बीती 29 अप्रैल को, दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) ने पश्चिमी दिल्ली के रघुबीर नगर में फुटपाथ के किनारे 50-60 झुग्गियों को ध्वस्त कर दिया। तिरपाल चादरों और टिन की छतों वाली इन झुग्गियों में मुख्य रूप से फेरी (पारंपरिक कपड़ा रीसाइक्लिंग) का काम करने वाले लोग रहते थे। इन घरों में रहने वाली महिलाएं दिल्ली के आस-पास के इलाकों में पुराने कपड़ों के बदले बर्तन बेचती थीं और इन्हें रीसाइक्लिंग बाजारों में बेचकर अपनी आजीविका चलाती थीं।
एमसीडी ने इन झुग्गियों को ध्वस्त करने से पहले किसी तरह की कोई सूचना नहीं दी थी। अपने सात महीने के बच्चे को गोद में लिए एक छब्बीस वर्षीय महिला का कहना है कि ‘लिखित की तो छोड़िये उन्होंने हमें मौखिक सूचना भी नहीं दी। अब हम अपने बच्चों को लेकर कहां जाएंगे?’ सुबह दस बजे बिना किसी सूचना के बुलडोजर हमारी बस्ती में आ गया और हमारी झुग्गियों को ध्वस्त करके दोपहर बारह बजे तक लौट गया।
एक दूसरे स्थानीय निवासी ने बताया कि, ‘हमें अपना सामान हटाने या कुछ और सोचने तक का समय भी नहीं दिया गया। हमने उनसे पूछा भी कि हमें क्यों हटाया जा रहा है लेकिन उन्हें इसका जवाब देने में किसी तरह की दिलचस्पी नहीं थी।’
इन झुग्गियों में रहने वाले लोगों का दावा है कि वे कई पीढ़ियों यहां रह रहे हैं और कुछ की झुग्गी तो साल 1982 से यहीं पर है। 62 साल की दुर्गा* कहती हैं कि ‘हमारे बच्चों और उनके बच्चों का जन्म भी यहीं हुआ है। हमारे पास वोटर कार्ड, आधार कार्ड, राशन कार्ड, स्कूल प्रमाणपत्र जैसे सभी ज़रूरी दस्तावेज हैं।’
दिल्ली की स्लम और झुग्गी झोपड़ी पुनर्वास और स्थानांतरण नीति, 2015 में कहा गया है कि 1 जनवरी 2015 से पहले स्थापित बस्तियों और 1 जनवरी 2006 से पहले अस्तित्व में आई झुग्गियों के निवासियों को वैकल्पिक आवास प्रदान किए बिना नहीं हटाया जा सकता है। इसलिए, ये आवश्यक दस्तावेज़ उस स्थान पर उनके निवास के प्रमाण हैं, जो उन्हें पुनर्वास सेवाओं के लिए पात्र बनाते हैं। यहीं रहने वाली गौरी* ने अपनी हताशा व्यक्त करते हुए कहा, ‘उन्होंने हमारी त्रिपाल की चादरों को भी फाड़ दिया। क्या वे इन झुग्गियों को खड़ा करने के संघर्ष को समझते हैं? घर की तो छोड़िये क्या सरकार नये त्रिपाल भी देगी?’
झुग्गियों को ध्वस्त करने के बाद यहां रहने वाले लोग अपनी अपनी झुग्गियों के मलबे के नीचे रह रहे हैं। गर्मी और बेमौसम की बरसात से बचने के लिए वे त्रिपाल की चादरें तानना चाहते हैं लेकिन उन्हें पुलिस स्टेशन का डर सता रहा है।
*गोपनीयता के लिए नामों को बदल दिया गया है।
अनुज बहल एक अर्बन रिसर्चर और प्रैक्टिशनर हैं।
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