September 18, 2024

विकास सेक्टर में साथ मिलकर काम करना इतना मुश्किल क्यों है?

विकास सेक्टर में समस्याओं की जटिलता और पैमाना इतना बड़ा है कि कोई एक अकेला व्यक्ति या संगठन सब कुछ हल नहीं कर सकता है, जो सहयोग की उपयोगिता और महत्व को बताता है।
5 मिनट लंबा लेख

हम सभी मानते हैं कि दुनिया की समस्याओं की जटिलता और उनका पैमाना इतना बड़ा है कि कोई एक व्यक्ति या संगठन सब कुछ हल नहीं कर सकता है। इसलिए, मिलकर काम करने की जरूरत और महत्व स्पष्ट है। फिर भी, हम असल हालातों में सहयोग होते हुए नहीं देख पाते हैं। इसलिए सवाल यह उठता है कि जब सहयोग के फायदे सभी को समझ में आते हैं तो फिर लोग सहयोग क्यों नहीं कर रहे हैं?

सहयोग में बाधाएं

1. यह पहचानने में विफल होना कि हम एक तंत्र का हिस्सा हैं

सभी व्यवस्थाओं में, हर लेन-देन के दो पक्ष होते हैं। जैसे प्रकृति में सबसे बुनियादी लेन-देन होता है – खाना या खाया जाना। उस व्यवस्था की सफलता के लिए, शिकार या शिकारी को यह जानने की जरूरत नहीं होती कि वे किसी बड़े इकोसिस्टम का हिस्सा हैं, उन्हें बस अपनी भूमिका निभानी होती है और वही करना होता है जो वे जानते हैं।

लेकिन केवल वही काम करते रहना जो आप जानते हैं, और अपने ‘स्वार्थी’ दृष्टिकोण से काम करना सामाजिक क्षेत्र में एक सफल इकोसिस्टम नहीं बनाता है। अगर मैं अपने काम में लगा रहूं और कोई दूसरा अपने काम में लगा रहे तो यह एक आदर्श समाधान नहीं है, क्योंकि हमारे सामने यहां एक बड़ा सामाजिक लक्ष्य है।

‘निजी हितों’ की बात तब समझ में आती है जब हम मुक्त बाजारों (फ्री मार्केट्स) के बारे में बात करते हैं और जब वे विफल होते हैं। लेकिन अधिकांश सामाजिक क्षेत्र के सिस्टम ‘मुक्त बाजार’ नहीं होते हैं, और इसलिए ‘अदृश्य हाथ’ इन हितों को बड़े सामूहिक हित के साथ नहीं साध सकता है। क​हने का मतलब यह है कि ‘स्वार्थ’ की बात आमतौर पर बाजारों में होती है, लेकिन सामाजिक क्षेत्र में जहां बाजार की तरह खुद-ब-खुद चीजें ठीक नहीं होतीं, वहां स्वार्थ और सामूहिक हित एक साथ नहीं चल सकते।

फेसबुक बैनर_आईडीआर हिन्दी

समाजिक क्षेत्र में सफल होने के लिए, सभी को यह समझना होगा कि वे एक बड़े इकोसिस्टम का हिस्सा हैं। हमें केवल अपने व्यक्तिगत स्वार्थ पर ध्यान नहीं देना चाहिए; हमें यह समझना होगा कि दुनिया में बहुत सी ऐसी भी जरूरी चीजें हैं जिन्हें पैसों या आर्थिक पैमानों पर नहीं मापा जा सकता है। एक सही इकोसिस्टम को बनाने के लिए, सभी को एक साथ मिलकर काम करना होगा और यह ध्यान रखना होगा कि हम एक बड़ी व्यवस्था का हिस्सा हैं। अकेले हम अपने काम को सबसे अच्छे तरीके से नहीं कर सकते हैं।

2. प्रतिस्पर्धा और सहयोग के बीच संघर्ष है

जब हम यह समझ लेते हैं कि हम एक बड़े इकोसिस्टम का हिस्सा हैं तो अगली चुनौती प्रतिस्पर्धा और सहयोग के बीच संतुलन बनाने की होती है। जैसे, कब हमें अपने व्यक्तिगत हितों पर ध्यान देना चाहिए और कब पूरे समूह और व्यवस्था के हित में सोचना चाहिए।

सामाजिक क्षेत्र में नए लोग और विचार आ रहे हैं, लेकिन कई बार ये लोग बाजारों की जटिलता और आपसी निर्भरता को ठीक से समझे बिना पहले की तरह प्रतिस्पर्धात्मक नजरिया अपनाते हैं। दुर्भाग्य से, ऐसा नजरिया तब काम नहीं करता जब व्यवस्था जटिल और एक दूसरे पर निर्भर होती है, और सामाजिक क्षेत्र की ज्यादातर महत्वपूर्ण चीजें पैसे से नहीं मापी जा सकती हैं।

करघा चलाती महिलाएं_सहयोग
जब सहयोग के फायदे सभी को समझ में आते हैं तो फिर लोग सहयोग क्यों नहीं कर रहे हैं? | चित्र साभार: शार्लेट एंडरसन

सामाजिक क्षेत्र में, केवल अलग-अलग संगठनों के बीच ही नहीं, बल्कि एक ही समूह के भीतर भी प्रतिस्पर्धा होती है। उदाहरण के लिए, समाजसेवी संगठनों के बीच संसाधनों (जैसे धन, समय, समर्थन) के लिए प्रतिस्पर्धा होती है। इसी तरह, फंड देने वाले और फंड प्राप्त करने वाले के बीच भी प्रतिस्पर्धा हो सकती है।

जब फंडर और ग्रांटी (फंड देने वाले और फंड प्राप्त करने वाले) के बीच बातचीत होती है तो यह मान लिया जाता है कि फंडर लागत को घटाने की कोशिश करेगा और ग्रांटी इसे बढ़ाने की कोशिश करेगा। इस प्रक्रिया में, वे दोनों मिलकर एक समुचित लागत पर पहुंचने की कोशिश करेंगे, सही लागत तक पहुंचने का यह तरीका बाजार की तरह है।

लेकिन सवाल यह है कि क्या मोलभाव और बातचीत वाकई में परियोजना की लागत को सही ढंग से तय करने का सबसे अच्छा तरीका है? और शक्ति के असंतुलन (जैसे, फंडर के पास ​ज्यादा ताकत हो सकती है) के चलते, इस प्रकार की बातचीत से आदर्श समाधान तक पहुंचना मुश्किल हो सकता है।

फंडर और ग्रांटी के रिश्ते में सफलता के लिए सहयोग और सह-निर्माण की सोच अपनाना जरूरी है। लेकिन जब बातचीत चल रही होती है, तब इसे वास्तविकता में लागू करना कठिन हो सकता है क्योंकि विभिन्न कारकों को हमेशा ध्यान में रखना आसान नहीं होता है।

इसलिए, प्रभावी सहयोग के लिए एक बहुत ही सजग और सतर्क मानसिकता की आवश्यकता होती है, क्योंकि स्वाभाविक रूप से हम सहयोगी नहीं होते और एक साथ काम करने के लिए प्रोत्साहन कभी भी पूरी तरह से पर्याप्त नहीं होता है।

3. हमारे इकोसिस्टम में कोई भी न​जरिया या स्थिति नहीं होती है

आपके पास ऐसी कोई जगह नहीं है जहां से आप पूरे इकोसिस्टम को एक साथ देख सकें। आप केवल इसके एक हिस्से को ही देख सकते हैं। नतीजतन, आप किसी समस्या को लेकर केवल अपने नजरिए से देख पाते हैं, जो आपके स्थान पर निर्भर करती है। इसलिए, यह पूरा परिदृश्य नहीं कहलाएगा।

यह समझना जरूरी है, कि इकोसिस्टम को पूरी तरह से समझने के लिए आपको दूसरों के नजरिए की जरूरत होती है। जब कई लोग मिलकर अलग-अलग नजरिया बांटते हैं, तब आप पूरे सिस्टम की एक साफ और पूरी छवि पा सकते हैं।

क्यों करें’ और ‘कैसे करें’ को एक साथ कैसे लेकर आएं

आज के समय में, हमारे क्षेत्र में अधिकांश बातचीत ‘सहयोग कैसे करें’ के मोड में चली गई है, जो एक ऐसा व्यावहारिक तरीका है जिससे हम सभी सहमत हैं। हालांकि, अगर हम सोच-समझ कर देखें तो मुझे लगता है कि सहयोग की राह में सबसे बड़ी और पहली रूकावट एक खास तरह की मानसिकता है! इसे (स्वयं से शुरू करके) सभी प्रतिभागियों को सक्रिय रूप से और जागरूकता के साथ विकसित करना चाहिए।

सहयोग में मदद करने वाले संसाधन हो सकते हैं। जैसे कि कई स्टेकहोल्डर्स (हिस्सेदारों) के साथ संवाद, लगातार चर्चाएं, परियोजनाओं पर एक साथ काम करना, एक साझा परिवर्तन सिद्धांत विकसित करने के साथ और भी बहुत कुछ। इनका प्रभाव केवल तभी होगा जब हम इस मानसिकता को स्थिति में लाएंगे।

आखिर में, सहयोग न तो ‘स्वाभाविक’ है और न ही ‘अनिवार्य’। यह केवल ‘जानने की बात’ या एक तकनीक और टूलकिट नहीं है। यह एक जागरूक मानसिकता है जो सही ढंग से अपनाई जाए, तभी यह वास्तविक परिणाम दे सकती है।

इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ें

अधिक जानें

  • जमीनी संस्थाएं अपने काम को क्यों नहीं बढ़ा पा रही हैं, जानिए इस लेख में।
  • सोशल अकाउंटेबिलिटी को आसान भाषा में समझने के लिए पढ़ें यह लेख।
  • इस रिपोर्ट में जानें कि समाजसेवी संस्थाएं एक साथ काम करके कैसे एक दूसरे को लाभान्वित कर सकती हैं।

लेखक के बारे में
अनंतपद्मनाभन गुरुस्वामी-Image
अनंतपद्मनाभन गुरुस्वामी

अनंतपद्मनाभन ऐसे लीडर्स और संगठनों के साथ काम करते हैं, जो हमारे समय की महत्वपूर्ण समस्याओं को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं। वे पूर्व में अजीम प्रेमजी फिलैंथ्रोपिक इनिशिएटिव्स (एपीपीआई) के सीईओ रह चुके हैं। इसके पहले, अनंत भारत में एम्नेस्टी इंटरनेशनल के सीईओ और ग्रीनपीस के अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम निदेशक के रूप में भी काम कर चुके हैं। उन्होंने अपने काम की शुरुआत द स्कूल - कृष्णमूर्ति फाउंडेशन इंडिया में शिक्षक के तौर पर की थी। अनंत ने 1988 में आईआईटी मद्रास से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बी.टेक. की डिग्री ली है

टिप्पणी

गोपनीयता बनाए रखने के लिए आपके ईमेल का पता सार्वजनिक नहीं किया जाएगा। आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *