नारोल, अहमदाबाद नगर निगम के दक्षिण जोन के बड़े औद्योगिक समूहों में से एक है। यहां लगभग 2,000 उद्यम हैं जो कपड़ों की ढुलाई, रंगाई, ब्लीचिंग, स्प्रेइंग, डेनिम फिनिशिंग और छपाई (प्रिंटिंग) जैसी विशिष्ट प्रक्रियाओं का काम करते हैं। ये सभी उद्यम अनौपचारिक हैं और ठेके के आधार पर संचालित होते हैं। इसका सीधा मतलब यह है कि प्रमुख नियोक्ताओं और श्रमिकों के बीच ठेकेदारों की एक लंबी कड़ी होती है।
कारखाने में काम करने वाले किसी श्रमिक का संपर्क केवल उसके ठेकेदार से होता है, जिसे उससे ऊपर का ठेकेदार श्रमिकों के पास अपना एजेंट बनाकर भेजता है। कुल मिलाकर, ये सभी उद्यम अनरजिस्टर्ड शॉप फ़्लोर्स की तरह काम करते हैं, जिसमें हर शॉप-फ़्लोर पर 20–30 कर्मचारियों की नियुक्ति की जाती है जो एक टीम बनाकर तीन या चार मशीनों पर काम करते हैं। ये कर्मचारी कंपनी के प्रबंधन या प्रमुख नियोक्ता की बजाय सीधे अपने ऊपर काम करने वाले ठेकेदार के प्रति जवाबदेह होते हैं। इन व्यापारिक व्यवस्थाओं और व्यापार को जोड़ने वाला एक सामान्य सूत्र ‘बॉयलर’ है, जो एक भट्टी जैसा कंटेनर होता है जिससे भाप निकलती है। यह कपड़ा तैयार करने की प्रक्रिया के हर चरण के लिए जरुरी होता है।
रख-रखाव (मेंटेनेंस) के अलावा बॉयलर को हमेशा चलाये रखने की ज़रूरत होती है, जिसका मतलब है कि इसे चलाने वाले श्रमिकों को ओवरटाइम करना पड़ता है। चूंकि इन बॉयलर से लगातार भारी मात्रा में गर्मी और धुंआ निकलता है, इसलिए यह कर्मचारियों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। इसके अलावा, विस्फोट और जलने जैसे अन्य जोखिम भी हैं।
यह फोटो निबंध नारोल के बॉयलर उद्योग में कार्यरत लोगों के जीवन की एक झलक देता है। साथ ही, यह भी दिखाता है कि कैसे श्रमिकों की सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि और उनके काम की अनौपचारिक प्रकृति उनके जीवन की चुनौतियों को बढ़ाती है।
प्रवासी श्रमिक, अनौपचारिक श्रम और कम वेतन
बॉयलर का काम आमतौर पर अनुसूचित और अधिसूचित जनजातियों से आने वाले प्रवासी श्रमिक ही करते हैं जिन्हें छोटे ठेकेदारों द्वारा थोड़े समय के लिए नियुक्त किया जाता है। ऐसे ज़्यादातर श्रमिक गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान के सीमांत जिलों से आते हैं। इनमें से अधिकतर श्रमिक भूमिहीन होते हैं जो थोड़ी ही सही लेकिन नियमित आमदनी के लिए अहमदाबाद जैसे शहरों में आ जाते हैं। इसलिए कि ऐसे मौक़े उनके अपने इलाक़ों में उपलब्ध नहीं होते हैं। आमतौर पर ये श्रमिक अपने परिवारों के साथ आते हैं जो उनके साथ इन्हीं फ़ैक्ट्रियों में काम भी करते हैं। खेती के मौसम में जब वे वापस अपने गांव जाते हैं, तब उन्हें दूसरे लोगों के खेतों में खेतिहर मज़दूर के रूप में काम पर रखा जाता है। इस बात की कोई गारंटी नहीं होती कि गांव से वापस लौटने पर फैक्ट्री में उनकी नौकरी बची ही रहेगी, क्योंकि मौखिक ठेके पर मिलने वाले उनके रोज़गार की अवधि छह से बारह महीने तक ही होती है।
