April 12, 2023

एक आदिवासी पत्रकार जो अनकही कहानियां कहने के लिए न्यूज़रूम छोड़ यूट्यूब पर आ गई

गुजरात की महिला पत्रकार यूट्यूब रिपोर्टिंग का इस्तेमाल, अनुसूचित जनजाति समुदायों को जागरुक करने और उनसे जुड़ी खबरें दुनिया तक पहुंचाने के लिए कर रही हैं।
8 मिनट लंबा लेख

मैं गुजरात के छोटाउदेपुर जिले के पानीबार नामक छोटे से गांव की एक आदिवासी महिला हूं। मैं राठवा जनजाति से आती हूं, जिसे अनुसूचित जनजाति (एसटी) के रूप में वर्गीकृत किया गया है। मैं तीन भाई-बहनों में सबसे छोटी हूं। मेरे सबसे बड़े भाई डॉक्टर हैं और मेरा दूसरा भाई ओएनजीसी में काम करता है। मैं अपने माता-पिता और सबसे बड़े भाई और उसके परिवार के साथ रहती हूं।

मैंने पत्रकारिता का प्रशिक्षण लिया है और डिग्री मिलने के बाद दो वर्षों तक न्यूज़रूम में काम किया। न्यूज़रूम छोड़ने के बाद मैंने आदिम संवाद नाम से अपना एक यूट्यूब चैनल शुरू किया। इस चैनल के माध्यम से मेरा उद्देश्य आदिवासी समुदायों की कहानियों को उनकी अपनी भाषा में प्रस्तुत करना है। समुदाय की सहमति और भागीदारी के साथ, मैं उन आवाजों को आगे बढ़ा रही हूं जो ऐतिहासिक रूप से अनसुनी रही हैं।

मैं आदिवासी महिलाओं के एक अनौपचारिक नेटवर्क की सदस्य और भाषा अनुसंधान और प्रकाशन केंद्र की एक डॉक्यूमेंटर भी हूं। यह केंद्र हाशिये पर पड़ी भाषाओं के संरक्षण पर काम करता है। भाषा में, मैं गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश में डी-नोटिफाइड जनजातियों की संस्कृति का दस्तावेजीकरण का काम करती हूं। वहीं, महिला नेटवर्क के साथ मेरा काम हाशिए की महिलाओं को सशक्त बनाने पर केंद्रित है। नेटवर्क में महिलाएं अलग-अलग क्षेत्रों से संबंधित हैं और साथ ही उनका संबंध आदिवासी एकता परिषद और आदिवासी साहित्य अकादमी जैसे कई आदिवासी संस्थानों से भी है। हम अपनी विशेषज्ञता के आधार पर कार्यशालाओं और प्रशिक्षणों का आयोजन करते हैं, और अन्य क्षेत्रों के विशेषज्ञों को भी अपनी अंतर्दृष्टि साझा करने के लिए आमंत्रित करते हैं। हम स्कूलों और छात्रावासों में लड़कियों से मिलते हैं, उन्हें अपनी पसंद का करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, और हमारे व्यवसायों से जुड़े उनके सवालों के जवाब देते हैं।

सुबह 5.30 बजे: मैं जल्दी उठती हूं और ध्यान करती हूं। ध्यान से मुझे अपने आप को केन्द्रित करने और उस दिन के लिए तैयारी करने में मदद मिलती है। मैंने दिसोम में अपने समय के दौरान इस आदत को अपनाया था। दिसोम एक लीडरशीप स्कूल है जो समाज के हाशिए के वर्गों के नेताओं को तैयार करने का काम करता है। 

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दिसोम में, मुझे अपनी आंतरिक आवाज खोजने और इसे वश में करने वाले कारकों पर विचार करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। मैंने अपने जीवन के विभिन्न चरणों में भेदभाव का अनुभव किया है। नतीजतन इस अभ्यास से मुझे भेदभाव को और अधिक सटीक तरीके से समझने और उससे निपटने में मदद मिली।

