March 18, 2024

समाजसेवी संगठन अपनी संचार रणनीति को प्रभावी कैसे बना सकते हैं?

शोध केंद्रित समाजसेवी संस्थाएं प्रभावी संचार रणनीति कैसे बना सकती है और कैसे इसे एक स्थाई प्रणाली के तौर पर विकसित कर सकती हैं, इस पर बात करती एक केस स्टडी।
13 मिनट लंबा लेख

वर्तमान में प्रत्येक संगठन के लिए यह आवश्यक है कि वह संचार को अपनी रणनीति का एक प्रमुख हिस्सा बनाए। ख़ासतौर पर समाजसेवी संगठनों के पास, संचार रणनीति को लागू करने के लिए एक स्पष्ट और सटीक सोच-प्रक्रिया होने से उनका प्रभाव बढ़ाने में, लोगों में अपने ब्रांड की पहचान बनाए रखने में और क्रियान्वयन को प्रेरित करने की गति को तेज़ी मिल सकती है। इसके अलावा, ज़्यादातर संगठन संचार में निवेश को लेकर संघर्षरत रहते हैं। दरअसल, संचार के लिए अलग से धन और मानव संसाधन का प्रबंधन करने में सक्षम संगठन भी कई बार इस काम को ऐसे करते हैं कि वह अनौपचारिक और अंत में प्रभावहीन होता है।

यह अध्ययन एक संगठन – विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी – के मुख्य कार्य के रूप में संचार के साथ संबंध के विकास को रेखांकित करता है। इस लेख को पढ़ें और समझें कि उनकी संचार रणनीति कैसे बनी – विशेष रूप से, उन्होंने संचार में निवेश की आवश्यकता पर क्यों विश्वास किया, वे ऐसा कैसे करते रहे, और इस दौरान उन्होंने क्या सीखा।

विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी जनता के हित को ध्यान में रखकर शासन में सुधार के लिए कानूनी शोध करती है। वे कानून निर्माण और कानूनी नीति की जानकारी देने के लिए केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और विभिन्न अन्य सार्वजनिक संस्थानों के साथ जुड़ते हैं। इसके अलावा, उनके काम के मुख्यरूप से में यह सुनिश्चित करना शामिल है कि उनका शोध जनता के लिए सुलभ हो ताकि यह चर्चा को आकार दे सके।

रणनीतिक संचार संगठन को उनके प्रभाव लक्ष्यों को प्राप्त करने में बड़ी भूमिका निभाने वाला रहा है, लेकिन इसका लाभ उठाने का तरीका सीखने की इस यात्रा में बहुत कुछ जानने को मिला।

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शुरुआत: संचार की खोज

साल 2013 में जब विधि की स्थापना हुई,  तब इसकी टीम में मुख्यरूप से वकील शामिल थे। इन सभी की पृष्ठभूमि शैक्षणिक, मुक़दमेबाज़ी और क़ानूनी फ़र्म की थी। इन शुरुआती वर्षों में, संगठन को संचार की प्रासंगिकता, महत्व और दायरे को समझने के लिए संघर्ष करना पड़ा। इसके सह-संस्थापक आलोक प्रसन्ना कहते हैं कि ‘हमने संचार को कभी भी अपने काम का महत्वपूर्ण पहलू नहीं माना।’

जब संगठन का काम जोर पकड़ने लगा तब संचार रणनीति को विकसित करने की जरूरत महसूस होने लगी। आलोक आगे बताते हैं कि ‘पहले से अधिक लोग हमारे काम पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे थे और इसे सरकार द्वारा किए जाने वाले कामों से जोड़ कर देख रहे थे, और इसमें कुछ नकारात्मक प्रतिक्रियाएं भी मिलीं।’ इस बिंदु पर, विधि ने संचार के लिए एक प्रतिक्रियात्मक दृष्टिकोण विकसित करना शुरू किया। आधार मामले पर विधि के काम को भी जब जनता की नकारात्मक प्रतिक्रिया मिली तो इस प्रतिक्रियाशील दृष्टिकोण को एक ठोस संचार रणनीति माना गया। आलोक ने बताया कि ‘जब भी कोई हमारे बारे में कुछ कहता तो टीम के सदस्य संचार को अपने बचाव के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले एक टूल के रूप में देखते थे।’

