पिछले महीने संपन्न हुए आम चुनावों में मिले झटकों के बाद केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को अपना सातवां बजट पेश किया। यह मौजूदा सरकार का पहला बजट था। इस दौरान उनके सामने दोहरी चुनौती थी – गठबंधन में शामिल सहयोगी दलों की उम्मीदों को जगह देना और बढ़ती हुई बेरोजगारी का हल खोजना। इन चुनौतियों के बावजूद, उन्होंने बजट में पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए कई घोषणाएं की। हालांकि, उनमें से कई ऐसी घोषणाएं हैं जिन पर पहले से काम हो रहा है।
अपने बजट भाषण में सीतारमण ने नौ मुख्य प्राथमिकताओं को रेखांकित किया। इनमें खेती को मौसम के अनुकूल बनाकर उपज बढ़ाना, शहरी विकास को आगे बढ़ाना, ऊर्जा सुरक्षा और मध्यम, लघु व सूक्ष्म उद्यमों (एमएसएमई) पर ध्यान देते हुए विनिर्माण और सेवाओं को बढ़ाना शामिल है।
नई दिल्ली स्थित गैर-लाभकारी संगठन आईफॉरेस्ट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी चंद्र भूषण ने कहा कि घोषणाओं की संख्या अंतरिम बजट जैसी ही है। हालांकि, चार प्राथमिकताएं – ऊर्जा सुरक्षा, टिकाऊ खेती, एमएसएमई पर ध्यान और शहरी विकास भविष्य के लिए अहम हैं। ये क्षेत्र पर्यावरण के लिहाज से भी काफी महत्वपूर्ण हैं।
इन उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए वित्त मंत्री ने कई ऐसी घोषणाएं की जो पहले से ही चल रही हैं। उदाहरण के लिए, जलवायु वित्त के लिए वर्गीकरण का काम कम से कम दो सालों से चल रहा है। इसके अलावा प्रधानमंत्री सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना की घोषणा फरवरी में ही की जा चुकी है। वहीं, कार्बन मार्केट बनाने की प्रक्रिया 2022 से जारी है। साथ ही, एडवांस्ड अल्ट्रा सुपर क्रिटिकल थर्मल पावर प्लांट के लिए साल 2016 में पायलट अध्ययन शुरू किए गए थे। यही नहीं, एक करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती के तरीकों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने की योजना की घोषणा भी पिछले आम बजट में की जा चुकी है।
प्राकृतिक आपदाओं को कम करने और उनके हिसाब से ढल जाने की कोशिशों पर बजट में जोर है। साथ ही, बजट में बिहार, असम, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और सिक्किम जैसे बाढ़ प्रभावित राज्यों में बाढ़ प्रबंधन और पुनर्निर्माण के लिए प्रावधान भी शामिल हैं। इसका उद्देश्य कुदरती आपदाओं के दुष्प्रभाव को कम करना और इन क्षेत्रों के पुनर्निर्माण में मदद करना है।
एनर्जी ट्रांजिशन पर जोर
इससे पहले, 22 जुलाई को संसद में आर्थिक सर्वेक्षण पेश हुआ था। इसमें देश में एनर्जी ट्रांजिशन की चुनौती और इससे जुड़े समझौतों को शामिल किया गया था। सर्वेक्षण में कहा गया था कि यह काफी चुनौती भरा लक्ष्य है। इसमें भारत की खास स्थिति को रेखांकित किया गया, जहां सरकार को सस्ती उर्जा भी उपलब्ध करानी है ताकि देश विकसित देशों की कतार में खड़े होने की अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा कर सके। दूसरी तरफ पर्यावरण को देखते हुए कार्बन उत्सर्जन कम करने के तरीकों को भी बढ़ावा देना है। सर्वेक्षण में भंडारण क्षमता, जरूरी खनिजों, परमाणु ऊर्जा, साफ-सुथरे कोयले की तरफ धीरे-धीरे बढ़ना और ज्यादा कुशल तकनीकों के महत्व पर जोर दिया गया है।
