मामित जिला, मिज़ोरम के डम्पारेंगपुई में रहने वाले बिआकथंग, बांस से चीजें बनाने वाले एक कलाकार हैं। वे ब्रू समुदाय से आते हैं और पिछले कई दशकों से रोजाना इस्तेमाल होने वाली चीजें जैसे नोहखाई (सब्ज़ी और चावल ले जाने की टोकरी) और तोइलंगा (पानी की बोतलों और बर्तनों की टोकरी), लेखो (छोटी टोकरी) और बाइलेंग (चावल साफ करने का बर्तन) वगैरह बना रहे हैं।
अपनी पिछली पीढ़ियों की तरह बिआकथंग ने भी बचपन में ही बांस हस्तशिल्प (बैम्बू हैंडीक्राफ्ट) की कला सीखी थी। वे बताते हैं कि “हर ब्रू परिवार के कुछ सदस्य नोहखाई बनाना जानते थे। लेकिन इस पीढ़ी के लोग नहीं जानते कि इसे कैसे बनाया जाता है।”
रबर और प्लास्टिक से बनी चीजों ने भी ब्रू-लोगों के घरों में जगह बना ली है। बिआकथंग इसकी वजह विकल्पों की मौजूदगी और आवागमन की सुविधा को बताते हैं। साथ ही, वे यह भी जोड़ते हैं कि संरक्षण के अभाव में जंगल के संसाधनों का नष्ट होना भी एक बड़ी वजह है। वे बताते हैं कि “हमारा समुदाय पहले (हैंडीक्राफ़्ट के लिए) रायसोह, सालांग और राई जैसे वन संसाधनों का उपयोग करता था। लेकिन ये अब आसानी से नहीं मिलती हैं और अब हमारे पास पहले की तरह विशाल वन क्षेत्र भी नहीं है। हमने जंगलों को नष्ट कर दिया है और अब जिन सामग्रियों की हमें जरूरत है वे केवल गहरे जंगल में ही मिलती हैं।”
उनके अनुसार, हस्तशिल्प एक महत्वपूर्ण पारंपरिक प्रथा है, इनका खत्म होना ब्रू परंपराओं के खत्म होने जैसा है। बिआकथंग के दरवाज़े हमेशा उन लोगों के लिए खुले हैं जो यह कला सीखना चाहते हैं। वे कहते हैं, “पिछले साल मैंने अपने से बड़ी उम्र के एक व्यक्ति को (नोहखाई बनाना) सिखाया है। अगर तुम कल से सीखना चाहते हो तो मेरे घर आ जाना।” लेकिन वे समझते हैं कि परंपरा के संरक्षण में उनके व्यक्तिगत प्रयास बहुत सीमित ही हैं, इसके लिए समुदाय और सरकार को साथ आना चाहिए और मिलकर प्रयास करना चाहिए।
रोडिंगलिआन, आईडीआर में नॉर्थ-ईस्ट मीडिया फेलो 2024-25 हैं।
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