May 24, 2024

हीरामंडी के बहाने जानिए समाजसेवी संस्थाओं की भावनाएं

विकास सेक्टर में आपको हीरामंडी जितना ही ड्रामा और इमोशन मिलेगा।
7 मिनट लंबा लेख

जब समाजसेवी संस्थाएं अपने काम के प्रभाव (इम्पैक्ट) के बारे में बात करती हैं तो वे भीतर ही भीतर क्या महसूस करती हैं- 

जिफ़ साभार: जिफ़ी

जब फंडर्स अपने उद्देश्यों के बारे में विस्तार से बता रहे हों, तब समाजसेवी संस्थाएं

जिफ़ साभार: जिफ़ी

जब अपने पैरों पर चलने के लिए संघर्ष कर रही संस्था को प्रोग्राम रेस्ट्रिक्टेड फ़ंडिंग मिले, और उसे स्वीकार करनी पड़े-

जिफ़ साभार: जिफ़ी

जब फ़ंडिंग ना मिलने का ईमेल मिले-

फेसबुक बैनर_आईडीआर हिन्दी
जिफ़ साभार: जिफ़ी

जब समाजसेवी संस्था समुदाय की कोई नई समस्या खोजकर सामने लाए और उसके पास उसका समाधान भी हो-

जिफ़ साभार: जिफ़ी

जब कोई कार्यक्रम (प्रोग्राम इंप्लीमेंटेशन) सफलता के साथ पूरा हो जाए-

जिफ़ साभार: जिफ़ी

जब एफसीआए को लेकर सरकार कुछ कहे तो समाजसेवी संस्थाओं को क्या सुनाई देता है-

जिफ़ साभार: जिफ़ी

और, कुछ मौक़े ऐसे भी आते हैं जब समाजसेवी संस्थाएं समुदायों की नहीं सुनती हैं, तब समुदाय-

जिफ़ साभार: जिफ़ी

लेखक के बारे में
अंजलि मिश्रा-Image
अंजलि मिश्रा

अंजलि मिश्रा, आईडीआर में हिंदी संपादक हैं। इससे पहले वे आठ सालों तक सत्याग्रह के साथ असिस्टेंट एडिटर की भूमिका में काम कर चुकी हैं। उन्होंने टेलीविजन उद्योग में नॉन-फिक्शन लेखक के तौर पर अपना करियर शुरू किया था। बतौर पत्रकार अंजलि का काम समाज, संस्कृति, स्वास्थ्य और लैंगिक मुद्दों पर केंद्रित रहा है। उन्होंने गणित में स्नातकोत्तर किया है।

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रवीना कुंवर

रवीना कुंवर, आईडीआर हिंदी में डिजिटल मार्केटिंग एनालिस्ट हैं। इससे पहले वे एक रिपोर्टर के तौर पर काम कर चुकी हैं जिसमें उनका काम मुख्यरूप से सार्वजनिक स्वास्थ्य और महिला सशक्तिकरण पर केंद्रित था। रवीना, मीडिया और कम्युनिकेशन स्टडीज़ में स्नातकोत्तर हैं।

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