ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर रहे विमुक्त घुमंतू जनजाति समुदायों ने अंग्रेजी शासन से लेकर आज तक सामाजिक और प्रशासनिक भेदभाव का सामना किया है। देखें, उनकी चुनौतियों और पहचान की लड़ाई की पूरी कहानी।
साथ ही जानिए, क्यों समाजसेवियों और फंडर्स को पूर्वोत्तर भारत के लिए सामाजिक क्षेत्र से जुड़े कार्यक्रम बनाने से पहले वहां के स्थानीय संदर्भों को समझ लेना चाहिए।
आने वाले समय में सामाजिक संस्थाओं की प्रासंगिकता इस बात से भी तय होगी कि छोटे स्तर पर किए जा रहे उनके प्रयास वैश्विक तस्वीर का हिस्सा किस तरह से बन रहे हैं।
घुमंतू और विमुक्त जनजातियां भेदभाव, अन्याय और विकास योजनाओं के अभाव का सामना करती हैं। इन समुदायों के मानसिक स्वास्थ्य को इनके संघर्ष से अलग करके नहीं देखा जा सकता है।
वैश्विक समाजसेवी संस्था, ब्रिजस्पैन द्वारा जारी एक रिपोर्ट का सारांश जिसमें समुदाय संचालित परिवर्तन (कम्युनिटी ड्रिवेन चेंज) के कुछ सफल उदाहरणों पर बात की गई है।