उन दिनों, टीम के सदस्यों ने संचार सामग्री (जैसे कि वेबसाइट, बाहरी बातचीत और अन्य सामग्री) को तैयार करने को एक ऐसे काम के रूप में देखा जिसे किसी भी तरह पूरा किए जाने की ज़रूरत है। आलोक यह भी बताते हैं कि संचार को एक कार्यान्वयन प्रक्रिया की तरह इस्तेमाल किया गया जिसका उद्देश्य हमारे काम की बारीकी से जांच करना था।

यह परिप्रेक्ष्य तब बदल गया जब विधि के योगदान से तैयार हुआ वित्तीय समाधान और जमा बीमा (एफआरडीआई) विधेयक को सार्वजनिक कर दिया गया। इस विधेयक में एक ‘बेल-इन’ क्लॉज़ का प्रस्ताव रखा गया जो दिवालिया बैंक में जमा धारकों को उनकी जमा राशि को शेयरों में परिवर्तित करके सुरक्षा प्रदान करेगा। इसे करदाताओं के धन का उपयोग किए बिना जमा धारकों की सुरक्षा करने के एक साधन के रूप में माना जाता था। हालांकि, नोटबंदी के एक-आध साल बाद लोगों को इस बात की चिंता हुई कि क्या विधेयक के इस क्लॉज़ का उपयोग उनकी जमा राशि को बैंक शेयरों में बदलने के लिए किया जाएगा। लोगों से मिलने वालों नकारात्मक प्रतिक्रिया के कारण सरकार को इस विधेयक को वापस लेने पर मजबूर होना पड़ा, नतीजतन विधि की पूरी मेहनत बर्बाद हुई। विधेयक पर मिली लोगों की नकारात्मक प्रतिक्रिया के कारण विधि के नेतृत्व मंडल को इस बात का एहसास हुआ कि उनके मुख्य मूल्यों के अलावा उनके काम के पीछे का विचार और इरादा लोगों तक नहीं पहुंच रहा था।

आलोक अपनी बात को बढ़ाते हुए कहते हैं कि ‘लोगों को एफ़आरडीआई के बारे में बताने को लेकर किसी भी तरह की तैयारी नहीं की गई थी, नतीजतन लोग घबराहट में प्रतिक्रिया कर रहे थे। और, यही वह समय था जब हमें इस बात का एहसास हुआ कि हमारे लिए लोगों यह बताना महत्वपूर्ण है कि हमारा काम सार्वजनिक हित में हैं।’

कुछ ही दिनों में, विधि को यह बात समझ में आ गई कि संचार ही वह माध्यम है जिसका उपयोग करके संगठन अपने काम और मूल्यों के बारे में जनता को बता सकता है। उन्हें इसे लेकर थोड़ा अधिक सक्रिय होना होगा क्योंकि संचार का महत्व सोशल मीडिया से कहीं अधिक था। आलोक बताते हैं कि ‘हमारे शोध के केंद्र में जनता होती है। हम व्यापक जनहित के लिए काम कर रहे हैं, चाहे हम सरकार के साथ काम कर रहे हों या किसी मुद्दे पर नई रिपोर्ट पर काम कर रहे हों, हमारा सारा काम जनता से संबंधित होता है।’

इस एहसास के बाद ही विधि एक ठोस रणनीति में अपनी ऊर्जा लगाने के लिए तैयार हो सका; हालांकि, उन्हें अब भी इसके तरीक़े के बारे में सीखने की जरूरत थी।

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कुछ ही दिनों में, विधि को यह बात समझ में आ गई कि संचार ही वह माध्यम है जिसका उपयोग करके संगठन अपने काम और मूल्यों के बारे में जनता को बता सकते हैं। | चित्र साभार: रॉपिक्सेल

ग़लतियों की गुंजायश

जब संचार के प्रबंधन की बात आती है तब संगठन इस काम के लिए अक्सर किसी पीआर फर्म की सेवाओं को एक विश्वसनीय और आसान तरीक़े के रूप में देखा जाता है। विधि ने भी शुरुआती दौर में इसी रास्ते को अपनाया। लेकिन जहां पीआर फर्म मीडिया तक पहुंचने और किसी ख़ास उद्योग के लिए कारगर तरीक़े के बारे में जानते हैं, वहीं अक्सर वे अपने ग्राहकों को एक तय दायरे (कॉर्पोरेट, जीवनशैली आदि) में फिट कर देते हैं। आलोक इस बात पर जोर देते हैं कि ‘वे इनमें से किसी एक में आपको रखने का प्रयास करते हैं क्योंकि उनके काम करने का तरीक़ा ही यही है। वे ऐसी फर्म होते हैं जिनके पास आपके अलावा भी सैकड़ों ग्राहक हैं।’ विधि जैसे शोध संगठन के पास बहुत अधिक सामग्री होती है। किए जा रहे शोध के विषय को समझे बिना इसके बारे में लोगों को बताना जटिल होता है। विधि में संचार विभाग की प्रमुख ऋचा बंसल कहती हैं कि ‘शोध संगठन में संचार की प्रक्रिया सुगम होनी चाहिए क्योंकि कोई उपयोगकर्ता सीधे इससे जुड़ा नहीं होता है। इसलिए, लोगों को इस बात के महत्व को समझना होगा कि प्रभावशाली नीति वास्तविक कार्रवाई में कैसे परिवर्तित होगी। इसके अलावा, हमें इस बात को लेकर स्पष्ट करना होगा कि ये पहले से ही रुचि रखने वाले लोग हैं, लेकिन इनके पास इस विषय के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं है।’

जबकि पीआर फर्म कई तरह की संचार गतिविधियों में लगी हुई थी, लेकिन विधि के काम को लेकर पूरी समझ नहीं होने के कारण वे असफल रहे। आलोक कहते हैं, ‘हम बहुत सारी अलग-अलग चीजें कर रहे थे और सब कुछ ठीक ही लग रहा था, लेकिन एक पूरी कहानी नहीं बन रही थी।’ एकजुटता की कमी थी। वे आगे बताते हैं कि ‘जिस चीज ने हमें इस समस्या से निपटने में मदद की वह संचार से जुड़ी होने वाली समस्याओं को समझने में सक्षम होना था।’ विधि को यह बात समझ में आ गई थी कि उन्हें दो चीजों की ज़रूरत थी: प्रभाव को संप्रेषित करना, और एक ऐसी टीम का होना जो बता सके कि इस प्रभाव को कैसे व्यक्त किया जाए।

सही समझ के साथ काम करना

1. सही संसाधनों का चुनाव

विभिन्न हितधारकों, संचार पेशेवरों और बोर्ड के सदस्यों के साथ हुई बातचीत के माध्यम से विधि ने यह जाना कि उन्हें अपने काम के प्रति गंभीर रूप से प्रतिबद्ध किसी व्यक्ति की जरूरत थी। आलोक विस्तार से बताते हुए कहते हैं कि ‘हम अपनी तरह का अलग काम कर रहे हैं। हम ना तो पूरी तरह से एक क़ानूनी फर्म हैं और ना ही पूरी तरह से एक समाजसेवी संस्था हैं। हम कई ‘ना’ किए जाने वाले कामों का एक जत्था हैं। और हम केवल इतना ही चाहते थे कि हमें इस बात को समझने वाला कोई मिल जाए।’

विधि के लिए, इसका सीधा मतलब यह था कि उन्हें किसी ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता थी जो संगठन के भीतर गहराई से जुड़ा हो। कोई ऐसा व्यक्ति जो शोधकर्ताओं की उनकी टीम से बात कर सके, और उन्हें यह दिखा सके कि वे अपने काम को जनता तक बेहतर ढंग से कैसे पहुंचा सकते हैं।

और, जब उन्होंने अपने बोर्ड में एक ऐसे व्यक्ति को शामिल कर लिया तो इसका प्रभाव तुरंत दिखाई पड़ने लगा। बाहर से, उन्होंने देखा कि उनकी वेबसाइट और ब्लॉग मीडियाकर्मियों और कानून के छात्रों के लिए एक उपयोगी संसाधन बन गए हैं। वहीं, आंतरिक रूप से पता चला कि एक संचार रणनीति का क्या प्रभाव हो सकता है, और यह प्रभाव पैदा करने में किस तरह से उनकी मदद कर सकती है।

