समुद्र से 3,000 मीटर से अधिक की ऊंचाई पर स्थित लद्दाख को आइस हॉकी के लिए आदर्श माना जाता है। यह इस इलाक़े का सबसे लोकप्रिय विंटर स्पोर्ट है। लगभग 50 साल पहले भारतीय सेना के जवानों ने पूर्वी लद्दाख में इसे डाउनटाइम गेम के तौर पर खेलना शुरू किया था। समय के साथ, इस खेल ने स्थानीय लोगों के बीच अच्छी-खासी लोकप्रियता हासिल कर ली है।
लद्दाख में पले-बढ़े लोगों की बचपन की यादों में, सर्दियों की छुट्टियों में होने वाली आइस हॉकी का एक विशेष स्थान है। आज, लद्दाख में पुरुष एवं महिला, दोनों ही प्रकार की आइस हॉकी टीमों की संख्या 20 से अधिक है। दरअसल, भारतीय महिला आइस हॉकी टीम की 20 खिलाड़ियों में से 18 लद्दाख से हैं। हर साल, लेफ्टिनेंट गवर्नर कप और चीफ एग्जेक्यूटिव काउंसिलर कप जैसे लोकप्रिय शीतकालीन टूर्नामेंट यहां आयोजित किए जाते हैं जिनमें लद्दाख के विभिन्न हिस्सों से टीमें भाग लेती हैं। फरवरी में आइस हॉकी नेशनल चैंपियनशिप 2023 का आयोजन भी लद्दाख में ही हुआ था।
हालांकि जलवायु परिवर्तन, जिसके कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, इस लोकप्रिय खेल पर एक बड़े खतरे की तरह मंडरा रहा है। अतीत में, आमतौर पर खेलों का आयोजन करजू के प्राकृतिक बर्फीले तालाब (आइस पॉन्ड) में किया जाता था। खिलाड़ी इन तालाबों में अभ्यास भी करते थे। लेकिन बढ़ते तापमान ने इसे मुश्किल बना दिया है। हॉकी खिलाड़ी और लद्दाख महिला आइस हॉकी फाउंडेशन की सदस्य डेस्किट कहती हैं कि, ‘मैं लद्दाख में महिला हॉकी खिलाड़ियों की पहली पीढ़ी में से हूं। मैं साल 2016 से ही राष्ट्रीय टीम में डिफेंस में खेल रही हूं। चूंकि हमारे पास अनुकूल कृत्रिम आइस हॉकी रिंक नहीं है इसलिए हम पूरी तरह इन जमे हुए तालाबों पर ही निर्भर हैं। और, अब जलवायु परिवर्तन ने हमारे लिए एक बड़ी समस्या खड़ी कर दी है। जब मैंने पहली बार खेलना शुरू किया था, तब हमें सर्दियों में कम से कम दो से चार महीने का समय खेलने के लिए मिल जाया करता था, लेकिन अब, इस ठंडे प्रदेश में भी सर्दी काफी देर से आती है और जल्दी चली जाती है। नतीजतन, हमें खेलने के लिए केवल दो महीने ही मिलते हैं।”
पिछले कुछ दशकों में, वैज्ञानिकों ने लद्दाख में बर्फबारी और ग्लेशियर के घनत्व, दोनों में गिरावट दर्ज की है। पर्यटकों की बढ़ती संख्या ने भी इस मामले को जटिल ही बनाया है। डेस्किट कहती हैं कि ‘पूरे साल सभी तरह की सुविधा प्राप्त विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय टीमों की तुलना में हमें केवल सर्दी के मौसम में ही अभ्यास करने और अंतर्राष्ट्रीय चैंपियनशीप के लिए तैयारी करने का मौका मिलता है। इससे हमारा प्रशिक्षण और प्रदर्शन वास्तव में प्रभावित होता है।’
डेस्किट बताती हैं कि लद्दाख में कृत्रिम आइस हॉकी रिंक मुहैया करवाने का वादा किया गया था। वे अफसोस जताती हैं कि, ‘अगर कृत्रिम रिंक नहीं बनाया गया और जलवायु परिवर्तन का प्रभाव मौजूदा गति से जारी रहा तो हम इस बेहद पसंदीदा शीतकालीन खेल को खो देंगे।
पिछले कुछ वर्षों से खेल का आयोजन लेह में एनडीसी आइस हॉकी रिंक में किया जा रहा है; इस रिंक का निर्माण पहाड़ी क्षेत्रों में इस खेल के प्रति लोगों की बढ़ती रुचि और बेहतर भविष्य की इसकी संभावना को देखते हुए किया गया था। लेकिन आइस रिंक के निर्माण और विकास का काम अब भी अधूरा है। इस खेल को बचाए रखने के लिए कृत्रिम रिंक के निर्माण की मांग भी तेजी से बढ़ी है।
डीचन स्पाल्डन लेह, लद्दाख की एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। मूल कहानी चरखा फीचर्स द्वारा प्रकाशित की गई थी।
इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ें।
—
अधिक जानें: जानें की कश्मीर के तीन गांवों में सड़क के बजे कुश्ती के मैदानों की मांग क्यों की जा रही है।
अधिक करें: लेखक के काम के बारे में विस्तार से जानने और उन्हें अपना समर्थन देने के लिए उनसे [email protected] पर संपर्क करें।