ठेकेदार इन श्रमिकों को काम पर रखते समय खर्ची (भत्ता) देते हैं और बाकी का पैसा उन्हें महीने के पहले सप्ताह में मिलता है। इन श्रमिकों को गुजरात के कानून के हिसाब तय न्यूनतम वेतन से कम मिलता है जो 11,752 रुपये प्रति माह है। यह राशि कपड़ा निर्माण के उच्च स्तर की प्रक्रियाओं जैसे रंगाई, छपाई और धुलाई में शामिल श्रमिकों की कमाई से बहुत कम है, जो आसानी से प्रति माह 14,000-16,000 रुपये तक कमाते हैं। इसके अलावा, बॉयलर श्रमिकों को अनिवार्य आठ घंटे से अधिक काम करने के लिए मजबूर किया जाता है और उन्हें इस ओवरटाइम के लिए अलग से कोई पैसा भी नहीं मिलता है। ये श्रमिक, कर्मचारी राज्य बीमा और भविष्य निधि जैसे उपायों से मिलने वाला सामाजिक सुरक्षा कवरेज से भी वंचित होते हैं।
कार्यस्थल और घर दोनों जगहों पर खतरा
आमतौर पर बॉयलर में काम करने वाले लोग, कार्यस्थल पर सामाजिक आर्थिक रूप से सबसे निचले पायदान पर आने वाले लोग होते हैं – वे सबसे अधिक वंचित जाति समूहों से आते हैं और उनके पास शिक्षा और आजीविका के बहुत अधिक अवसर नहीं होते हैं। बॉयलर में काम करने का उनका मूल कारण अपनी आमदनी को बढ़ाना होता है – वे अस्थायी नौकरी करते हुए अस्थायी बस्तियों में रहकर किराये में लगने वाले पैसे की बचत करते हैं।
बिना किसी संघ से जुड़े हुए कर्मचारी अक्सर कारख़ानों में सुरक्षा प्रोटोकॉल से जुड़ी कमियों की शिकायत नहीं करते हैं क्योंकि उन्हें अपने काम से निकाले जाने का डर होता है। दो टन क्षमता वाले एक बॉयलर को चलाने के लिए चार परिवारों को काम पार रखा जाता है जो दो शिफ्ट में काम करते हैं। पुरुष ईंधन को हाथों से जलाते हैं जो आमतौर पर लकड़ी या कोयला ही होता है; वे 400–450- डिग्री तापमान वाली भट्ठी के नजदीक खड़े होते हैं और उन्हें लगातार कई-कई घंटों तक गर्मी, धुंआ और धूल का सामना करते हुए काम करना पड़ता है। लकड़ियों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटने, उन्हें भट्ठी तक लेकर जाने और राख को निकालने और प्रबंधित करने जैसे छोटे-छोटे काम महिलाएं करती हैं। इन सभी प्रकार के कामों को करते समय उन्हें धूल कण, चारकोल और राख के बीच रहना पड़ता है जिसका उनके स्वास्थ्य पर बहुत ही हानिकारक प्रभाव पड़ता है। पति-पत्नी दोनों के काम पर होने के कारण उनके बच्चे बिना किसी निगरानी के उन फैक्ट्रियों के आसपास घूमते रहते हैं। अगर बॉयलर का नियमित प्रबंधन और देखरेख ना किया जाए तो उनके फटने और उनमें आग लगने का जोखिम बहुत अधिक होता है।
बॉयलर में काम करने वाली 27 साल की चंदा* ने बताया कि ‘चूंकि पुरुषों को मजदूरी के रूप में मिलने वाला पैसा घर चलाने के लिए पर्याप्त नहीं होता है इसलिए महिलाएं काम में उनका हाथ बंटाती हैं। महिला श्रमिकों को किसी तरह की निजता नहीं मिलती है – हमें कार्यस्थलों पर परेशान किया जाता है – हम लोगों का वेतन भी पुरुष श्रमिकों के वेतन से आधा होता है। इसके अलावा हमें खाना पकाने, जरूरत का सामान खरीदने, कपड़े और बर्तन धोने के साथ ही बच्चों को संभालने का काम भी करना पड़ता है।
