सामाजिक क्षेत्र से जुड़े लगभग सभी लोग इस बात को मानते हैं कि किसी भी संगठन के विकास के लिए फंडरेजिंग बहुत महत्वपूर्ण होता है। समाजसेवी संगठनों के लिए लंबी अवधि वाले परिवर्तन लाना धन की कमी के साथ संभव नहीं है। इसलिए किसी भी संगठन का वित्तीय स्वास्थ्य फंडरेजिंग पर ही निर्भर होता है।
इस लेख में हम आपको बता रहे हैं कि कैसे अध्ययन फाउंडेशन और रीप बेनिफिट नामक दो संगठन, क्षमता-निर्माण अनुदान का उपयोग करके अपने लोगों के माध्यम से ही धन जुटाने में सक्षम हो सके, और कैसे 12 महीनों के भीतर इसका बहुस्तरीय प्रभाव पड़ा।
अध्ययन फाउंडेशन, भारत में शिक्षा की बेहतरी के लिए काम करने वाला एक क्षमता-निर्माण संगठन है। वे स्कूलों में शिक्षण और सीखने के नेतृत्व और शासन पर ध्यान केंद्रित करके अपने इस लक्ष्य को पूरा करते हैं। रीप बेनिफिट जमीनी स्तर की लामबंदी और तकनीकों का उपयोग करके ज़मीनी स्तर के नेतृत्वकर्ताओं की पहचान करता हैं, और उन्हें बनाए रखने के संसाधन देता है, ताकि वे नागरिक और जलवायु परिवर्तन से निपटने पर काम कर सकें।
दोनों ही संगठन अपने-अपने क्षेत्रों में उच्च प्रभाव वाले कार्य करने वाले विभिन्न हितधारकों (बच्चे और युवा, नागरिक, और सरकारों) के साथ काम करते हैं। उन्हें इस स्तर पर लाने में पर्याप्त मात्रा में धन जुटाने के काम ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। लेकिन इस यात्रा में उन्हें कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा और साथ ही उन्होंने बहुत कुछ सीखा भी है।
छोटी शुरुआत
अध्ययन का शुरुआती दौर चुनौतीपूर्ण था
अध्ययन ने साल 2017 में फ़ंडिंग के दो छोटे माध्यम से आधिकारिक शुरुआत की – दोस्त एवं परिवार के ज़रिये, और बोर्ड के निदेशकों से मिलने वाले ऋण के माध्यम से। इस पैसे का उपयोग नये कार्यक्रमों को चलाने के लिए किया गया जिनके माध्यम से वे अपना काम सरकारों, साझेदार समाजसेवी संस्थाओं और फंडर्स सहित विभिन्न हितधारकों को दिखा सके। इसका लक्ष्य उनकी अवधारणा का प्रमाण प्रस्तुत करना था।
साल 2018 में, उनकी पहुंच फ़ंडिंग के दो महत्वपूर्ण स्रोतों तक हो गई – एक संस्थागत दानकर्ता जिसकी वजह से वह अपना कार्यक्रम गोवा ले जा सके और एक अर्ध-सरकारी निकाय जिसने दिल्ली में काम करने के लिए सहायता दी। अधिकांश स्टार्ट-अप की तरह ही संस्थापकों के मौजूदा नेटवर्क को आधार बनाकर काम करने के कारण इनकी प्रक्रिया भी व्यवस्थित, तय इरादों वाली या केंद्रित नहीं थी। जितना काम हुआ वह संस्थापकों के मौजदा नेटवर्क के कारण था।
2020 में कोविड-19 महामारी के बाद अध्ययन के मुख्य दानकर्ताओं ने उन्हें दान देना बंद कर दिया। अगले दो साल तक वे पूरी तरह से अपने केवल एक दानकर्ता पर निर्भर रहे। हालांकि, अनुदान की तय सीमा समाप्त होने के एक महीने पहले, दानकर्ता ने अध्ययन की टीम को सूचित किया कि वे अब अपना अनुदान जारी नहीं रख सकते हैं क्योंकि उन्हें अपना फंड कोविड-19 राहतकोष के लिए इस्तेमाल करना है।
यह अध्ययन के लिए एक बड़े झटके जैसा था, क्योंकि संगठन में 17 सदस्य थे और उनके पास किसी भी तरह की फंडिंग पाइपलाइन नहीं थी। खुदरा फंडरेजिंग के प्रयासों से उन्होंने कुछ पैसे (लगभग 7-10 लाख रुपये) जमा किए थे। लेकिन यह राशि इतनी भी नहीं थी कि संगठन के लोगों को उनका वेतन दिया जा सके। नतीजतन, जून में प्रोजेक्ट समाप्त होने के बाद उन्हें कुछ लोगों को काम से निकालना पड़ा। सबसे बड़ी चुनौती विभिन्न संगठनों से किया गया गोवा राज्य सरकार से की गई प्रतिबद्धताओं को पूरा करना था, जहां वे पहले से ही काम कर रहे थे। सौभाग्य से, दो वर्षों में सरकार के भीतर पर्याप्त क्षमता का निर्माण हो गया था और इसलिए वे ड्राइविंग स्कूल सुधार नाम से चल रहे कार्यक्रम के कई पहलुओं को स्वतंत्र रूप से आगे बढ़ाने में सक्षम थे।
2020 एक महत्वपूर्ण साल था। कोविड-19 की शुरुआत हो चुकी थी और कम्पनियां और फ़ंडर सभी अपना पैसा पीएम केयर या कोविड-19 राहतकोष में दे रहे थे। अध्ययन के काम और लक्ष्य को देखते हुए उनके लिए राहत कार्यों में लगना सही नहीं था – वे प्रणालीगत और रणनीतिक तरीके से स्कूल की गुणवत्ता को मजबूत करने वाले अपने कार्यक्रमों पर ही अपना ध्यान केंद्रित करना चाहते थे। विभिन्न दानकर्ताओं से बातचीत करने के बाद उन्हें अपने काम के लिए सहायता देने वाला केवल एक डोनर मिला। अध्ययन के दस्तावेज को देखने और उनके भूतपूर्व दानकर्ताओं से बातचीत करने के बाद इस दानकर्ता ने उन्हें अनुदान दिया जो संगठन की जीवन रेखा बना। इस अनुदान के तहत उन्हें एक छोटी सी धनराशि मिली ताकि वे फंडरेजिंग क्षमता के निर्माण के साथ ही अपना गोवा कार्यक्रम भी जारी रख सकें। उनका आदेश सरल था – इस पैसे का उपयोग किसी ऐसे व्यक्ति को काम पर रखने के लिए करना जो आपके काम को बढ़ाने के लिए आवश्यक धन जुटाएगा।
रीप बेनिफिट की शुरुआत सहज थी
रीप बेनिफिट (आरबी) का पंजीकरण साल 2013 में हुआ था, और शुरुआती कुछ सालों तक उनके पास विभिन्न स्रोतों से पैसे आते रहे – उन्हें उनका पहला बड़ा अनुदान उनकी स्थापना के चार सालों बाद मिला था। शुरुआत में इस संगठन को शुल्क फीस से मिले (या तो ऐसे युवा जिनके साथ इन्होंने काम किया था या निम्न-आय स्कूलों में स्कूल प्रबंधन समितियों से)। या फिर फाउंडेशन से अनुबंध, फेलोशिप (अशोका) से आय, और एमआईटी जीएसडब्ल्यू, अशोका और स्टैनफ़ोर्ड जैसी प्रतियोगिताओं से फंड मिलते थे।
आरबी विभिन्न बड़े घरेलू फाउंडेशन से भी फंड इकट्ठा करने का प्रयास कर रहा था लेकिन इस काम में उन्हें सफलता नहीं मिल रही थी।
2016 में, आरबी को अपने दूसरे चरण में एचएनआई (अच्छी निवल संपत्ति वाले शख़्स) और फैमिली फाउंडेशन से अनुदान मिलना शुरू हुए। ये वे लोग थे जिन्होंने आरबी का काम और उस काम का प्रभाव देखा था, उनकी टीम के साथ संबंध विकसित किए थे और उन्हें अपना समर्थन दिखाने में इच्छुक थे। इसी दौरान, आरबी विभिन्न बड़े घरेलू फाउंडेशन से भी फंड इकट्ठा करने का प्रयास कर रहा था लेकिन इस काम में उन्हें सफलता नहीं मिल रही थी। अरबी का काम मूल रूप से नागरिक जुड़ाव, युवा, शिक्षा, नागरिक प्रशासन और ऐसे कई अन्य क्षेत्रों के चौराहे पर है और ज़्यादातर फाउंडेशन को ऐसे संस्थानों की तलाश नहीं थी। और इस तरह उन्होंने पाया कि फ़ंडिंग के साथ उनका संबंध प्यार-नफ़रत वाले समीकरण पर आधारित है – वे जानते थे कि उन्हें धन उगाही के लिए समय और संसाधन दोनों का ही निवेश करना होगा, लेकिन वे यह भी जानते थे कि ऐसा करने से ज़मीनी स्तर से उनका ख़ुद का जुड़ाव कम हो जाएगा।
धन उगाहने वाले व्यक्ति की तलाश
विकास क्षेत्र में जुटाई गई धनराशि और बजट को बढ़ोतरी के पैमाने के रूप में देखा जाता है। कई फंडर यह भी समझते है की ज़्यादा धनराशि का मतलब ज़्यादा प्रभाव होता है। प्रभाव नापने का यह तरीक़ा धीमा भी है और लगभग सभी मामलों में ग़लत भी – और वो भी जमीनी स्तर पर किए जा रहे काम की कीमत पर। बावजूद इसके, अधिकांश फ़ंडर इसी तरीक़े पर ध्यान देते हैं।
आरबी के कुलदीप दंतेवाड़िया (सह-संस्थापक और सीईओ) का कहना है कि संस्थापक टीम के सदस्यों के लिए ज़रूरी है कि वे जमीन पर किए जाने वाले वास्तविक काम में हिस्सा लें। वे कहते हैं, ‘एक ज़मीनी स्तर वाले संगठन को चलाना एक रेस्टोरेंट चलाने जैसा है। एक अच्छे शेफ़ के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह अपने सहकर्मियों को अपने संस्थान की संस्कृति और गरिमा को आगे बढ़ाने के बारे में बताए। किसी भी संगठन में टीम के शुरुआती सदसयों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके पास इतना समय है कि वे काम के इन पहलुओं को हस्तनांतरित करने में अपना योगदान दे सकें।’
कुलदीप मानते हैं कि निजी स्तर पर बिक्री के मामले में वे कॉर्पोरेट और विश्व स्तर पर काम कर रहे विभिन्न फाउंडेशन को प्रभावित करने में असफल रहे। और यह भी कि शायद इस काम को अधिक प्रभावी ढंग से करने वाले किसी व्यक्ति का संस्थान से जुड़ना अधिक मूल्यवान हो सकता है।
अध्ययन को अपने डोनर से मिलने वाले आदेश के आधार पर आईएलएसएस के धन उगाहने वाले कार्यक्रम में जाने का अवसर मिला। कुलदीप की तरह ही अनुश्री अल्वा (सीईओ और संस्थापक टीम की सदस्य) का अनुभव भी यही कहता है कि उन्हें भी बड़े फाउंडेशन और सीएसआर जैसे स्थापित और पारंपरिक फ़ंडर से धन प्राप्त करना नहीं आता था। ‘हमें नहीं पता था कि पैसे कैसे जुटाए जाएं। और हमारे पास इतना समय भी नहीं था कि हम धीरे-धीरे सीखें क्योंकि हमें तुरंत ही कार्यान्वयन की ज़रूरत थी। हमारे बोर्ड के एक सदस्य ने हमें सुझाव दिया कि हमें दूसरों द्वारा किए जा रहे कामों के बारे में जानने, और अपने संगठन के लिए फंडरेजिंग का तरीक़ा सीखना चाहिए और इसके लिए आईएलएसएस पाठ्यक्रम से जुड़ना सबसे बेहतर तरीक़ा होगा। इतना ही नहीं, हमारे इस पाठ्यक्रम से जुड़ने का खर्च भी उस बोर्ड के सदस्य ने ही उठाया।’
