April 24, 2024

समाजसेवी संगठन में विविधता, समानता और समावेशन कैसे शामिल करें?

समाजसेवी संगठन में विविधता, समानता और समावेशन (डीईआई) जैसे प्रमुख तत्वों को लेकर प्रतिबद्धता भर काफ़ी नहीं है बल्कि उन्हें संगठन के मूल तत्वों में बदले जाने की ज़रूरत है।
8 मिनट लंबा लेख

सामाजिक सेक्टर में अच्छे और प्रभावी काम का आधार विविधता, समानता और समावेशन (डीईआई) होता है। हालांकि, अलग-अलग संगठन और लोगों में डीईआई को लेकर समझ भी अलग-अलग होती है। उदाहरण के लिए, ऐसे सेक्टर जहां पारंपरिक रूप से पुरुषों का वर्चस्व था उनमें लैंगिक समावेशन को अक्सर महिलाओं की संख्या बढ़ाने के रूप में देखा जाता है जो कि बहुत ही महत्वपूर्ण है। लेकिन, अगर हम लिंग को एक स्पेक्ट्रम की तरह देखें तो इस संवाद का विस्तार कैसे हो सकता है?

क्या डीईआई से जुड़े संवाद में, हमारी विविध पहचानों के कारण हमें मिलने वाली सुविधाएं और कमियों का ज़िक्र भी शामिल होता है? उदाहरण के लिए, एक सीईओ जो समलैंगिक है उसे सीईओ होने के कारण कुछ विशेष ताक़तें मिल सकती हैं लेकिन दूसरी तरफ़ समलैंगिक होने के कारण उसे हाशिये का जीवन बिताने जैसे अनुभव भी झेलने पड़ सकते हैं। क्या हम इस बारे में खुलकर बात करते हैं कि विभिन्न प्रकार की ये पहचान और इनका परस्पर हस्तक्षेप कार्यस्थल पर कैसे काम करते हैं और साथ ही हमारे कामों और प्रतिक्रियाओं को किस तरह प्रभावित करते हैं?

ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो हमारी डीईआई की अपनी यात्रा के दौरान उम्मीद चाइल्ड डेवलपमेंट सेंटर के साथ काम करते समय हमारे सामने खड़े थे। उम्मीद की स्थापना 2001 में विकास संबंधी विकलांगता वाले और उनके ख़तरे उठा रहे बच्चों की मदद करने की सोच को केंद्र में रखकर किया गया था। इतने वर्षों में हम लोगों ने बच्चों और परिवारों को सीधे क्लिनिकल सेवाएं दी हैं। इसके अलावा हमने डॉक्टर, थेरापिस्ट, शिक्षकों और समुदाय के कार्यकर्ताओं जैसे पेशेवरों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित किया है।

डीईआई की यात्रा को ऊर्जा कहां से मिली?

विकलांगता से जुड़े मुद्दों पर काम करने वाली एक संस्था होने के नाते हमने हमेशा ही कार्यस्थल समेत सभी जगहों पर डीईआई के प्रति अपनी गहन प्रतिबद्धता को बनाए रखा है। जब हम एक छोटी सी टीम के रूप में काम कर रहे थे तब हमने आपसी बातचीत से संगठन की संस्कृति के कई पहलुओं के बारे में अनौपचारिक रूप से जाना। हालांकि, हमारी टीम – जिसमें बाल रोग विशेषज्ञ, चिकित्सक, स्कूल विशेषज्ञ, परियोजना प्रबंधक, माता-पिता, सामुदायिक कार्यकर्ता और सहायक कर्मचारी शामिल हैं – 2016 से 2021 के बीच 55 सदस्यों से दोगुना बढ़कर लगभग 110 तक पहुंच गई। अगले कुछ सालों में हमारा उद्देश्य इस संख्या को भी बढ़ाकर दोगुने तक पहुंचाने का है।