ऋचा के मार्गदर्शन में, विधि ने बाहरी तौर पर अपने प्रभाव की कहानी सक्रिय रूप से बतानी शुरू की। ऋचा कहती हैं कि ‘हमने कहानी के माध्यम से अपने प्रभाव के बारे में लोगों को बताने का फ़ैसला किया – हमने वेबसाइट पर प्रभाव के लिए एक जगह बनाई और विधि का पहला प्रभाव रिपोर्ट प्रकाशित किया। इसका बहुत अधिक प्रभाव पड़ा। लोगों ने इस शोध को सकारात्मक इरादे के साथ अंत तक पहुंचने के एक साधन के रूप में देखा, जिसमें बाहरी हितधारकों द्वारा प्रमाणित किए गए ठोस उदाहरण भी शामिल थे। इस सक्रिय नरेटिव सेटिंग ने चुनौती को उल्टा कर दिया।’

साल 2020 में विधि एक इनहाउस संचार टीम को अपने साथ लेकर आई हैं, और उसके बाद से संगठन ने लोगों तक अपनी पहुंच और उनसे जुड़ाव में वृद्धि देखी। उदाहरण के लिए:

  • जुलाई 2020 में रिलॉन्चिंग बाद वेबसाइट पर प्रति माह आने वाले लोगों की संख्या में पांच गुणा बढ़ोतरी देखी गई। वर्तमान में, उनकी वेबसाइट पर प्रति माह लगभग एक लाख लोग आते हैं।
  • उनके सोशल मीडिया हैंडल, ख़ासकर ट्विटर (अब एक्स) में जनवरी 2020 के बाद लगभग 62 फ़ीसद की वृद्धि देखी गई, जिसमें नियमित रूप से बढ़त ही हो रही है।
  • साल 2021-22 में, विधि की टीम ने 32 नई रिपोर्टें प्रकाशित कीं। इन रिपोर्टों में 301 मीडिया अंश थे जिनमें या तो विधि पर लिखा गया था या फिर उसका हवाला देकर कोई बात कही गई थी। वास्तव में, संचार टीम ने शोधकर्ताओं द्वारा लिखे गए ऑप-एड को छोड़कर, इन दो वर्षों के दौरान प्रति माह औसतन कम से कम 12 लेखों में इसी तरह विधि का ज़िक्र था।

2. अन्य टीमों के साथ संचार को एकीकृत करना

ऋचा कहती हैं कि ‘शुरुआत में, आप एक रणनीति बनाते हैं जो वास्तव में व्यापक होती है – अपनी कहानी कैसे बताएं, उस कहानी को कैसे बढ़ाएं, मीडिया तक कैसे पहुंचें, सामयिकता का लाभ कैसे उठाएं, चल रही बातचीत में कैसे शामिल हों, और कैसे इसे अधिकतम लोगों तक पहुंचाएं। लेकिन समय के साथ, जैसे-जैसे संगठन विकसित होता है, एक विस्तृत दृष्टिकोण का एहसास होता है। विधि के मामले में इस काम को हमने यह सुनिश्चित करते हुए किया था कि सभी टीम अक्सर संचार रणनीति के साथ जुड़ी रहती हैं, और प्रभाव को संप्रेषित करने के लिए वकालत और प्रसार योजनाओं के निर्माण में शामिल होती हैं।’

उन्होंने इस काम को कुछ इस प्रकार किया था। विधि में शोध करने वाली प्रत्येक टीम को यह सोचने के लिए कहा जाता है कि उस शोध के लिए उनकी दो-वर्षीय या पंच-वर्षीय योजना क्या है – वे इसे कैसे प्रसारित करने की योजना बनाते हैं? किसी प्रोजेक्ट के शुरुआती चरणों में इन सवालों को ध्यान में रखने से विभिन्न टीमों को अपनी रिपोर्ट तैयार करते समय संचार और एडवोकेसी के नज़रिए का उपयोग करने में मदद मिलती है। इसके परिणामस्वरूप, जारी की गई रिपोर्ट अपने चाहे गए प्रभाव पैदा करने के लिए अनुकूलित होती हैं, चाहे उनका काम बदलाव लाना हो या लोगों का ध्यान आकर्षित करना हो या फिर दोनों।