गलतियां करना
आरबी को यह सलाह मिली कि उसे कॉर्पोरेट अनुभवों और कनेक्शन वाले वरिष्ठ फंडरेज़र को नियुक्त करना चाहिए। नियुक्त किए गए सलाहकार इस संस्था के लिए उपयुक्त थे – उन्हें संस्था के लक्ष्य में भरोसा था। आरबी के सर्वेसर्वा कुलदीप को काम को केंद्र में रखकर एक प्रस्ताव तैयार करने में अधिक समय नहीं लगा। लेकिन इस तरीक़े को सफलता नहीं मिली। कुलदीप कहते हैं कि, ‘मुझे यह महसूस हुआ कि बहुत अधिक अनुभव वाले लोग एक ख़ास तरीक़े से काम करते और सोचते हैं और उनके लिए काम करने वाले लोगों की एक बहुत बड़ी टीम होती है। एक समाजसेवी संगठन के नाते हमारे पास यह विशेष सुविधा नहीं होती है। आपको एक ही समय में सोचना, अपनी सोच को क्रियान्वित करना और फिर उस पर पुनर्विचार करना होता है। हम केवल सोचने के लिए अलग से समय और संसाधन खर्च करने में सक्षम नहीं थे।’
फंडरेजिंग के लिए की जाने वाली नियुक्तियों पर विचार करते समय अध्ययन को इसकी जानकारी नहीं थी कि उन्हें इसकी शुरुआत कहां से करनी चाहिए। क्योंकि जिन विशिष्ट चैनलों से वे मदद लेते थे वे शिक्षा से जुड़े दूसरे समाजसेवी संस्थाओं के होते थे। अनुश्री कहती हैं कि, ‘हमने सोचा कि हमें किसी ऐसे व्यक्ति की ज़रूरत है जिसे इस काम का कम से कम 8 से 10 सालों का अनुभव हो। साथ ही वह विकास सेक्टर से जुड़ा हो और पहले किसी बड़े संगठन या संस्थान के लिए धन उगाही में सफलता हासिल कर चुका हो। इसके अलावा उसके पास अपना नेटवर्क हो और जोखिमों से निपटना जानता हो। एक ऐसा व्यक्ति जिसके पास धन उगाही के लिए नई व्यवस्थाओं और प्रक्रियाओं के निर्माण की जानकारी भी हो।’
अध्ययन ने लोगों की भर्ती करने वाले एक फर्म से मदद मांगी, जिसने उन्हें उम्मीदवारों की एक विस्तृत सूची दी। और इसी सूची से उन्होंने एक ऐसे व्यक्ति को खोज निकाला जो उनके सभी मानदंडों पर खरा उतर रहा था। उन्होंने उस व्यक्ति को अपनी टीम में शामिल कर लिया।
उन्होंने अध्ययन के साथ तीन महीनों तक काम किया। इस दौरान उन्होंने फंडरेजिंग पाइपलाइन के लिए, नये संपर्क ढूंढ़ने के लिए, पृष्ठभूमि से जुड़े शोध करने के लिए, और मीटिंग की बातचीत का रिकॉर्ड रखने की व्यवस्था तैयार की। साथ ही विभिन्न श्रेणियों के दाताओं के लिए विभिन्न प्रकार के प्रस्ताव लिखने के लिए बुनियादी व्यवस्थाएं और प्रणालियों को विकसित भी किया। उन्होंने भविष्य में होने वाली क्षति के लिए सभी प्रकार के टेम्पलेट तैयार किए और संस्थागत दाताओं की एक बहुत लंबी सूची बनाई।
यदि आप किसी वरिष्ठ व्यक्ति को संस्था में शामिल करते हैं, तो वे नुक़सान की जवाबदेही नहीं उठाएंगे या नये संपर्क सूत्र विकसित नहीं करेंगे।
अनुश्री के अनुसार, उनकी फ़ंडरेजर ने शोध का काम किया, उसके लिखने की क्षमता और योग्यता अच्छी थी और वह एक अत्यंत गहन सोच वाली इंसान थीं। केवल एक ही बाधा थी कि उन्हें ऐसे बड़े, स्थापित संगठनों में काम करने की आदत थी जहां संगठन के संस्थापक के एक फ़ोन से उन्हें 10 करोड़ रुपये तक के अनुदान मिल जाते हैं और जिनके पास ऐसे दाताओं की संख्या बहुतायत में होती है। लेकिन अध्ययन एक ऐसा छोटा संगठन था जो महामारी के दौरान भी स्वयं को बचाए रखने का प्रयास कर रहा था। ऐसे में उन्हें किसी ऐसे व्यक्ति की ज़रूरत थी जो धन उगाही के पारंपरिक रास्तों को समझने वाले व्यक्ति की तुलना में इसके ग़ैर-पारंपरिक तरीक़ों के बारे में सोचने में सक्षम हो।
साथ ही, अनुश्री ने भी कुलदीप की तरह ही यह माना कि – यदि आप किसी वरिष्ठ व्यक्ति को संस्था में शामिल करते हैं, तो वे नुक़सान की जवाबदेही नहीं उठाएंगे या नये संपर्क सूत्र विकसित नहीं करेंगे, और यदि वे ऐसा करते हैं, तो वे इससे खुश नहीं होंगे। (जहां, अनुश्री के फंडरेज़र ने ये सभी काम किए, वहीं दूसरी तरफ़ उनकी फंडरेज़र ईमानदारी से कहती थी कि उनके स्तर के ज़्यादातर लोग ऐसा नहीं करेंगे।) दोनों ही नेताओं ने यह महसूस किया कि उन्हें किसी ऐसे व्यक्ति की ज़रूरत थी जो धन उगाही के लिए आवश्यक बहुत सारे काम जैसे कि पृष्ठभूमि शोध, पाइपलाइन निर्माण, प्रस्ताव लेखन, फॉलो-अप, और दाताओं के साथ विश्वासपूर्ण और ईमानदार संबंध विकसित करने की इच्छा रखता हो।
