क्यों मेघालय में तिवा जनजाति को नाम से लेकर भाषा तक बदलनी पड़ रही है?

Location Icon री भोई जिला, मेघालय
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मेघालय में तिवा समुदाय को आधिकारिक मान्यता और पहचान न मिलने के कारण, उसे अपनी स्थिति मज़बूत करने के लिए कुछ अलग रास्ते अपनाने पड़ते हैं। | चित्र सभार: कौमुदी महंता

मैं एक शोधकर्ता हूं और तिवा समाज के साथ काम कर रही हूं। यह उत्तर-पूर्वी राज्यों असम और मेघालय राज्यों में रहने वाला एक आदिवासी समूह है। तिवा लोग असम के मैदानी और पहाड़ी इलाकों में रहते हैं जहां उन्हें अनुसूचित जनजाति (एसटी) माना गया है। लेकिन मेघालय में तिवा समुदाय को अभी तक यह दर्जा नहीं मिला है।

मेघालय के री भोई जिले में तिवा जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा रहता है। लेकिन यहां समुदाय को आधिकारिक मान्यता और पहचान न मिलने के कारण, उसे अपनी स्थिति मज़बूत करने के लिए कुछ अलग रास्ते अपनाने पड़ते हैं। इनमें से एक है – खासी उपनाम अपनाना। वे यह उपनाम इसलिए इस्तेमाल करते हैं ताकि उन्हें अनुसूचित जनजाति (एसटी) के दर्जे से जुड़े सामाजिक और राजनीतिक लाभ मिल सकें।

री भोई के अमजोंग गांव में अपने शोध के दौरान मुझे कई ऐसे परिवार मिले जिन्होंने खासी उपनाम अपनाया था और वे खासी भाषा भी अच्छी तरह जानते थे। यहां के एक निवासी, जोसेफ एम* ने कहा कि “जब आप ऐसे लोगों के बीच होते हैं, जो पांच अलग-अलग भाषाएं बोल सकते हैं तो यह कहना मुश्किल होता है कि वे कैसे बोलते हैं।” जोसेफ यहां पर अमजोंग के लोगों की बात कर रहे थे जो खासी और तिवा दोनों भाषाओं में सहज होते हैं, और इसके अलावा असमिया, अंग्रेजी और हिं दी भी थोड़ा-बहुत जानते हैं। जोसेफ के परिवार में पत्नी और उनकी तीन बेटियां हैं और वे घर पर तिवा भाषा बोलते हैं।

आपस में शादी करना भी, तिवा समुदाय के लिए अपनी स्थिति को बेहतर बनाने का एक तरीका है। जोसेफ ने बताया, “मेरे छोटे भाई, जो अब शिलांग में रहते हैं, उन्होंने खासी जनजाति की एक महिला से शादी की। इससे उनके दोनों बच्चों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिलना आसान हो गया।” खासी जनजाति में बच्चों की पहचान मां की जाति से होती है, यानी अगर मां खासी है तो बच्चों को खासी जाति माना जाता है।

हालांकि, अमजोंग में तिवा लोगों की कुछ व्यवस्थागत समस्याएं भी हैं। वे अपनी निचली और उच्च प्राथमिक सरकारी स्कूलों की खराब हालत की शिकायत करते हैं। उन्हें कानूनी पहचान न मिलने की वजह से छात्रवृत्तियां, आरक्षित सीटें और अन्य फायदे नहीं मिल पाते जो आदिवासी छात्रों के लिए होते हैं। मैंने कुछ परिवारों को देखा, जो अपने बच्चों को स्कूल में भर्ती करवाने के लिए असम के नजदीकी शहरों जैसे जगीरोड और मोरिगांव में शिफ्ट हो गए हैं।

मैंने कुछ ऐसे प्रयास देखे जो तिवा छात्रों और महिलाओं के समूहों द्वारा किए जा रहे थे और ये उनके समुदाय में शिक्षा की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए थे। इसके अलावा, एक सेवानिवृत्त सरकारी स्कूल शिक्षक जो खुद तिवा हैं, उन्होंने जगीरोड में कुछ तिवा बच्चों को अपने घर में रखा और उनकी स्कूल की पढ़ाई पूरी करने में मदद की। हालांकि, ज्यादातर लोग मानते हैं कि अगर उन्हें एसटी का दर्जा मिल जाता तो यह सब कुछ आसान हो जाता।

तिवा समाज द्वारा लंबे समय से मेघालय सरकार से यह मांग की जा रही है कि उन्हें एसटी का दर्जा दिया जाए। लेकिन यह मांग राज्य की जटिल जातीय राजनीति से जुड़ी हुई है। साल 1972 में मेघालय को असम से अलग किया गया था ताकि यहां के आदिवासी समुदायों की समस्याओं का हल निकाला जा सके। लेकिन अभी भी नए समुदायों को इसमें शामिल करने के बारे में बहुत सतर्कता दिखाई जाती है।

*गोपनीयता बनाए रखने के लिए नाम बदल दिए गए हैं।

कौमुदी महंता एक शोधकर्ता हैं और गुवाहाटी में रहती हैं।

इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ें

अधिक जानें: गुजरात में राठवा समुदाय और अनुसूचित जनजाति के अधिकारों के बारे में जानें।

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