3. प्रभाव निर्माण के लिए संचार का उपयोग करना

यह महसूस करना कि रणनीतिक संचार का उपयोग उनके अनुसंधान और जमीन पर प्रभाव का लाभ उठाने के लिए किया जा सकता है, विधि के लिए एक गेम चेंजर था। इसकी प्रक्रिया को समझाते समय आलोक ने पंजाब में नशे की बढ़ती समस्या और उस समय क़ानून के प्रभाव का उदाहरण देते हैं। उनका कहना है कि ‘जब हम पंजाब में नशे की समस्या पर शोध किया, तब 30–40 अख़बारों ने हमारे इस शोध का परिणाम प्रकाशित किया। लेकिन एचएमआरए लक्ष्य यह नहीं था। हमारा लक्ष्य एक ऐसी बातचीत की शुरुआत करना था जिसमें इस बात की जांच की जाए कि क्या वह विशेष कानून भारत के लिए सही था। इसलिए, जब आर्यन खान ड्रग मामले में बहस शुरू हुई, तब हमने इसका फ़ायदा उठाने के बारे में सोचा- हम इस काम को करने में सक्षम थे क्योंकि हमारे पास ऋचा जैसी विशेषज्ञ थीं। ऋचा ने हमारा काम, हमारे आंकड़े लिये, इसे जनता के सामने लाया और हमारी मदद की ताकि हम इस पर बहस छेड़ सकें कि क्यों मामूली नशीली दवाओं को अपने पास रखने को अपराध की श्रेणी से बाहर किया जाना चाहिए।’

इस रणनीति का असर अभी भी दिख रहा है। आज, यदि आप गूगल पर ‘भारत में नशीली दवाओं को अपराधमुक्त करना’ जैसे विषय को खोजें तो विधि की रिपोर्ट अभी भी दिखाई देती है। इस तथ्य के बावजूद कि वे इस मुद्दे पर शोध करने वाले पहले (या आखिरी) नहीं थे, जब भी देश में लोग नशीली दवाओं के इस्तेमाल के बारे में बात करते हैं तो उनके शोध का हवाल दिया जाता है। अन्य शोध से उनकी शोध को अलग करने वाला कारक उनकी स्पष्ट संचार रणनीति थी: सही कहानी, सही समय पर, सही लोगों तक पहुंचाना। और परिणामस्वरूप, वे खुद को एक ऐसी जगह पर पाते हैं जहां कुछ समाजसेवी संस्थाएं होने का दावा कर सकती हैं – उनका शोध लोगों के सोचने के तरीके को बता रहा है; यह लोगों को उनकी वेबसाइट से आगे जाकर अन्य स्रोतों का इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित कर रहा है।

प्रभाव को मापने के लिए, विधि अब प्रभाव रिपोर्ट विकसित करती है, जो सभी अलगअलग टीमों के इनपुट के साथ बनाई जाती है।

प्रभाव को मापने के लिए, विधि अब प्रभाव रिपोर्ट जारी करती है, जो सभी अलग-अलग टीमों के इनपुट के साथ बनाई जाती है। जैसा कि ऋचा कहती हैं, ‘विधि जैसे संगठन पर क्या प्रभाव पड़ेगा, इसके संकेतक कई आंतरिक बातचीत के बाद स्थापित किए गए थे। हम आज भी इसे बेहतर बनाने के लिए काम कर रहे हैं। और हम ऐसा करके लगातार इस बात को सुनिश्चित करते हैं कि हम अपने उद्देश्य के अनुसार सही काम कर रहे हैं।’