फेसबुक बैनर_आईडीआर हिन्दी

तेज़ी से बढ़ रही टीम और कोविड-19 महामारी के कारण वर्चुअल रूप से काम करने की बढ़ती संभावनाओं को देखते हुए हमें उन मूल्यों को औपचारिक रूप देने और आंतरिक प्रसार की आवश्यकता महसूस हुई, जिन्हें संगठन और उसके सदस्यों को अपनाना चाहिए। संगठन के युवा सदस्य इस बात को लेकर विशेष रूप से ऐसा चाहते थे कि संगठन को उनके लिए महत्वपूर्ण मूल्यों को सक्रियता से अपनाना चाहिए। इसके कारण ही, हमने ऐसे सुरक्षित कार्य स्थलों के निर्माण को लेकर अपने प्रयासों को तेज कर दिया जहां वे अपनी विविधता को दिखा सकें और अपनी क्षमता के अनुसार परिणाम हासिल कर सकें।

हमारी यात्रा

उम्मीद की डीईआई यात्रा की शुरूआत 2021 में हुई थी। सबसे पहले, नेतृत्व टीम ने संगठन के कामकाज से परिचित मानव संसाधन सलाहकार और कोच की सहायता से विविधता और समावेशन पर बातचीत में शामिल होना शुरू किया। इससे हमें समावेशी नेतृत्व की एक आम समझ विकसित करने में मदद मिली और डीईआई को और अधिक मजबूती से प्रतिबद्ध करने की दिशा में हम पहले से भी अधिक प्रेरित हुए। इस बातचीत से यह स्पष्ट हुआ कि ऐसे कई मामले थे जिनपर हमारी नज़र ही नहीं थी और इसका कारण डीईआई को लेकर हमारे मौजूदा ज्ञान में कमी थी। इसके अलावा, हमें इस बात का भी एहसास हुआ कि डीईआई के प्रति एक अपेक्षाकृत अधिक विचारशील सोच से उन बच्चों, परिवारों और प्रशिक्षण लेने वालों को भी लाभ होगा जिनके साथ हम काम करते हैं।

हमारे डीईआई प्रयासों के मुख्य केंद्र में भाषाई विविधता, न्यूरोडायवर्सिटी और विकलांगता के साथ लिंग और यौन विविधता जैसे विषय थे।

हमारा पहला कदम सभी कर्मचारियों के साथ एक सर्वेक्षण करना था, जिसमें संगठन में डीईआई के बारे में कर्मचारी सदस्यों की धारणाओं का पता लगाने की कोशिश की गई थी। समाना सेंटर फॉर जेंडर, पॉलिसी, एंड लॉ द्वारा आयोजित, सर्वेक्षण अंग्रेजी और हिंदी दोनों ही भाषाओं में किया गाया था और उस समय कुल 110 कर्मचारी सदस्यों में से 88 ने इस सर्वेक्षण को पूरा किया था। इसके परिणामों में कर्मचारियों की सोच स्पष्ट हुई: जहां टीम के वरिष्ठ सदस्य सही राह पर थे, वहीं हमें इस बात को लेकर किसी भी तरह का अंदाज़ा नहीं था कि वास्तविक रूप से समावेशन का काम किस प्रकार किया जाए। सर्वेक्षण के आधार पर, हमें अपने डीईआई प्रयासों के मुख्य क्षेत्रों के बारे में पता लगाने में आसानी हुई: भाषाई विविधता, न्यूरोडायवर्सिटी और विकलांगता, और लैंगिक एवं यौनिक विविधता।

और इसलिए, साल 2022 में डीईआई की अपनी इस यात्रा को सहयोग देने के लिए हमने अपने साथ सामाजिक-आर्थिक सीख से जुड़े कार्यक्रमों के प्रदान करने वाली समाजसेवी संगठन अपनी शाला फाउंडेशन को जोड़ा। अपनी शाला की भागीदारी ने हमें अपने संगठन के भीतर पहले से मौजूद इरादों का सम्मान करने और उन्हें सिस्टम और ढांचे में शामिल करने में सक्षम बनाया जो इसकी भविष्य की यात्रा में अपना सहयोग देने वाले थे।