आरबी में सदस्यों ने इसे ‘द सॉक्स एंड शूज’ का नाम दिया है (चलने से पहले जूते और मोज़े पहन के तैयार होना)। यह खेती करने से पहले खेत की जुताई करने जैसा है। इसके बिना आप अपनी ज़मीन पर अपनी मर्ज़ी की फसल नहीं उगा सकते हैं। ‘मुझे इसका एहसास हुआ कि अगर मैं किसी ऐसे व्यक्ति को ढूंढ़ सकूं जो मेरे लिए तैयारी के इन कामों को कर सके, तब मेरे पास दाताओं के सामने प्रस्ताव लेकर जाने और संगठन के लक्ष्य और कार्यक्रमों पर ध्यान देने के लिए पर्याप्त समय होगा।’
सही रास्ते का चुनाव
वरिष्ठ फंडरेज़र को नियुक्त करने का प्रयास असफल होने के बाद अध्ययन के सलाहकार बोर्ड के सदस्यों ने संगठन के साथ एक बैठक की। इसमें उन्होंने संगठन को यह सलाह दी कि वे वरिष्ठ सलाहकार के ऊपर होने वाले खर्च को दो हिस्सों में बांटें और उससे अपेक्षाकृत कम अनुभवी या ग़ैर-अनुभवी दो लोगों को नियुक्त करें। उन्होंने अनुश्री को ऐसे लोगों को ढूंढ़ने के लिए कहा जो पारंपरिक तरीक़ों से धन उगाही करने वाले ना हों बल्कि उनके पास शोध और लेखन की क्षमता हो और किसी ख़ास तरह से काम करने के आदि ना हों।
अनुश्री कहती हैं कि, ‘हमने अपने चैनल को खुदरा और दो भागों में बांटा – संचार तथा एचनआई और संस्थागत। हमने धन उगाही के लक्ष्य को उस व्यक्ति कि प्रमुख जिम्मेदारियों से भी हटा दिया। हमने उनसे केवल इतना कहा कि वे प्रक्रिया का पालन करते हुए वे सभी काम करें जो डोनर को तैयार करने के लिए चाहिए था। उसके बाद का काम यानी कि डोनर को दान के लिए तैयार कर लेना और उनसे वास्तव में दान प्राप्त कर लेना उनकी ज़िम्मेदारी है।’
साल 2021 में, जहां तियाशा और जयती अध्ययन के बोर्ड में शामिल हुईं, वहीं सुकृति ने आरबी के साथ काम करना शुरू किया। उनके पास विभिन्न समाजसेवी संस्थाओं और निगमों में एक से छह साल तक काम करने का अनुभव था। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि, उनके पास आवश्यक मुख्य कौशल थे जो अपने-अपने संगठनों में धन उगाहने के लिए आधार बने। उनके काम करने का तरीक़ा इस प्रकार था:
1. प्रक्रिया का पालन करना
अध्ययन में शामिल होने के बाद तियाशा ने उनके पूर्वर्ती फंडरेज़र द्वारा विकसित व्यवस्थाओं और प्रणालियों के अनुसार काम करना शुरू किया। ऐसा करने से उन्हें आगे बढ़ने के लिए एक अनुशासित और व्यवस्थित दृष्टिकोण मिला। उन्होंने उनकी सूची में शामिल प्रत्येक व्यक्ति के साथ संपर्क किया, उस पर संगठन में भी चर्चा की और क्या काम कर रहा है और क्या नहीं इस बात पर नज़र बनाए रखी। उन्होंने उन दाताओं से भी बातचीत जारी रखी जो उनके संगठन को दान देने में सक्षम नहीं थे – वे उनसे उनकी वर्तमान रणनीति पर प्रतिक्रिया मांगते थे और उसी आधार पर आगे का कदम उठाते थे। (दरअसल, शुरुआत में मना करने वाले कई डोनर बाद में उनसे जुड़ गये और दान भी दिया)।
इस स्तर के प्रयास और धन उगाही पर ध्यान केंद्रित करने के कारण, उनके पास अपने कार्यक्रमों को चलाने के लिए पर्याप्त समय नहीं था, लेकिन वे लगे रहे, और कई महीनों के बाद उनकी बातचीत परिवर्तित होने लगी। अध्ययन ने रिन्युल पर भी ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया – अपने मौजूदा दाताओं के साथ संबंध निर्माण करना और उनसे नज़दीकी बढ़ाना। यह सब करते हुए वे इस बात को भी सुनिश्चित कर रहे थे कि उनकी सूची में नए लोग शामिल हों और उनसे लगातार बातचीत का सिलसिला चलता रहे।
2. दाताओं की उम्मीदों का ध्यान रखना
अधिकांश फ़ंडर चाहते हैं कि संगठन का सीईओ या संस्थापक अनुदान के लिए उनके पास प्रस्ताव लेकर आएं। लेकिन एक समाजसेवी संगठन के विकास के साथ यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि डोनर के साथ अपने संबंध को विकेंद्रीकृत किया जाए। अध्ययन के मामले में, तियाशा और जयती ने स्वयं को इतना सक्षम बनाया ताकि वे सीधे दाताओं से बातचीत कर सकें। इसकी शुरुआत उन्होंने विभिन्न डोनर के साथ होने वाली मीटिंग में भाग लेकर और प्रेज़ेंटेशन बनाकर की और धीरे-धीरे बातचीत का नेतृत्व करने लगीं। यह तरीक़ा इतना सफल हुआ कि वर्तमान में डोनर सीधे तियाशा और जयती से ही संपर्क में हैं।
