December 17, 2024

भारत के इलेक्ट्रिक वाहनों से भरे कल में मैकेनिक कहां दिखते हैं?

भारत की पर्यावरण प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन जैसी समस्याओं का हल ई-वाहनों में खोजा जा रहा है लेकिन क्या परंपरागत वाहनों को सुधारने वाले अनगिनत मैकेनिक भी इसमें शामिल हैं?
3 मिनट लंबा लेख

भारतीय शहर, देश के कुल सालाना कार्बन उत्सर्जन में 70 प्रतिशत से अधिक योगदान देते हैं। इसमें निजी गाड़ियों समेत होने वाले सड़क परिवहन का योगदान 62 प्रतिशत है। इस वजह से साल 2021 में यह देश के कार्बन फुटप्रिंट का सबसे बड़ा कारण बन गया है। परिवहन से होने वाले प्रदूषण को असर चिंताओं को बढ़ाने वाला है। दुनिया के सबसे प्रदूषित 100 शहरों में से 39 हमारे देश में हैं।

पेट्रोल और डीजल से चलने वाली कारों से निकलने वाला धुआं तमाम हानिकारक प्रदूषकों को वातावरण में छोड़ता है। ये हवा की गुणवत्ता को खराब करते हैं और आमजन के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं। ये उत्सर्जन न केवल सांस की बीमारियों और हृदय से जुड़ी समस्याओं को बढ़ाते हैं बल्कि भारत के कार्बन उत्सर्जन को नेट-जीरो करने के प्रयासों को भी प्रभावित करते हैं। कॉप-26 सम्मेलन में, भारत ने 2070 तक अपने कार्बन उत्सर्जन के आंकड़े को शून्य करने का लक्ष्य रखा था। साल 2030 तक उत्सर्जन को, 2005 की तुलना में 45 प्रतिशत तक कम करने का उद्देश्य रखा गया था। इस प्रयास के मूल में ई-वाहनों के इस्तेमाल को बढ़ावा देना प्रमुख है। परंपरागत, डीजल-पेट्रोल से चलने वाले इंटरनल कंबश्चन इंजन (आईसीए) के उलट इलेक्ट्रिक वाहनों में कार्बन उत्सर्जन को नाटकीय रूप से प्रभावित करने की क्षमता होती है।

भारत का ई-वाहनों का बाजार पहले से ही गति पकड़ रहा है, 2023 में 16 लाख ई-वाहनों बिक्री दर्ज की गई है। देश में 2030 के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं जिसमें दोपहिया वाहनों की बिक्री में 80 प्रतिशत और चार पहिया वाहनों के लिए 30 प्रतिशत तक ई-वाहनों भागीदारी हासिल करना शामिल है। लेकिन इस बदलाव का प्रभाव उस बड़े तबके पर पड़ने वाला है जिनकी आजीविका ऑटोमोबाइल मैकेनिक जैसे पारंपरिक और असंगठित रोजगार पर निर्भर है। आमतौर पर ऑटोमोबाइल मैकेनिकों के पास औपचारिक शिक्षा और प्रशिक्षण नहीं होता है। उन्हें डर है कि डीज़ल-पेट्रोल से चलने वाली गाड़ियों का प्रचलन ख़त्म हो जाएगा और ई-वाहनों के आ जाने उनका कामकाज प्रभावित होगा। ई-वाहनों के सुधार के लिए बैटरी, सॉफ़्टवेयर और जांच (डायग्नोस्टिक) उपकरणों के जटिल सिस्टम को समझना जरूरी है। इनके जांच और सुधार उपकरणों की क़ीमत भी एक बड़ी चिंता है। इसके अलावा, इनके उपयोग को सीखने के मौक़ों की अनुपलब्धता भी छोटे व्यापारियों को इससे दूर कर देती है। ई-वाहनों की तरफ़ जाने वाले इस बदलाव में इस तबके को भी शामिल किया जा सके इसके लिए एक न्यायपूर्ण और उचित समाधान की बड़ी जरूरत दिखाई देती है।

इस वीडियो के लिए, हमने नई दिल्ली में काम करने वाले कई ऑटोमोबाइल मैकेनिकों से बात की है और यह जानने की कोशिश की है कि वे इस बदलाव को कैसे देखते हैं, इसके साथ चलने के लिए उनकी क्या योजना है और यह उनकी आजीविका को किस तरह प्रभावित कर सकता है। इससे यह समझ बनती है कि ई-वाहनों का चलन बढ़ने के साथ लाखों ऑटोमोबाइल मैकेनिकों के पीछे छूट जाने का ख़तरा है। ऐसा होना, कुछ नीतिगत योजनाओं की जरूरत की ओर इशारा करता है जिसमें रि-स्किलिंग के अवसर हों, तकनीक तक पहुंचना बहुत महंगा न हो और मैकेनिकों के हित भी शामिल हों।

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लेखक के बारे में
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श्रिया रॉय

श्रिया रॉय आईडीआर में मल्टीमीडिया संपादक हैं। वे ऑडियो-वीडियो कॉन्टेंट तैयार करने और उनका प्रबंधन करने की ज़िम्मेदारियां देखती हैं। कई प्रतिष्ठित प्रिंट, टेलीविजन और डिजिटल न्यूज़रूमों का हिस्सा रह चुकी श्रिया के पास छह वर्षों का पत्रकारिता अनुभव है। वे एनडीटीवी में शोधकर्ता, द इंडियन एक्सप्रेस में संवाददाता और फेमिनिज्म इन इंडिया में मल्टीमीडिया संपादक की भूमिकाओं में काम कर चुकी हैं।

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सबा कोहली दवे

सबा कोहली दवे आईडीआर में सह-संपादकीय भूमिका में हैं, यहाँ उन्हें लेखन, संपादन, स्रोत तैयार करने, और प्रकाशन की जिम्मेदारी है। उनके पास मानव विज्ञान की डिग्री है और वे विकास और शिक्षा के प्रति एक जमीनी दृष्टिकोण में रुचि रखते है। उन्होंने सोशल वर्क एंड रिसर्च सेंटर, बेयरफुट कॉलेज और स्कूल फॉर डेमोक्रेसी के साथ काम किया है। सबा का अनुभव ग्रामीण समुदाय पुस्तकालय के मॉडल बनाने और लोकतांत्रिक और संवैधानिक मूल्यों पर पाठ्यक्रम बनाने में शामिल रहा है।

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श्रेया अधिकारी

श्रेया अधिकारी, आईडीआर के क्लाइमेट वर्टिकल की प्रमुख हैं। वे जलवायु से संबंधित कम प्रतिनिधित्व वाली आवाज़ों और कहानियों को सामने लाने का काम करती हैं। इसके साथ ही, वे आईडीआर पर पॉडकास्ट से जुड़ी जिम्मेदारियां भी देखती हैं। आईडीआर से जुड़ने से पहले श्रेया ने भारत और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई कला और सांस्कृतिक उत्सवों जैसे जयपुर लिट्रेचर फ़ेस्टिवल का आयोजन भी किया है। वे टेरा.डू फेलो हैं और उन्होंने अपना पोस्ट ग्रैजुएशन ज़ेवियर इंस्टीट्यूट ऑफ कम्युनिकेशन से किया है।

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