मुझे युवा नेताओं के विविध समूह से भी मिलवाया गया। उनके अनुभवों के बारे में जानने से मुझे यह समझने में सहूलियत हुई कि केवल मेरे समुदाय को ही भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ रहा था। मैं उनके दर्द को समझ पा रही थी और इससे मेरी सोच ‘मैं और मेरा समुदाय की’ देखभाल करने से परे जाकर ‘हम और हमारे समुदाय’ तक बढ़ गई। अब मैं उन समुदायों के दृष्टिकोणों को समझने का प्रयास करती हूं जिनके साथ काम करती हूं। मैं उनके विचारों और रीति-रिवाजों को उससे अधिक महत्व देती हूं जितना मैं अपने युवावस्था के दिनों में नहीं कर पाती थी।

अपने आसपास के लोगों के साथ पार्क में कैमरे से शूटिंग करती एक महिला_आदिवासी पत्रकार
समुदाय की सहमति और भागीदारी के साथ, मैं उन आवाजों को बढ़ाने का काम कर रही हूं जो ऐतिहासिक रूप से अनसुनी रही हैं। | चित्र साभार: सेजल राठवा

सुबह 6.00 बजे: मैं अपनी भतीजी को स्कूल जाने के लिए तैयार करती हूं। मेरे स्कूल का समय बिल्कुल अलग था। चौथी कक्षा के बाद मैं और मेरे भाइयों ने हमारे गांव के बाहर स्थित डॉन बॉस्को नाम के स्कूल से पढ़ाई की।

स्कूल गांव से दूर था और मेरे लिए रोज आना-जाना सम्भव नहीं था। इसलिए मैं स्कूल के परिसर में ही बने छात्रावास में रहती थी। कान्वेंट में शिक्षित होने के कारण मेरे लिए मेरे गांव के रीति-रिवाज और त्यौहार बहुत अलग थे। स्कूल में हमें बाइबिल पढ़ाया गया था। दरअसल अब भी मैं इससे कई उद्धरण दे सकती हूं जो मुझे याद हैं। मैं अपने समुदाय से इतनी दूर हो गई थी कि मेरी आदिवासी पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मुझसे बहुत बाद तक छिपा रहा। हॉस्टल में छोटी लड़कियों की देखभाल बड़े लोग करते थे, और हम अक्सर सुनते थे कि 10वीं कक्षा पूरी करने के बाद उनकी सगाई हो गई। अपने लिए भी ऐसी ही क़िस्मत की संभावना के बारे में सोच कर ही मैं कांप जाती थी।

मैं स्कूल चलाने वाले पादरियों और नन के करीब थी। मैं अक्सर उनसे स्कूल के बाद के अपने जीवन के बारे में पूछा करती थी। हमारे दीक्षांत समारोह में फादर जेम्स टस्कानों, जो एक पादरी थे और जिन्होंने हमें स्कूल में पढ़ाया भी था- ने हमसे कहा था कि “अभी तुम एक शून्य ही थे – एक बिंदु मात्र थे। जैसे ही तुम इस दुनिया में बाहर जाओगे और अपनी जिज्ञासाओं और रुचियों के बारे में जानोगे वैसे ही तुम्हारे पास कई और बिंदु एकत्रित होने लगेंगे; तुम्हारा विस्तार होगा।” इससे मुझे यह महसूस करने में मदद मिली कि मेरे स्कूल की परिधि के बाहर एक बड़ी दुनिया है जिसे मुझे अभी खोजना था। मेरी कई सहपाठिन रो रही थीं क्योंकि वे जानती थी कि विवाहित जीवन उनका इंतजार कर रहा है। लेकिन मैं अपने जीवन के अगले अध्याय में कुछ नया करने के लिए उत्साहित थी।

