January 23, 2025

समाजसेवी संस्थाओं को सरकार के साथ जुड़कर काम क्यों करना चाहिए?

सरकार के साथ जुड़कर काम करने की चाह रखने वाली, समाजसेवी संस्थाओं के लिए पहले सरकार की विशेषता को भी अच्छे से समझना जरूरी है।
5 मिनट लंबा लेख

अधिकांश सामाजिक कार्यकर्ता, अपने आसपास की व्यवस्थाओं में मौजूद समस्याओं को हल करने का प्रयास करते हुए विकास सेक्टर में काम करना शुरू करते हैं। ऐसे काम की शुरुआत आमतौर पर एक पायलट प्रोजेक्ट से होती है जिससे सीखते हुए प्रोग्राम को आगे बढ़ाने की कोशिश की जाती है। यह सेक्टर कोई भी हो सकता है मसलन कृषि, स्वास्थ्य, आजीविका, पर्यावरण या फिर शिक्षा आदि।

चूंकि भारत में जन-समुदाय तक मूलभूत सेवाएं सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी मुख्यरूप से सरकार की है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि ऐसी संस्थाएं, सरकार और समुदाय के बीच न केवल पुल की तरह काम करती हैं बल्कि उन तक सेवाओं की पहुंच बनाने के लिए भी पहल करने का काम करती हैं।

एक बार संस्थाएं जब सफलतापूर्वक अपना काम सुचारु रूप से शुरू कर देती हैं तो उसके बाद वे किसी न किसी तरह से सरकार के साथ जुड़कर काम कर सकती हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच बना सकें।

अब सवाल उठता है कि संस्थाओं को सरकार के साथ जुड़कर काम करने की क्या जरूरत है? 

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इस लेख में प्राथमिक शिक्षा का उदाहरण लेते हुए उन सब पहलुओं पर बात की गई है जिनसे पता चल सकेगा कि कैसे, किसी संस्था के लिए सरकार के साथ जुड़कर काम करना अधिक लाभदायक हो सकता है।

1. स्केल एवं पहुंच: शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के अनुसार प्रत्येक बच्चे को अपने घर से एक किलोमीटर के भीतर एक प्राथमिक विद्यालय और तीन किमी के भीतर माध्यमिक विद्यालय की पहुंच होनी चाहिए। इसलिए, सरकार ने देश भर में स्कूल बनाए हैं। यू डायस+ 2021-22 के अनुसार, देश में लगभग 14.89 लाख स्कूल हैं जिनमें से 10.2 लाख स्कूल पूरी तरह से सरकार द्वारा संचालित हैं। इसके अलावा, अन्य 82.5 हजार स्कूल सरकारी सहायता प्राप्त हैं। प्राथमिक विद्यालयों में नामांकित कुल 26.52 करोड़ छात्रों में से लगभग दो तिहाई से ज्यादा बच्चे सरकार संचालित या सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में पढ़ते हैं।

2. निष्पक्ष एवं समान पहुंच: निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार के तहत, सरकारी स्कूल सबके लिए खुले हैं। फिर चाहे वे आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के बच्चे हों (जो शिक्षा का खर्च वहन नहीं कर सकते) या फिर सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग जैसे कि एससी, एसटी, आदिवासी या फिर शारीरिक रूप से अक्षम और अल्पसंख्यक समुदाय से आने वाले बच्चे, सरकारी स्कूल में कोई भी आकर पढ़ सकता है। इसलिए, समानता के नजरिये से देखा जाए तो सरकार यह सुनिश्चित करती है कि उनके स्कूलों के जरिये ज्यादा से ज्यादा ऐसे बच्चों की आबादी पर प्रभाव पड़े जिनको शिक्षा पाने के लिए (सरकारी) सहयोग की सबसे अधिक जरूरत होती है।

3. गुणवत्ता: शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 लागू होने से सरकारी स्कूल लगभग हर जगह खुल गए हैं लेकिन इन स्कूलों में शिक्षा का स्तर आदर्श रूप में काफी कम है। असर 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, 14-18 साल के बच्चों में, लगभग 25 प्रतिशत बच्चे अपनी मातृभाषा में कक्षा-2 की किताब ठीक से नहीं पढ़ सकते हैं। केवल 57.3 प्रतिशत बच्चे अंग्रेजी के वाक्य पूरी तरह पढ़ सकते हैं, और उनमें से सिर्फ 75 प्रतिशत बच्चे ही उनको समझ सकते हैं।ऐसे में अगर हम (या हमारी संस्था) कुछ ऐसे तरीके ढूंढ पाए जिससे बच्चों के शैक्षणिक स्तर में सुधार हो सके तो उन सुझावों को सरकार के साथ साझा करना भी (एक तरह से) हमारी नैतिक जिम्मेदारी बनती है।

4. प्रभावशीलता: वित्तीय वर्ष 2024-25 में स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग का बजट 73,498 करोड़ रुपए था। इसमें स्कूलों का निर्माण, प्रबंधन और संचालन जिसमें किताबें, यूनिफॉर्म, भोजन, परिवहन आदि पर होने वाला खर्च शामिल है। इसका मतलब है कि सरकार प्रारंभिक शिक्षा पर काफी संसाधन खर्च कर रही है। जब हम सरकार के साथ शिक्षा को सुधारने का काम करते हैं तो हम सरकार द्वारा खर्च किये गये हर पैसे के प्रभावशीलता को बढ़ा सकते हैं।

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सरकार के अंदर ऐसे कई प्रावधान शामिल होते हैं जहां संस्थाएं विभिन्न विभागों में सदस्य के रूप में जुड़कर नीति एवं योजना को बनाने और उसको लागू करने में अपनी भूमिका निभा सकती हैं। | चित्र साभार: विकिमीडिया कॉमन्स / सीसी बीवाई

आप और आपकी संस्था सरकार के साथ अलग-अलग तरीकों से जुड़ सकती है

  • यदि आप सीमित संसाधनों वाली एक छोटी संस्था हैं तो आप अपना मॉडल सरकार के साथ साझा कर सकते हैं और सरकार को अपने संसाधनों का उपयोग करके उनके लिए उपयुक्त मॉडल बनाने में सहयोग दे सकते हैं। उदाहरण के लिए शिक्षार्थ संस्था जो छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्रों में बच्चों की शिक्षा पर काम करती है तथा नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शिक्षा के लिए न केवल नीतिगत सिफारिशें करती है बल्कि स्थानीय भाषाओं में पाठ्यक्रम तैयार करने में भी मदद करती है।
  • अगर आपकी संस्था में क्षमता और रुचि है तो आप सरकार के साथ उनके टेक्निकल सपोर्ट यूनिट की भूमिका निभाकर अपनी सीख और मॉडल को सरकार में जोड़ने के लिए, उसके अंदर एक छोटे समूह का हाथ थाम सकते हैं। आप छोटे-छोटे चरणों में अपनी सोच के जरिए, अपने मॉडल और सरकारी सिस्टम को साथ लाकर, इस बड़े स्केल के मॉडल को बनाने में मदद कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, इंडस एक्शन संस्था जो भारत में शिक्षा का अधिकार अधिनियम 12 (1) (सी) के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए तकनीक, डेटा और नीति को लेकर कई राज्य सरकारों के साथ काम कर रही है।
  • एक तरीका यह भी है जहां संस्थाएं एक पूरे प्रोजेक्ट मैनेजमेंट यूनिट (पीएमयू) की स्थापना करके सरकार के सहयोग से आइडिया को डिजाइन करने के साथ-साथ उसको क्रियान्वित करने के लिए ऊपर से लेकर जमीनी स्तर तक काम करती है। उदाहरण के तौर पर शिक्षा की गुणवत्ता को सुनिश्चित करने के लिए प्रथम संस्था ने अपना मॉडल इस तरह से तैयार किया है जिससे वह सरकार के साथ मिलकर हर स्तर पर काम करती है।
  • सरकार के अंदर ऐसे कई प्रावधान शामिल होते हैं जहां संस्थाएं विभिन्न विभागों में सदस्य के रूप में जुड़कर नीति एवं योजना को बनाने और उसको लागू करने में अपनी भूमिका निभा सकती हैं। मसलन, सलाहकार समितियां, वित्तीय एवं बजटीय समितियां, कार्यकारी समितियां, मॉनीटरिंग और मूल्यांकन समितियां, विशेषज्ञ समूह आदि के जरिये संस्थाएं अलग-अलग विभागों की समितियों में शामिल होकर नीति एवं योजना में अपनी भागीदारी निभा सकती हैं। 

कुल मिलाकर, शिक्षा के इस उदाहरण से यह समझा जा सकता है कि सरकार के पास प्रत्येक बच्चे तक शिक्षा पहुंचाने की एक बड़ी व्यवस्था बनी हुई है जहां संस्थाएं अपनी क्षमता और रुचि के अनुसार जुड़कर इसको और बेहतर कर सकती हैं। ये उदाहरण उन संस्थाओं के लिए भी हैं जो किसी अन्य सेक्टरों में काम कर रही हैं।

इस लेख से न केवल संस्थाओं को सरकार की विशेषता के बारे में समझने का मौका मिलता है बल्कि इससे उन्हें अपने कार्यक्रमों अथवा गतिविधियों को डिजाइन करते समय सरकार के साथ जुड़ने संबंधी संभावनाओं को पहचानने में भी मदद मिल सकती है।

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  • जानें कि समाजसेवी संस्थाओं के जमीनी कार्यकर्ताओं की मुख्य चुनौतियां क्या हैं?
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लेखक के बारे में
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मयंक लोधा

मयंक लोधा एक अनुभवी सोशल इम्पैक्ट पेशेवर हैं जिन्हें व्यवसायिक, सरकारी और गैर-लाभकारी क्षेत्रों में काम करने का अनुभव है। वर्तमान में, वे फिलैंथ्रॉपी, सामाजिक उद्यमिता और शासन के साझे मुद्दों पर काम करते हैं। इसका उद्देश्य सरकार, बाजार और समाज को एक साथ लाना है ताकि सरकारी तंत्र की मदद से नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो सके। इससे पहले, उन्होंने एक राज्य सरकार के हिस्से के तौर पर, सरकार के अंदर और बाहर, विभिन्न हितधारकों के बीच संस्थागत सहयोग से संबंधित भी काम किया है।

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