2011 में मैं एक स्किल डेवलपमेंट कार्यक्रम पर राजस्थान स्किल एंड लाइवलीहुड डेवलपमेंट कार्पोरेशन (आरएसएलडीसी) के साथ काम कर रहा था। यह राजस्थान के 21 जिलों में फैली हुई एक विशाल परियोजना थी जिसके तहत युवाओं को हॉस्पिटैलिटी का प्रशिक्षण दिया जा रहा था। इन इलाकों में एक इलाका जोधपुर जिले में था जहां हम लोग उच्च-जाति के लोगों के साथ काम कर रहे थे। हमनें वहाँ प्रशिक्षण केंद्र तैयार किए लेकिन उसके पहले हमलोगों ने क्षेत्र के समुदायों के साथ सर्वेक्षण के काम में समय नहीं दिया। इसके कारण वहाँ जो कुछ भी हुआ हम उसके लिए तैयार नहीं थे।
हमारा केंद्र तैयार होने के बाद भारी संख्या में लड़के और लड़कियां आने लगे। लेकिन कुछ ही समय में वे समझ गए कि हॉस्पिटैलिटी में काम करने का एक मतलब कमरों और सार्वजनिक जगहों की सफाई करना भी है। जहां एक तरफ वे होटलों में काम करने की संभावना को लेकर उत्साहित थे वहीं वे इस बात से अनजान थे कि इसमें कई तरह के काम शामिल होते हैं—और सभी काम अनिवार्य होते हैं। नब्बे प्रतिशत प्रशिक्षु बीच में ही कार्यक्रम छोड़कर चले गए। इसका कारण सिर्फ इतना था कि उनकी जाति उन्हें साफ-सफाई वाले काम करने की अनुमति नहीं देती है।
ये समुदायों के भीतर की क्रूर सच्चाई है। स्किल डेवलपमेंट कार्यक्रमों को करवाने वाली स्वयंसेवी संस्थाएं इन नियमों के बारे में जानती हैं। लेकिन उन्हें लोगों को रोकने के लिए समुदायों के भीतर जाकर उनके रवैये को बदलने के लिए भी काम करना होगा। इस मामले में वे समुदायों के साथ बैठकर श्रम की गरिमा के बारे में बात कर सकते है।
अजित सिंह अनंत लर्निंग एंड डेवलपमेंट प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक है।
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