अगर हमारे समुदाय की महिलाओं को शिक्षित होना है तो उन्हें अपना रास्ता खुद बनाना होगा।

हालांकि, उत्साह अल्पकालिक था। मैंने अपने जिले के बाहर बीसीए कोर्स करना शुरू किया। यह जानते हुए कि छोटाउदेपुर एक आदिवासी जिला है, चौधरी और पटेल समुदाय से ताल्लुक रखने वाले मेरे कई साथियों ने बड़ी मुश्किल से मुझसे दोस्ती की। लेकिन मेरे प्रति उनकी बेरुखी ने मुझे अपनी विरासत के बारे में और भी जिज्ञासु बना दिया। बाद में, जब मैंने एक अनुसूचित जनजाति की एक छात्रा के रूप में छात्रवृत्ति के लिए आवेदन करना चाहा, तो उन्होंने मेरे अनुरोध को अस्वीकार कर दिया क्योंकि वे नहीं जानते थे कि इसे प्राप्त करने के लिए मुझे कौन से दस्तावेज़ देने होंगे। इसके बावजूद, मैंने अगले वर्ष सभी आवश्यक जानकारी स्वयं एकत्रित करने के बाद फिर आवेदन किया, और मेरा आवेदन स्वीकार कर लिया गया। इस अनुभव से मैंने यह समझा कि अगर हमारे समुदाय की महिलाओं को शिक्षित होना है तो उन्हें अपना रास्ता खुद बनाना होगा।

मैंने पत्रकारिता की डिग्री के लिए आवेदन करने के लिए एसटी आरक्षण का लाभ उठाया। आवेदन करने के बाद उस संस्थान से मुझे एक फोन आया और बताया गया कि मैं उनके पत्रकारिता पाठ्यक्रम के लिए पहली एसटी उम्मीदवार हूं। उन्होंने मुझे बताया कि पाठ्यक्रम का माध्यम अंग्रेजी होगा। और मुझे अपना आवेदन वापस लेने पर विचार करना चाहिए क्योंकि अंग्रेज़ी में मेरा हाथ तंग था। यह सुनकर मुझे दुःख हुआ। मैं यह सोचकर आश्चर्य में पड़ गई कि मेरा अंग्रेजी न जानना उनके लिए इतना मायने क्यों रखता है। क्या सिर्फ इसलिए कि मैं एक अनुसूचित जनजाति से संबंध रखती थी? लेकिन मैं इससे विचलित नहीं हुई। मैंने अंग्रेजी की कक्षाएं लीं और 2018 में, मैंने पत्रकारिता में डिग्री के साथ स्नातक किया।

खुले मैदान में कुर्सियों पर बैठे पुरुषों और महिलाओं का समूह_आदिवासी पत्रकार
मैं अपने समुदाय से इतना दूर थी कि मेरी आदिवासी पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मुझसे बहुत बाद तक छिपा रहा। | चित्र साभार: सेजल राठवा

सुबह 8.00 बजे: मैं पूरे घर के लिए नाश्ता तैयार करने में अपनी मां की मदद करती हूं। चूंकि वह दिन का अधिकांश समय खेत में बिताती हैं और अपनी पुलिस ड्यूटी के कारण मेरे पिता लंबे समय तक घर से दूर रहते हैं इसलिए नाश्ता मेरे लिए उन दोनों के साथ समय बिताने का सही समय होता है। मैं अपने माता-पिता के साथ अपने रिश्ते को अच्छा मानती हूं, और वे मुझे कई तरह से प्रेरित करते हैं। समुदाय की एक सक्रिय सदस्य होने के नाते मेरी मां मुझे अपने आसपास के लोगों के साथ एक मजबूत संबंध विकसित करने के लिए प्रेरित करती हैं। वे न केवल हमारे घर का बल्कि हमारे खेतों का भी ध्यान रखती हैं, और यह सुनिश्चित करती हैं कि वे दोनों फले-फूले। 