इन जटिलताओं को देखते हुए वित्त मंत्री ने उचित एनर्जी ट्रांजिशन के तरीकों पर नीति दस्तावेज पेश करने की घोषणा की जो रोजगार, विकास और टिकाऊ पर्यावरण की जरूरतों के हिसाब से है।
चंद्र भूषण ने बताया, “मुझे उम्मीद है कि देश में व्यापक विचार-विमर्श के बाद ही यह नीति लायी जाएगी। क्योंकि विभिन्न राज्यों में ऊर्जा सुरक्षा और ट्रांजिशन की चुनौतियां अलग-अलग हैं।”
केंद्रीय मंत्री सीतारमण ने छतों के जरिए सौर ऊर्जा, पंप स्टोरेज और परमाणु ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए योजनाओं की घोषणा की। सरकार छोटे व उन्नत रिएक्टर बनाने और परमाणु ऊर्जा से जुड़ी नई तकनीकों के विकास के लिए निजी क्षेत्र से हाथ भी मिलाएगी।
उन्होंने बहुत ज़्यादा जरूरी खनिजों (क्रिटिकल मिनरल) के लिए मिशन शुरू करने की घोषणा की। इसके जरिए घरेलू स्तर पर उत्पादन, इन खनिजों को दोबारा इस्तेमाल करने के लायक बनाने और दूसरे देशों में इन खनिजों के लिए खनन पट्टे लेने पर ध्यान दिया जाएगा। सरकार खनन के लिए अपतटीय ब्लॉक की पहली किश्त की नीलामी शुरू करेगी। परमाणु और नवीन ऊर्जा क्षेत्रों के लिए लिथियम, तांबा, कोबाल्ट और दुर्लभ अर्थ एलिमेंट जैसे अहम खनिजों की अहमियत को पहचानते हुए मंत्री ने ऐसे 25 खनिजों पर सीमा शुल्क से पूरी तरह छूट देने का प्रस्ताव रखा।
मंत्री ने ऐसे उद्योगों के लिए ‘ऊर्जा कुशलता’ से ‘उत्सर्जन लक्ष्यों’ की तरफ बढ़ने के लिए रोडमैप बनाने का ऐलान भी किया जिनमें ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम करना बहुत मुश्किल है।
उन्होंने सूक्ष्म और लघु उद्योगों की अहमियत को पहचाना और बताया कि पीतल और सिरेमिक सहित 60 पारंपरिक क्लस्टरों का एनर्जी ऑडिट किया जाएगा। इन उद्योगों में साफ-सुथरी ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा देने और ऊर्जा कुशलता से जुड़े उपायों को लागू करने में मदद के लिए वित्तीय सहायता दी जाएगी। उन्होंने कहा कि अगले चरण में इस योजना का विस्तार 100 और क्लस्टरों तक किया जाएगा।
जलवायु परिवर्तन से बचाव के लिए धन जुटाने पर जोर
आर्थिक सर्वेक्षण में जलवायु वित्त (क्लाइमेट फाइनेंस) की अहमियत पर कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन की लड़ाई में सबसे कठिन है सस्ते दर पर पूंजी की व्यवस्था।
वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार टैक्सनॉमी लेकर आएगी जिससे पता चलेगा कि कौन सा क्षेत्र पर्यावरण के दायरे में आता है। इससे जलवायु परिवर्तन के हिसाब से ढलने और उससे पार पाने के लिए धन की व्यवस्था करने में मदद मिलेगी। हालांकि, वित्त मंत्रालय कम से कम तीन सालों से टैक्सोनॉमी तैयार करने की दिशा में काम कर रहा है। हालांकि, इसका मसौदा आज तक सार्वजनिक नहीं किया गया है।
आने वाले भविष्य में जैव विविधता और पानी जैसे पर्यावरण से जुड़े दूसरे मुद्दों को भी जलवायु परिवर्तन में शामिल करना होगा।