हमारी बातचीत ने प्रणालीगत परिवर्तन को काम करने के लक्ष्य के रूप में निर्धारित करने में मदद की, साथ ही व्यक्तिगत परिवर्तन को इसके मार्ग के रूप में तैयार किया। यह इस समझ पर आधारित था कि लोग ही प्रणालियों यानी कि सिस्टम को बनाते हैं और इस प्रकार प्रणाली-व्यापी परिवर्तन को प्रभावित करने में प्रत्येक व्यक्ति की भूमिका होती है। शुरुआत से ही, यह स्पष्ट कर दिया गया था कि उम्मीद की पूरी नेतृत्व टीम को अपनी शाला द्वारा आयोजित सत्रों में सक्रिय रूप से भाग लेना होगा। ऐसा करने के पीछे की सोच यह थी कि नेतृत्व टीम इस सीखने की यात्रा में सक्रिय भूमिका निभाए और सभी के लिए समानता, न्याय, समावेश और अपनापन लाने में अपनी उन शक्तियों का प्रयोग करे जो उन्हें अपने-अपने पद के कारण मिली हैं।

अपनी शाला के हस्तक्षेप कार्यक्रम में दो चरण शामिल थे। सबसे पहले, सभी कर्मचारी सदस्यों के साथ ओरिएंटेशन सत्र आयोजित किए गए। इन सत्रों में, प्रत्येक सदस्य को भाषा, न्यूरोडायवर्सिटी और विकलांगता, लैंगिक एवं यौनिक पसंद, और विविधता के अन्य प्रकारों से पहचान, ताकत और हाशिए पर होने के अपने व्यक्तिगत अनुभवों का पता लगाने का अवसर मिला। इन सत्रों का आयोजन 25-30 प्रतिभागियों के समूह के लिए उनकी भाषा में ही किया गया।
ओरिएंटेशन के बाद, संगठन से सभी स्तरों पर जुड़े कुल 30 वॉलंटियर ने हस्तक्षेप के अगले चरण में भाग लिया: पहचाने गए सात मुख्य क्षेत्रों पर सात गहन सत्रों का आयोजन। ये सत्र सात महीने के लिए महीने में एक बार किसी नई जगह पर आयोजित किए गए थे।

इस गहन सत्रों के दौरान अपनी शाला ने कुछ मुख्य रणनीतियों को अपनाया था। उदाहरण के लिए, कार्यस्थल पर शक्ति का वितरण अलग-अलग जगहों पर था, और बिना इन शक्तियों की स्थिति और इनके द्वारा निभाई जाने वाली भूमिकाओं का पता लगाये, डीईआई से जुड़ी किसी भी तरह की स्पष्ट बातचीत संभव नहीं है। अपनी शाला के सत्रों में सत्ता के इस अंतर पर प्रमुखता से बात करके, शक्ति के वितरण के लिए ज़िम्मेदार सत्र के इन और आउट-ऑफ़- व्यस्तताओं के लिए मानदंड तैयार करके, बातचीत और समूह गतिविधियों के लिए जानबूझकर समूह बनाने और एक अंतरविरोधी नज़रिए से चर्चा की सुविधा प्रदान करके संबोधित किया गया।

अपनी शाला ने जो एक दूसरी रणनीति अपनाई उसमें उसने सीरियल टेस्टीमनी प्रोटोकॉल का इस्तेमाल किया था। इसमें समूहों के सदस्यों को बोलने के लिए समान समय दिया जाता था, चाहे वे संगठन के किसी भी पद पर क्यों ना हों। इससे संगठन के उन सदस्यों को भी बोलने का अवसर मिला जो विशेष अधिकार की कमी के कारण चुप रह जाते थे। यह अभ्यास किसी की भी चिंताओं को सुनने में इतना प्रभावी था कि इसे उम्मीद में वर्तमान कर्मचारी बैठकों में भी अपनाया गया है।

अपनी शाला का यह हस्तक्षेप मई 2023 में समाप्त हो गया। इसके बाद इन गहन सत्रों में भाग लेने वाले कुल 30 में से 22 सदस्यों ने उन समूहों में शामिल होने की इच्छा जताई जो अगले एक से दो वर्षों में उम्मीद की नीतियों, प्रक्रियाओं, कार्यक्रमों और प्रणालियों को डीईआई के सिद्धांतों के साथ संरेखित करने को सुनिश्चित करने के लिए काम करने वाला था।

कई सारे रंगों वाली एक पट्टी_संगठनात्मक संस्कृति
विभिन्न लोगों और विभिन्न संगठनों में डीईआई को लेकर समझ भी अलग-अलग है। | चित्र साभार: पेक्सेल्स

बाधाएं

1. संगठन के विभिन्न हिस्सों को केंद्र में रखना

हालांकि अपनी शाला टीम को यकीन था कि व्यक्तिगत यात्राओं को बढ़ावा देने से संगठनात्मक बदलाव आएगा, लेकिन कुछ लोग इसमें लगने वाले समय को लेकर निश्चित नहीं थे। अपनी शाला की टीम ने उनकी चिंताओं को पहचाना, उन्हें दोबारा आश्वासन दिया और प्रत्येक सत्र में इस बारे में बात करने के लिए पर्याप्त अवसर दिये कि एक संगठन के रूप में उम्मीद के लिए उस दिन होने वाली चर्चा का क्या विशेष मतलब हो सकता है। इससे व्यक्तिगत रूप से बदलाव लाने वाले काम और संगठन की जरूरतों के बीच एक स्पष्ट संबंध प्रस्तुत करने में मदद मिली।

2. असहमति जताने वालों को समझाना

जहां एक तरफ उम्मीद टीम के अधिकांश लोग – विशेष रूप से समूह में शामिल लोग – इस नई पहल से सहमत थे, वहीं कुछ ऐसे लोग भी थे जिन्होंने इन सत्रों में लगाये जाने वाले समय पर आश्चर्य जताया और यह सवाल भी उठाया कि अख़िरकार इन सबका क्या मतलब निकल कर आयेगा। इस बात को समझा जा सकता था क्योंकि काम का कोई ठोस परिणाम देखने को नहीं मिल रहा था: कोई व्यक्तिगत परिवर्तन की माप कैसे कर सकता है?

इस प्रकार, उम्मीद की नेतृत्व टीम ने डीईआई के प्रति संगठन की प्रतिबद्धता पर फिर से जोर देने और इससे जुड़ाव के कारण पहले से ही हो रही ‘छोटी जीत’ को साझा करने की जिम्मेदारी ली। सभी सत्रों के समाप्त होने तक, किसी ने भी समय की बर्बादी वाली बात दर्ज नहीं करवाई और लगभग 75 फ़ीसद प्रतिभागियों ने इसके लिए अपने नाम दर्ज करवाए कि वे संगठनात्मक परिवर्तन की प्रक्रिया में मदद के लिए अपने व्यक्तिगत परिवर्तन का इस्तेमाल करेंगे।

3. इस अभ्यास में निवेश करना

संगठन के भीतर मजबूत डीईआई प्रथाओं को विकसित करने के लिए सजग प्रयास करने की प्रक्रिया मुफ्त नहीं होती है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि आमतौर पर दानकर्ताओं का ध्यान बाहरी काम पर होता है और वे शायद ही कभी आंतरिक क्षमता निर्माण में निवेश की इच्छा जताते हैं, इस पहल को अपना सहयोग और समर्थन देने वाले केवल कुछ ही दानकर्ता थे; बाक़ी का खर्च उम्मीद की बचत के पैसे से पूरी की गई। हम यह आशा करते हैं कि दानकर्ता लोचदार संगठनों के निर्माण के लिए डीईआई को एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखते हैं और साथ ही इसे या तो एक स्वतंत्र समर्थन या किसी प्रोग्रामेटिक फंडिंग के हिस्से के रूप में देखा जाता है।

4. हाशिये पर पड़े लोगों को सामने लाना

इस गहन सत्रों ने पहचान और पिछड़ेपन के संबंध में प्रतिभागियों को उनके व्यक्तिगत अनुभवों को लेकर पहले से अधिक जागरूक बनाया और आंतरिक मानसिक स्वास्थ्य समर्थन के लिए बढ़ती ज़रूरत में अपना योगदान दिया। इसलिए, हमें भी इस पर सोचना पड़ा कि इन परिवर्तनकारी व्यक्तिगत यात्राओं को आगे बढ़ा रहे व्यक्तियों का प्रभावी ढंग से समर्थन कैसे किया जाए। इसके अलावा, ऐसे भी मामले थे जहां टीम के सदस्य का मैनेजर गहन सत्रों में भाग लेने वाले इन प्रतिभागियों में शामिल नहीं था। इसलिए, जब टीम के सदस्य इन सत्रों में हासिल अनुभव और सबक़ को लेकर वापस जाते हैं तो ज़रूरी नहीं है कि उनका मैनेजर हमेशा ही उनकी बात मान लेगा या उन्हें उत्साहित करेगा। इस पर बातचीत अभी भी जारी है कि ऐसी चुनौतीपूर्ण स्थितियों को ठीक से कैसे संभाला जाए।

डीईआई के साथ गहन जुड़ाव के कारण क्या सामने आया?

हालांकि हमारा मानना ​​है कि अभी भी और काम किया जाना बाकी है, हम हमारे डीईआई प्रयासों के कुछ परिणामों के बारे में यहां बता रहे हैं:

  • संगठन के भीतर टीमों ने विभिन्न पहचान वाले कर्मचारियों की भर्ती शुरू कर दी, जिनमें ठीक से ना देख पाने वाला व्यक्ति, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी वाला व्यक्ति, एकाधिक विकलांगता वाला व्यक्ति और लिंग-अनुरूपता न रखने वाला व्यक्ति शामिल है।
  • नई टीम के सदस्यों के एकीकरण को सुनिश्चित करने के लिए, मानव संसाधन विभाग ने भर्ती के दौरान सभी नए कर्मचारियों के साथ आवास आवश्यकताओं (उदाहरण के लिए, स्क्रीन रीडर और डेस्क समायोजन) की सक्रिय रूप से जांच शुरू कर दी है।
  • संगठन में सभी कर्मचारी के सामने संचार के लिए अब दो भाषाओं का विकल्प है: अंग्रेजी और हिंदी।
  • नथिंग अबाउट अस, विदाउट अस के अपने आदर्श वाक्य के अनुरूप, सभी कर्मचारियों के लिए संवेदीकरण और जागरूकता सत्र आयोजन करने वाले सेल्फ-एडवोकेट्स को बुलाया जा रहा है। उदाहरण के लिए, उम्मीद के भीतर से एक दृष्टिबाधित स्टाफ सदस्य और संगठन के बाहर से एक सेल्फ-एडवोकेट की मदद से अंधेपन पर एक सत्र आयोजित किया गया था
  • मौजूदा बुनियादी ढांचे को और अधिक सुलभ बनाया जा रहा है। उदाहरण के लिए, संगठन में लिंग से परे और व्हीलचेयर-सुलभ शौचालय हैं और रिसेप्शन डेस्क की ऊंचाई कम कर दी गई है ताकि यह व्हीलचेयर-अनुकूल हो और जिन बच्चों के साथ संगठन काम करता है उन्हें देखने में परेशानी का सामना ना करना पड़े।
  • संगठन द्वारा नौकरी विवरण और नीतियों की समीक्षा की जा रही है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे सभी के लिए समावेशी हो सकें।
  • संगठन की वेबसाइट को ऐसे डिज़ाइन किया जा रहा है ताकि उसमें दो भाषाओं की सुविधा उपलब्ध हो और वह सुलभ भी हो (चित्रों के विवरण के लिए ऑल्ट टेक्स्ट, ज़ूम-इन और ज़ूम-आउट सुविधाएं, रंग परिवर्तन की उपलब्धता और ध्वनि पहचान सक्रियण)
  • लंबे समय तक कारगर रहने वाले उपाय के रूप में कर्मचारी सदस्यों के लिए आंतरिक मानसिक स्वास्थ्य सहायता की एक प्रक्रिया शुरू की जा रही है।