4. लचीले बने रहना

नए विचारों को विकसित करना और खोजना तथा पुराने विचारों का मूल्यांकन करना भी किसी संगठन के विकास का एक निरंतर हिस्सा है। ऋचा आगे कहती हैं कि ‘मुझे लगता है कि एक प्रमुख पहलू जो वास्तव में मदद करता है, वह है सीखने की उत्सुकता और आप जो कर रहे हैं उस पर दोबारा गौर करना ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कोई भी अपने विचारों में फंसा न रहे। और यह वास्तव में बहुत महत्वपूर्ण है। वास्तव में जो प्रभाव हम देना चाहते हैं उसे देने के लिए हम जो कुछ अलग करते [सकते] हैं उसे देखने और उसका आकलन करने की क्षमता – वह रवैया वास्तव में मदद करता है ।’

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संचार में प्रारंभिक निवेश किसी भी संगठन के लिए बहुत मददगार हो सकता है। | चित्र साभार: कैन्वा प्रो

समाजसेवी संगठनों के लिए उनकी सलाह

1. अपने काम के लिए संचार को महत्वपूर्ण संसाधन के रूप में देखना शुरू करें

किसी भी क्षेत्र में काम करने वाले समाजसेवी संगठन के लिए संचार को अपनी प्राथमिकता बनाना आवश्यक होता है। आलोक कहते हैं कि संचार ‘ज़रूरी नहीं है कि व्यापक पैमाने पर ही किया जाए। इसे फ़ंडर या सरकार जैसे कुछ तय हितधारकों तक भी सीमित रखा जा सकता है लेकिन यह जरूरी है कि इसे संगठन के लिए मौलिक माना जाए।’

ऐसा करने के लिए, नेतृत्व टीम को संचार को एक प्राथमिक गतिविधि के रूप में देखने की ज़रूरत है जो संगठन द्वारा किए जाने वाले काम से अलग नहीं होना चाहिए, बल्कि उस पर ही निर्मित और आधारित होना चाहिए। अगर संचार को एक अतिरिक्त टूल के रूप में देखा जाता है तो संगठन के लिए अपने लक्ष्यों को पाने की दिशा में आगे बढ़ने में कठिनाई होगी।

2. अपने दाताओं को दिखाएं कि आप रणनीतिक संचार को लेकर प्रतिबद्ध हैं

संचार में प्रारंभिक निवेश किसी संगठन के लिए बहुत मददगार हो सकता है। आलोक ज़ोर देते हुए कहते हैं कि ‘मैं संचार को आपके परिणामों का मौलिक पहलू मानता हूं। जब हम कोई प्रस्ताव भेजते हैं, तो उसमे हम शोधकर्ताओं पर होने वाले खर्च को एक वर्ग में और संचार, रणनीति और अन्य ख़र्चों को दूसरे वर्ग में दर्ज करके भेजते हैं। ज़रूरी यह है कि संचार को अतिरिक्त खर्च के रूप में नहीं देखा जाना ताकि इसे ख़ारिज करने या इसमें कटौती करने की गुंजाइश न रहे।’

इस निवेश को संगठन की ज़रूरतों को ध्यान में रखकर तय किया जाना चाहिए। संचार के लिए समर्पित एक पूरी टीम का होना महत्वपूर्ण नहीं है। लेकिन, संगठन की ज़रूरतों को समझने वाला और सही संचार प्रणाली को स्थापित करने की जानकारी रखने वाले किसी एक उचित व्यक्ति की नियुक्ति से भी बहुत बड़ा अंतर लाया जा सकता है।

3. संचार यात्रा में अपने टीम के सदस्यों को भी शामिल करें

टीम के अन्य सदस्यों के साथ सहयोगात्मक दृष्टिकोण संचार प्रयासों को सफल बनाने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। ऋचा, संचार कार्य में अन्य टीमों को शामिल करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालती हैं। इसके अलावा वह उन्हें प्रक्रिया समझाती हैं, उन्हें संचार टीम के साथ अपने काम की बारीकियों के बारे में बात करने के लिए कहती हैं, और उनके साथ एक कामकाजी संबंध स्थापित करती हैं। वे कहती हैं कि ‘यदि कोई संगठन कई क्षेत्रों में काम करता है, तो छोटी तस्वीर को समझने के लिए विभिन्न टीमों के साथ लगातार बातचीत करना महत्वपूर्ण है। यह रिपोर्ट बनाने या प्रस्तुत करने से अलग है। इसका संबंध इससे है कि वह रिपोर्ट किसी टीम के काम के बड़े कथन के साथ कैसे फिट बैठती है, और फिर उस टीम का काम संगठन के बड़े कथन में कैसे फिट बैठता है।’ इन बारीकियों तक पहुंच होने से संचार पेशेवर को अपनी परियोजनाओं को बेहतर ढंग से निष्पादित करने में मदद मिलती है।

दाताओं को उनकी सलाह

1. समाजसेवी संस्थाओं की संचार क्षमता के निर्माण में निवेश करें

क्षमता निर्माण में निवेश होना चाहिए। यह महत्वपूर्ण है कि दाता, समाजसेवी संस्थाओं के लिए उन प्रशिक्षकों से सीखने के अवसर पैदा करें जिनके पास भारत में संचार का अनुभव है। ऋचा कहती हैं कि ‘ऐसे लोगों को चुनें जो इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं, और संदर्भ से जुड़े हुए हैं।’ एक विदेशी फर्म को भारतीय प्रणाली के अंदर और बाहर की जानकारी नहीं होगी, जो किसी भी सार्थक प्रशिक्षण को संचालित करने के लिए महत्वपूर्ण है। ऋचा कहती हैं कि उन्होंने देखा है कि ‘फंड देने वाले कभी-कभी अच्छे इरादों के साथ बड़े विदेशी नामों को लाने के लिए इच्छुक हो सकते हैं, लेकिन वे वास्तव में भारत के संदर्भ को नहीं समझते हैं। सही लोगों के साथ सही कार्यक्रम बनाना बहुत महत्वपूर्ण है। ऋचा आगे कहती हैं कि ‘क्षमता निर्माण को एक ऐसी चीज़ के रूप में सोचा जाना चाहिए जिसके लिए कुछ निरंतर प्रशिक्षण और सहायता की आवश्यकता होती है। और, यह लंबे समय में होता है, यहां तक ​​​​कि एक वर्ष में भी ऑनलाइन और ऑफलाइन बातचीत के माध्यम से होता है।’

2. फ़ंडिंग को लेकर नये नज़रिए अपनाएं

आलोक सुझाव देते हैं कि फ़ंडर को इस बारे में नवोन्मेषी होना चाहिए कि वे किन क्षेत्रों में फंड का निवेश करना चाहते हैं। वे आगे कहते हैं कि उम्मीद करने की बजाय, वे किसी ऐसे व्यक्ति को शामिल कर सकते हैं जो गैर-लाभकारी संस्थाओं के भीतर किसी समाचार संगठन या पीआर एजेंसी में काम करता है। इन लोगों का वेतन भी फ़ंडर को ही देना चाहिए और इस बात को सुनिश्चित करना चाहिए कि वे कम से कम एक साल तक टिकें और सीखें और अपनी विशेषज्ञता का लाभ समाजसेवी संस्थाओं को पहुंचाएं।’ इसके अतिरिक्त, फ़ंडर, सामाजिक प्रभाव क्षेत्र के लिए संचार पाठ्यक्रमों के विकास में भी निवेश के बारे में सोच सकते हैं। इस तरह के विभिन्न पाठ्यक्रम विधि (शोध पर काम करने वाले) जैसे संगठनों की मदद करने के साथ ही ज़मीनी स्तर के कार्यक्रम बनाने वाली संस्थाओं के लिए भी मददगार साबित हो सकते हैं।

3. समाजसेवी संगठनों के लिए संचार को सुलभ बनाएं

इस काम को कई तरीकों से किया जा सकता है। फ़ंडर, अनुदान प्राप्तकर्ता भागीदारों को संचार में निवेश करने और ऐसा करने की लागत का समर्थन करने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं। या, वे एक साझा सेवा मॉडल बनाने के बारे में सोच सकते हैं जहां वे अपने भागीदार संगठनों के समूह की क्षमता बनाने के लिए एक एजेंसी को नियुक्त करते हैं।
सबसे महत्वपूर्ण यह है कि फंडर्स अपने साथियों के साथ संचार में निवेश करने की आवश्यकता के बारे में बात करके और इसके लिए अपने समर्थन के बारे में पारदर्शी होकर, मानसिकता में बदलाव लाने की शुरूआत कर सकते हैं।