एक आदिवासी पुलिसकर्मी के रूप में, मेरे पिता एक अजीब स्थिति में हैं। एक पुलिसकर्मी की नौकरी को हमारे समुदाय में एक अनुकूल कैरियर विकल्प के रूप में नहीं देखा जाता है क्योंकि पुलिस का आदिवासियों के खिलाफ हिंसा का इतिहास रहा है। मेरे पिता ने इसे चुना क्योंकि मेरे दादाजी की मृत्यु के बाद परिवार को उस आय की आवश्यकता थी।

लेकिन उन्होंने गैर-हथियार विभाग में काम करने का चुनाव किया, और आखिरकार आदिवासी लोगों के पुलिस उत्पीड़न का हिस्सा बनने से बचने के लिए पुलिस वाहनों के ड्राइवर के रूप में कार्यरत रहे। अपने करियर के दौरान उनका कई बार तबादला हो चुका है। लेकिन वे रिश्वत स्वीकार नहीं करते, ग़रीबों को परेशान नहीं करते, या स्थानीय शराब के धंधे का भंडाफोड़ करने में शामिल नहीं होते, जो कि कुछ आदिवासी समुदायों का पारंपरिक पेशा है। जब मैंने एक बार उनसे कहा कि पुलिस को शराब बेचने वालों के प्रति सख्त होना चाहिए तो उन्होंने मुझसे और अधिक सहानुभूति रखने का आग्रह किया। उनका कहना था कि यह उन लोगों के लिए आजीविका का एकमात्र स्रोत हो सकता है जिनके पास न तो जमीन है और न ही जंगलों तक पहुंच है। शहर में नौकरी करने के बावजूद, वे हमारे खेतों की देखभाल करने के लिए गांव लौटते हैं। वे हमेशा पहले एक किसान हैं। मुझे लगता है कि मैं उस चक्र को दोहरा रही हूं और धीरे-धीरे अपनी जड़ों और अपने समुदाय की ओर लौट रही हूं।

सुबह 9.30 बजे: नाश्ता करने के बाद मैं अपना काम शुरू करती हूं। किसी-किसी दिन मैं भाषा ऑफ़िस से काम करती हूं। कभी-कभी मुझे उन जनजातियों से मिलने जाना पड़ता है जिनके दस्तावेज़ीकरण का काम मैं करती हूं। अक्सर दूर-दराज इलाक़ों में बसे इन जनजातियों के पास जाना मुश्किल होता है। एक बार मेरे वहां पहुंचने के बाद समुदाय से चुने गए सरपंच जैसे पदाधिकारी मेरी उपस्थिति पर सवाल उठाते हैं क्योंकि एक बाहरी आदमी होने के नाते उन्हें मेरे इरादों पर शक होता है।

जिनके साथ मैंने काम किया है उन समुदायों को मुझसे होने वाले लाभ के बनिस्बत मुझे उन समुदाय से अधिक फायदा हुआ है।

जब भी ऐसा कुछ होता है मैं उनके साथ बैठकर अपने उद्देश्यों और काम के बारे में विस्तार से बातचीत करती हूं। अगर उनकी इच्छा होती है तो मैं उन्हें अपने साथ ले जाती हूं ताकि वे मेरे काम को देख सकें और समझ सकें कि इससे उनके समुदाय को किस प्रकार लाभ पहुंच रहा है। उसके बाद यदि उनके लिए सम्भव हुआ तो मैं उन्हें मेरे साथ जुड़ने के लिए प्रोत्साहित करती हूं। चुनौतियों के बावजूद भी यह काम वास्तव में पुरस्कार प्राप्त करने जैसा हो सकता है। जिनके साथ मैंने काम किया है उन समुदायों को मुझसे होने वाले लाभ के बनिस्बत मुझे उन समुदाय से अधिक फायदा हुआ है। मुझे अब भी लगता है कि मुझे उनकी स्थितियों को समझने और उनके ज्ञान की विशालता को समझने के लिए लंबा रास्ता तय करना है।