आरबी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। सुकृति ने फ़ंडरेजिंग के लिए आवश्यक काम करने के स्तर से ऊपर जाकर कुछ दाताओं के साथ सीधे तौर पर काम करना शुरू कर दिया। फंडरेजिंग पर प्रतिदिन काम करने से एक व्यक्ति को किसी संगठन को बेहतर तरीक़े से समझने में मदद मिलती है; विभिन्न डोनर के व्यक्तित्व, उनकी पसंद और बाधाओं को समझना आसान होता है। इससे उन्हें प्रस्ताव में लिखे जाने वाले विषयों को समझने में मदद मिलती है और समय के साथ वह इस पूरे काम को अकेले ही करने लग जाते है।
अपने संगठन के साथ जुड़ने के लगभग छह से बारह महीनों के भीतर ही तियाशा, जयती और सुकृति किसी भी डोनर के साथ बातचीत शुरू करने से लेकर उसे अंत तक पहुंचाने के स्तर पर पहुंच चुकी थीं।
3. फंडरेजिंग की संस्कृति का निर्माण
कुलदीप और अनुश्री दोनों जल्द ही समझ गये कि उन्हें अपने संगठनों में फंडरेजिंग के काम का दायरा बढ़ाकर औरों तक लेकर जाना होगा और इसे संगठन के डीएनए का हिस्सा बनाना होगा। इसके लिए हालाँकि दोनों ही लोगों ने दो अलग-अलग लेकिन बिलकुल नये रास्ते अपनाए।
मंगलवार को होने वाले आरबी की टीम मीटिंग में फ़ंडिंग अब एक महत्वपूर्ण विषय होता है ताकि सभी स्तरों पर काम करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को इसकी जानकारी रहे। इसके अलावा, कार्यक्रम टीम ने भी फंडरेजिंग से जुड़ी बातचीत में शामिल होना शुरू कर दिया। कुलदीप और सुकृति उनकी प्रतिक्रियाओं को प्रस्तावों में शामिल करते हैं और डोनर कार्यों में शामिल करते हैं। आरबी ने फिर से कार्यक्रम नेतृत्वकर्ताओं को राजस्व जिम्मेदारी सौंपनी शुरू कर दी है, जिसका अंतिम लक्ष्य सभी इकाइयों के नेताओं को अपनी टीम के लिए धन जुटाना है।
कुलदीप मानते हैं कि इस स्तर की तरफ़ बढ़ने से आरबी की रचनात्मकता बढ़ी है। वे कहते हैं, ‘पहले हम अपने फ़ंडर से केवल पैसों के लिए संपर्क करते थे। लेकिन अब हम उनसे मिल सकने वाले समर्थन के प्रति रचनात्मक रवैया रखते हैं। जैसे कि, हमने अपने दाताओं से इस बात के लिए संपर्क किया कि क्या वे हमारे मध्य स्तर वाले प्रबंधन के लिए आवश्यक पाठ्यक्रमों के लिए दान देना चाहते हैं, या फिर तकनीक से जुड़ा कोई फाउंडेशन हमारे लिए आवश्यक टूल के निर्माण में हमारी मदद कर सकता है।
लेकिन ऐसा तभी संभव है जब बुनियादी बातों का ध्यान रखा जाए – जब आप जानते हों कि रास्ता सरल है। और आपके पास इस पर सोचने के लिए पर्याप्त संख्या में कुशल और सक्षम लोग हैं।’
फंडरेजिंग का काम करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को संगठन और इसकी बड़ी तस्वीर के बारे में जानने की जरूरत है।
अध्ययन ने फंडरेजिंग को एक रोचक काम में बदलने का फ़ैसला किया। उन्होंने एक वार्षिक अभियान का ढांचा तैयार किया जिसमें पूरे संगठन को साल में एक बार फंडरेजिंग के लिए संस्कृति निर्माण में अपना समय निवेश करना था। सभी को यह बात मालूम है कि उन्हें हर साल अध्ययन के लिए धन उगाही का काम करना है, इसलिए संगठन का प्रत्येक व्यक्ति धन उगाही करता है। अध्ययन इस काम को पिछले दो वर्षों से कर रहा है और अब इसे औपचारिक रूप देने के लिए प्रयासरत है।
अनुश्री का कहना है कि इससे उनपे और कविता (संस्थापक) पर दबाव कम होता है। ‘संगठन सुचारू रूप से चल सके इसके लिए धन उगाही के बारे में सोचते हुए हम बहुत अधिक दबाव में आ जाते थे। और हमें महसूस हुआ कि ऐसे नहीं चल सकता है। सभी को स्वामित्व और ज़िम्मेदारियों का एहसास होना चाहिए, और हम सभी को एक साथ मिलकर इस समस्या का हल निकालना होगा।’ इस वार्षिक टीम अभियान ने फंडरेजिंग के काम को विकेंद्रीकृत कर दिया, जिसका मतलब था कि स्वामित्व की भावना वितरित हो गई और नेतृत्व पर दबाव कम हो गया। इसका यह भी मतलब था कि फंडरेजिंग का काम करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को संगठन और इसकी बड़ी तस्वीर के बारे में जानने की जरूरत है। क्योंकि इससे वे यह देख और समझ पाने में सक्षम हो पाते हैं कि वे एक संगठन के निर्माण का हिस्सा कैसे हैं और इसमें महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।
