June 14, 2023

क्यों शिक्षकों को उनके काम का पूरा श्रेय मिलना जरूरी है 

शिक्षकों के काम को न केवल कम आंका जाता है बल्कि अक्सर उनकी भावनात्मक और प्रशासनिक मेहनत को महत्व नहीं दिया जाता है, इस पर ध्यान देना उनके समग्र स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए जरूरी है।
9 मिनट लंबा लेख

2018 में, वर्की फाउंडेशन ने 35 देशों में ग्लोबल टीचर स्टेटस इंडेक्स सर्वेक्षण किया था। इस सर्वेक्षण का उद्देश्य यह पता लगाना था कि दुनियाभर के समाजों में शिक्षकों की स्थिति क्या है। इस सर्वे में शिक्षकों के काम के घंटों को लेकर लोगों की अवधारणाओं का अध्ययन किया गया। प्राप्त आंकड़ों की तुलना शिक्षकों द्वारा अपने काम में दिए गए वास्तविक समय से की गई जिसमें क्लासरूम के अलावा अन्य गतिविधियों में लगाया गया समय भी शामिल होता है। अध्ययन से यह बात सामने आई कि ज़्यादातर देशों में लोग शिक्षकों के वास्तविक काम के घंटों को कम करके आंकते हैं, भारत में शिक्षकों के काम के घंटों को प्रति सप्ताह लगभग दो घंटे कम करके आंका जाता है। इसके अलावा, भारत उन छह देशों में शामिल था जहां जनता की तुलना में शिक्षकों की अपनी स्थिति की धारणा के बीच सबसे बड़ा अंतर स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ा।

अपनी शाला में हमने यह समझने की कोशिश की कि मुंबई के स्कूलों में काम करने वाली हमारी टीम के लिए इस बात का क्या मतलब है। अपनी शाला का उद्देश्य स्कूलों में शिक्षकों एवं छात्रों के साथ साप्ताहिक सत्र आयोजित कर सामाजिक भावनात्मक शिक्षा (सोशल इमोशनल लर्निंग – एसईएल) के अनुरूप शिक्षा का निर्माण करना है। यह काम एक समावेशी, एसईएल-सम्मिलित पाठ्यक्रम को तैयार करके और छात्रों के जीवन के अनुभवों की जानकारी रखने और परवाह करने वाले शिक्षण अभ्यासों के माध्यम से किया जाता है।

हमारी टीम के साथ उनकी बातचीत के दौरान स्कूल के शिक्षकों ने यह महसूस किया कि उनकी नौकरी को क्लास में पढ़ाने या उनके निर्देशात्मक घंटों तक ही सीमित करके देखा जाता है। इसने हमें एक अनौपचारिक सर्वे के लिए प्रेरित किया ताकि हम यह जान सकें कि एक आम आदमी की नजर में शिक्षक की क्या भूमिका होती है। उत्तरदाताओं को ज्ञान को छात्रों तक पहुंचाने और उन्हें कुशल बनाने के साथ-साथ नैतिक मार्गदर्शन प्रदान करने में एक शिक्षक की भूमिका के बारे में पता था। हालांकि, शिक्षकों की प्रशासनिक या अन्य अनदेखी ज़िम्मेदारियों को लेकर उनमें जागरूकता की कमी थी। इन ज़िम्मेदारियों में किताबों या छात्रों के रिकॉर्ड की देखभाल करना, छात्रों के काम की जांच करना, अभिभावक-शिक्षक मीटिंग आयोजित करना और सीखने के लिए एक सुरक्षित वातावरण को बढ़ावा देना शामिल होता है। इससे पता चलता है कि ऐसी गतिविधियां जो सीधे तौर पर छात्रों के सीखने से संबंधित नहीं हैं, उन्हें मापना एक मुश्किल काम होता है। 

व्यवस्था के स्तरों जैसे कि स्कूलों, संगठनों पर भी शिक्षकों द्वारा किए जाने वाले ग़ैर-शिक्षण श्रम को नज़रअंदाज़ किया जाता है। यहां तक कि नीति निर्माता भी शिक्षकों के कार्य समय के लिए पर्याप्त योजनाएं बनाने में विफल रहे हैं। शिक्षकों की प्रेरणा पर एसटीआईआर एजुकेशन और माइक्रोसॉफ़्ट रिसर्च इंडिया द्वारा किए गए एक अध्ययन के रिपोर्ट के अनुसार सार्वजनिक स्कूलों के शिक्षकों के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों में से एक शिक्षण कार्य के साथ-साथ प्रशासनिक काम करना भी है। शिक्षकों के अनुसार प्रशासनिक कार्यों के कारण उन्हें पाठ्यक्रम की योजना बनाने और अपने छात्रों के साथ गहरे संबंध स्थापित करने का समय नहीं मिल पाता है। 

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एसटीआईआर एजुकेशन की एक अन्य रिपोर्ट बताती है कि स्कूल शिक्षकों के प्रशासनिक कार्यों पर जोर देते हैं और उन्हें विषय-संबंधी कौशल विकसित करने का अवसर देते हैं। लेकिन वे उनके लिए अनुकूल वातावरण निर्माण, उनका उत्साह बनाए रखने और छात्रों के लिए बेहतर सोचने की उनकी स्वायत्ता, विशेषज्ञता और उद्देश्य पर कुछ विशेष ज़ोर नहीं देते हैं। स्कूल के प्राध्यापकों और शिक्षकों के साथ हुई हमारी बातचीत ने इस बात की पुष्टि की है कि – ऐसा माना जाता है कि स्कूल के दौरान शिक्षकों को अपने प्रशासनिक कार्यों को अवश्य प्राथमिकता देनी चाहिए, वहीं पाठ्यक्रम की योजना और क्लासरूम प्रबंधन के लिए रणनीति बनाने जैसी ज़िम्मेदारियों को काम के घंटों के समाप्त होने के बाद पूरा किया जाना चाहिए। किसी भी स्तर पर नीतियां काफी हद तक डेटा द्वारा संचालित होती हैं लेकिन, हमारी जानकारी के अनुसार, ऐसे कुछ अध्ययन हैं जो शिक्षकों द्वारा किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के ग़ैर-शिक्षण श्रम की जानकारी देते हैं।

शिक्षकों द्वारा किए जाने वाले कामों को समझने और छात्रों के आगे सीखने के लिए अपना समय बिताने के विभिन्न तरीक़ों के बारे में अपनी समझ बनाने के लिए हमने अपनी शाला में शिक्षकों के साथ सेमी-स्ट्रक्चर्ड इंटरव्यू किया। हम नीचे आपको उस इंटरव्यू के कुछ मुख्य परिणामों के बारे में बता रहे हैं।

भावनात्मक श्रम

शिक्षकों और फैसिलिटेटर्स के साथ हमारी टीम की बातचीत से यह पता चला कि वे अपना बहुत अधिक समय उस काम में लगाते हैं जिसे समाजशास्त्री अर्ली रशेल हॉक्सचाइल्ड ने भावनात्मक श्रम का नाम दिया है। इसमें देखभाल-आधारित काम शामिल होता है जिनमें शिक्षकों को आवश्यक रूप से भाग लेना चाहिए लेकिन जो नौकरी से अपेक्षित शारीरिक और मानसिक श्रम से परे है। और इसलिए यह अक्सर ही अदृश्य होता है और लगभग हमेशा ही इसे कम करके आंका जाता है।
उदाहरण के लिए, एक फैसिलिटेटर ने विभिन्न प्रकार के परिवारों के बारे में एक कहानी सुनाने का अनुभव साझा किया, जिसके बाद उसने एक छात्र को कक्षा से बाहर जाते हुए देखा। कक्षा समाप्त होने के बाद उस छात्र से बात करने पर फैसिलिटेटर को पता चला कि वह छात्रा अपने परिवार के साथ नहीं रहती थी। उसने इस जानकारी का उपयोग समय-समय पर कक्षा समाप्त होने के बाद उस छात्रा से बातचीत करने के लिए किया। उन्होंने ग़ैर-पारंपरिक घरों में रहने वाले युवाओं के अनुभव को लेकर बेहतर समझ विकसित करने के उद्देश्य से अधिक जानकारी एकत्र करने के लिए सहयोगियों से भी सम्पर्क किया। इससे उन्हें कक्षा के दौरान छात्रों के भावनात्मक ज़रूरतों का प्रभावी ढंग से उत्तर देने और सीखने में उनका समर्थन करने में भी मदद मिली।

एक शिक्षक ज़मीन पर बैठकर दो छात्रों को पढ़ाता हुआ_ शिक्षक
शिक्षकों द्वारा किए जाने वाले गैर-शिक्षण श्रम की व्यवस्था के स्तर पर भी अनदेखी की जाती है। | चित्र साभार: दीपा श्रीकांतैया / सीसी बीवाय

