भारत में रोहिंग्या समुदाय को उनके अधिकारों से वंचित किया गया है, वे विस्थापित हैं और अदृश्य कर दिए गए हैं। नागरिक समाज उन्हें एक गरिमामय जीवन तक पहुंचने में कैसे मदद कर सकता है?
राजस्थान के चित्तौड़गढ़ की एक आशा सहयोगिनी के दिन का हाल जो स्वास्थ्य के साथ-साथ शराबबंदी, घरेलू हिंसा, भ्रष्टाचार जैसे तमाम मामलों पर अपनी आवाज बुलंद करने लगी है।
झारखंड की आदिवासी कार्यकर्ता एवं पत्रकार दयामनी बरला बताती हैं कि कैसे वे जल, जंगल और जमीन से जुड़े आंदोलनों के जरिए लोगों को उनका हक दिलाने के लिए निरंतर संघर्ष करती रही हैं।
पद्मश्री सम्मान से नवाजे जा चुके लोकगीत कलाकार मधु मंसूरी हंसमुख ने आईडीआर के साथ अपनी बातचीत में बताया कि कैसे छोटी सी उम्र से ही इन्होंने लोकगीत को अपना हथियार बनाकर झारखंड आंदोलन को एक नई दिशा और चेतना प्रदान की।
लखीमपुर खीरी के थारू आदिवासी, दुधवा नेशनल पार्क की स्थापना के समय से ही वन विभाग के साथ संघर्ष कर रहे हैं और अब उनकी दूसरी-तीसरी पीढ़ी इसे आगे बढ़ा रही है।