारी करता है। कुल 163 देशों की इस सूची में भारत 26वें स्थान पर है। एक अनुमान के मुताबिक, हर साल देश के 2.4 करोड़ बच्चे चक्रवात, बाढ़, लू और जलवायु से जुड़ी अन्य आपदाओं से प्रभावित होते हैं। मानव गतिविधियों के कारण लगातार जलवायु परिवर्तन होने से चरम मौसमी घटनाओं की अप्रत्याशितता, आवृत्ति और गंभीरता बढ़ गयी है, जिससे इस संकट के और गहराने की संभावना है।

जलवायु संकट का असर बच्चों की शिक्षा, पोषण, खाद्य सुरक्षा और स्वास्थ्य पर तो साफ दिखाई देता है, लेकिन यह उनकी सुरक्षा और समग्र विकास पर भी प्रभाव डालता है। हालांकि इस पहलू को अब तक उतना समझा नहीं गया है और यह प्रभाव अप्रत्यक्ष रूप से ही सामने आता है। बच्चे अपने जीवन और भरण-पोषण के लिए माता-पिता और करीबियों की देखरेख पर निर्भर होते हैं। लेकिन जलवायु आपदाएं न केवल परिवारों की संरचना को अस्थिर कर देती हैं, बल्कि देखभाल, सुरक्षा और सामाजिक-आर्थिक सहयोग की नींव को भी झकझोर देती हैं। इससे उनके विकास और सुरक्षा पर तात्कालिक और दीर्घकालिक, दोनों तरह के प्रभाव पड़ते हैं। लेकिन ऐसी विसंगतियां अक्सर दिखाई नहीं देती हैं, जिससे इनका आकलन और समाधान कर पाना बहुत मुश्किल हो जाता है।

आंगन में, हम बीते 22 सालों से बच्चों की सुरक्षा और बेहतरी के मुद्दे पर काम कर रहे हैं। 2020 में पश्चिम बंगाल के सुंदरबन इलाके में काम के दौरान हमने लोगों के जीवन पर जलवायु संकटके बढ़ते प्रभाव पर गौर किया। हमने देखा कि कैसे यह उनकी अनुकूलन क्षमता को कम करता है और कैसे इसका असर बच्चों के खिलाफ हिंसा और शोषण की बढ़ती घटनाओं के रूप में साफ दिखाई देता है। अपने काम के दौरान हमने समझा कि जलवायु संकट बच्चों को किस तरह से प्रभावित कर रहा है। इसके कुछ मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:

1. आजीविका संकट और पलायन बच्चों को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है

पश्चिम बंगाल के चौबीस परगना जिले में रहने वाली, 15 साल की सुदेशना* के माता-पिता को यास चक्रवात के बाद पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा। वह अपने संघर्ष को याद करते हुए कहती हैं कि “मेरे माता-पिता ने जब पलायन किया, तो मुझे मेरे वृद्ध दादा-दादी और छोटे भाई-बहनों की देखभाल करने के लिए छोड़ दिया। मुझे रास्ता बताने वाला कोई नहीं था और मैं भटका हुआ महसूस करती थी।”

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जलवायु संकट के कारण होने वाला पलायन, अक्सर बेहतर आजीविका के लिए किए जाने वाले पलायन से अलग होता है। इस तरह के पलायन में अक्सर लोगों के पास कोई और विकल्प नहीं होता है। प्राकृतिक आपदाओं के चलते, अचानक आजीविका, घर और जमीन खोने के बाद परिवारों को पलायन करना पड़ता है। इस तरह के पलायन के कारण परिवार और समुदायों में बिखराव के साथ-साथ बच्चों के लिए मौजूद सुरक्षा व्यवस्था भी छिन्न-भिन्न होती दिखाई देती है। छोटे बच्चों को अक्सर उनके दादा-दादी या बड़े भाई-बहनों (अधिकतर बहनों) की निगरानी में छोड़ दिया जाता है। कुछ बच्चे अकेले भी पलायन करते हैं और जोखिम-भरे हालातों में काम करते हैं। वहीं, कुछ मामलों में परिवार के सदस्यों को अलग-अलग जगहों पर जाना पड़ता है, तो कुछ में पूरा परिवार दूसरी जगह जाकर बसता है। कई प्रवासियों को लगातार पलायन करते रहना पड़ता है क्योंकि वे जिस दूसरी जगह पर जाकर बसते हैं, वह भी जलवायु संकट से ग्रस्त होती है।