इस पर क्लाइमेट बॉन्ड्स इनिशिएटिव की दक्षिण एशिया प्रमुख नेहा कुमार कहती हैं कि बजट मे इसकी घोषणा करना स्वागत योग्य कदम है। उन्होंने आगे कहा कि सरकार उम्मीद है अब तक किये काम को ही आगे बढ़ाएगी। उन्होंने कहा, “मुझे उम्मीद है कि इस काम को नए सिरे से शुरुआत से करने की बजाए मौजूदा ढांचे पर काम किया जाएगा, जिसमें बेहतरीन तरीकों को शामिल किया गया है और देश की प्राथमिकताओं का भी ध्यान रखा गया है।” कुमार वित्त मंत्रालय के उस टास्क फोर्स का हिस्सा रही हैं जिसने टैक्सनॉमी पर काम किया है।
टैक्सनॉमी को लेकर उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट है कि अभी फोकस जलवायु परिवर्तन को रोकने और उस हिसाब से ढलने पर है, लेकिन आने वाले भविष्य में जैव विविधता और पानी जैसे पर्यावरण से जुड़े दूसरे मुद्दों को भी इसमें शामिल करना होगा। टैक्सनॉमी में ट्रांजिशन भी शामिल होना चाहिए। पिछला मसौदा अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया। इस मसौदे में ऊर्जा और परिवहन और खेती-बाड़ी को शामिल किया गया था।
शहरों में सुधार के लिए वित्तीय मदद
आर्थिक सर्वेक्षण में शहरों को भविष्य के हिसाब से आर्थिक केंद्र के तौर पर विकसित करने की बात की गयी है। इसे वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में दोहराया है। उन्होंने जोर दिया कि यह बदलाव आर्थिक और ट्रांजिट प्लानिंग और टाउन प्लानिंग योजनाओं के जरिए होना चाहिए। साथ ही, शहरों के आस-पास के क्षेत्रों का व्यवस्थित तरीके से विकास किया जाएगा।
वित्त मंत्री ने स्टांप ड्यूटी में कमी जैसे शहरी सुधारों पर जोर दिया जिसे शहरी विकास योजनाओं का अनिवार्य हिस्सा बनाया जाएगा। केंद्र सरकार भूमि प्रशासन, प्लानिंग, प्रबंधन और भवन उपनियमों में सुधारों की पहल करेगी और उन्हें आगे बढ़ाएगी। इसके लिए सरकार को आर्थिक प्रोत्साहन भी देगी जैसे राज्यों को दिए जाने वाले 50 साल के ब्याज मुक्त कर्ज का बड़ा हिस्सा इन सुधारों के आधार पर आवंटित किया जाएगा।
इसके अलावा, उन्होंने सौ बड़े शहरों में पानी की आपूर्ति, गंदे पानी को साफ करना और ठोस कचरे के व्यवस्थित निपटान से जुड़ी परियोजनाओं को बढ़ावा देने के बारे में बात की। इस साफ किये गए पानी से सिंचाई और स्थानीय जलाशयों को फिर से भरने की भी बात की गयी।
सभी परिवर्तन सिर्फ शहर तक सीमित नहीं रहते जैसे कि जलवायु परिवर्तन। इसलिए एक क्षेत्र के हिसाब से सोचने की जरूरत है।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ अर्बन अफेयर्स के पूर्व निदेशक हितेश वैद्य ने बजट की व्यावहारिकता पर खुशी जताई। जहां पिछली पहलों में शहरों को ‘स्मार्ट’ या ‘गैर-स्मार्ट’ के रूप में बांटा गया था, वहीं यह बजट नया नजरिया अपनाता है, जिसमें बड़े, मध्यम और छोटे शहरों पर ध्यान दिया दया है। इसे वे सकारात्मक बदलाव मानते हैं।