भविष्य कैसा है?

निकट भविष्य में, हमें उम्मीद है कि हम डीईआई के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को स्पष्ट रूप से बताने के लिए अपनी वेबसाइट को अपडेट करेंगे। हमने अब तक इस काम को रोका हुआ था क्योंकि हम पहले यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि हमारी आंतरिक संस्कृति और प्रथाएं पूरी टीम के लिए एक समावेशी और न्यायसंगत वातावरण प्रदान करने में सक्षम हैं।

हम चाहते हैं कि उम्मीद काम करने वाली एक ऐसी जगह के रूप में विकसित हो सके जहां प्रत्येक व्यक्ति के लिए उसके अपने वास्तविक रूप में रहना संभव हो। हालांकि, इसे आंतरिक रूप से समर्थित किया जा सकता है, लेकिन संगठन को इसे बनाने वाले कर्मचारियों के दृष्टिकोण से कहीं अधिक संघर्ष करने की ज़रूरत है। उदाहरण के लिए, ऐसा भी समय था जब हमारे पास आने वाले बच्चे और उनके माता-पिता ने किसी ख़ास थैरेपिस्ट से इलाज करवाने के लिए मना कर दिया क्योंकि वे अलग दिखाई पड़ते थे। यह एक सामाजिक पूर्वाग्रह है जिससे एक संगठन के रूप में हमें निपटना है, और हमारे पास हर सवाल का जवाब नहीं है। लेकिन हम सीमित भी नहीं रहना चाहते हैं और हमारी इच्छा यह है कि हमारी सीख और सबक़ (और क्या नहीं सीखना चाहिए जैसी बातों) का प्रसार-प्रचार हो। इस प्रकार, हमारे पास ऐसी और भी जगहें होंगी जहां काम करने वाले प्रत्येक व्यक्ति के पास हमेशा ही अपने वास्तविक रूप में रहने की सुविधा होगी।

अपनी शाला के सीईओ रोहित कुमार, ने भी इस लेख में अपना योगदान दिया है।

इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ें

अधिक जानें

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लेखक के बारे में
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अनीता लिमये

अनीता लिमये ने मुंबई के सेठ जीएस मेडिकल कॉलेज से इंटरनल मेडिसिन में एमडी की पढ़ाई की है। इसके बाद उन्होंने एक दशक तक विभिन्न नेतृत्व पदों पर नैदानिक ​​​​अनुसंधान के क्षेत्र में काम किया। वे 2015 में उउम्मीद चाइल्ड डेवलपमेंट सेंटर से जुड़ीं और सीईओ के रूप में, संगठन की पहुंच और प्रभाव को बढ़ाने में मदद कर रही हैं ताकि बाल विकास, बच्चों की विकलांगता और मुख्यधारा में शामिल होने के मुद्दों को उठाया जा सके।

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रेजिना खुराना

रेजिना खुराना उम्मीद चाइल्ड डेवलपमेंट सेंटर में मानव संसाधन और प्रशासन कार्यक्षेत्र का नेतृत्व करती हैं। 2014 में सामाजिक क्षेत्र में जाने से पहले उन्होंने सात साल तक लाभकारी क्षेत्र में काम किया। रेजिना ने समाजशास्त्र में एमए और ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमेंट में डिप्लोमा की पढ़ाई की है।

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