February 11, 2025

शहर में बेघर, ऊपर से ठंड का कहर

अक्सर शहरों को सुंदर बनाए जाने के दौरान बेघर लोगों से उनके अस्थाई आश्रय भी छीन लिए जाते हैं जो ठंड और बारिश में उनका जीवन और कठिन बना देता है।
12 मिनट लंबा लेख

भारत में लाखों लोग बेघर हैं और अमानवीय परिस्थितियों में रह रहे हैं। वे सड़कों पर, फ्लाईओवर के नीचे या फिर झुग्गियों में अपने दिन बिता रहे हैं। दिल्ली-एनसीआर की बात करें तो साल 2011 की जनगणना में करीब 46,724 लोग बेघर दर्ज किए गए थे। लेकिन नागरिक अधिकार संगठनों और अभियानों, जैसे शहरी अधिकार मंच: बेघरों के साथ का मानना है कि यह आंकड़ा वास्तविक स्थिति से बहुत कम है और उनके हिसाब से असल संख्या तीन लाख से भी ज्यादा हो सकती है।

लोगों के बेघर होने के पीछे कई कारण हो सकते हैं जिसमें गांव में गरीबी होना, बेरोजगारी, जातिवाद, जमीन अधिग्रहण या प्राकृतिक आपदाओं के कारण विस्थापन और अनियोजित शहरीकरण शामिल हैं। ये सारे कारक मिलकर न केवल लोगों को बेघर कर देते हैं बल्कि उन्हें बदलते मौसम की कठिनाइयों से निपटने पर भी मजबूर करते हैं। खराब आवास और जीवन की कठिन परिस्थितियां पूरे साल उनके लिए जोखिम बनी रहती हैं।

सर्दी और बारिश के मौसम में बेघर लोग ठंड से बचने और जानलेवा स्थितियों, जैसे हाइपोथर्मिया, से बचने के लिए रैनबसेरे ढूंढते हैं। लेकिन इन आश्रय स्थलों या रैनबसेरों में भी बुनियादी सुविधाओं की कमी होती है, जैसे साफ पानी, कंबल, पर्याप्त भोजन और स्वच्छता। जो सुविधाएं मिलती भी हैं, वे बहुत खराब होती हैं। इसके अलावा, ठंड के महीनों में सांस संबंधी बीमारियां आम होती हैं। ये बीमारियां शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर कर देती हैं। गर्मी के मौसम में रोगों से लड़ने की क्षमता खराब रहती है। साथ ही, इस दौरान शरीर में पानी की कमी और हीटस्ट्रोक की समस्या बढ़ जाती है।

इस दौरान बेघर लोगों की मृत्यु दर बहुत ज्यादा होती है। नेशनल फोरम फॉर होमलेस हाउसिंग राइट्स के आंकड़ों के अनुसार, 15 नवंबर 2024 से 10 जनवरी 2025 के बीच दिल्ली में 474 बेघर लोगों की मौत हो गई। जनवरी 2024 में हर दिन करीब आठ बेघर लोग ठंड और अन्य कठिनाइयों के कारण अपनी जान गंवा रहे थे। यह स्थिति समाज के सबसे कमजोर वर्ग के लिए एक गंभीर संकट को दर्शाती है।

फेसबुक बैनर_आईडीआर हिन्दी

दिल्ली-एनसीआर में हर सर्दी में शीत लहर और भी ज्यादा खतरनाक हो रही हैं और इस बीच बेघर लोगों की स्थिति एक गंभीर लेकिन नजरअंदाज की गई समस्या बन गई है। सेंटर फॉर होलिस्टिक डेवलपमेंट (सीएचडी) में, हम इस क्षेत्र के बेघर लोगों के अधिकारों और उनकी भलाई के लिए काम कर रहे हैं। हालांकि जलवायु परिवर्तन और इसके गरीब और हाशिए पर रहने वाले लोगों पर प्रभाव को लेकर बात हो रही है, लेकिन हमने देखा है कि शहरी बेघर लोगों को इस चर्चा में अक्सर शामिल नहीं किया जाता है।