एक विविध कक्षा के लिए पाठ योजना

समान शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए, शिक्षक उचित मात्रा में अपना समय पाठों की योजना बनाने, शिक्षण और सीखने की सहायक सामग्री बनाने और सीखने का दस्तावेजीकरण और मूल्यांकन करने में लगाते हैं। कक्षा 10 के फैसिलिटेटर ने बताया कि अपने एसईएल सत्रों में, उन्होंने एक ही कक्षा में कई उपकरणों (जैसे कला, कहानी सुनाना और गीत) का उपयोग किया और कक्षा को छात्रों की रुचियों के आधार पर वर्गों में विभाजित किया। इससे छात्रों को अधिक विकल्प मिलते हैं और उन्हें कक्षा में व्यस्त रहने में मदद मिलती है। यह सीखने और अभिव्यक्ति में उपयोग की जाने वाली विधा को बाधा बनने से भी रोकता है। लेकिन इन तरीकों को विकसित करने में समय लगता है। 

सीखने की प्रक्रिया को अधिक न्यायसंगत बनाने में एक अन्य महत्वपूर्ण कारक प्रगति को मापने के लिए हर छात्र को अलग तरह से देखना भी है। कभी-कभी इसमें छात्रों के कौशल और सीखने के संबंध में अलग-अलग शुरुआती बिंदुओं का लगातार आकलन करना और फिर प्रगति की सूक्ष्म समझ का निर्माण करना शामिल होता है।

खोज (अपनी शाला की एसईएल-एकीकृत स्कूल पहल) में कक्षा 2 की एक शिक्षिका बताती हैं कि वह अपने छात्रों की सीखने की विभिन्न आवश्यकताओं के बारे में जानती हैं, और नतीजे और प्रक्रिया दोनों से अपने दृष्टिकोण को अलग करती हैं। डिफ़रेंशिएशन बाई प्रोडक्ट का एक उदाहरण यह है कि यदि सीखने का उद्देश्य जोड़ की प्रक्रिया से जुड़ा है तो कुछ छात्र शब्द की समस्या के माध्यम से सीखते हैं तो कुछ छात्र शब्द समस्याओं के माध्यम से सीखते हैं। वहीं अन्य संख्यात्मक समस्याओं को हल करते हैं या दृश्यात्मक साधनों को उपयोग में लाते हैं। वहीं दूसरी ओर डिफेरेंशिएटिंग बाई प्रोसेस का अर्थ यह है कि कुछ छात्र वॉलंटीयर के साथ काम कर सकते हैं जबकि अन्य को शिक्षकों के साथ अलग से समय मिल सकता है।

परिवर्तन एवं निर्णयनिर्माण पर प्रतिक्रिया देना

कक्षा के हमेशा बदलते संदर्भ के अनुकूल होने के लिए, फैसिलिटेटर्स और शिक्षकों को बहुत सारे निर्णय लेने पड़ते हैं। ये परिवर्तन छात्रों के मूड, स्कूल के वातावरण या फिर छात्रों के स्वास्थ्य के कारण हो सकते हैं। निर्णय लेना एक शिक्षक के जीवन का अंतहीन हिस्सा है क्योंकि वह निर्देशात्मक और तार्किक दोनों ही प्रकार के निर्णयों की एक ऋंखला का निर्माण करता है। कक्षा में निर्णय क्षमता का अर्थ, उन कारकों को ध्यान में रखना है जो छात्रों की सीखने की प्राथमिकताओं, ताकत, सीमाओं और उनकी बदलती सांस्कृतिक और सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि की जरूरतों से जुड़े होते हैं। अन्य कारक जैसे मानसिकता या मूड या फ़िर दिन का समय या मौसम आदि भी अनुकूलन की आवश्यकता उत्पन्न करते हैं। (गर्म मौसम के कारण पैदा होने वाली चिड़चिड़ाहट बहुत ही आसानी से कक्षा की सबसे रोचक गतिविधि पर हावी हो सकती है।)

एक शिक्षक ने ऐसे समय का उदाहरण दिया जब एक छात्र असाधारण रूप से शांत था और अपनी कक्षा में होने वाली किसी भी गतिविधि में हिस्सा नहीं ले रहा था। अगली कक्षा शारीरिक शिक्षा की थी और जहां बाक़ी के छात्र नीचे मैदान में जाने के लिए क़तार में थे, वहीं इस छात्र ने शिक्षक से कहा कि उसे भूख लगी है क्योंकि उन्होंने सुबह का नाश्ता नहीं किया है। शिक्षक ने बाक़ी छात्रों को जाने देने का फ़ैसला किया और उस एक छात्र को रुकने की अनुमति दी ताकि शारीरिक शिक्षा के सत्र में जाने से पहले वह कुछ खा-पी सके।

