मेरा नाम बालू लाल है, राजस्थान के राजसमंद जिले के भीम का में निवासी हूँ। मैं यहीं पर ही मजदूरी एवं किसानी दोनों करता हूं। करीबन 30 वर्षों से मजदूर किसान शक्ति संगठन (एमकेएसएस) से सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में जुड़ा हूं तथा राजस्थान असंगठित मजदूर यूनियन (आरएएमयू) के सचिव के रूप में कार्यरत हूँ। हाल ही में हमारे भीम ब्लॉक को ग्रामीण क्षेत्र से नगरपालिका क्षेत्र तबदील किया गया। इसके बाद से यहाँ मनरेगा का काम बंद हो गया जिसके चलते स्थानीय लोग खासे परेशान थे।
प्रशासनिक भवनों के कई चक्कर लगा देने के बावजूद मनरेगा का काम न शुरू होने की दशा में यहाँ की मजदूर यूनियन की महिला श्रमिकों ने धरना-प्रदर्शन करके काम फिर से शुरू करवाने की ठानी। इनका धरना-प्रदर्शन करने का अंदाज इतना अलग था कि न केवल राह चलते लोग बल्कि सरकारी अधिकारी भी इनके मुद्दों को सुनने बैठ जाते।
दरअसल कुछ समय पूर्व ही राजसमंद के भीम ब्लॉक को ग्रामीण से शहरी क्षेत्र में तब्दील किया गया था। जिसके चलते यहाँ ग्रामीण क्षेत्रों में चलने वाली मनरेगा योजना बंद हो गई और लोगों को स्थानीय स्तर पर रोजगार मिलना बंद हो गया। इस योजना के बंद होने से उन महिला मजदूरों के जीवन में खासी परेशानी हुई है, जो स्थानीय स्तर पर प्राप्त हो रहे रोजगार से अपने बच्चों के पालन-पोषण के साथ-साथ अपना घर भी चला रही थी। इनमें से कुछ महिलाएं जो राजस्थान असंगठित मजदूर यूनियन से जुड़ी थी। उन्हें पता चला कि राजस्थान की पूर्ववर्ती सरकार द्वारा लाए कानून के अनुसार शहरी इलाकों में भी मनरेगा के अंतर्गत रोजगार उपलब्ध करवाने का प्रावधान है। अतः इस मामले में उन्होंने कई बार प्रशासन को शहरी रोजगार गारंटी कानून के अंतर्गत रोजगार देने की गुहार की, पर बात बनी नहीं।
अंततः इन महिलाओं ने धरना- प्रदर्शन के जरिए प्रशासन पर दबाव बनाने की ठानी। महिलाएं धरना स्थल पर लोकगीतों को माध्यम बनाकर प्रशासनिक लोगों को व्यंग्य सुनाती। जिन्हें सुनने के लिए राह चलते लोग भी तहसील प्रशासनिक भवन के आगे इकट्ठे हो जाते। कई बार लोगों का जमावड़ा अनायास ही प्रशासन पर दबाव महसूस करा जाता।
अक्सर महिलाएं धरना-स्थल पर शंकर सिंह को अपने कठपुतली (पपेट) नाटक के लिए भी आमंत्रित करती, कई बार तो माहौल ऐसा होता है कि प्रशासन के लोग खुद विडियो बनाते और आनंद से सुनते।
खास बात यह थी कि ऐसे माध्यमों के प्रयोग से एक माह तक लंबे चले इस धरने में हमें न तो कभी समय का पता चला न ही किसी के जोश में कमी आई। इसी अनोखे तरीके से हमने अपने मुद्दों को भावनात्मक रूप से स्थानीय लोगों के भीतर इतना तो जोड़ ही लिया कि स्थानीय लोग भी इस धरने की बात इलाके में करने लगें।
आखिरकार हमारी मेहनत भी रंग लाई 23 जनवरी 2024 को शुरू हुए इस धरने ने 27 फरवरी 2024 यानी करीबन 1 माह में ही प्रशासन से अपनी बात मनवा ली। इसमें हमारे इलाके सहित राजस्थान के 42 नव सृजित शहरी क्षेत्रों में मनरेगा का काम शुरू हुआ है।
—
अधिक जानें: इस लेख को पढ़ें और ओडिशा की जुआंग महिलाएं के बारे में जानें जो अपने जंगलों की रक्षा में तैनात हैं।