बेघर लोगों के प्रति नकारात्मक धारणाएं

समाज में बेघर होना किसी कलंक की तरह देखा जाता है और यह ज्यादा कठोर तब लगता है जब मौसम की मार भी पड़ रही हो। इन लोगों को अक्सर नकारात्मक धारणाओं का सामना करना पड़ता है जिससे उन्हें आश्रय और अन्य जरूरी सेवाएं पाने में मुश्किल होती है। इसके अलावा, उन्हें अक्सर बस्तियों, आश्रय और रैनबसेरों में अलग-अलग बसाया जाता है। ये अस्थायी आवास शहरी विकास परियोजनाओं के दौरान सबसे पहले हटाए जाते हैं।

कई सालों से हम देख रहे हैं कि शहरी ‘सौंदर्यीकरण’ के लिए कई विकास परियोजनाएं चल रही हैं। फ्लाईओवर के नीचे की जगहों को पार्क और चार्जिंग स्टेशनों में बदल दिया जाता है। इससे वहां रहने वाले लोग ठंड से और ज्यादा प्रभावित होते हैं। हाल ही में, दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) ने जंगपुरा में एक अनौपचारिक बस्ती में अस्थायी तंबू और अधपक्के घरों को गिरा दिया जिससे कई लोग बेघर हो गए।

शहरी इलाकों में बेघर लोगों की अनदेखी होना, उनके अधिकारों और जरूरतों को नजरअंदाज कर दिया जाना आम है। इससे वे जलवायु से जुड़ी नीतियों और समाधानों का हिस्सा नहीं बन पाते हैं। साल 2014 से अब तक, जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान का बेघर लोगों पर प्रभाव दिखाने वाले आंकड़े लगातार प्रकाशित हो रहे हैं। लेकिन इन आंकड़ों को अधिकारियों के पास पहुंचाने के बावजूद हमें उनकी ओर से कोई खास प्रतिक्रिया नहीं मिली है।

काफी नहीं है मौजूदा प्रावधान

दिल्ली एकमात्र भारतीय शहर है जहां सर्दी की लहरों के दौरान बेघरों की समस्याओं का समाधान करने के लिए एक विंटर एक्शन प्लान (डब्लूएपी) लागू किया गया है। इस योजना का उद्देश्य बेघरों के लिए पर्याप्त आश्रय, भोजन, कपड़े और स्वच्छता सुनिश्चित करना है। सर्दी के मौसम में सुविधा-युक्त आश्रय जीवन बचाने के लिए बेहद जरूरी होते हैं। लेकिन, ये देखा जा रहा है कि इस योजना का क्रियान्वयन काफी नहीं होता है।

आश्रयों में जरूरी सुविधाओं की कमी है। कंबल जो कई साल पहले खरीदे गए थे, वे अब पुराने, गंदे और ठंड से बचने के लिए असरदार नहीं हैं। साफ पानी और स्वच्छता की सुविधाएं बहुत कम हैं और आश्रयों की नियमित जांच भी नहीं होती है जबकि डब्लूएपी में इसका जिक्र किया गया है। सर्दियों के लिए पोर्टा कैबिन और अस्थायी इंतजाम किए जाते हैं, लेकिन ये ठंडी का सामना करने के लिए पर्याप्त नहीं होते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि ये अस्थायी इंतजाम लंबे समय के लिए स्थायी और ठीक से बनाए गए आश्रयों की जरूरत को पूरा नहीं कर पाते हैं।

डब्लूएपी के अनुसार, दिल्ली सरकार, दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डीयूएसआईबी) के 197 आश्रयों के साथ 250 नए अस्थायी आश्रय (जैसे पगोडा तंबू और पोर्टा कैबिन) स्थापित करेगा। बताया जा रहा है कि इनकी कुल क्षमता 7,092 लोगों की होगी। लेकिन इन अस्थायी आश्रयों के बावजूद, दिल्ली के लाखों बेघरों को आश्रय देने के लिए संख्या और क्षमता बहुत कम है। इसके अलावा जो आधिकारिक आंकड़े दिए जाते हैं, वे असलियत को सही तरीके से नहीं दर्शाते हैं।