हाल ही में, मैंने राठवा-कोली जाति प्रमाणन के मुद्दे पर एक वृत्तचित्र, ‘हाउ योर पेपर्स कैन डिफाइन अवर आइडेंटिटी’ पर काम किया। एसटी प्रमाण पत्र के लिए, समुदाय के व्यक्तियों को जनजातीय सलाहकार परिषद के सामने पेश होना पड़ता है और यह सत्यापित करना पड़ता है कि हम ‘वैध आदिवासी’ हैं। हमें शिक्षा छात्रवृत्ति और यहां तक ​​कि सरकारी नौकरियों के लिए भी उस प्रमाणपत्र की आवश्यकता थी। डॉक्यूमेंट्री बनाने के लिए, मुझे पहले समुदाय के भीतर इस मुद्दे के बारे में अधिक जागरूकता पैदा करनी थी। बाकी, डॉक्यूमेंट्री टीम और मैं समुदाय के अन्य सदस्यों से बात करके उन्हें इस मुद्दे के बारे में सूचित करते थे और उनसे इस पर उनके विचार पूछते थे। समस्या बड़ी होने पर मैं फ़ॉलो-अप इंटरव्यू भी करती थी। इस पूरे अनुभव से मैंने बहुत कुछ सीखा।

कुछ लोग एक शिक्षक को खुले मैदान में छात्रों को पढ़ाते हुए रिकॉर्ड कर रहे हैं_आदिवासी पत्रकार
आदिवासी समुदाय में भेदभाव और पदानुक्रम पैदा नहीं किया जाता है। | चित्र साभार: सेजल राठवा

दोपहर 12.00 बजे: जिस दिन मैं दफ़्तर नहीं जाती, उस दिन मैं खेत में अपनी मां की मदद करती हूं। जब मैं छोटी थी, मेरी दादी मुझे खेत में ले जाती थीं और वहां की विभिन्न फसलों के बारे में मुझे सिखाती थीं। आदिवासी जीवन शैली के अनुरूप, उन्होंने मुझे प्रकृति के साथ घनिष्ठ संबंध विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया। मेरी दादी भी मेरे लिए बहुत बड़ी प्रेरणा हैं। एक युवा विधवा होने के बावजूद, वे अपने पति की भूमि पर अधिकार हासिल करने में सफल रहीं ताकि वे इसे अपने बच्चों को दे सके। यह हमारे गांव में अभूतपूर्व था, जहां विधवाओं को अक्सर ‘डायन’ करार दिया जाता था और उनकी जमीन उनके रिश्तेदारों या जमीन पर नजर रखने वाले अन्य लोगों द्वारा हड़प ली जाती थी। वे अक्सर मुझे कहानियां सुनाती थी, और मैंने उनमें से कुछ को लिख लिया है। एक कहानी, जो मैंने अपनी मातृभाषा राठवी में लिखी थी, लघु कथाओं के एक संग्रह के रूप में प्रकाशित भी हुई।

शाम 6.00 बजे: घर पर रात का खाना तैयार करने की ज़िम्मेदारी मेरी है। इसलिए काम से लौटने के बाद सबसे पहले मैं यही काम करती हूं। हम एक परिवार के रूप में एक साथ खाना खाने की कोशिश करते हैं, और चूंकि मेरे पिता के काम करने का समय बहुत अलग हो सकता है, इसलिए हम कभी-कभी रात का खाना रात 10 बजे तक खा लेते हैं। एक बार भोजन तैयार हो जाने के बाद, मैं अपने यूट्यूब चैनल के लिए वीडियो संपादित करने और शोध करने का काम करती हूं। मैंने एक न्यूज़रूम में अपने दो साल के कार्यकाल से मोहभंग होने के बाद चैनल लॉन्च किया। वहां मुझे एहसास हुआ कि मीडिया में हाशिये पर रहने वालों की आवाज़ों को शायद ही कभी प्रतिनिधित्व दिया जाता है। 

मैंने कोविड-19 के कारण देशव्यापी लॉकडाउन से ठीक पांच दिन पहले 2020 में अपनी नौकरी छोड़ दी, और सेल्फ़-फंडेड आदिम संवाद यूट्यूब चैनल लॉन्च किया। मैं अपने उपकरणों का उपयोग करती हूं और मैं चैनल की एकमात्र वीडियोग्राफर और संपादक हूं। आदिम संवाद आदिवासी जीवन पद्धति का दस्तावेजीकरण करता है, जिसमें सामुदायिक रीति-रिवाज और ज्ञान शामिल है।

अब मैं अपने समुदाय के साथ और अधिक निकटता से काम करना चाहती हूं, विशेष रूप से हमारी महिलाओं के लाभ के लिए।

अपनी शिक्षा और फिर अपने करियर के लिए वर्षों से दूर रहने के बाद, अब मैं अपने समुदाय के साथ और अधिक निकटता से काम करना चाहती हूं, विशेष रूप से हमारी महिलाओं के लाभ के लिए। मुझे अपनी सीख उनके साथ साझा करनी चाहिए और मुझे जो शिक्षा और अनुभव मिले हैं, उसे पाने में उनकी मदद करनी चाहिए। पत्रकारिता उनके साथ जुड़ने का एक तरीका है। लेकिन मैं विभिन्न राज्यों की आदिवासी महिलाओं के एक नेटवर्क के हिस्से के रूप में अपने काम के माध्यम से समुदाय को वापस देती हूं। अभी हम मनका श्रमिकों को अपनी कला दिखाने और उन्हें बाजार से जोड़ने के लिए एक मंच प्रदान करने पर काम कर रहे हैं।

रात 11.00 बजे: सोने से पहले, मैं अपने दिन के बारे में लिखती हूं और अगले दिन की तैयारी करती हूं। मैं भविष्य के लिए अपनी आशाओं पर भी विचार करती हूं। आदिवासी समुदाय में भेदभाव और ऊंच-नीच पैदा नहीं किया जाता है। इसकी बजाय, आदिवासी समाज में पौधों और वन्यजीवों सहित हर जीवित प्राणी को महत्व दिया जाता है और उनका सम्मान किया जाता है। एक सूखी टहनी का भी मूल्य समझा जाता है, क्योंकि इसे जलावन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। मैं ऐसे ही एक विश्व दृष्टिकोण की आशा करती हूं – ऐसा जो एक-दूसरे से गहरे स्तर पर संबंधित होने के लिए प्रोत्साहित करता है – बड़े पैमाने पर समाज द्वारा अपनाया जाना। मुझे लगता है कि ऐसा करने से विभिन्न संरचनात्मक समस्याओं को हल करने में मदद मिल सकती है।

जैसा कि आईडीआर को बताया गया।

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लेखक के बारे में
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सेजल राठवा

सेजल राठवा गुजरात के राठवा समुदाय से आने वाली पत्रकार हैं। वे आदिम संवाद नाम का एक यूट्यूब चैनल चलाती हैं जो आदिवासी संस्कृति और नजरिए पर प्रकाश डालता है। वे भाषा अनुसंधान और प्रकाशन केंद्र के साथ जिला समन्वयक के रूप में भी काम करती हैं, जहां उनका काम डी-नोटिफाइड जनजातियों की संस्कृति का दस्तावेजीकरण करना है। सेजल दिसोम के पहले समूह की सदस्य थीं। यह एक लीडरशिप स्कूल है जो हाशिये पर रहने वाले समुदायों से जमीनी स्तर के नेताओं को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करता है। सेजल का उद्देश्य उन लोगों की आवाज़ को बढ़ाना है जो हमेशा से अनसुने और उपेक्षित रहे हैं।

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