July 18, 2025

जब तक सूरज-चांद रहेगा, किसका-किसका नाम रहेगा?​​

बड़ी घोषणाओं की जमीनी हकीकत में अक्सर विरोधाभास नजर आता है।
2 मिनट लंबा लेख

​​बात उन दिनों की है, जब सीधापुर गांव की टेढ़ी सड़कों पर रहने वाली आवाम को एक बार फिर लोकतंत्र ने याद किया था। जनकराम काका को बड़ी उम्मीद थी कि इस बार भी कोई नेता उन्हें गर्म कंबल, ठंडा शरबत और झूठा वादा दे जाएगा। पर मामला कुछ और निकला। जिला कार्यालय से फरमान आया था — ​​“हर मतदाता अपनी पहचान साबित करे, वरना नाम काट दिया जाएगा!” ​​काका सोच में पड़ गए। पिछले चौमासे में जब उनकी छत गिरी थी, तो कागजों वाली पोटली को साथ ले डूबी थी। फौज की सूबेदारी से रिटायर्ड खुर्रम इलाही की तकलीफ इससे जुदा थी। अपनी जमीन के लिए उन्होंने जो कागज तहसील दफ्तर में जमा करवाये थे, उस पर पंचायत भवन के सरकारी चूहे कारवाई कर चुके थे। अब उन्हें एक नया कागज बनवाने के लिए दस पुराने कागजों की दरकार थी, जिसके लिए उन्हें बीस फोटोकॉपी करवाने हर मंगलवार हाट में जाना पड़ता था।

​​पंचायत भवन के बाहर लाइनें लगने लगी थी। किसी के हाथ में प्लास्टिक की थैली में मुड़े-तुड़े बंडल थे, तो किसी ने पेटीकोट की चोर जेब में कागज ठूंस रखे थे। जब गीता बुआ का नंबर आया, तो राशन कार्ड में उनका नाम ‘गीता देवी’, आधार में ‘गिता’, वोटर लिस्ट में ‘गीता कुमारी’ और बैंक पासबुक में ‘श्रीमती रामसिंह’ निकला। बाबू साहब ने पूछा, “पहचान किससे करें?” बुआ भुनभुनाई, “अंगूठा लगा दें?” रीना, जो प्राथमिक विद्यालय में सहायक थी और शाम को एक मोबाइल की दुकान में ‘डिजिटल सेवा’ काउंटर पर बैठती थी, आजकल गांव-गांव घूमकर फॉर्म भरने में मदद कर रही थी। वो एक-एक नाम मिलाती जाती, पर हर दस्तावेज में कुछ ना कुछ गड़बड़ निकलती। मसलन ‘मुन्नी’ का फॉर्म शुरू होता ‘मुनिया’ से और ‘मोनालिसा’ पर जाकर रुकता।

पुरुषों का एक समूह ऑफिस में बातचीत कर रहा है_पहचान पत्र
चित्र साभार: सोनी सब

​​विमला बाई रोज ‘पति का मृत्यु प्रमाणपत्र’ लेकर इस उम्मीद से लाइन में लग जाती कि शायद उनकी विधवा पेंशन का चार साल पुराना आवेदन मंजूर हो जाए। रीना ने उन्हें समझाया, “अम्मा, सरकार कह रही है कि सब कुछ ऑनलाइन है।” जनकराम ने उसे ऐसी नजर से देखा मानो कह रहे हों कि मोबाइल के दो ही काम हैं: एक, टॉर्च जलाना और दूसरा, नेटवर्क के डंडे ढूंढना। रामप्यारी अम्मा, जिनकी उम्र सरकारी रिकॉर्ड में कभी 55, कभी 62 और कभी ‘नॉट लोडिंग’ बताई जाती है, बोली, “हमने नौ बार वोट दिया है। अब कह रहे हैं कि सूची में हमारा नाम ही नहीं है!”

