मेरा नाम कृष्णा बेन है और मैं अहमदाबाद के गांधीनगर की विस्तार झुग्गी में रहती हूं। मैं एक एनर्जी ऑडिटर हूं और लोगों के घर-घर जाकर उनके घर में इस्तेमाल हो रहे बिजली के संयंत्रों जैसे बल्ब, एलईड, पंखे आदि की क्षमता (वाट) की जांच करती हूं। जांच करने के बाद मैं उन्हें बिजली की खपत को कम करने के बारे में कई तरह के सुझाव भी देती हूं। लेकिन मैं हमेशा से यह काम नहीं करती थी। एनर्जी ऑडिटर बनने से पहले मैं भी यहां की अन्य महिलाओं की तरह घर पर ही रहकर काम करती थी। इससे पहले मैं बिंदी के पैकेट बनाने का काम करती थी जिसके मुझे दिन के सौ से डेढ़ सौ रुपये मिल जाते थे। झुग्गियों में सूरज की रौशनी ठीक से नहीं पहुंच पाती है, ऐसे में बिजली के चले जाने के बाद घर में अंधेरा हो जाता था और मेरा काम रुक जाता था। केवल बिजली की समस्या के कारण मुझे महीने में चार से पांच सौ रुपये का नुक़सान उठाना पड़ता था।
उन्हीं दिनों मैं महिला हाउसिंग ट्रस्ट (एमएचटी) नाम की एक समाजसेवी संस्था के साथ जुड़ी। यह संस्था लोगों के घरों में विभिन्न तरीक़े की सुविधाएं पहुंचाने का काम करती है। एमएचटी ने साल 2001 में झुग्गी-बस्ती विद्युतीकरण कार्यक्रम (स्लम इलेक्ट्रीफ़िकेशन प्रोग्राम) शुरू किया था। इस कार्यक्रम के तहत एक लाख घरों में बिजली के कनेक्शन लगवाए गये। अवैध बिजली से होने वाली परेशानी के कारण हमारी झुग्गी में रहने वाली महिलाओं ने एमएचटी की मदद से अपने नाम से बिजली का कनेक्शन लेने की प्रक्रिया शुरू की। हमारे प्रयास के बाद स्लम का इलेक्ट्रिफ़िकेशन शुरू हुआ।
झुग्गी में वैध बिजली की व्यवस्था हो जाने के बाद हमारे घरों में कनेक्शन और मीटर लगाए गए। लेकिन इससे फ़ायदा होने की जगह उल्टा नुक़सान ही हुआ और हमारे घरों का बिजली बिल दोगुना आने लगा। बढ़े हुए बिजली बिल के कारण को समझने और उसे कम करने के उपायों के बारे में जानने के लिए मैंने एनर्जी ऑडिटर्स पर एमएचटी द्वारा आयोजित तीन-दिवसीय प्रशिक्षण में हिस्सा लिया। इस प्रशिक्षण के दौरान उन्होंने हमें घर में होने वाली बिजली खपत और ज़रूरतों में कमी लाने के तरीक़ों के बारे में बताया। इस दौरान हमने बिजली पर होने वाले खर्च को कम करने के उपाय भी सीखे। प्रशिक्षण में मैंने घर के नक़्शे, घर में खिड़की-दरवाज़ों की जगह, सूर्य की रौशनी की दिशा, छत की ऊंचाई और घर में लगने वाले बिजली के प्वाइंट की जगह आदि को देखना और समझना भी सीखा।
अपने इस प्रशिक्षण के बाद मैं घर-घर जाकर लोगों को बिजली बचाने के तरीक़ों के बारे में बताने लगी। लोगों के घर जाते समय मेरे पास एक बक्से में वाट-मीटर, 3-पिन सॉकेट और स्विच आदि जैसी चीजें होती हैं। इनकी मदद से मैं पंखे, बल्ब और टीवी, एलईड जैसी बिजली से चलने वाली चीजों को मीटर से जोड़कर उनके घरों में हो रहे बिजली का वास्तविक खर्च दिखाती हूं। मैं अपने साथ ऐसे एलईड बल्ब भी रखती हूं जिसकी रौशनी तो तेज होती ही है, लेकिन उन्हें जलाने में बिजली का खर्च कम आता है।
एक एनर्जी ऑडिटर के रूप में मैं लोगों के घरों के आकार के आधार पर ज़रूरी बदलावों का सुझाव देती हूं। जैसे कि मैं उन्हें बताती हूं कि बिजली पर होने वाले खर्चे में कमी लाने के लिए वे सौ वाट की जगह पैंतालीस वाट वाली ट्यूबलाइट, पचहत्तर वाट वाले बड़े रेगुलेटर वाले पंखों के बदले कम वाट वाले पंखे लगा सकते हैं।
अपने ऑडिट के अंतिम चरण में मैं लोगों को इस्तेमाल की जाने वाली चीजों की एक ऐसी सूची देती हूं जिससे उनके बिजली का खर्च कम हो सकता है। मेरे सुझावों को अपनाने के बाद लोगों का बिजली बिल कम आने लगा और अब लोग समुदाय के अन्य लोगों को भी मेरे और मेरे काम के बारे में बताते हैं। उसके बाद वे लोग मुझे अपने घर पर बिजली का ऑडिट करने के लिए बुलाते हैं। मेरे इस काम के कारण समुदाय के लोगों ने प्यार से मुझे बिजली वाली बेन के नाम से भी पुकारना शुरू कर दिया है।
कृष्णाबेन मंगलभाई यादव एक एनर्जी ऑडिटर हैं और महिला हाउसिंग ट्रस्ट (एमएचटी) नामक एक समाजसेवी संस्था के साथ जुड़ी हुई हैं।
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