इस अभियान के साथ-साथ, तियाशा डोनर संबंधों को प्रबंधित करने के लिए अध्ययन में प्रत्येक टीम की क्षमता का निर्माण कर रही थी। वह उन्हें मासिक रिपोर्ट और प्रेजेंटेशन तैयार करने में मदद कर रही थी और साथ ही उन्हें यह सिखा रही थी कि दाताओं के सामने कैसे प्रभावी और आकर्षक बातचीत की जानी चाहिए। और, अंत में, अपने लिए फंडरेजिंग करने के अलावा, अध्ययन ने स्कूल की गुणवत्ता में निवेश करने के लिए हितधारकों के समूह के विस्तार पर भी काम शुरू कर दिया। उन्होंने निजी विद्यालयों को अरुणाचल प्रदेश के विद्यालयों को सीधे फंड देने में मदद की, जिससे देखभाल और समर्थन का एक पारिस्थितिकी तंत्र तैयार हुआ।
4. समर्थन समूह का निर्माण
आरबी ने सहकर्मी संगठनों का अपना स्वयं का पारिस्थितिकी तंत्र भी बनाना शुरू कर दिया, जिसके साथ वे धन उगाहने को लेकर दाताओं की विभिन्न श्रेणियां, क्या काम करता है, क्या नहीं जैसे विषयों पर टिप्पणियों और प्रतिक्रियाओं का आदान-प्रदान कर सकते थे। उन साथियों के साथ विचारों को साझा करना जो समान मुद्दों से जूझ रहे हैं और रचनात्मक समाधानों के बारे में सोच सकते हैं, समाजसेवी संस्थाओं को भी रचनात्मक रूप से सोचना शुरू करने में मदद करता है।
प्रभाव
दोनों संगठनों के बजट में तेजी से वृद्धि हुई है। अपने प्रमुख दाताओं को खोने से पहले अध्ययन का बजट 1.3 करोड़ रुपये था। वे साल 2021 में 55 लाख रुपये पर आ गए। वर्तमान में उनका बजट 3 करोड़ रुपये है और वे इसे दोगुना कर 6 करोड़ रुपये करने की उम्मीद कर रहे हैं। साल 2022-23 में आरबी लगातार और बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के अपने बजट में 2.5 गुना वृद्धि कर 7.6 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है।
पर्याप्त धन होने के कारण अध्ययन फ़ंडर को ना कहने की स्थिति में आ गया। इससे उन्हें दाताओं के साथ बराबरी पर खड़े होने की भी सुविधा मिली। वे अपने फ़ंडर से मोलभाव करने, नियमों में ढिलाई लाने और उनके परिणामों से जुड़ी सीमाओं और उम्मीदों को लेकर बातचीत करने की स्थिति में आ गये। अनुश्री कहती हैं कि, ‘जब हमारे पास पूरे साल भर के लिए पर्याप्त धन हो गया था तब हम सुरक्षित महसूस करने लगे और क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए को लेकर फ़ैसले कर पाने की स्थिति में आ गए। पहले हम ना कहने की स्थिति में नहीं थे क्योंकि हमारे पास बने रहने का संकट था। ना कहने से हमारी ताक़त में इजाफ़ा हुआ। इससे पूरा खेल ही बदल गया।’
कुलदीप का मानना है कि पर्याप्त फ़ंडिंग के कारण आरबी को दो क्षेत्र में लाभ हुआ – फंडरेजिंग और प्रतिभा। ‘इससे हम यह सोच पाने की स्थिति में आ गए कि 8–12 करोड़ वाले बजट के साथ हमें कैसे काम करना है और हमने समुदायों और तकनीक के माध्यम से अपना काम बढ़ाया। हम नहीं चाहते कि साल-दर-साल हमारा बजट बढ़ता रहे और फिर लगातार धन जुटाते रहें।
क्योंकि क्या इसका कोई सांख्यिकी प्रमाण है कि एक बार एक निश्चित धनराशि जुटा लेने के बाद हम प्रभाव पैदा करने की स्थिति में आ ही जाएंगे? जहां तक प्रतिभा की बात है, हमें नहीं लगता है कि हम एक ही तरह की प्रतिभा के लिए अन्य संगठनों से किसी तरह की प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं या करना चाहते हैं। आरबी में अलग तरह की प्रतिभा है और हम उसमें निवेश करना चाहते हैं।
अन्य समाजसेवी संगठनों के लिए सलाह
1. कंपनियों और बड़ी समाजसेवी संस्थाओं से जुड़े लोगों के मोह में ना पड़ें
कॉपोरेट क्षेत्र का अनुभव लिये और अच्छे संपर्क वाले लोगों से बहुत अधिक प्रभावित नहीं होना चाहिए। फंडरेजिंग के लिए सोचने और करने वाली मानसिकता की ज़रूरत होती है। इसमें या तो करने या ना करने वाली स्थिति की संभावना नहीं होती है। इसलिए, समाजसेवी संस्थाओं को किसी ऐसे व्यक्ति में निवेश करना चाहिए जो नेतृत्व के लिए आवश्यक तैयारी के साथ-साथ पिचिंग भी करेगा।