छात्र को समझना

शिक्षकों द्वारा अपने छात्रों को जानने और समझने के लिए निरंतर सूचना संग्रह में लगे रहना पड़ता है और यह काम कुछ हद तक एक शोध परियोजना जैसा होता है। शिक्षक अपना समय ऐसे अन्य शिक्षकों से बातचीत करने में लगाते हैं जिन्होंने उनके छात्रों को पढ़ाया है, वे कक्षा समाप्त होने के बाद छात्रों से बात करते हैं और उन्हें लेकर बेहतर समझ विकसित करने के उद्देश्य से उनकी देखभाल करने वाले लोगों/अभिभावकों से संवाद करते हैं।

हमारे द्वारा आयोजित सेमी-स्ट्रक्चर्ड साक्षात्कारों के दौरान शिक्षाओं ने बताया कि वे लगातार छात्रों की देखभाल करने वाले लोगों से संवाद में थे ताकि उनके साथ संबंध स्थापित कर सकें। खोज एवं मुंबई के अन्य स्कूलों के संदर्भ में इसमें देखभाल करने वालों को बुलाना, अभिभावकों और माता-पिता के साथ लगातार सम्पर्क में रहना और छात्रों और उनके घर के वातावरण पर नजर बनाए रखने के लिए उनके घरों का दौरा करना शामिल है।

कहां पर बदलाव की जरूरत है?

शिक्षकों द्वारा अनुभव की जाने वाली थकान अक्सर बर्नआउट का कारण बन सकती है। 2008 के एक अध्ययन में भाग लेने वाले आधे से अधिक माध्यमिक विद्यालय के शिक्षकों ने कुछ हद तक बर्नआउट की बात को स्वीकार किया और इसी समूह के भीतर 11 फ़ीसद से अधिक ने बर्नआउट के उच्च स्तर की बात को स्वीकारा है। शोध से पता चलता है कि महामारी के दौरान दुनिया भर के शिक्षकों के सामने आने वाली चुनौतियों और संकट ने इसमें और इजाफा किया। कई मामलों में, इसके कारण शिक्षकों ने अपने इस पेशे को ही छोड़ दिया।

यहां हम उन कुछ तरीकों के बारे में बता रहे हैं जिन्हे स्कूल एवं संगठन अपने शिक्षकों के कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए लागू कर सकते हैं और इस प्रकार यह छात्रों के कल्याण एवं सीखने की प्रक्रिया को भी सुनिश्चित करेगा।

1. काम को पुनर्परिभाषित करना

स्कूल और संगठन कक्षा की तैयारी, पाठ योजना, आकलन ग्रेडिंग, और काम के रूप में लगने वाले घंटों का लेखा-जोखा रख सकते हैं। अपनी शाला के एसईएल कार्यक्रमों के सूत्रधार आधे घंटे पहले अपनी कक्षाओं में पहुंचते हैं ताकि वे खुद को स्थिर कर सकें और एक घंटे के सत्र की तैयारी कर सकें। यह समय कार्यक्रम के डिज़ाइन में शामिल होता है।

अपने बेहिसाब भावनात्मक श्रम को स्पष्ट करने में शिक्षकों की मदद करना एक ऐसे वातावरण के निर्माण की दिशा में प्रभावी शुरुआती बिंदु हो सकता है जो इस पेशे में होने वाले असाधारण तनाव के प्रबंधन के लिए अनुकूल साबित हो। अपनी शाला में होने वाले पाठ्यक्रम सभाओं (सूत्रधारों के लिए आयोजित होने वाले पेशेवर विकास सत्र) के हिस्से के रूप में प्रतिभागी अक्सर उन सम्भावित स्थानों के बारे में बताते हैं जहां उन्हें तनाव महसूस होता है और इसके बेहतर प्रबंधन के लिए आवश्यक रणनीतियों पर विचार कर सकते हैं।

2. प्रशासनात्मक परिवर्तनों को लागू करना

यह अब रहस्य नहीं रह गया है कि आराम और मानसिक शिथिलता से लोगों को तनाव से निपटने में मदद मिल सकती है। इसलिए स्कूलों और संगठनों की संरचना में शिक्षकों को विराम देने के लिए जगह बनाना प्रभावी साबित हो सकता है। अवकाश के लिए जगह बनाकर और काम की ऐसी संस्कृति को विकसित कर इसे किया जा सकता है जिसमें शिक्षकों को सक्रिय रूप से नियमित आराम करने की आज़ादी प्राप्त हो। काम के घंटों के भीतर प्रासंगिक प्रशासनिक कार्य के लिए सिस्टम स्थापित करना या इसके समान वितरण से भी मदद मिल सकती है। 

