February 6, 2025

समाजसेवी संस्थाएं अर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लिए कितनी तैयार हैं?

सोशल सेक्टर में एआई का सही इस्तेमाल कार्यकुशलता को कई गुना बढ़ा सकता है लेकिन इसे अपनाने से पहले कुछ जरूरी सवालों के जवाब टटोलना बाकी है।
7 मिनट लंबा लेख

भारत में, इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले 73 प्रतिशत लोग किसी न किसी रूप में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) से परिचित हैं। सोशल सेक्टर में भी एआई का इस्तेमाल शुरू हो चुका है। एआई के बारे में सही जानकारी और सोच-समझकर उठाया गया कदम, समाजसेवी संगठनों को डाटा-आधारित निर्णय लेने (जैसे डाटा का विश्लेषण करना और रुझानों की पहचान करना) या प्रोसेस ऑटोमेशन जैसे उपायों को अपनाकर उनकी कार्यक्षमता बढ़ाने में मदद कर सकता है। हालांकि, एआई को पूरी तरह अपनाने से पहले दो बड़े सवाल किए जाते हैं: समाजसेवी संस्थाओं में एआई की जरूरतें कैसे अलग हैं, और ये संगठन एआई के बारे में क्या सोचते हैं? इनके जवाब मिलने के बाद ही अन्य महत्वपूर्ण सवालों के जवाब दिये जा सकते हैं – जैसे कि समाजसेवी संस्थाएं अपनी जरूरतों के मुताबिक एआई कैसे विकसित कर सकती हैं? और, एआई का एक नैतिक और न्यायपूर्ण उपयोग कैसा दिखता है।

इन सवालों के जवाब देने और विकास सेक्टर में एआई के इस्तेमाल को समझने के लिए, गिविंग-ट्यूज़डे ने एक एआई इस्तेमाल की क्षमताओं को आंकने वाला एक सर्वे किया है। सर्वे में देश के छह इलाकों से 251 संगठनों को शामिल किया गया था जिससे पता चलता है कि भारत में समाजसेवी संस्थाएं एआई का कैसे उपयोग कर रही हैं, वे एआई उपकरणों के साथ कितनी सहज हैं, और किन चुनौतियों का सामना कर रही हैं। इस सर्वे में भारत का नमूना एक बड़े वैश्विक अध्ययन का हिस्सा था जिसने पूरी दुनिया का विश्लेषण करने में मदद की।

अध्ययन में ग्रामीण, शहरी, उप-शहरी और मेट्रो क्षेत्रों के छोटे, मध्यम और बड़े संगठन शामिल थे। इनमें से अधिकांश संगठन स्थानीय समुदायों के साथ जमीनी स्तर पर काम करते हैं। उत्तर देने वालों में केवल चार प्रतिशत लोग ही तकनीकी कर्मचारी थे या निगरानी, ​​अनुसंधान, मूल्यांकन और सीखने (एमईआरएल) में शामिल थे। वहीं, आधे से अधिक वरिष्ठ पदों पर काम कर रहे लोग और सह-संस्थापक शामिल थे।

सर्वेक्षण में शामिल कुल संगठनों में से, 55 प्रतिशत ने कुछ लिखने या इमेज बनाने के लिए जेनरेटिव एआई का उपयोग किया था। इसके विपरीत, 30 प्रतिशत संगठनों ने कभी भी एआई का कोई उपयोग नहीं किया था। रिपोर्ट का विवरण और मुख्य निष्कर्ष यहां देखे जा सकते हैं।

फेसबुक बैनर_आईडीआर हिन्दी

सर्वेक्षण के मुख्य निष्कर्ष इस प्रकार हैं:

1. संगठनों की एआई अपनाने की क्षमता उनके संसाधनों पर ज्यादा निर्भर नहीं करती है

इस अध्ययन का उद्देश्य यह समझना था कि क्या किसी संगठन की क्षमता से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वह एआई को अपनाएगा या नहीं। इसके लिए संगठन की क्षमता और एआई को लेकर उसकी तैयारी का मूल्यांकन नीचे बताए गए कारकों के आधार पर किया गया:

  • संगठन की क्षमता का मूल्यांकन कर्मचारियों की संख्या, उम्र, भौगोलिक क्षेत्र और विशेषज्ञता के आधार पर किया गया। ये कारक दर्शाते हैं कि क्या संगठन फंडिंग पूरी तरह इस्तेमाल कर सकता है और छोटे से लेकर बड़े हस्तक्षेप कार्यक्रमों को लागू कर सकता है।
  • एआई के लिए तैयारी का आकलन उस संस्था द्वारा जुटाए गए डेटा, तकनीकी स्टाफ, डेटा नीतियों और एआई के मौजूदा उपयोग के आधार पर किया गया।

अध्ययन में यह पाया गया कि उच्च क्षमता वाले संगठन अपनी एआई क्षमता को बढ़ाने के लिए बेहतर स्थिति में हैं और उन्हें इससे अधिक फायदा होगा। लेकिन कुल मिलाकर, संगठन की क्षमता एआई के इस्तेमाल के लिए उसके तैयार होने का एक मजबूत संकेतक नहीं है।

अध्यान में इस बात की भी जांच की गई कि क्या विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (एफसीआरए) लाइसेंस का किसी संगठन के एआई का इस्तेमाल किए जाने से कोई संबंध है। नमूने में शामिल अधिकतर संगठनों के पास एफसीआरए लाइसेंस था, लेकिन लाइसेंस प्राप्त होने और संगठन के एआई इस्तेमाल करने की क्षमता के बीच कोई स्पष्ट संबंध नहीं पाया गया। हालांकि, इस सर्वेक्षण में यह पाया गया कि एफसीआरए लाइसेंस वाली समाजसेवी संस्थाएं कई तरह के डाटा इकट्ठा कर रही थीं और उनके एआई के कुछ साधनों का इस्तेमाल करने की संभावना भी थोड़ी अधिक थी।

2. जल्दी या देर से अपनाने से एआई उपयोग का तरीका तय होता है

सर्वेक्षण में शामिल किए गए संगठनों को दो श्रेणियों में बांटा गया: पहले एआई अपनाने वाले और बाद में एआई अपनाने वाले संगठन। पहले अपनाने वाले संगठन आमतौर पर बड़े होते हैं, जिनके पास ज्यादा संसाधन और इंफ्रास्ट्रक्चर होता है। ये अधिकतर शहरी क्षेत्रों में स्थित हैं जिनके पास अधिक कर्मचारी होते हैं। साथ ही, यह संगठन डाटा एकत्र करने और तकनीकी क्षमता में भी आगे थे। इन कारणों से वे एआई का उपयोग ज्यादा बेहतर तरीके से कर पाते हैं। ऐसे संगठनों में आमतौर पर डाटा के उपयोग से जुड़ी नीतियां, क्लाउड स्टोरेज, और तकनीकी कर्मचारी जैसे आईटी स्टाफ या निगरानी, ​​मूल्यांकन, अनुसंधान और शिक्षण (एमईआरएल) विशेषज्ञ होते हैं, जो उनके एआई अपनाने की क्षमता को और भी प्रभावी बनाते हैं।

इसके विपरीत, एआई को देर से अपनाने वाले छोटे संगठन हैं जिनके पास कम सदस्य और सीमित बजट होता है। ये संगठन ग्रामीण या उप-शहरी क्षेत्रों में स्थित हैं जिनकी पहुंच बुनियादी डिजिटल ढांचे तक भी सीमित ही है। ऐसे संगठनों में डाटा के उपयोग से जुड़ी नीतियां या क्लाउड स्टोरेज की संभावना कम थी, और वे विशिष्ट तकनीकी कर्मियों को नियुक्त नहीं करते हैं। नतीजतन, एआई के साथ उनका जुड़ाव सीमित पाया गया। यह संगठन अगर एआई का उपयोग करते भी हैं तो अधिकतर सरल और सुलभ तरीकों से करते हैं। ऐसे में, यह कोई हैरानी की बात नहीं है कि जनरेटिव एआई जिसे कम विशेष ज्ञान की जरूरत होती है, उनका पहला एआई अनुभव होता है।