​​आंगनवाड़ी की भोजन माता ललिता देवी सारे कागज तैयार कर के आयी थी। अर्दली ने पूछा, “इनमें पति का नाम नहीं है?” छूटते ही जवाब आया, “छोड़ चुका। वापस बुला लूं?” उनकी आंखों में नाराजगी कम, थकान ज्यादा थी। प्रशासन पहचान के बदले हक देने की बात कर रहा था और जनता अपने वजूद का सबूत ढूंढ रही थी। शाम होते-होते सब अपने ठौर-ठिकानों की ओर बढ़ने लगे थे।​ 

फेसबुक बैनर_आईडीआर हिन्दी

​​अगली सुबह की बांग, प्रपंचपुर निर्वाचन क्षेत्र के नेताजी के भाषण ने दी। उन्होंने गले की नसों को तनाव देते हुए बिगुल बजाया, ​​“पहचान जरूरी है — वोटर की भी और वोट की भी!” ​​ये सुनकर आधी से ज्यादा भीड़ को वो लिफाफे याद आ गए, जो पिछले चुनाव की एक अंधेरी शाम पूरे गांव में बांटे गए थे। उस दिन न किसी से राशन कार्ड मंगवाया गया था और न ही जाति प्रमाण पत्र। न कोई सूची थी और न कोई लाइन।

​​उन्होंने घोषणा की, “हर वोटर को पहले प्रमाणित करना होगा कि वो है भी कि नहीं!” गीता बुआ, जिनके नाम की विविधता किसी सरकारी स्कीम से कम नहीं थी, आखिरकार बिफरकर बोली, “तो अब तक हम भूत थे क्या? नेताजी को तब हम फर्जी नहीं लगे जब पिछली बार बिना लाइन के साड़ियां बंटवाई थी?” इस पर सूबेदार ने उन्हें याद दिलाया कि वो पहचान की नहीं, एहसान की साड़ी थी। ​ 

​​भाषण अनवरत जारी था कि तभी सीधापुर की बिजली कट गयी। चंद सोलर लाइटों के झुटपुट उजाले में भीड़ छंटने लगी थी। पंचायत भवन के सामने कागज के घोड़े दौड़ते नेताजी ने ऐलान किया — “पहचान करना जरूरी है!”
 
भीड़ में से ​​पलटकर ​​एक आवाज आयी, “आपकी भी!”

लेखक के बारे में
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कुमार उन्नयन

​​कुमार उन्नयन ​​आईडीआर​​ में सीनियर एडिटोरियल एसोसिएट के रूप में कार्यरत हैं। वे नियमित रूप से भाषा और समुदाय से जुड़े विषयों पर काम करते रहे हैं। इस दौरान उन्होंने मौखिक इतिहास शोध, फील्ड पत्रकारिता, लेखन और अनुवाद जैसे क्षेत्रों में सक्रिय भूमिका निभाई है। ​​आईडीआर​​ से पहले वह सेंटर फॉर कम्युनिटी नॉलेज, इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एशियन स्टडीज़, नेहरू मेमोरियल म्यूज़ियम एंड लाइब्रेरी, कथा और द कारवां जैसे संस्थानों से जुड़े रहे हैं। उन्होंने साहित्य में स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त की है और मौखिक इतिहास में प्रशिक्षित हैं।​

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सलमान फहीम

सलमान फहीम, आईडीआर के सभी डिजिटल कैंपेन व कंटेंट प्लानिंग तथा उसके प्रचार-प्रसार की जिम्मेदारी संभालते हैं। इससे पहले सलमान द लॉजीकल इंडियन हिंदी के को-फाउंडर रह चुके हैं और उन्होंने न्यूज18 के लिये सोशल मीडिया कोऑर्डिनेटर के तौर पर भी काम किया है। इसके साथ ही उन्होंने चेंज डॉट ऑर्ग में हिंदी ऑपरेशन्स को लीड करते हुए प्लेटफॉर्म की यूज़र संख्या को 10 हज़ार से बढ़ाकर 10 लाख तक पहुंचाया है।

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