हम दोनों—प्रतापगढ़, राजस्थान से सुनील और मंदसौर, मध्य प्रदेश से शोएब—कई सालों तक उदयपुर की जेल में साथ रहे। एक बार अगर आप अपराध की दुनिया में चले जाएं, तो इससे बाहर निकल पाना बहुत मुश्किल होता है। लेकिन, जब हमने स्वराज जेल यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया तो हमें धीरे-धीरे अपनी संगीत कला पर भरोसा होने लगा और हम अपराध से दूर अपना भविष्य देखने लगे। यह विश्वविद्यालय कैदियों को संगीत, कला और कृषि आदि से जुड़े कौशल सिखाता है। प्रशिक्षण के कुछ समय बाद हम यूनिवर्सिटी के बैंड ‘आउट ऑफ द बॉक्स’ का हिस्सा बन गए। वहां से रिहाई होने पर हमने नया सवेरा बैंड बनाया, ताकि हम अपनी संगीत की यात्रा जारी रख सकें।
संगीत हमारे लिए जिंदगी संवारने का जरिया बन गया है और इसके सहारे हम अन्य कैदियों और युवाओं को एक अर्थपूर्ण जीवन जीने के लिए प्रेरित कर पाते हैं। हमारे गांवों में भी वो लोग, जिन्हें हमसे कोई उम्मीद नहीं रह गई थी, अब सोचते हैं कि, “अगर ये अपना जीवन बदल सकते हैं तो मैं क्यों नहीं?” हमारे परिवारों को भी अब इस बात पर नाज है कि हम क्या काम करते हैं।
हमें लगता है कि पूर्व कैदियों को भी ऐसे अवसर मिलने चाहिए, जहां वे अपने हुनर को परख सकें और उसके सहारे फिर से समाज की मुख्यधारा में शामिल हो सकें। इसी उद्देश्य से हम रिहा होने वाले वाले साथियों को अपने बैंड में शामिल करते हैं, ताकि उन्हें अपराध से दूर जीवन का एक विकल्प मिल सके। हर जेल में इस तरह के कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए ताकि कैदी संगीत या ऐसा ही कोई और हुनर सीख सकें। जेलों को सजा की बजाय सुधार और पुनर्वास केंद्र की तरह देखा जाना चाहिए। हम चाहते हैं कि हम राजस्थान की सभी सेंट्रल जेलों में परफॉर्म कर सकें, जिससे लोगों में अपराध से परे एक भविष्य देखने की उम्मीद जगा सकें।
सुनील मैदा, नया सवेरा बैंड के मुख्य सदस्य हैं और तबला बजाते हैं। शोएब खान, बैंड के मुख्य गायक हैं और गिटार बजाते हैं।
इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ें।
—
अधिक जानें: पढ़ें कि भारत का जेल सिस्टम सामाजिक रूप से वंचित लोगों से कैसा व्यवहार करता है।