छात्र-शिक्षक अनुपात (पीटीआर) का कम होना एक ऐसा बदलाव है जिसे व्यवस्था के स्तर पर लागू करने की आवश्यकता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 में स्कूल स्तर पर 30:1 से कम पीटीआर और 25:1 से कम पीटीआर “…सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित छात्रों की बड़ी संख्या वाले क्षेत्रों” को संबोधित करता है। इस कदम को उठाने के पीछे की सोच यह है कि शिक्षकों द्वारा विद्यार्थियों पर व्यक्तिगत रूप से दिया जाने वाला ध्यान सीखने की प्रक्रिया के लिए महत्वपूर्ण है। यह इस बात को भी मानता है कि शिक्षकों के लिए आवश्यक काम की मात्रा सामाजिक-आर्थिक विविधता, सीखने के अंतर और न्यूरोडायवर्सिटी जैसे कारकों पर निर्भर करती है। इसे लागू करना शिक्षकों एवं छात्रों की बेहतरी एवं कल्याण के लिए महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से घनी आबादी वाले सार्वजनिक और निजी स्कूलों में जहां हाशिए के छात्र भी होते हैं।

3. समुदाय का निर्माण करना 

एक ऐसे समुदाय को बढ़ावा देना जहां शिक्षक चुनौतियों को साझा और संबोधित कर सकते हैं, और शिक्षकों की भलाई और सामुदायिक उपचार के लिए स्थान बनाना भी उपयोगी साबित हुआ है। अपनी शाला में, पर्यवेक्षी संरचनाओं के उत्तरदायित्व को बढ़ावा देने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसके अलावा, यह पुनर्स्थापनात्मक स्थानों के रूप में कार्य करने के लिए भी शिक्षकों को अभ्यास पर सोचने और कक्षा की मौजूदा सेटिंग्स में नियमित रूप से लगातार तनाव को नियंत्रित करने की अनुमति देता है। टीम के सदस्यों द्वारा आयोजित ऐसी बैठक या सभाएं जिनमें कला, संगीत और खेलकूद को शामिल किया जाता है या फिर विविध चिकित्सीय उपकरणों जैसे कि माइंडफुलनेस प्रैक्टिस भी उपचार और ग्राउंडिंग के लिए उपयोगी साबित हुई हैं। इनके अतिरिक्त, शिक्षकों के बीच दोस्ताना व्यवहार देखभाल, सोच-विचार और ठहर कर सोचने के लिए जगह बनाता है। एक उदाहरण मानसिक स्वास्थ्य सहायता या एक दूसरे की स्थिति की जांच के लिए उपयोग किए जाने वाले बडी सिस्टम्स हैं।

शिक्षकों की बेहतरी के लिए बहुत कुछ किया जा सकता है। लेकिन शिक्षक-छात्र अनुपात को कम करके या सजग रूप से उनकी प्रशासनिक जिम्मेदारियों में कमी लाने जैसे व्यवस्था से जुड़े परिवर्तन शिक्षकों को उनकी भूमिकाओं में सहयोग देने में एक बड़ी भूमिका निभाएंगे।

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  • भारत के सार्वजनिक स्कूलों में शिक्षकों की कमी के बारे में विस्तार से जानने के लिए इस लेख को पढ़ें
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  • इस लेख को पढ़ें और जानें कि निजी विदयालयों में शिक्षकों के काम छोड़ कर जाने का दर अधिक क्यों है।

लेखक के बारे में
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अमृता नायर

अमृता नायर अपनी शाला फाउंडेशन की डायरेक्टर (आर&डी और एडवोकेसी) तथा सह-संस्थापक हैं। वे प्रशिक्षण और नियुक्ति के माध्यम से टीम की सहायता करती हैं और संगठनात्मक स्तर पर नीतियों के निर्माण में भाग लेती हैं। अमिता को बाल-साहित्य पढ़ना पसंद है और वे जो पढ़ती हैं उसे बच्चों और वयस्कों के लिए सामाजिक और भावनात्मक शिक्षा से जोड़ती हैं।

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श्रुति प्रसाद

श्रुति प्रसाद एक मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर हैं जो मानसिक स्वास्थ्य को सुलभ बनाने की दिशा में काम करती हैं। श्रुति ने मुंबई के पब्लिक स्कूलों में छात्रों, देखभाल करने वालों और शिक्षकों के लिए सोशल इमोशनल लर्निंग (एसईएल) फैसिलिटेटर के रूप में काम किया है। वे लड़कियों के लिए एक सामुदायिक सेवा-आधारित नेतृत्व कार्यक्रम की सूत्रधार भी रही हैं। अपने खाली समय में उन्हें बुनाई करना और शहर की सबसे अच्छी कॉफ़ी पीना पसंद है।

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