मैं अक्सर सोचता हूं कि हम अपनी खत्म होती हुई सांस्कृतिक विरासत को कैसे बचाए रखें? कैसे अपने अतीत को सहेज कर आने वाली पीढ़ियों के सामने रख सकें? अगर हमने अगली पीढ़ी को यह नहीं बताया कि हम जिस जगह पर रह रहे हैं, उसका अतीत कितना गौरवशाली रहा है तो हम अपनी कई महत्वपूर्ण उपलब्धियों को खो बैठेंगे। हमारी स्थानीय विरासत जो हमें आज तक दिशा देती आई है, वह धीरे-धीरे मिटती चली जाएगी।
आप याद करें, पहले जब पढ़ने-लिखने के माध्यम नहीं थे, तब लोग अपनी स्मृतियों में बातें रखते थे और उन्हें कहानियों के रूप में अगली पीढ़ी तक पहुंचाया करते थे। बाद में, जब लोग लिखने लगे तो हमारे इलाके में लोगों ने अलग-अलग तरह के दस्तावेज बनाए, बहियां बनाईं जिनमें व्यापार, समाज और जीवन से जुड़ी तमाम बातें दर्ज की गईं। यह सब अब हमें अपना अतीत समझने में मदद करते हैं।
मेरा नाम श्याम सुंदर है और मैं चूरू जिले में रहता हूं जहां हम एक संग्रहालय चलाते है, जहां ऐसी ही बहियों, दस्तावेजों और ऐतिहासिक सामग्रियों का संरक्षण करते हैं। हमारे संग्रहालय में एक सेठ मिर्जामल पोद्दार जी की पुरानी बहियां हमारे पास मौजूद हैं जो 19वीं सदी की शुरुआत की हैं। वे एक ऐसे व्यपारी थे जिन्होंने चुरू से अपना व्यापार शुरू किया था और एशिया तक फैला दिया था। उनकी बहियों का अध्ययन किया गया तो पता चला कि चुरू के व्यापारियों ने आज से 200-250 साल पहले बीमा की शुरुआत कर दी थी। हमारे पास देश में कहीं और इसके लिखित प्रमाण नहीं मिलते हैं।
इन बहियों में केवल व्यापारिक जानकारी ही नहीं थी बल्कि समाज की घटनाओं, परंपराओं और ऐतिहासिक प्रसंगों का भी जिक्र मिलता है। इसके अलावा हमारे संग्रहालय में हस्तलिखित ग्रंथ, दुर्लभ ऐतिहासिक पुस्तकें, हजारों साल पुराने सिक्के और अन्य पुरातात्विक अवशेष भी सुरक्षित हैं। कालीबंगा, रंगमहल और भाडंग जैसे क्षेत्रों से मिले पुरावशेष आज हमारे संग्रह का हिस्सा हैं और शोधार्थियों के लिए उपयोगी संसाधन बन सकते हैं।
आज हमारे सामने चुनौती है कि युवा पीढ़ी का झुकाव इन बातों की ओर बहुत कम हो गया है। मोबाइल और गूगल जैसे साधनों ने त्वरित जानकारी पाने की आदत बना दी है। इससे लोग गहराई से पढ़ना, खुद से खोज करना और उस पर चिंतन करना भूलते जा रहे हैं। बढ़ती तकनीक और सुविधापूर्ण जिंदगी, इन संग्रहालयों तक नई पीढ़ी की पहुंच को और मुश्किल बना रही है।
श्याम सुंदर, संग्रहालय के सरंक्षक हैं और नगरश्री लोक संस्कृति शोध संस्थान, चुरू में सचिव के तौर पर कार्य करते हैं।
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