हालांकि, शुरुआती दौर में एआई अपनाने वाले तकनीक-प्रेमी होते हैं लेकिन उनका डाटा का उपयोग मैनुअल और टैब्युलर होता है। यह दिखाता है कि एआई अपनाने में उन्हें अभी भी बहुत लंबा रास्ता तय करने की ज़रूरत है।

देर से अपनाने वालों में से केवल 10 प्रतिशत ने भविष्य में जेनरेटिव एआई से अलग ऐप्लिकेशंस के लिए एआई का इस्तेमाल करने में रुचि दिखाई। सर्वे के दौरान 40 प्रतिशत को तो यह तक नहीं पता था कि वे एआई का इस्तेमाल किस काम के लिए करना चाहेंगे। इसके परिणामस्वरूप, बाकी के एआई के उपयोग से जुड़े मामले पीछे रह गए, और चैटबॉट्स और ट्रांसक्रिप्शन के लिए थोड़ी बहुत बढ़त देखी गई।

एआई को सबसे पहले अपनाने वाले ज्यादा प्रयोगात्मक थे – लगभग 60-80 प्रतिशत लोग वर्चुअल असिस्टेंस, डाटा विश्लेषण, भविष्यवाणी, चैटबॉट, और ट्रांसक्रिप्शन जैसे फीचर्स के लिए एआई का इस्तेमाल करना चाहते थे। असल में, अधिकांश ने इन तरीकों में से तीन या उससे अधिक तरीकों से एआई का प्रयोग किया था। यह भी देखा गया कि वे एआई के उपयोग को बढ़ाने के लिए ज्यादा इच्छुक थे, और वे इसे देर से अपनाने वालों से दो या तीन गुना ज्यादा बढ़ाने का इरादा रखते थे।

कुल मिलाकर, शुरुआती दौर में अपनाने वाले एआई को जोखिम से ज्यादा फायदे का स्रोत मानते हैं और इसे काम में इस्तेमाल करने में सहज महसूस करते हैं। वहीं, देर से अपनाने वाले अलग महसूस करते हैं, कई का कहना है कि वे जोखिम का सही तरीके से मूल्यांकन नहीं कर पाते या फिर जोखिम और फायदे को समान मानते हैं। दोनों समूहों में से लगभग एक चौथाई लोग एआई का इस्तेमाल करने में अपनी सहजता के बारे में कुछ नहीं बताते हैं।

3. एआई को लेकर कुछ चिंताएं भी हैं

भारतीय संगठनों में एआई के प्रति आशा और चिंता दोनों हैं। समाजसेवी संस्थाएं उम्मीद करती हैं कि एआई उनके काम में कुशलता और उत्पादकता लाएगा, लेकिन उन्हें यह चिंता भी है कि इससे निर्भरता, कौशल में कमी, और नौकरियां ख़त्म होने की संभावना हो सकती है।

इसके अलावा, उत्तरदाता इस बात को लेकर आशावादी थे कि एआई संगठन में डाटा विश्लेषण और निर्णय लेने में मदद कर सकता है। कुछ समाजसेवी संस्थाएं इस बात को लेकर भी चिंतित थीं कि एआई मानव रचनात्मकता और मौलिकता पर प्रभाव डाल सकता है। इसके अलावा, उन्होंने एआई के रोजमर्रा के कामकाज में उपयोग और इसके समाज पर व्यापक प्रभावों के नैतिक पहलुओं को लेकर भी चिंता जताई।

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भारतीय संगठनों में प्रौद्योगिकी या डेटा स्टाफ होने की संभावना वैश्विक नमूने की तुलना में दोगुनी थी। | चित्र सभार: आईएलओ / क्रिएटिव कॉमन्स द्वारा