जलवायु के कारण होने वाला प्रवास परिवारों की प्रकृति, बनावट और उनके रहन-सहन के तरीके को बदल देता है। पलायन के लगभग हर मामले में, बच्चों को परिवार से बिछड़ने और उचित स्वास्थ्य, आवास और पोषण न मिलने के जोखिमों का सामना करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त, उन्हें बिना देखरेख के छोड़ दिया जाना, विद्यालय से नाम कटाना, काम में झोंक दिया जाना तथा हिंसा, शोषण और दुर्व्यवहार का शिकार बनने जैसी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है।

गंदे तालाब से पानी भरता एक बच्चा— जलवायु संकट
जलवायु आपदाओं के आजीविका पर प्रभाव और परिवारों की वित्तीय अस्थिरता के चलते बाल मजदूरी और बाल विवाह के मामले भी बढ़ जाते हैं। | चित्र साभार: आंगन इंडिया

2. जलवायु संकट के कारण बाल विवाह और बाल मजदूरी के मामले बढ़ रहे हैं

जलवायु संबंधी घटनाएं सभी पर बुरा असर डालती हैं। लेकिन यह बच्चों को खासतौर पर प्रभावित करती हैं क्योंकि वे अनिश्चितताओं के लिए तैयार नहीं होते हैं। जब जलवायु के चलते परिस्थितियां बिगड़ती हैं, तो बढ़ता आर्थिक दबाव और कर्ज का भार परिवारों को बाल विवाह या बाल मजदूरी जैसे नकारात्मक फैसले लेने पर मजबूर करता है। साल 2023 में सुंदरबन के कुछ जलवायु-जोखिम वाले जिलों में काम के दौरान हमने एक सर्वेक्षण किया था। यह सर्वे बताता है कि आजीविका पर जलवायु संकट के प्रभाव और परिवारों की आर्थिक अस्थिरता के कारण बाल मजदूरी और बाल विवाह के मामले बढ़ रहे हैं। सर्वे में शामिल कुछ 608 परिवारों में से 16% का कहना था कि इन वजहों से या तो उन्होंने बच्चों की शादी जल्दी की है, उन्हें काम पर भेजा है या फिर उन्हें स्कूल से निकाल लिया है। आजीविका के लिहाज से अधिक नुकसान झेलने वाले, संवेदनशील परिवारों के लिए यह आंकड़ा 20% था। सर्वे में शामिल रहे किशोरों में से 15-23% का कहना था कि उन्होंने शादी या काम करने के दबाव का सामना किया है। वहीं 65-75% का कहना था कि वे किसी न किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं, जो इससे प्रभावित है।

जलवायु के कारण होने वाला प्रवास परिवारों की प्रकृति, बनावट और उनके रहन-सहन के तरीके को बदल देता है।

16 साल की श्रीपर्णा* कहती हैं, “स्कूल में हमारा छह दोस्तों का ग्रुप था। हम खूब हंसते थे। लेकिन अब सिर्फ एक दोस्त बचा है। बाकी या तो शादी कर चुके हैं या उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ा है, क्योंकि उनके परिवार गरीब हैं। मैंने अपने आखिरी बचे दोस्त के साथ पक्की दोस्ती रखी है। हम दोनों एक दूसरे को खोने के ख्याल से भी डरते हैं।”

कई अभिभावकों के लिए, बाल विवाह उनकी बेटियों की सुरक्षा का एकमात्र तरीका बन जाता है, खासकर तब जब वे उनकी देखरेख नहीं कर पाते हैं या काम पर जाने के दौरान उनकी सुरक्षा को लेकर चिंतित होते हैं। लंबे समय तक स्कूलों का बंद रहना और आर्थिक दबावों का बढ़ना भी बच्चों को घर या बाहर काम करने पर मजबूर करता है। बच्चों की पढ़ाई पर इसका असर अलग-अलग तरह से दिखाई पड़ता है। कई बार उन्हें पूरी तरह स्कूल छोड़ना पड़ता है या फिर वे काम के साथ-साथ अनियमित रूप से स्कूल जाते हैं।

स्कूल छोड़ने के बाद वापस लौटना कितना मुश्किल होता है, इस विषय पर 17 वर्षीय सुरज्यो* का कहना है कि, “जब चक्रवात अम्फन आया, तब मेरी उम्र 13 साल थी। मुझे स्कूल छोड़ना पड़ा और परिवार की मदद के लिए काम करना पड़ा। तब से मैंने चेन्नई और केरल में काम किया है। मेरे पिता ने हाल ही में मुझे वापस बुलाया और कहा कि मुझे अपनी पढ़ाई पूरी करनी चाहिए। लेकिन अब मेरी उम्र लगभग 18 साल है और कोई स्कूल मुझे दाखिला देने को तैयार नहीं है। वैसे भी, बारिश और बाढ़ के कारण स्कूल बंद होते रहते हैं। मुझे नहीं मालूम कि अब मैं क्या करूं?”

3. चरम मौसमी घटनाएं बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल रही हैं

जलवायु संकट का बच्चों की मानसिक सेहत पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। उन्हें अक्सर अजनबी लोगों के बीच, अस्थाई आश्रयों में रहना पड़ता है। उन्हें यह तक मालूम नहीं होता है कि वे अपने पिछले जीवन में लौट पाएंगे या नहीं। छोटे बच्चे इससे अधिक परेशान होते हैं, क्योंकि उनमें ऐसी परिस्थितियों से निपटने की भावनात्मक परिपक्वता नहीं होती है।

अपने अध्ययन में हमने पाया कि आपदा से होने वाला तनाव, मानसिक स्तर पर बच्चों को कई तरह से प्रभावित करता है। वे अधिक भयभीत, बेचैन और अकेले हो जाते हैं। कई बार उन्हें बोलने और घर से बाहर निकलने जैसी चीजों तक में कठिनाई होने लगती है। हमने देखा कि कुछ बच्चे तूफान, बिजली और तेज आवाज से डरने लगे थे और उन्हें किसी काम में ध्यान लगाने में दिक्कत होती थी। वहीं कुछ बच्चों में ज़्यादा ‘उदासी, गुस्सा और आक्रामकता देखने को मिली।

हमने जिन किशोरों से बात की, उनमें से बहुतों का कहना था कि वे अपनी परिस्थितियों से इतने हताश थे, कि वे अक्सर जोखिम भरे विकल्पों के बारे में सोचते थे। जैसे भाग जाना, संदिग्ध लोगों (एजेंटों) के साथ पलायन करना या शादी कर लेना। 17 वर्षीय ममता* बताती हैं कि “मैं अक्सर भाग जाने के बारे में सोचती हूं। मेरे सारे दोस्त कहते हैं कि भाग जाना या शादी कर लेना यहां रहने से कहीं अच्छा है।”

जलवायु संकट सालों के विकास को खत्म कर रहा है

जलवायु संकट न केवल अलग-अलग तरह से बच्चों को प्रभावित कर रहा है, बल्कि यह उनकी सुरक्षा, स्वास्थ्य, बेहतरी, पोषण और शिक्षा में सुधार के बीते सालों के प्रयासों को शून्य की तरफ ले जा रहा है। इसके बावजूद, जलवायु संकट को लेकर चल रहे तमाम प्रयासों और समाधानों में बच्चों की जरूरतों को नजरअंदाज किया जाता है। बच्चों को शायद ही कभी एक नागरिक और प्रभावित व्यक्ति की तरह देखा जाता है। उनकी अलग जरूरतों और अधिकारों को भी नजरअंदाज किया जाता है। हैं। बच्चों से जुड़े अधिकांश प्रयास आधे-अधूरे और एकतरफा होते हैं, जिनमें उनकी सभी जरूरतों पर गौर किए बगैर केवल शिक्षा, मातृ और शिशु स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा और पोषण जैसे मुद्दों पर ध्यान दिया जाता है।

सर्वे बताता है कि आजीविका पर जलवायु संकट के प्रभाव और परिवारों की आर्थिक अस्थिरता के कारण बाल मजदूरी और बाल विवाह के मामले बढ़ रहे हैं।

भारत में, बच्चों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के विषय पर केंद्रीकृत, स्थानीय स्तर के आंकड़ों का अभाव है। इसमें बच्चों को प्रभावित करने वालों संकेतक, जैसे कामकाजी बच्चे (5 से 18 वर्ष), लापता बच्चे, सड़क पर रहने वाले बच्चे, प्रवासी बच्चे या परिवारों के पलायन से प्रभावित बच्चे, तस्करी प्रभावित बच्चे, स्कूल में नामांकित लेकिन स्कूल नहीं या अनियमित जाने वाले बच्चे और अनाथ बच्चे शामिल है। इस तरह के आंकड़ों का ना होना सभी हितधारकों को प्रभावित करता है, फिर चाहे वे फंडर्स हों, नीति निर्माता हों या बच्चों को लेकर काम करने वाले संगठन हों। इससे सबसे अधिक जोखिम बच्चों को होता है, जो हिंसा और शोषण का शिकार बन सकते हैं। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन और बाल सुरक्षा के बीच संबंध को लेकर सभी हितधारकों की समझ अभी बहुत मजबूत नहीं है। नतीजतन इस गंभीर मसले पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है।

बच्चों का समूह—जलवायु संकट
बच्चों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से प्रभावी ढंग से बचाने के लिए उनके विशिष्ट जोखिमों और ज़रूरतों को समझना जरूरी है। | चित्र साभार: आंगन इंडिया

जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव से बच्चों को प्रभावी रूप से बचाने के लिए, इस संदर्भ में बच्चों से जुड़े जोखिमों और उनकी जरूरतों को समझना जरूरी है। ऐसे में जलवायु संबंधी प्रयास से जुड़े लोगों के लिए आवश्यक है कि वे:

(1) बच्चों की सुरक्षा और कल्याण के चार बुनियादी और परस्पर संबंधित क्षेत्रों में बच्चों की जरूरत के मुताबिक विचार करें: सुरक्षा और संरक्षण; बुनियादी सेवाओं तक पहुंच (जैसे स्वास्थ्य, पोषण, पानी, स्वच्छता, समाजिक सुरक्षा और भोजन); परिवार और समुदाय का जुड़ाव; एवं शिक्षा और आर्थिक सुरक्षा।

(2) बाल संरक्षण और जलवायु कार्रवाई के बिखरे हुए प्रयासों को एकजुट कर, विभिन्न क्षेत्रों के अनेक साझेदारों के साथ मिलकर समन्वित और एकीकृत पहलों को अपनाना आवश्यक है, ताकि बच्चों की सुरक्षा और सम्पूर्ण कल्याण सुनिश्चित किया जा सके।

(3) आपदा प्रबंधन के सभी पहलुओं में बच्चों की सुरक्षा और बेहतरी को प्राथमिकता दें। फिर चाहे यह तैयारी हो, अनुकूलन और बदलाव हो; या प्रतिक्रिया और राहत कार्यक्रम; या फिर स्थाई पुनर्वास।

जलवायु संकट की लगातार बदलती प्रकृति को देखते हुए बच्चों से जुड़ी हिंसा और जोखिमों को लेकर हमारी नीतियां, तैयारी और हस्तक्षेप भी बदलने चाहिए। जमीन पर वास्तविक प्रभाव पैदा करने के लिए इन प्रयासों को बच्चों और उनके अभिभावकों के अनुभवों पर आधारित होना चाहिए।

साथ ही, यह समझना जरूरी है कि जलवायु परिवर्तन एकांत में होने वाली घटना नहीं है। इसके प्रभाव व्यापक हैं, कई व्यवस्थाओं को प्रभावित करते हैं और मौजूदा कमियों को और चुनौतीपूर्ण बना देते हैं। जलवायु संबंधी कार्रवाइयां करते हुए इन अंतर्संबंधों पर गौर किया जाना चाहिए। इन प्रयासों को बच्चों पर केंद्रित होना चाहिए और उन्हें हिंसा और शोषण से बचाने की दिशा में काम होना चाहिए। हम केवल तभी यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि बच्चे पूरी तरह सुरक्षित हैं।

*गोपनीयता बनाए रखने के लिए नाम बदल दिए गए हैं।

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लेखक के बारे में
जननी शेखर-Image
जननी शेखर

जननी शेखर आंगन के साथ बतौर प्रोग्राम हेड काम करती हैं और, बच्चों और जलवायु कार्रवाई से जुड़ी ज़िम्मेदारियां देखती हैं। उनका काम बच्चों पर केंद्रित जलवायु प्रयासों पर जोर देना है। आंगन में शामिल होने से पहले, जननी ने 13 से अधिक सालों तक एक कॉर्पोरेट लॉयर (मर्जर एंड एक्वीजिशन) के तौर पर काम किया है।

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