स्थायी आश्रय भी अक्सर क्षमता और गुणवत्ता के मानकों को पूरा नहीं करते हैं। उदाहरण के तौर पर, चांदनी चौक के फतेहपुरी में एक आश्रय का क्षेत्रफल 8,126 वर्ग फीट है जबकि इसे 10,000 वर्ग फीट होना चाहिए था। इस आश्रय में 450 लोगों को रहने के लिए जगह दी जानी चाहिए थी लेकिन यह केवल 130 लोगों को आराम से रख सकता है। इसके बावजूद, वहां 600 से ज्यादा लोग ठुसे-ठुसे रहते हैं, गंदी और ज्यादा भीड़-भाड़ वाली परिस्थितियों में सोते हैं।

महिलाओं के लिए बनाए गए आश्रयों में भी ऐसी ही समस्याएं हैं। एक ऐसे आश्रय में जो हमने देखा, वहां कहा गया था कि 41 महिलाओं के रहने की जगह है, लेकिन वहां ज्यादा से ज्यादा 20 महिलाओं के सोने की व्यवस्था थी। असल में, वहां केवल छह महिलाएं ही आराम से सो सकती थीं। यह साफ दिखाता है कि आश्रयों के ढांचे और उनकी देखभाल में बड़ी कमी है।

इसके अलावा, कुछ खास घटनाओं के दौरान आश्रयों का इस्तेमाल बदल दिया जाता है। जैसे चुनावों के समय इन आश्रयों को मतदान केंद्र बना दिया जाता है। इससे जो बेघर लोग वहां रहते हैं, उन्हें बाहर जाना पड़ता है। हाल ही में, हमने दिल्ली के मुख्य चुनाव अधिकारी को एक पत्र भेजा, जिसमें हमने कहा कि शेल्टर एनएस कोड 176 — जो विकलांग बेघर लोगों के लिए खास रखा गया है — को मतदान केंद्र में न बदला जाए। यह न केवल विकलांग अधिकार कानून 2016 के खिलाफ है, बल्कि यह एक मानवाधिकार का उल्लंघन भी है क्योंकि विकलांग लोग शारीरिक और मानसिक हालात की वजह से ठंड से ज्यादा प्रभावित होते हैं।

शीत लहर_शहरी बेघर
बेघर लोगों को अनदेखा करना अक्सर उनके अधिकारों और आवश्यकताओं को हाशिए पर डाल देता है। | चित्र साभार: रमेश ललवानी/सीसी बीवाई

आसान नहीं है सामाजिक कल्याण नीतियों तक पहुंच

भारत की दीनदयाल अंत्योदय योजना-नेशनल अर्बन लाइवलीहुड्स मिशन की शेल्टर फॉर अर्बन होमलेस योजना बेघर लोगों के लिए आश्रय की व्यवस्था करती है। यह योजना बेघर लोगों को सरकारी योजनाओं से जोड़ने पर जोर देती है, जैसे पीडीएस कार्ड, बीपीएल कार्ड, पेंशन, बच्चों को सरकारी स्कूलों में दाखिला और बैंकों के माध्यम से वित्तीय सहायता।

बेघर लोगों के लिए आश्रयों और योजनाओं तक पहुंचने में एक बड़ी रुकावट पहचान पत्रों की आवश्यकता है, जैसे आधार कार्ड। कई बेघर लोग अपने अस्थिर जीवनशैली, पहचान पत्रों के खो जाने या कभी ना बनवाने के कारण ये दस्तावेज नहीं रखते हैं। साल 2025 में हमने कई ऐसे मामले देखे हैं, जब बेघर लोगों को आधार कार्ड न होने के कारण आश्रय में प्रवेश नहीं मिला। इस वजह से उन्हें मदद मिलने में तो परेशानी आती ही है, साथ ही वे समाज से और कट जाते हैं।

गौर करने वाली बात है कि दिल्ली-एनसीआर में बेघर लोगों की सही संख्या का कोई सही डेटा नहीं है। डेटा की कमी के कारण, अधिकारियों के पास आश्रय और अन्य कल्याण योजनाओं के लिए सही संसाधन आवंटित करने का कोई तरीका नहीं है।

जागरूक नागरिक होने के नाते क्या करें?