वैद्य ने कहा कि सरकार अब इस बात पर जोर दे रही है कि परियोजना बनाने से पहले सुधार किया जाना चाहिए। उन्होंने भवन उपनियमों और प्लानिंग से जुड़े ढांचे को नया बनाने की जरूरत पर प्रकाश डाला। उन्होंने बजट में शहरी क्षेत्रों और उनकी खास तरह की चुनौतियों को मान्यता दिए जाने की ओर भी ध्यान दिलाया। यह बजट शहरी नियोजन के लिए क्षेत्रीय नजरिए को अपनाना है। उन्होंने कहा कि यह जरूरी है क्योंकि सभी परिवर्तन सिर्फ शहर तक सीमित नहीं रहते जैसे कि जलवायु परिवर्तन। इसलिए एक क्षेत्र के हिसाब से सोचने की जरूरत है।
हालांकि वे इन घोषणाओं के जमीनी असर को लेकर सशंकित हैं। उन्होंने कहा कि शहरों के लिए ज्यादा टाउन प्लानर जरूरी हैं। उन्होंने कहा, “हम सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, कहीं ये योजनाएं जमीन पर कैसे लागू की जाती हैं उसका भी मूल्यांकन जरूरी है। “
खेती-बाड़ी से जुड़े वादों की जांच
हाल के सालों में, किसान अपनी उपज के लिए बेहतर कीमत की मांग को लेकर कई बार सड़कों पर उतरे हैं। चूंकि, देश की 65% आबादी खेती-बाड़ी पर निर्भर है, इसलिए वित्त मंत्री के बजट भाषण में बताए गए नौ उद्देश्यों में खेती-बाड़ी को सबसे पहले रखा गया है।
वित्त मंत्री ने उपज बढ़ाने और जलवायु-अनुकूल फसल की किस्मों के विकास पर ध्यान देने की घोषणा की। उन्होंने कहा, “हमारी सरकार उपज बढ़ाने और जलवायु-अनुकूल किस्मों के विकास के लिए कृषि अनुसंधान व्यवस्था की व्यापक समीक्षा करेगी।”
केंद्रीय मंत्री ने खेती से जुड़ी ऐसे 109 नए किस्म के फसल का जिक्र किया। इसके अलावा, सरकार का लक्ष्य अगले दो सालों में एक करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती के गुर सिखाना है। इसमें प्रमाणन और ब्रांडिंग से भी मदद दी जाएगी। इसके अलावा, दस हजार जैव-इनपुट संसाधन केंद्र स्थापित किए जाएंगे।
वहीं, टिकाऊ खेती पर काम करने वाली बेंगलुरु स्थित सामाजिक कार्यकर्ता कविता कुरुगंती ने कृषि के लिए बजट घोषणाओं की आलोचना की। उन्होंने कहा कि वे मौजूदा परिस्थितियों से मेल नहीं खाती हैं और उनके लिए आवंटन भी कम है। उन्होंने दलील दी कि सरकार बड़े-बड़े वादे करती है, लेकिन उन्हें लागू करने का दस्तावेजीकरण खराब तरीके से किया जाता है।
कुरुगंती ने फसल की नई किस्मों पर जोर दिए जाने पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि जैविक और गैर-जैविक समस्याओं से पार पाने वाली पारंपरिक किस्मों की उपेक्षा की जा रही है। उन्होंने कहा कि सरकार का ध्यान बाढ़ या सूखा रोधी फसल की तरफ है। पर यह सही नहीं है क्योंकि एक ही क्षेत्र में कुछ दिन सूखे की स्थिति रहती है तो कुछ दिन बाढ़ की। ऐसा लगता है कि सरकार ट्रांसजेनिक और जीन में बदलाव करके तैयार फसलों पर ध्यान केंद्रित करेगी, जिसके बारे में उनका मानना है कि अनुसंधान की आड़ में बड़ी कंपनियों को फायदा पहुंचाया जाएगा। कुरुगंती ने प्राकृतिक खेती से जुड़े घोषणा की भी आलोचना की। उन्होंने बताया कि 2023-24 के बजट में भी इसी तरह की घोषणा की गई थी। पर पिछले वादे का क्या हुआ उसका कोई लेखा-जोखा नहीं है।
यह लेख मूलरूप से मोंगाबे हिंदी पर प्रकाशित हुआ था।
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