May 10, 2023

फंडरेजिंग के लिए ऑनलाइन माध्यमों का सही इस्तेमाल कैसे करें?

संगठन की वेबसाइट से फंडरेजिंग करने और क्राउडफंडिग में से एक चुनने की शर्त जरूरी नहीं है क्योंकि दोनों तरीक़ों का एक साथ इस्तेमाल करने के विकल्प भी मौजूद हैं।
6 मिनट लंबा लेख

भारतीय सामाजिक सेक्टर में व्यक्तिगत स्तर पर दान करने वाले छोटे आकार के दाताओं के महत्व को पहचाना जाने लगा है, क्योंकि फंडिंग के अन्य स्रोतों में या तो वृद्धि की दर कम होती है या उनमें गिरावट आने लगती है। विदेशी फंडिंग – जैसा कि एफ़सीआरए के तहत मिलने वाले दान से पता चलता है – में हर साल कमी आ रही है। मसलन, साल 2016-17 में यह बीते साल की तुलना में 65 फ़ीसद कम थी। लोगों और कॉर्पोरेट्स द्वारा अपने आयकर रिटर्न की जानकारी देते हुए, दर्ज की गई 80जी कटौतियों के अनुसार, पिछले चार वर्षों में कॉर्पोरेट दान में केवल 15 फ़ीसद की बढ़त हुई है। वहीं, दूसरी तरफ़ व्यक्तिगत स्तर पर किए जाने वाले दान में 40 फ़ीसद की बढ़त देखी गई है। सभी प्रकार के दानों का लगभग 40 फ़ीसद हिस्सा व्यक्तिगत दान से ही आता है। वास्तव में यह आंकड़ा इससे अधिक हो सकता है क्योंकि सम्भव है कि कई लोगों ने अपने आयकर में मिलने वाली छूट पर अपना दावा नहीं भी किया हो।

इसके अतिरिक्त, ऐसे लोग भी हैं जो अपनी कुल आय का 10 फ़ीसद से अधिक दान करते हैं लेकिन 80जी कटौती का लाभ नहीं उठा सकते हैं। कुल मिलाकर, हो सकता है कि तमाम संस्थाओं को मिलने वाले कुल दान का 50 फ़ीसद से अधिक हिस्सा व्यक्तिगत दान से आता है।

व्यक्तिगत दान पहले से ही दान में मिलने वाली कुल राशि का 50 प्रतिशत से अधिक है।

हालांकि समाजसेवी संस्थाओं ने क्राउडफंडिंग प्लेटफॉर्म और अपनी वेबसाइटों, दोनों के जरिए छोटे दानदाताओं से धन जुटाना शुरू कर दिया है। लेकिन इसके बावजूद, अब भी इनमें से प्रत्येक चैनल और उसके सही और बेहतर इस्तेमाल को लेकर उनकी समझ सीमित है। लोग समझते हैं कि वे इनमें से किसी एक विकल्प का ही उपयोग कर सकते हैं। उन्हें इस बात का अंदाज़ा नहीं होता है कि ये पारस्परिक रूप से अलग नहीं है। इनमें से प्रत्येक की अपनी भूमिका और उपयोग तय है और ये उनकी समाजसेवी संस्था के लिए बहुत काम आ सकते हैं।

क्राउडफ़ंडिंग को समझना

क्राउडफ़ंडिंग शब्द भ्रामक हो सकता है, विशेष रूप से उन समाजसेवी संस्थाओं के लिए जो इंटरनेट के उपयोग को लेकर सहज नहीं हैं। उन्हें लगता है कि वे कोई ऑनलाइन कैम्पेन बनाएंगे और एक ‘भीड़’- यानी कुछ लोगों का एक समूह – आगे आकर उन्हें फंड देगा। यह अपने आप में ही एक ग़लत अवधारणा है। अनजान लोगों से फंडरेजिंग कर पाना कभी-कभार ही कारगर हो सकता है – आपातकालीन मामले जैसे कि मेडिकल इमरजेंसी या कोई आपदा आदि अपवाद होते हैं। ख़ासकर वे मुद्दे जिन्हें लेकर मीडिया ने पहले से ही अच्छी खासी जागरूकता बना रखी है।

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दरअसल, ज़्यादातर मामलों में, मीडिया की तवज्जो न मिलने पर क्राउडफंडिंग काम नहीं करती है। मुझे याद है एक बार जम्मू-कश्मीर और असम, दोनों ही राज्यों में एक ही समय पर बाढ़ आई थी। जम्मू-कश्मीर की बाढ़ पर व्यापक रूप से रिपोर्टिंग हुई थी जबकि असम की बाढ़ पर कहीं किसी प्रकार की खबर देखने को नहीं मिलती थी। इसलिए फंडरेजिंग के मामले में भी यही होता देखने को मिला था।

इसलिए, कुछ विशेष मामलों में ही क्राउडफंडिंग पूर्ण रूप से अपने शाब्दिक अर्थ में काम करता है। हालांकि, जब कोई समाजसेवी संस्था क्राउडफ़ंडिंग को अपने प्राथमिक ऑनलाइन चैनल के रूप में देखता है तो उसे निम्नलिखित कुछ बातें ध्यान में रखनी चाहिए:

  • आमतौर पर, संगठनों को क्राउडफंडिंग से धन जुटाने में बहुत अधिक सफलता नहीं मिलती है। धन जुटाने के लिए लोग ही अपने नेटवर्क का इस्तेमाल करते हैं क्योंकि लोगों को व्यक्तिगत स्तर पर प्रतिक्रिया देना उचित लगता है। लोग बहुत कम मामलों में ही संगठनों को किसी प्रकार की प्रतिक्रिया देते हैं। 
  • क्राउडफंडिंग में आमतौर पर एक सीमित अवधि के लिए धन जुटाना शामिल होता है। एक समाजसेवी संस्था होने के नाते आपको हमेशा ही फंड की जरूरत होती है – फिर, ऐसे फंडरेजिंग अभियानों के पीछे क्यों भागना जो सीमित समय के लिए होते हैं?
  • इससे एक मौजूदा दाता के मन में, दाता और आपके संगठन के संबंधों को लेकर सवाल पैदा होता है: “मैं इस समाजसेवी संस्था को जानता हूं, लेकिन मैं इस क्राउडफंडिंग मंच के बारे में कुछ भी नहीं जानता। अपनी व्यक्तिगत जानकारी देने को लेकर मुझे इस मंच पर कितना भरोसा करना चाहिए?”
  • इससे पहले से जुड़े समर्थकों को खोने का ख़तरा होता है। एक बार आपसे जुड़ने के बाद आपके समर्थकों को ऐसे कई अन्य उद्देश्य भी मिल सकते हैं जिनमें उनकी रुचि हो। वे उनके लिए भी दान देने का फ़ैसला कर सकते हैं। आपके दाताओं को अन्य परियोजनाओं में दान करने से जुड़े ईमेल मिलने से भी वे आपके उद्देश्य से अलग जा सकते हैं।
  • यह फंडरेजिंग का स्थाई चैनल नहीं होता है। यदि आप भुगतान के लिए अपने समर्थकों को एक लिंक भेजते हैं तो दोबारा दान के लिए वे उसी लिंक का उपयोग नहीं कर सकते हैं। दोबारा दान देने का समय आने तक उस परियोजना की समय सीमा समाप्त हो चुकी होती है। ऐसे में दानदाता के पास अब दान करने के लिए किसी भी प्रकार का चैनल नहीं होता है। इनमें से बहुत कम लोग आपके संगठन या आपसे सीधे सम्पर्क करने की ज़हमत उठाएंगे। यह आपसे आपके उन दाताओं को दूर करता है जो आपको किसी भी समय दान दे सकते हैं।
  • और, सबसे अंतिम लेकिन जरूरी बात यह है कि क्राउडफ़ंडिंग अपेक्षाकृत बहुत महंगा होता है और इसमें जुटाई गई धनराशि का 8-15 फ़ीसद हिस्सा शुल्क के रूप में चला जाता है।

आपका सहयोग करने वाले – बोर्ड के सदस्य, वॉलन्टीयर और साथी-सहयोगी आपको फंड देते ही हैं तो फिर इसे कैंपेन फ़ॉर्मेट में रखने की जरूरत क्यों है? एक संगठन के रूप में, क्राउडफ़ंडिंग अभियान चलाना बहुत ही जिम्मेदारी का काम है और इसमें बहुत अधिक समय और ऊर्जा लगती है। दरअसल, अपने सहयोगियों से अधिकतम लाभ प्राप्त करने का सबसे अच्छा तरीका अपेक्षाकृत व्यक्तिगत होकर और समय देखकर संवाद करना है।

लैपटॉप पर काम कर रही एक महिला के हाथ_फंडरेजिंग ऑनलाइन
जब लोग आपको पहले से जानते हैं और दान देना चाहते हैं तो आपको उन्हें अपनी वेबसाइट से सीधे जोड़ना चाहिए।