यह दिलचस्प है कि संस्थाओं की उम्मीदें और चिंताएं उनके क्षेत्र के आधार पर अलग-अलग थीं। शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओं को उम्मीद थी कि एआई व्यक्तिगत शिक्षण और कर्मचारियों पर बोझ कम करने वाले प्रशासनिक कार्यों को ऑटोमेटेड करके अवसर बढ़ा सकता है। हालांकि, वे इस बात को लेकर चिंतित थे कि छात्रों का एआई पर अत्यधिक निर्भरता उनकी रचनात्मकता और तार्किक सोच को कम कर सकती है।

समुदाय विकास के क्षेत्र में काम करने वाली समाजसेवी संस्थाएं एआई को संसाधन आवंटन को बेहतर बनाने और जरूरतों की पहचान करने का एक अवसर मानती हैं। लेकिन वे जानते थे कि एआई से मौजूदा क्षेत्रीय असमानताएं बढ़ सकती हैं। महिला सशक्तिकरण की दिशा में काम करने वाली संस्थाओं को डर है कि एआई से लैंगिक भेदभाव और बढ़ सकता है। स्वास्थ्य संस्थाओं को लगता है कि एआई से हाशिए पर रहने वाले समूहों के लिए निदान और इलाज में सुधार हो सकता है, लेकिन वे संवेदनशील स्वास्थ्य डाटा की गोपनीयता को लेकर चिंतित थे।

भारतीय संगठनों का एआई पर दृष्टिकोण: वैश्विक तुलना

  • भारतीय संगठनों में तकनीकी या डाटा कर्मचारी रखने की संभावना वैश्विक औसत से दोगुनी थी। वैश्विक स्तर पर, निगरानी, ​​मूल्यांकन, अनुसंधान और शिक्षण (एमईआरएल) या तकनीकी कर्मचारी को नियुक्त करने से एआई के उपयोग की संभावना बढ़ जाती है, लेकिन भारत में ऐसा नहीं है। सर्वे के अनुसार जिन भारतीय संगठनों के पास तकनीकी कर्मचारी थे, वे एआई के लिए तैयार नहीं थे।
  • रिपोर्ट से पता चलता है कि वैश्विक औसत की तुलना में, भारतीय संगठन काम में एआई का उपयोग करने में अधिक सहज थे, और 29 प्रतिशत ने 0 से 10 के पैमाने पर इसे 10 अंक दिए।
  • भारतीय संगठन एआई के फायदे पर ज्यादा ध्यान देते हैं और डाटा सुरक्षा या गोपनीयता के बारे में कम चिंता करते हैं। इसलिए, वे वैश्विक औसत के मुकाबले बिना डेटा उपयोग या समझौतों के अधिक डेटा साझा करते हैं। शोध से पता चलता है कि यह भारत में डेटा सुरक्षा के नियमों और कानूनों के शुरुआती दौर में होने के कारण हो सकता है।

इस अध्ययन के आधार पर, रिपोर्ट में यह सुझाव निकलकर आता है कि समाजसेवी संस्थाओं को पहले एआई की प्रासंगिकता और अपने संगठन के लिए इसकी उपयोगिता को समझना चाहिए। छोटे, सीमित संसाधनों वाली समाजसेवी संस्थाओं को एआई अपनाने में मदद के लिए विशेष समर्थन देना जरूरी है। उनके डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर को सुधारना, तकनीकी विशेषज्ञता तक पहुंच बढ़ाना, और एआई अपनाने पर ध्यान केंद्रित कर क्षमता निर्माण कार्यक्रम विकसित करने जैसे कदम उठाए जाने चाहिए। ऐसा करना सभी प्रकार के संगठनों के लिए एआई की पूरी क्षमता का लाभ उठाने के रास्ते खोल सकता है। हालांकि, ऐसा करते हुए यह जरूरी है कि सुरक्षा के उपाय बनाए जाएं। अधिकांश लोग एआई का उपयोग दूसरों द्वारा बनाए गए तकनीकी उत्पादों के रूप में कर रहे हैं। एआई के मौजूदा स्वरूप को अपनाना और इसके ज्ञान के बारीक पहलुओं को समझना सामाजिक क्षेत्र में एआई के न्यायिक और लाभकारी उपयोग के लिए जरूरी है।

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