ऋचा और आलोक के बारे में

ऋचा बंसल पिछले सत्रह से अधिक वर्षों से विकास संचार और पत्रकारिता के क्षेत्र में काम कर रही हैं। वे विधि सेंटर फॉर लीगल स्टडीज़ की प्रमुख हैं, और पांच सालों तक सेंटर फॉर पालिसी रिसर्च में संचार निदेशक के पद पर काम कर चुकी हैं। इससे पहले, उन्होंने विभिन्न लिंग-आधारित संगठनों में संचार विभाग में अपनी भूमिकाएं निभाई हैं, जिसमें पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ़ इंडिया, और कैमफेड, यूके, इंटरनेशनल सेंटर फॉर रिसर्च ऑन वीमेन जैसी संस्थाएं शामिल हैं। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक पत्रकार के रूप में की और अहमदाबाद, हैदराबाद, पुणे, और कोलकाता के विभिन्न अख़बारों के लिए काम कर चुकी हैं। ऋचा ने यूके की यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैम्ब्रिज से डेवलपएमईटी स्टडीज़ में एमफिल किया है। उन्होंने जनसंचार में एमए और अंग्रेजी साहित्य में बीए किया है।

आलोक प्रसन्ना कुमार विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी के सह-संस्थापक और प्रमुख हैं। वे न्यायिक सुधार, संवैधानिक क़ानून, शहरी विकास और क़ानून और तकनीक जैसे क्षेत्रों में शोध करते हैं। आलोक ने 2008 में नालसार यूनिवर्सिटी से बीएएलएलबी (ऑनर्स) और 2009 में यूनिवर्सिटी ऑफ़ ऑक्सफ़ोर्ड से बीसीएल किया है। वे इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली के लिए एक मासिक कॉलम लिखते हैं। इसके अलावा, द हिंदू, इंडियन एक्सप्रेस, स्क्रॉल, क्विंट और कारवां जैसे मीडिया आउटलेट्स के अलावा इंडियन जर्नल ऑफ कॉन्स्टिट्यूशनल लॉ और नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया रिव्यू में भी उनके लेख प्रकाशित हुए हैं। उन्होंने मोहन परासरन के चैंबर से सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाई कोर्ट में प्रैक्टिस की है। आलोक आईवीएम पॉडकास्ट पर गणतंत्र पॉडकास्ट के को-होस्ट हैं।

* विधि में संचार टीम की नियुक्ति के बाद विधि की पहुंच से जुड़े आंकड़ों को शामिल करने के लिए 12 दिसंबर 2022 को इस लेख को अपडेट किया गया था।

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लेखक के बारे में
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देवांशी वैद

देवांशी वैद आईडीआर में सह-संस्थापक और निदेशक हैं, जहां वे ऑडियंस ग्रोथ, प्रसार, वैश्विक साझेदारी और प्रतिभा प्रबंधन से जुड़ी ज़िम्मेदारियां सम्भालती हैं। आईडीआर की शुरुआत के बाद से, पिछले छह वर्षों में उन्होंने संगठन की डिजिटल ऑडियंस को 82 गुना बढ़ाकर उसे 1 करोड़ प्रति माह तक पहुंचा दिया है जिससे यह एशिया भर में सबसे बड़ा स्वतंत्र मीडिया प्लेटफार्म बन गया है।

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हलीमा अंसारी

हलीमा अंसारी आईडीआर में सम्पादकीय विश्लेषक के रूप में कार्यरत हैं जहां वे आलेखों के लेखन, सम्पादन और प्रकाशन की जिम्मेदारी सम्भालती हैं। वे टेक्नोलॉजी में लिंग और नैतिकता जैसे विषय में रूचि रखती हैं और उन्होंने फ़ेमिनिज़म इन इंडिया और एमपी-आईडीएसए के लिए इस विषय पर लेख भी लिखे हैं। हलीमा ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया से पॉलिटिक्स एवं एरिया स्टडीज़ में एमए किया है और लेडी श्रीराम कॉलेज फ़ॉर वीमेन से इतिहास में बीए की पढ़ाई पूरी की है।

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