“कहते हैं ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’… लेकिन पढ़ाएं कहां से?” राजस्थान के बाड़मेर ज़िले की खारंतिया गांव की एक बुजुर्ग महिला ने हमसे पूछा।
पश्चिमी राजस्थान का बाड़मेर जिला अपने इलाके, तापमान, पानी में नमक के स्तर और थार रेगिस्तान से नज़दीक होने के कारण राज्य के सबसे चरम जलवायु वाली परिस्थितियों का एक जीवंत उदाहरण है। बाड़मेर ज़िले से लूनी नदी होकर गुजरती है जो इस रेगिस्तान की सबसे लम्बी नदी है। 2021 में अपने फ़ील्डवर्क के लिए मुझे खारंतिया गांव की यात्रा करनी पड़ी। यह गांव नदी के तट पर बसा है और हर बार मानसून में बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हो जाता है। बाढ़ के कारण यूं तो सभी का जीवन और आजीविका दोनों ही प्रभावित होते है लेकिन इसका सबसे अधिक असर औरतों और युवा लड़कियों पर पड़ता है।
समुदाय के सदस्य विशेष रूप से मानसून के दौरान शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, और बुनियादी सार्वजनिक सेवाओं जैसे परिवहन, बिजली और अन्य सुविधाओं तक पहुंच की कमी को लेकर बहुत मुखर थे। दरअसल मानसून के दिनों में लूनी का जल-स्तर बढ़ने से खारंतिया साल में कई महीनों के लिए आसपास के शहरों से कट जाता है।
गांव में कॉलेज जाने वाली पहली-पीढ़ी की करिश्मा का कहना है कि “ससुराल नहीं जाना है, पहले पढ़ना है…जॉब करनी है।”
करिश्मा और उनकी बहन पूजा याद करते हुए बताते हैं कि बाढ़ के समय सड़कों पर सीने तक पानी भर जाता था और वे उसे पार करके स्थानीय स्कूल में पढ़ने जाते थे। कोविड-19 के आने से पहले से ही उनकी कक्षाएं रद्द होती हैं और उन्हें परीक्षाओं में आने वाली बाधाओं से जूझना पड़ता है।
बाढ़ के कारण लड़कियां पढ़ाई बीच में हो छोड़ देती हैं। इसके अलावा इस इलाक़े में बेटियों की शादियां 18 साल और उसके आसपास कर दी जाती हैं। शादी के निर्णय के समय उनकी आर्थिक स्वायत्ता या भावनात्मक तैयारी को भी नज़रअन्दाज़ कर दिया जाता है। कम उम्र में शादी से बचने और अपनी स्वतंत्रता हासिल करने के लिए, स्कूल जाने वाली लड़कियों पर खुद को जल्दी से कुछ बनाने का बहुत अधिक दबाव होता है। इसके लिए वे सरकारी नौकरी या किसी अच्छी निजी कम्पनी में नौकरी हासिल करने की कोशिश में लगी रहती हैं। हालांकि अब भी खारंतिया में 10वीं की पढ़ाई पूरी करने वाली लड़कियों की संख्या बहुत कम है। मनरेगा साथी बनने के लिए न्यूनतम योग्यता 10वीं तक की पढ़ाई है।
इस गांव में एक स्वास्थ्य केंद्र भी है जो बाढ़ और सुदूर इलाक़े में स्थित होने के कारण उपयोग में नहीं रहता है। यहां कई वर्षों से किसी भी सरकारी डॉक्टर की नियुक्ति नहीं हुई है। कुछ निजी डॉक्टरों ने यहां अपना अस्पताल या क्लिनिक शुरू किया था लेकिन इन्हीं कारणों से वे भी इस जगह को छोड़ कर चले गए। भारी बारिश और बाढ़ के कारण एएनएम का दौरा भी नियमित रूप से नहीं होता है और ये चार-पांच महीनों में एक या दो बार आते हैं।
एक अन्य स्थानीय महिला ने बताया कि “गर्भवती महिलाओं को बहुत दूर-दूर जाना पड़ता है डिलीवरी के लिए, रास्ते में कुछ भी हो सकता है।”
दीपानिता मिश्रा फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल सिक्योरिटी के लर्निंग, मॉनिटरिंग एंड इवैल्यूएशन विभाग में प्रोजेक्ट मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं।
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