मौजूदा समर्थकों को सीधे अपनी वेबसाइट पर दान देने का तरीका प्रदान करें

जब लोग आपको पहले से जानते हैं और दान देना चाहते हैं तो आपको उन्हें अपनी वेबसाइट से सीधे जोड़ना चाहिए। इससे उन्हें हमेशा याद रहेगा और वे अपनी इच्छानुसार और नियमित रूप से दान करते रह सकते हैं। साथी ही, ज़रूरत पड़ने पर अपने दोस्तों तथा परिवार के सदस्यों को भी इस बारे में बता सकते हैं।

अमेरिका में हुए एक शोध के मुताबिक, लोगों के लिए अपनी वेबसाइट पर दान देने की सुविधा प्रदान करने वाली समाजसेवी संस्थाओं को मध्यस्थ फंडरेजिंग वेबसाइटों की तुलना में 25 फ़ीसद अधिक; और क्राउडफ़ंडिंग मंचों की तुलना में 50 फ़ीसद तक अधिक दान मिलता है।

अपनी वेबसाइट पर ऑनलाइन दान करने की सुविधा उपलब्ध करवाने से आपको अलग-अलग तरीकों से मदद मिलती है।

क्राउडफ़ंडिंग मंच पर दान करने वाले लोग औसतन 2,000 रुपए जैसी छोटी धनराशि दान करते हैं। इन मंचों पर उनके द्वारा किए जाने वाले दान का सबसे बड़ा कारण होता है कि यह अभियान उनके दोस्तों द्वारा चलाया जाता है और उनके दोस्त मदद मांग रहे होते हैं। लोग इसे एक उपहार के रूप में देखते हैं, यह केवल इसलिए दिया जाता है क्योंकि उनके किसी जानने वाले ने मांगा है।

गिवइंडिया और दानमोजो, दोनों से जुड़े मेरे अनुभवों के आधार पर, मैं यह कह सकता हूं कि जब लोग सीधे संगठन की वेबसाइट पर देते हैं तो उनके दान की औसत राशि लगभग 5,000 रुपये होती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्होंने एक विशेष समाजसेवी संस्था को देने के लिए एक प्रत्यक्ष और सचेत विकल्प तैयार किया है और इसलिए यह उनके कुल दान का एक महत्वपूर्ण अनुपात होगा।

दूसरे शब्दों में, उपहार बजट और दान बजट के बीच का अंतर यही है। अपनी खुद की वेबसाइट पर ऑनलाइन दान करने की सुविधा उपलब्ध करवाने से आपको अलग-अलग तरीकों से मदद मिलती है।

  • यह आपके दाताओं को आपकी समाजसेवी संस्था को दान के लिए एक सुरक्षित और विश्वसनीय तरीका प्रदान करता है।
  • आपकी वेबसाइट पर देने वाले विकल्प की समय सीमा समाप्त नहीं होगी; इसलिए न केवल आपके समर्थक आपको किसी भी समय दान दे सकते हैं, बल्कि वे अपने दोस्तों, परिवार के सदस्यों तथा सहकर्मियों को भी इस बारे में बता सकते हैं।
  • दाताओं से जुड़ी जानकारियां केवल आपके पास उपलब्ध होती हैं इसलिए आप उनकी गोपनीयता बनाए रख सकते हैं।
  • और सबसे अंतिम एवं महत्वपूर्ण बात यह है कि यह एक कम लागत वाला विकल्प है और इसमें आपको इकट्ठा की गई कुल धन राशि का केवल दो से पांच फ़ीसद ही खर्च करना पड़ता है।

मौजूदा समर्थकों को वैल्यू चेन के स्तर पर ले जाने के लिए क्राउडफंडिंग का उपयोग करें

तो क्राउडफंडिंग कहां काम करती है और किसी भी समाजसेवी संस्था को इसका उपयोग कब करना चाहिए?

कई समाजसेवी संस्थाएं मुझसे पूछती हैं कि “हमें नए दाता कैसे मिल सकते हैं? इस सवाल का मेरा जवाब है, क्राउडफंडिंग। अगर सही तरीके से किया जाए तो यह समाजसेवी संस्थाओं के लिए पैसे जुटाने का एक आसान और सस्ता तरीका है। समाजसेवी संस्थाओं को क्राउडफंडिंग को सोशल फंडरेजिंग या पीयर-टू-पीयर फंडरेजिंग के रूप में देखना चाहिए। एक ऐसा चैनल जो उनके मौजूदा समर्थकों को उनके व्यक्तिगत सामाजिक नेटवर्क के जरिए धन इकट्ठा करने में मदद करने के लिए प्रोत्साहित करता है। 

ऐसा इसलिए भी है क्योंकि जब लोग धन जुटाते हैं तो क्राउडफंडिंग वास्तव में प्रभावी हो जाती है। अधिकांश क्राउडफंडिंग प्लेटफॉर्म आपको बताएंगे कि व्यक्तिगत फंडरेज़र (समाजसेवी संस्थाओं या अन्य के लिए) अपने स्वयं के प्लेटफॉर्म पर 50-80 फ़ीसद तक धन जुटाते हैं।