बड़े और सुरक्षित फैक्ट्रियों में, बॉयलर सीएनजी जैसे कम उत्सर्जन वाले ईंधन पर चलाये जाते हैं और एक ऑपरेटर की जरूरत केवल ईंधन आपूर्ति का ध्यान रखने और भट्ठियों का तापमान सेट करने के लिए होती है। लेकिन उन्नत तकनीक वाले ऐसे बॉयलर नारोल जैसी जगहों में कम ही हैं जहां मशीनों के संचालन, मरम्मत और रखरखाव का काम भी बाहर के ठेकेदारों को दिया जाता है। इन ठेकेदारों को बेहतर तकनीक वाली मशीनों के निर्माताओं की ना तो जानकारी होती है और ना ही उनके साथ किसी तरह का संपर्क। ऐसे किसी निर्माता के बारे में जानकारी होने पर भी वे उनसे संपर्क करने में झिझकते हैं क्योंकि ऐसी तकनीकें श्रम बल की जगह ले सकती हैं और उन्हें काम का नुकसान हो सकता है।
महिलाओं का स्वास्थ्य घर के पुरुषों की तुलना में और भी अधिक जोखिम में होता है।
श्रमिक एक अस्थायी ऑन-साईट ढांचे में रहते हैं जिसे प्रोजेक्ट बंद होने या उसकी जगह बदल जाने की स्थिति में आसानी से ध्वस्त किया जा सकता है। इन ढांचों को एस्बेस्टस, पीतल, या कभी-कभी स्टील की मदद से बनाया जाता है; ये ढांचे गंदे होते हैं, रौशनी की कमी होने और हवादार ना होने की वजह से ये बहुत गर्म और शुष्क होते हैं। इन फैक्ट्रियों में श्रमिकों को लगातार खतरनाक स्थितियों में काम करना पड़ता है और उनके घरों पर भी साफ-सुथरे वातावरण का अभाव होता है। नतीजतन उन्हें कई तरह की गंभीर और लाइलाज बीमारियां हो जाती हैं। घरेलू कामों का बोझ पूरी तरह से महिलाओं पर ही होता है और चूंकि वे लंबे समय तक वैतनिक और अवैतनिक दोनों तरह के काम करती हैं, घर में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं का स्वास्थ्य अधिक जोखिम में होता है।
पेशे से मेडिसिन विशेषज्ञ और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के स्वास्थ्य पर काम करने वाली एक समाजसेवी संस्था, बेसिक हेल्थकेयर सर्विसेज के साथ एक शिक्षक के रूप काम करने वाले डॉक्टर आरके प्रसाद कहते हैं कि ‘बॉयलर में काम करने वाला एक आदमी मुश्किल से एक दिन 800 कैलोरी का सेवन करता है, लेकिन काम करते समय लगभग 2,000 कैलोरी जलाता है। इससे समय के साथ उनके जीवन की गुणवत्ता कम हो जाती है। बॉयलर में काम करने वाली सभी महिलाएं [और श्रमिकों के बच्चे] गंभीर रूप से कुपोषित हैं। इसकी पूरी संभावना है कि कुछ श्रमिकों को न्यूमोकोनियोसिस या ‘ब्लैक लंग डिजीज’ हो गया है, जो लंबे समय तक सांस के माध्यम से कोयले की धूल के लगातार फेफड़ों के अंदर जाने के कारण होता है।
सौदेबाजी की शक्ति बढ़ाने के लिए संघ के नेतृत्व की वकालत
बॉयलर ऑपरेशन नियम, 2021 की धारा 4 में कहा गया है कि बॉयलर ऑपरेशन इंजीनियर को या तो सीधे बॉयलर ऑपरेशन का प्रभारी होना होगा या एक अटेंडेट नियुक्त करना होगा। इसके अलावा, इस नियम की धारा 7 के अनुसार इस व्यक्ति को बॉयलर के 100 मीटर के दायरे में उपस्थित रहने का भी निर्देश है। अहमदाबाद में कारखानों में कार्यरत प्रवासी श्रमिकों के अधिकारों और पात्रताओं पर ध्यान केंद्रित करने वाली एक पंजीकृत ट्रेड यूनियन कारखाना श्रमिक सुरक्षा संघ (केएसएसएस) ने 25 उद्यमों के साथ एक सर्वेक्षण किया गया था। इस सर्वेक्षण में यह बात सामने आई कि ऑपरेटिंग बॉयलर वाले उद्यम इन नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं। इसमें यह भी बताया गया कि अधिकांश फैक्ट्रियों में वेतन, सामाजिक सुरक्षा, ओवरटाइम और निर्धारित काम के घंटों से जुड़े नियमों का उल्लंघन होता है। श्रमिकों को मास्क, दस्ताने या जूते आदि जैसे सुरक्षा के साधन मुहैया नहीं करवाए जाते हैं। इसके अलावा, ना तो ऐसे किसी अधिकारी की नियुक्ति की जाती है और ना ही ऐसी कोई समिति बनाई जाती है जो काम वाली जगह पर किसी भी प्रकार की आपात स्थिति को रोक सके या उससे निपट सके। साथ ही, महिलाओं के लिए अलग शौचालय और बच्चों के लिए डे-केयर की सुविधा भी नहीं है। केएसएसएस अब श्रमिकों के अधिकारों और पात्रताओं से जुड़े प्रशिक्षण और कानूनी साक्षरता प्रदान करता है, मालिकों और ठेकेदारों के बीच औद्योगिक विवाद की मध्यस्थता कर उनका समर्थन करता है, और राज्य और स्थानीय सरकारों के अंदर आने वाले विभिन्न विभागों के साथ मिलकर इन्हें मदद पहुंचाता है।
केएसएसएस के सदस्य, कारखाना श्रमिकों का एक मिश्रित समूह हैं, जिनमें बॉयलर, रंगाई, छपाई, धुलाई, सिलाई और पैकेजिंग के साथ-साथ छोटे ठेकेदार भी शामिल हैं। ऐसे छोटे ठेकेदार जो यूनियन के सदस्य हैं, वे कारखाना श्रमिकों के संघर्ष को समझते हैं और उनके साथ सहानुभूति रखते हैं, और वे अहमदाबाद के अनौपचारिक प्रवासी श्रमिकों के अधिकारों और पात्रताओं को सामने लाने के यूनियन के लक्ष्यों के साथ जुड़ते हैं।
श्रमिकों ने अब विभिन्न मुद्दों को औद्योगिक सुरक्षा और स्वास्थ्य निदेशालय (डीआईएसएच), कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) के क्षेत्रीय निदेशक और गुजरात के बॉयलर निदेशालय के कार्यालय में उठाया है। वर्तमान में, डीआईएसएच ने वेतन उल्लंघन के लिए 11 उद्यमों को नोटिस जारी किया है। ईएसआईसी भी उन उद्यमों का निरीक्षण करने और दंडित करने पर सहमत हो गया है जो श्रमिकों को कर्मचारी राज्य बीमा कवर प्रदान नहीं करते हैं।
बॉयलर साइट पर काम करने वाले 37 वर्षीय छोटे ठेकेदार और केएसएसएस सदस्य मदनलाल* कहते हैं ‘जिस उद्यम में मैं काम करता हूं, उसे मिलाकर कई उद्यमों ने यूनियन द्वारा मांग पत्र सौंपे जाने के बाद बॉयलर का निरीक्षण किया। बाद में, श्रम विभाग ने एक उद्यम में सभी बॉयलर ऑपरेटरों की एक बैठक भी बुलाई थी और सुरक्षा प्रोटोकॉल पर एक सत्र आयोजित किया था। यह संघ की हिमायतों का ही परिणाम था।’
*गोपनीयता बनाए रखने के लिए नाम बदल दिये गये हैं।
इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ें।
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