कुलदीप कहते हैं कि, ‘समझ लीजिए कि फंडरेजिंग समाजसेवी संस्थाओं की दुनिया में खेला जाने वाला एक खेल है; आप ऐसा नहीं कह सकते हैं कि आप बिना किसी तैयारी के खेलेंगे। हालांकि, मैं तो यह कहता हूं कि भले ही दुनिया द्वारा तय की गई परिभाषा के अनुसार आपका फंडरेज़र ‘करिश्माई’ नहीं है लेकिन अगर वह पूर्व तैयारी के काम में अच्छा है तो उसमें निवेश किया जाना चाहिए।’
2. अपने लिए ज़रूरी कौशल की पहचान करें
सेल्स की भाषा में, एक सीईओ और संस्थापक शिकार, खेती या बाग़वानी में अच्छा हो सकता है लेकिन तीनों ही कामों में अच्छा कभी नहीं हो सकता। एक नेता के रूप में अपने कौशल और स्वाभाविक क्षमता को पहचानें। और उसके बाद ऐसे कुशल लोगों को नियुक्त करें जो आपकी क्षमता को बढ़ा सकें। श्रम के उस विभाजन से बेहतर कामकाजी संबंध और भूमिकाओं में स्पष्टता भी आती है। उदाहरण के लिए अगर, सीईओ किसी नये फ़ंडर के सामने पिचिंग के काम में बेहतर है तो ऐसे में उन्हें किसी ऐसे की ज़रूरत होगी जो उनके रिश्ते को मज़बूत बनाए और उसे आगे ले जाने में उनकी मदद कर सके। ऐसा करने के लिए, एक नेता के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह अपनी खूबियों और ख़ामियों दोनों को समझे।
3. संगठन में स्वामित्व के भाव का निर्माण
माहौल के अनुसार प्रतिक्रियात्मक बने रहना बहुत महत्वपूर्ण है (अपनी बदलती हुई परिस्थिति, नये उभरते फ़ंडर आदि)। यह भी महत्वपूर्ण है कि फंडरेजिंग के काम को फ़ंड्रेजिंग टीम या सीईओ के दायरे से निकालकर पूरे संगठन के लोगों को इस प्रक्रिया से जोड़ा जाए। आप अपने संगठन के वित्त को जितना अधिक विकेंद्रीकृत करेंगे, पैसों के मामले में आपकी टीम में स्वामित्व का भाव उसी अनुपात में बढ़ेगा।
4. अपने दाताओं के चयन में सावधानी बरतें
‘हमें अपनी पिच केवल 30 सेकंड में सुनाएं; हमारे पास बात करने के लिए केवल दो मिनट ही है’ – ऐसी बातें करने वाले दाताओं में मूल्यों को कम करने की प्रवृति होती है। दाताओं के लिए ज़रूरी है कि वे समय निवेश करें, सवाल करें, काम को समझें और लोगों से जुड़ने की इच्छा रखते हों। अनुश्री के लिए यह लगातार महत्वपूर्ण होता जा रहा है। ‘हम किसी भी ऐसे डोनर के साथ नहीं जुड़ना चाहते हैं जिसमें धैर्य ना हो और जो किसी बड़े अवसर की तलाश में हो। इस तरह के फ़ंडर के साथ तालमेल बिठाना मुश्किल होता है।’ किसी भी प्रकार की फंडरेजिंग में निवेश करना और किसी संगठन के डीएनए में धन जुटाने की संस्कृति का निर्माण करने से उन्हें इस बात को समझने में मदद मिलती है कि कैसे वित्त पोषित किया जाए और वे किस प्रकार के अवसर चाहते हैं।
5. अपने फंडरेजिंग टीम को जमीनी हकीकत का एहसास दिलाएं
इस बात को सुनिश्चित करें कि उन्हें फील्ड में काम कर रहे विभिन्न टीम के साथ नियमित रूप से जुड़ने और ख़ुद भी फील्ड में काम करने का अवसर मिले। इससे उन्हें संगठन को बेहतर ढंग से समझने, लक्ष्य के साथ जुड़ने और अंततः एक बेहतर प्रस्ताव और पिच बनाने में मदद मिलेगी।
फ़ंडर के लिए सलाह
1. लचीले बनें
कुलदीप का मानना है कि जब धन जुटाने की क्षमता के निर्माण की बात आती है तो फंडर्स के लिए लचीला होना और संगठनों को काम करने का मौक़ा देना महत्वपूर्ण होता है। जब कोई फ़ंडर अपने अनुदान प्राप्तकर्ता संगठन में फ़ंडरेजिंग के लिए किसी व्यक्ति में निवेश करना चाहता है तो ऐसे में उसे लंबी अवधि तक टिकने वाली दृष्टिकोण को अपनाना चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि सीखने के क्रम में लोगों से ग़लतियां होने की पूरी संभवना होती है।
यदि कोई फ़ंडर किसी जमीनी स्तर के संगठन के लिए विक्रेता में निवेश करते हैं तो इसका प्रभाव दोगुना हो जाता है।
अनुश्री और कुलदीप, दोनों का कहना है कि फंडरेजिंग के लिए एक सफल इंजन बनाने के उद्देश्य से उन्होंने जिस डोनर के साथ काम किया वे बड़े लचीले थे, जिसकी वजह से उन्हें बहुत अधिक मदद मिली। कुलदीप कहते हैं कि, ‘उनके भी अपने मेट्रिक्स थे, लेकिन जल्द ही हमने यह बात समझ ली कि मेट्रिक्स का उद्देश्य एक स्तर तक हमें जवाबदेह बनाए रखता था। जब शुरुआती विचार विफल हो गए तो इसने हमें नई चीज़ें आज़माने से नहीं रोका। और यही सफलता की कुंजी थी।