ये सभी प्रणालीगत विफलताएं हैं जिनमें नीतियों का सही तरीके से लागू न होना और भेदभावपूर्ण प्रथाएं अहम हैं। इससे साफ है कि बेघर लोगों के लिए सम्मानपूर्ण जीवन जीने के लिए एक मजबूत और स्थायी समाधान की जरूरत है। ताकि वे कठिन मौसम जैसे गर्मी, बारिश और ठंड का सामना गरिमा के साथ कर सकें।

1. सार्वजनिक धारणाओं और जागरूकता में बदलाव

बेघर लोगों के प्रति सार्वजनिक धारणा में एक बुनियादी बदलाव की जरूरत है। इससे न केवल बेघर लोगों के प्रति कलंक जैसी भावना को खत्म किया जा सके बल्कि शहरी आबादी के भीतर जरूरतमंदों के प्रति सहानुभूति भी पैदा की जा सके। साथ ही यह भी जरूरी है कि हम इस आबादी को कठोर मौसम में दी जा रही सुविधाओं का गंभीरता से मूल्यांकन करें।

सामाजिक संगठन, स्वयंसेवक और चिंतित नागरिक इन खामियों को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्हें स्थानीय आश्रयों की निगरानी करनी चाहिए, उनकी स्थिति का मूल्यांकन करना चाहिए और जागरूकता बढ़ानी चाहिए। सीएचडी और आश्रय अधिकार अभियान जैसे अभियानों ने प्रणालीगत समस्याओं को सुलझाने के लिए काम किया है। इन संगठनों ने सर्वेक्षण करके और संसाधन जुटाकर आश्रयों की खराब स्थितियों को सामने लाया है और जहां सरकार मदद नहीं कर पाई, वहां इन संगठनों ने लोगों की मदद की है।

इसके अलावा सामुदायिक सहभागिता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए, कोविड-19 महामारी के दौरान सामाजिक संगठनों के सामूहिक प्रयास ने दिखाया कि कैसे एकजुटता और सहयोग से संकट के दौरान कमजोर समुदायों पर नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सकता है। उनके प्रयासों से पता चलता है कि जमीनी स्तर पर की गई पहलें प्रणालीगत बदलाव लाने में मदद करती हैं, और इन्हें बेघर लोगों से जुड़ी समस्याओं पर भी लागू किया जाना चाहिए।

2. जवाबदेही और निगरानी को मजबूत करना

बेघर लोगों को सुरक्षा और जीवित रहने के लिए जरूरी संसाधन मुहैया करवाना राज्य का कर्तव्य है, इसलिए नए आश्रय गृह जैसी किसी नई भौतिक संरचना बनाने की जरूरत नहीं है। इसकी बजाय, हमें यह पुख्ता करना चाहिए कि सरकारी तंत्र, मौजूदा कानूनों और योजनाओं के तहत अधिकारी अपनी जिम्मेदारी निभाएं। ऐसे में डब्लूएपी एक अच्छा उदाहरण है जो एक सरकारी स्वीकृत योजना है और जिसके लिए धन आवंटित किया गया है। एक नागरिक समाज संगठन (सीएसओ) के रूप में हमारी भूमिका यह सुनिश्चित करना है कि इस योजना को प्रभावी रूप से लागू किया जाए।

बेघर लोगों की समस्या का प्रभावी समाधान करने के लिए सभी विभागों के बीच समन्वय भी जरूरी है। डब्लूएपी के तहत पानी की आपूर्ति, स्वच्छता, खाद्य वितरण और स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी विभिन्न सरकारी एजेंसियों के प्रयासों की जरूरत होती है। हालांकि, कई बार डीयूएसआईबी और एनयूएलएम जैसे विभागों और एजेंसियों के बीच समन्वय की कमी के कारण सेवा वितरण में दिक्कतें आती हैं। इसके अलावा, जवाबदेही और प्रभावी निगरानी की कमी के कारण सहयोग मिलने के बाद भी बात नहीं बनती है।