इसलिए, अपने कर्मचरियों, वॉलंटियरों, बोर्ड के सदस्यों और कुछ अतिरिक्त करने की इच्छा रखने वाले दाताओं का रणनीतिक इस्तेमाल अपने लिए धन जुटाने में किया जा सकता है। वे अपने सामाजिक नेटवर्क के उन लोगों से सम्पर्क कर ऐसा करेंगे जिन तक आपकी पहुंच नहीं है। इस प्रकार वे लगभग निशुल्क रूप से नए दाता और दान प्राप्त करने में आपकी मदद कर सकते हैं। इसलिए क्राउडफंडिंग, समर्थकों को आपसे जोड़े रखते हुए आगे बढ़ने और उनके धन के अलावा अन्य तरीकों से उनका योगदान पाने का एक शानदार तरीका है।

ऐसा इसलिए भी है क्योंकि जब लोग धन जुटाते हैं तो क्राउडफंडिंग वास्तव में प्रभावी होती है।

हालांकि यह आसान नहीं है: ऐसा सम्भव है कि मौजूदा 100 दाताओं में से केवल एक आदमी ही आपके लिए फंडरेजिंग करने को तैयार हो। इसे शुरू करने का एक अच्छा तरीक़ा यह है कि उन्हें ऐसे मंचों के उपयोग के लिए प्रोत्साहित किया जाए जो स्वाभाविक रूप से फंडरेडिंग करते हैं। उदाहरण के लिए, मैरॉथन जिसे ज्यादातर लोग चैरिटी फंडरेजिंग से जोड़कर देखते हैं। इसके बाद, आप विशेष अवसरों जैसे कि जन्मदिन, विवाह और वर्षगांठ आदि पर व्यक्तिगत अभियान के रूप में आगे बढ़ा सकते हैं।

समाजसेवी संस्थाओं की भूमिका लोगों को फंडरेजिंग के तरीके के बारे में प्रशिक्षित करना है; और इसकी समझ विकसित करने के लिए उन्हें अपने स्तर पर फंडरेजिंग करने की ज़रूरत है। ऐसा करने से संस्थाओं को यह समझने में आसानी होगी कि ऐसे कौन से कारण हैं जिनसे लोग दान करने के लिए प्रेरित होते हैं। दूसरे, उन्हें अपने समर्थकों से ऐसा करने के लिए कहने के लिए तैयार रहना चाहिए। समाजसेवी संस्थाएं समर्थकों से अधिक मदद मांगने में हिचकिचाती हैं। उन्हें यह समझना चाहिए कि समर्थक हमेशा और मदद करना चाहते हैं लेकिन उन्हें इसकी जानकारी नहीं होती है कि वे कैसे या क्या कर सकते हैं। एक बार जब उन्हें तरीक़ा बता दिया जाता है तब वे इससे निजी स्तर पर जुड़ना चाहते हैं। समाजसेवी संस्थाएं हमेशा ही नए दाताओं को आकर्षित करने के बारे सोचती हैं लेकिन उससे पहले मौजूदा दाताओं के अधिकतम उपयोग के बारे में क्यों न सोचें।

अंत में, आपको अपने मौजूदा दानदाताओं से लगातार धन जुटाने के लिए अपनी खुद की वेबसाइट का उपयोग करना चाहिए। वहीं, क्राउडफंडिंग मंच का उपयोग समर्थकों के एक चैनल के रूप में आपके लिए फंडरेजिंग करने के लिए किया जा सकता है।

इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ें

लेखक के बारे में
धवल उडानी-Image
धवल उडानी

धवल उडानी के पास टेक्नोलॉजी, मैनेजमेंट कंसल्टिंग और परोपकारी सलाह के क्षेत्र में 15 साल का अनुभव है। उन्होंने सिटीग्रुप और एटी किर्नी जैसे बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ काम किया है। 2006 में उन्होनें गिवइंडिया में स्वयंसेवक के रूप में काम किया और सामाजिक क्षेत्र में अपना जीवन शुरू किया, और 2008 में पूरी तरह इससे जुड़ गए। धवल 2011 से 2014 तक गिवइंडिया के सीईओ रहे। वह एक एस्पेन फैलो हैं और इसके इंडिया लीडरशीप इनीशीएटिव का हिस्सा भी हैं। धवल आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र हैं और उन्होनें मुंबई के वीजेटीआई से कंप्यूटर साइन्स में स्नातक की डिग्री हासिल की है।

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