इसके अलावा, यदि कोई फ़ंडर किसी जमीनी स्तर के संगठन के लिए विक्रेता में निवेश करते हैं तो इसका प्रभाव दोगुना हो जाता है, क्योंकि इससे संस्थापक टीम के पास काम करने और सोचने के लिए पर्याप्त समय होता है। इससे उन्हें अपने मुख्य काम पर ध्यान देने का समय मिलता है, जो किसी भी संगठन के लिए आगे बढ़ने और अपने प्रभाव को बनाने के लिए आवश्यक है। कुलदीप कहते हैं कि, ‘सुकृति के शामिल होने के बाद मुझे सोचने के लिए पर्याप्त समय मिलने लगा था, नतीजतन हम नेतृत्व के लिए एक सशक्त और विविध टीम को विकसित करने में सक्षम थे। इस टीम के लगभग 50 फ़ीसद सदस्य ग़ैर-हिन्दी भाषी थे। इससे मुझे उस टीम के साथ काम करने का मौक़ा मिला जो वास्तव में काम करता है।’
2. निर्देशात्मक न बनें
दाताओं को इस बात का एहसास होना चाहिए कि किसी भी समाजसेवी संगठन में कई सारी चीजें होती हैं और इस बात का अनुमान लगा पाना बहुत मुश्किल होता है कि अगले पांच सालों में परिस्थिति कैसी होगी। अगर आप अपने कार्यक्रम को टिकाऊ बनाना चाहते हैं तो आपको इसे समुदायों के साथ मिलकर बनाना होगा। आप अपनी रणनीति और योजनाओं को एकांत में रहकर नहीं बना सकते हैं, इसलिए दाताओं को इसके बारे में ज़रूर सोचना चाहिए।
अनुश्री का कहना है कि ऐसे भी डोनर हैं जो विशिष्ट चीजों की मांग करते हैं जिन्हें पूरा करने के लिए आपको एक ऐसा व्यक्ति बनना पड़ेगा जो भविष्यवाणी कर सके। वे कहती हैं कि, ‘उनमें से कुछ के पास निवेश और परिणाम को देखने का एक्रेखीय तरीक़ा होता है। इससे आपको अपनी प्रतिक्रिया देने या जिन लोगों की आप सेवा करते हैं उनके नेतृत्व का अनुसरण करने का अवसर नहीं मिलता है। किसी योजना को अति-अनुदेशात्मक बनाने से संगठन की उन चीजों का पता लगाने की क्षमता खत्म हो जाती है जो अधिक रचनात्मक और टिकाऊ होती हैं।’
बहुत अधिक महत्वपूर्ण होने के बावजूद भी, समाजसेवी संगठनों में फंडरेजिंग के लिए आवश्यक टूल और क्षमता निर्माण पर बहुत अधिक ध्यान नहीं दिया जाता है। ज़्यादातर डोनर, किसी संगठन की गैर-प्रोग्रामेटिक लागतों का भुगतान करने में रुचि नहीं दिखाते हैं जिसमें फंडरेजिंग, संचार, प्रभाव माप और ऐसे ही कारक शामिल होते हैं। हालांकि, इनमें से किसी भी काम में अपेक्षाकृत छोटे निवेश का समाजसेवी संस्थाओं और उनके द्वारा सेवा किए जाने वाले समुदायों दोनों पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है। क्षमता-निर्माण अनुदान ने अध्ययन और आरबी को धन उगाहने में निवेश करने की अनुमति दी। और ऐसा करने से न केवल संगठनों का बजट बढ़ा, बल्कि उन्हें एक मजबूत टीम बनाने, अपने काम का विस्तार करने और जिन समुदायों की वे सेवा करते हैं, उनके साथ सही काम करने में भी मदद मिली। अपनी यात्राओं के माध्यम से, ये दोनों संगठन अविश्वसनीय रूप से उच्च रिटर्न का प्रदर्शन करते हैं जो समाजसेवी संस्थाओं की मुख्य लागतों में निवेश करने, चीजों के गलत होने की चिंता न करने और सीखने और फिर से प्रयास करने पर ध्यान केंद्रित करने से आता है।
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अनुश्री एवं कुलदीप के बारे में
अनुश्री अल्वा अध्ययन की सीईओ और संस्थापक टीम की सदस्य हैं। वे एक शिक्षक हैं और पिछले 10 वर्षों में भारत, पूर्वी एशिया और अमेरिका में शैक्षिक कार्यक्रमों का नेतृत्व का अनुभव रखती हैं। अध्ययन से पहले अनुश्री ने टीच फॉर इंडिया, इंटरनेशनल रेस्क्यू कमिटी, ग्लोबल नोमैड्स ग्रुप, और सैंक्चुअरी फॉर फ़ैमिलिज के लिए काम कर चुकी हैं। उन्होंने कोलंबिया यूनिवर्सिटी के टीचर्स कॉलेज से शिक्षा में एमए किया है। अनुश्री मिलर सेंटर की पूर्व छात्रा है, जो त्वरक कार्यक्रम का एक महिला नेतृत्व वाला समूह है; और टीचर्स कॉलेज के भारत चैप्टर की आयोजन समिति में हैं।
कुलदीप दांतेवाडिया रीप बेनिफिट के सह-संस्थापक और सीईओ है। उन्होंने बिज़नेस मैनेजमेंट में बीए किया है। इसके अलावा कुलदीप ने पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन और रणनीतिक गैर-लाभकारी प्रबंधन से जुड़े कई शॉर्ट-टर्म कोर्स भी किए हैं। कुलदीप अशोका फेलो, अनरिजनेबल फेलो रहे हैं, और आर्किटेक्ट ऑफ़ द फ्यूचर, और यूनिलीवर यंग एंटरप्रेन्योर अवार्ड से सम्मानित भी हो चुके हैं।
यह लेख मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित हुआ है और यह इसका संक्षिप्त संस्करण है।
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