इसलिए, तीसरे पक्ष का किया हुआ ऑडिट, नियमित निरीक्षण और सामाजिक निगरानी पारदर्शिता सुनिश्चित करने और बुनियादी मानकों का पालन करने के लिए अहम हैं। नागरिक समाज संगठनों या स्वयंसेवी समूहों द्वारा किए गए सर्वेक्षण सुविधाओं की कमी या आश्रय की कमी जैसे अंतर की पहचान कर सकते हैं और अधिकारियों को कार्रवाई करने के लिए सचेत कर सकते हैं।

3. कार्यान्वयन में सुधार की जरूरत

हमारे अनुभव में, याचिकाओं और अदालत के हस्तक्षेप से आश्रय की स्थितियों में सुधार के लिए सकारात्मक निर्देश मिले हैं, लेकिन इन निर्देशों का पालन करना अभी भी एक चुनौती है। इस सुधार को सुनिश्चित करने और नीति और वास्तविकता के बीच के अंतर को खत्म करने के लिए लगातार बात करना और जन दबाव जरूरी है।

इसके अलावा, मीडिया, सोशल मीडिया और सार्वजनिक मंचों से लगातार आवाज उठाना जरूरी है ताकि हाशिए पर रहने वाले समुदायों की आवाज को मजबूती मिले और प्रणालीगत विफलताओं को उजागर किया जा सके। ऐसे प्रयासों का उद्देश्य आश्रय प्रबंधन को अस्थायी समाधान से बदलकर एक दीर्घकालिक, स्थायी समाधान बनाना होना चाहिए, ताकि बेघर लोगों के लिए सम्मान और बुनियादी जीवन स्थितियां सुनिश्चित की जा सकें।

कड़कड़ाती सर्दी में शहरी बेघरों की स्थिति कमजोर नीतियों और सामाजिक प्राथमिकता तय ना किए जाने की विफलता को दिखाती है। दिल्ली-एनसीआर में, डब्लूएपी जैसी नीतियों के बावजूद, कार्यान्वयन में कमी के कारण हजारों लोग बेहतर आश्रय और संसाधनों से महरूम हैं। इससे उनका संघर्ष और भी मुश्किल हो जाता है। यह जरूरी है कि सरकार अपनी प्रतिक्रिया को मजबूत करे, लेकिन बदलाव सभी की जिम्मेदारी है। नागरिक समाज, समाजसेवी संस्थाएं और व्यक्ति को अधिकारियों से सवाल करना, मदद करना, जागरूकता बढ़ाना और बेघरों के लिए आवाज उठती रहनी चाहिए।

इस लेख को अंगेज़ी में पढ़ें

अधिक जानें

  • पढ़ें बेघर आश्रयों के मूल्यांकन पर यह रिपोर्ट।
  • पढ़िए कि किस प्रकार तोड़फोड़ के कारण लोग बेघर हो गए हैं।
  • जानें, देश में शीत लहरों की संख्या क्यों बढ़ रही है?

लेखक के बारे में
सुनील कुमार अलेडिया-Image
सुनील कुमार अलेडिया

सुनील कुमार अलेडिया सेंटर फॉर होलिस्टिक डेवलपमेंट (सीएचडी) के कार्यकारी निदेशक और नेशनल फोरम फॉर होमलेस हाउसिंग राइट्स (एनएफएचएचआर) के राष्ट्रीय संयोजक हैं। वे बेघर लोगों को बुनियादी सेवाएं, आवास अधिकार और सामाजिक न्याय दिलाने के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने शहरी गरीबी, बेघर लोगों के अधिकारों और उनकी गरिमा के लिए लंबे समय से आवाज उठाई है। साथ ही, वे नीति-निर्माण पर प्रभाव डालने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर जागरूकता और वकालत अभियानों का नेतृत्व कर रहे हैं।

टिप्पणी

गोपनीयता बनाए रखने के लिए आपके ईमेल का पता सार्वजनिक नहीं किया जाएगा। आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *