January 20, 2022

महामारी के दौरान शिक्षकों को किस चीज ने प्रेरित किया?

चूंकि स्कूल अब दोबारा से खुलने लगे हैं, नीतिनिर्माता सरकारी स्कूल के शिक्षकों के लिए एक सहायक और अधिक सक्षम वातावरण के निर्माण प्रक्रिया के तहत ये छ: कदम उठा सकते हैं।
5 मिनट लंबा लेख

ऐसी कौन सी चीज थी जिसने शिक्षकों को पिछले 18 महीनों तक प्रेरित किया? उन्होनें कैसे इस महामारी का सामना किया, वे स्कूल न जा पाने की स्थिति में थे और अचानक आई ऑनलाइन की जरूरतों और सीखने और सिखाने की इस मिश्रित तरीके की आवश्यकता से कैसे जूझे? इस अप्रत्यासित स्थिति से तालमेल बैठाने के लिए शिक्षकों ने किन रणनीतियों का उपयोग किया? और सबसे महत्वपूर्ण, ये सभी रणनीतियाँ और अभ्यास भविष्य में शिक्षकों की बेहतर मदद के संदर्भ में हमें क्या बताती हैं?

STiR एजुकेशन में हम लोग दिल्ली, तमिल नाडु और कर्नाटक राज्य के सरकारी स्कूलों के अधिकारियों और शिक्षकों के साथ काम करते हैं, और ये सभी सवाल हमारे दिमाग में थे क्योंकि हमने महामारी की प्रतिक्रिया के रूप में उनकी सहायता की थी। हमारे दृष्टिकोण में अधिकारियों और शिक्षकों का एक सहकर्मी नेटवर्क बनाना, शिक्षकों को कक्षा में प्रयुक्त होने वाली रणनीतियों को बनाने का एकाधिकार देना, सहकर्मियों से मिलने वाली प्रतिक्रिया देना और इस पर सोच को सक्षम बनाना आदि शामिल है। जब कोविड-19 के समीकरण से स्कूलों को हटा दिया गया था तब हमें इसे डिजिटल रूप में चलाने के लिए संघर्ष करना पड़ा था। बिना कक्षा वाले अभ्यास के साथ शिक्षक किस विषय पर सोचेंगे? और अधिकारी और उनके सहकर्मी किस चीज पर अपनी प्रतिक्रिया देंगे?

जहां एक तरफ यह एक कड़ा आदेश था वहीं शिक्षकों ने यह चुनौती स्वीकार की। वे सीखने और सिखाने की ऐसी रणनीतियों के साथ आए जिन्हें लेकर उन्हें लगता था की इससे उनकी गुणवत्ता में सुधार हुआ है और एक शिक्षक के रूप में वे समृद्ध हुए हैं। छात्रों को सीखने में सहायता देने के लिए नए तरीकों को खोजने वाले शिक्षकों और जिला एवं प्रखण्ड-स्तर के अधिकारियों की इच्छा और कोशिशों को देखकर हम आश्चर्यचकित थे।

अब जब वे स्कूल वापस लौट गए हैं, फिर भी शिक्षकों का कहना है कि वे इनमें से कुछ अभ्यासों को जारी रखना चाहते हैं। चूंकि स्कूल अब दोबारा से खुलने लगे हैं, नीतिनिर्माता सरकारी स्कूल के शिक्षकों के लिए एक सहायक और अधिक मज़बूत शिक्षक समुदाय के निर्माण के लिए ये छ: कदम उठा सकते हैं।

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1. शिक्षकों की स्वायत्ता को बढ़ाया जाए

बहुत लंबे समय तक भारत के शिक्षक अतिरिक्त भार वाले पाठ्यक्रम, पहले से तय किताबें, और सेवा में दी जाने वाले एक ही आकार में निहित सभी सोच का अनुसरण करने वाली शिक्षक प्रशिक्षण स्वरूपों द्वारा सीमित हैं। हालांकि ऐसा नहीं था कि इसमें चुनौतियाँ नहीं थी लेकिन फिर भी इस महामारी ने शिक्षकों को स्वायत्ता दी है जिससे कि वे विभिन्न तरीकों से अपने छात्रों तक पहुँच पाते हैं। शिक्षक कई सामग्री आधारित प्रारूपों के साथ सामने आए जिनमें बुकलेट, वर्कशीट, छोटे ऑडियो रिकॉर्डिंग शामिल थे और जिन्हें व्हाट्सएप के माध्यम से भेजा जा सकता था और इसके लिए पाठ्यपुस्तकों और आमने-सामने बैठकर पाने वाली शिक्षण की जरूरत नहीं थी। लॉकडाउन के ख़त्म होने के बाद शिक्षकों ने समुदायों का दौरा करना शुरू कर दिया और मिलने वाले बच्चों के बीच पढ़ाई की सामग्री को बांटा। जिन बच्चों के पास फोन और इंटरनेट की उपलब्धता थी वहाँ शिक्षकों ने ऑनलाइन कक्षाओं का आयोजन किया। छात्रों को अपनी भावनाओं को साझा करने वाली और उसके बारे में सोचने के लिए प्रोत्साहित करने वाली हमारी एक गतिविधि के दौरान हमने देखा कि शिक्षकों ने इसे छात्रों की जरूरत के संदर्भ में बदल दिया था। कुछ बच्चों ने चित्रकारी की, कुछ ने लिखा, कुछ ने ऑडियो रिकॉर्ड किया और कुछ बच्चों ने अपनी डायरियाँ टाइप कीं। जैसा कि एक शिक्षक ने हमें बताया, “चूंकि हमें किसी एक रणनीति का इस्तेमाल करने के लिए बाध्य नहीं किया गया था इसलिए स्थानीय जरूरतों के हिसाब से हम इसमें नयापन लेकर आए। यह काम चुनौतीपूर्ण था और बहुत अधिक समय की मांग वाला भी। लेकिन छात्रों की प्रतिक्रियाएँ सकारात्मक थीं और इससे हम लोग और अधिक बेहतर तरीके खोजने के लिए प्रेरित हुए।”

हालांकि शिक्षकों ने पढ़ाने के नए तरीके ढूंढ लिए हैं लेकिन वे अक्सर बिना किसी तैयारी के इसमें बदलाव कर देते हैं। स्कूलों के दोबारा खुलने के बाद, पाठ्यक्रम तैयार करने, समयसारिणी बनाने और पढ़ाने के तरीकों में शिक्षकों की बात को अधिक महत्व देने से शिक्षकों की प्रेरणा के स्तर में और उनके प्रदर्शन में सुधार होगा। इस महामारी ने हमें यह दिखाया है कि अधिक अनुभवी शिक्षक बच्चों तक पहुँचने के लिए ज्यादा कोशिश करते हैं। सरकारें सीखने और सिखाने की प्रक्रिया में शिक्षकों के हाथ में नियंत्रण देकर उनके अनुभवों और उनकी प्रतिबद्धता का लाभ उठा सकती हैं।

एक औरत की तस्वीर जिसमें वह अपने हाथ में मोबाइल फ़ोन पकड़े हुए है जिसपर एक वीडियो चल रहा है। हम उसकी साड़ी देख सकते हैं, उसके हाथ में चूड़ियाँ हैं और गले में परिचय पत्र लटक रहा है। जब हम डिजिटल लर्निंग से वापस स्कूल जाकर पढ़ने के पुराने तरीक़े पर लौटेंगे तब उस स्थिति में सरकारी स्कूलों और शिक्षकों के लिए अनुकूल वातावरण बनाने के लिए नीति निर्माता किस तरह के कदम उठा सकते हैं_शिक्षक
मिश्रित शिक्षा से शिक्षकों और छात्रों दोनों के लिए सिखाने और सीखने के तरीके में लचीलापन आ गया है, क्योंकि अब दोनों में कोई भी सिर्फ कक्षा तक सीमित नहीं है | चित्र साभार: STiR एजुकेशन

2. शिक्षकों को उनके अपने सीखने के लिए सुविधा देना

शिक्षकों को भौतिक कक्षाओं के लिए तैयार किए गए पाठों को बहुत ही तेजी से ऑनलाइन माध्यम के अनुसार बदलना पड़ गया था। इसे सफलता से करने के लिए एक अलग तरह के कौशल की जरूरत होती है और इसलिए शिक्षकों को अपने तकनीकी कौशल और वर्चुअल उपकरणों के बारे में ठीक से जानना होता है। हालांकि जहां एक तरफ यह अनिवार्य नहीं था, फिर भी हमारे नेटवर्क के कई शिक्षकों ने डिजिटल कौशल और वर्चुअल उपकरणों के बारे में सीखने को लेकर हमारी सोच पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी। उन्होनें अपनी तरफ से सक्रिय पहल करके अपने सहकर्मियों और छात्रों के साथ मिलकर सीखने के अभ्यास को सभी तक पहुंचाने के लिए आवश्यक रणनीति के अभ्यास के काम में मदद की पेशकेश की थी। चाहे वह ऑनलाइन मीटिंग के लिए लिंक से जुड़ना हो, ऑनलाइन क्लास लेना हो, वीडियो और ऑडियो की रिकॉर्डिंग करनी हो या फिर फॉर्म्स, शिक्षकों ने सीखने का जिम्मा हो उन्होंने सबकुछ अपने ऊपर ले लिया था। 

शिक्षक अपने विकास से संबंधी जरूरतों और कौशल में आई कमियों के बारे में अच्छे से समझते हैं। केंद्रीय रूप से नियोजित एक तरफा प्रशिक्षण स्वरूप के बदले राज्य और शिक्षा मंत्रालय शिक्षकों के लिए पाठ्यक्रमों का एक गुलदस्ता तैयार कर सकते हैं जिनमें से शिक्षक अपनी रुचि और जरूरत के अनुसार पाठ्यक्रम का चुनाव कर सके। हमारे नीतिनिर्माताओं को शिक्षकों से यह पूछने पर लाभ मिलेगा कि वे किस तरह का समर्थन चाहते हैं और साथ ही वे शिक्षकों को नई सामग्रियाँ देकर उन्हें चुनौती दे सकते हैं।

3. अभ्यास के समुदायों का निर्माण करना

अगर शिक्षकों के पास सहायक सहकर्मी और अधिकारिक नेटवर्क नहीं हैं तो उन्हें अपने स्वयं के सीखने और नवाचार करने के लिए दी जाने वाली स्वायत्ता पर्याप्त नहीं होगी। StiR के काम करने वाले मुख्य क्षेत्रों में एक काम स्कूलों और संस्थाओं में शिक्षकों का नेटवर्क स्थापित करना भी है ताकि शिक्षक अपने अभ्यासों के बारे में रणनीतियों पर बात कर सकें, अपने सहकर्मियों से उनकी प्रतिक्रियाएँ हासिल कर सकें और उन पर सोच सकें। वे एक बिना खतरे वाले वातावरण में अपने अनुभवों को साझा कर सकते हैं। यह सहायता व्यवस्था विशेष रूप से उस समय महत्वपूर्ण बन गई जब शिक्षक बच्चों तक पहुँचने के लिए संघर्ष कर रहे थे। कई शिक्षकों ने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया कि कैसे कोविड-19 का दर और उससे पैदा होने वाली अनिश्चितता ने उन्हें भावनात्मक रूप से चुनौतीपूर्ण स्थिति में ला दिया था। उन्होनें इससे उबरने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली रणनीतियों के बारे में भी बात की और एक दूसरे को सुझाव और समर्थन दिया।

अभ्यास के ये समुदाय प्रखण्ड और जिला स्तर के ऐसे अधिकारियों के लिए भी खुले थे जिन्होने विभिन्न जिलों में हो रही गतिविधियों के बारे में समझने के लिए अपने साथियों की तरफ रुख किया और सर्वश्रेष्ठ अभ्यास (बेस्ट प्रैक्टिस) के बारे में बातचीत की। स्कूल और जिला स्तर पर अभ्यास के ऐसे समुदायों के निर्माण में राज्य सक्रिय​ भूमिका निभा सकते हैं। स्कूल की रोज की समयसारिणी में इन अभ्यासों के लिए जगह बनाने से सहकर्मियों का सहयोग बढ़ेगा और अधिकारियों और शिक्षकों को अकादमिक, सामाजिक और भावनात्मक समर्थन मिलेगा।

4. मिश्रित शिक्षा के लिए कौशल और बुनियादी ढांचे को मजबूत करना

महामारी के दौरान शिक्षकों को इस बात का एहसास हुआ कि प्रति दिन पढ़ाने के अभ्यास में तकनीक विभिन्न रूपों में सहायक हो सकती है। उन्होनें पाया कि कक्षा के बाद अतिरिक्त सामग्री के रूप में छोटे-छोटे ऑडियो और वीडियो बनाकर छात्रों को भेजे जा सकते हैं। कुछ शिक्षकों ने अभिभावकों के लिए निजी वॉइस नोट भी रिकॉर्ड किए थे। इससे अभिभावकों को अपने बच्चों के साथ बैठकर उनका काम पूरा करवाने और उस वीडियो को शिक्षकों को वापस भेजने के लिए प्रेरणा मिली। 

पढ़ने और पढ़ाने के डिजिटल उपकरणों के सजग इस्तेमाल के लिए शिक्षकों को समय, प्रशिक्षण और उपकरणों की जरूरत है।

मिश्रित व्यवस्था में चूंकि शिक्षक और छात्र दोनों ही कक्षा तक सीमित नहीं रह जाते हैं इसलिए इससे शिक्षक और छात्र दोनों को ही सीखने की प्रक्रिया के दौरान एक तरह के लचीलेपन का एहसास होता है। उदाहरण के लिए, एक शिक्षक ने किसी विषय पर कई छोटे-छोटे वीडियो तैयार किए और इसे पूरे महीने तक बच्चों को भेजती रही। उसने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि “चूंकि मैं अब 45 मिनट वाली समयसारिणी से नहीं बंधी थी इसलिए मैंने इस विषय पर उपलब्ध विभिन्न सामग्रियों के साथ प्रयोग करने की छूट ली। लेकिन मैं इस काम को बेहतर तरीके से करने के लिए आधिकारिक प्रशिक्षण लेना चाहती हूँ।” तकनीक शिक्षकों पर से बहुत सारे प्रशासनिक बोझ को भी कम कर सकती है। “हम लोगों ने ज़्यादातर जांच बैठकों का आयोजन ऑनलाइन किया और इससे आवागमन में लगने वाला ढेर सारा समय बच गया। एक दूसरी शिक्षक ने अपनी बात जोड़ते हुए कहा। हमने पाया कि शिक्षक स्कूलों में इन मिश्रित शिक्षण प्रणाली का प्रयोग लगातार करना चाहते हैं। एक शिक्षक ने अपनी बात रखते हुए कहा, “अगर मैं अच्छे से योजना बनाऊँ और मेरे पास बेहतर संसाधन उपलब्ध हों तो तकनीक मेरे शिक्षण प्रणाली में मददगार हो सकती है। अब जब स्कूल दोबारा से खुल गए हैं हमें इस गति को नहीं खोना चाहिए।”

पढ़ने और पढ़ाने के डिजिटल उपकरणों के सजग इस्तेमाल के लिए शिक्षकों को समय, प्रशिक्षण और उपकरणों की जरूरत है। पर्याप्त तकनीकी मूलभूत संरचना और शिक्षक क्षमता निर्माण के साथ स्कूल व्हाट्सएप के माध्यम से अभिभावकों को गृहकार्य, डिज़ाइन प्रारूप और परीक्षाओं की याद दिला सकते हैं और इस तरह अभिभावक को उनके बच्चे की शिक्षा प्रक्रिया में शामिल कर सकते हैं। दुर्भाग्यवश, कई राज्यों के मध्यमिक और उच्च विद्यालयों में डेस्कटॉप और लैपटॉप हैं लेकिन तकनीक का सक्रिय प्रयोग शिक्षकों के रोज़मर्रा के काम का हिस्सा नहीं हो पाया है। कई मामलों में कंप्यूटर खराब पड़े हैं और प्रतिदिन इन्टरनेट तक पहुँचना एक चुनौती हो गया है। मिश्रित शिक्षा प्रणाली की सफलता के लिए सरकारों को प्रतिदिन की शिक्षण प्रणाली में क्रियान्वयन तकनीक को लाने और साथ ही मिश्रित शिक्षाशास्त्र के आसपास शिक्षक क्षमता निर्माण की आवश्यकता है।

5. विभेदित शिक्षण प्रणाली को सक्षम बनाने के लिए शिक्षकों की रिक्तियों को भरना

महामारी के दौरान शिक्षक लचीले हो गए और उन्होनें छात्रों की जरूरतों को पूरा करने के लिए अपने शिक्षण रणनीतियों में बदलाव कर दिया। उदाहरण के लिए, कई छात्र ऐसे थे जिनके पास फोन की उपलब्धता सिर्फ शाम के समय ही होती थी और हमनें कर्नाटक और तमिल नाडु में देखा कि शिक्षक कक्षाओं का आयोजन शाम में करते थे। कुछ बच्चों के पास पुराने फोन थे और इसलिए शिक्षक उनके लिए पाठ और गृहकार्य को रिकॉर्ड करते थे। वे एक-एक बच्चे को फोन करके उसके निजी विकास की जांच करते थे। पिछड़ रहे बच्चों को अलग से समय देकर पढ़ाया जाता था। “मैंने महसूस किया कि इस तरह हर बच्चे को अलग से समय देने से कमजोर बच्चे अच्छा करने लगते हैं और मैंने उनके लिए कुछ अच्छे पाठ्यक्रम तैयार करने की पूरी कोशिश की है। लेकिन एक बार जब स्कूल पूरी तरह से शुरू हो जाएगा तब मैं बच्चों को निजी तौर पर समय नहीं दे पाऊँगा। मेरी कक्षा में बच्चों की संख्या बहुत अधिक है और इसके अलावा अन्य प्रशासनिक काम भी करने होते हैं। अच्छा होता अगर मेरी कक्षा में कम बच्चे होते और साथ ही मेरे पास क्रियात्मक रणनीति के लिए थोड़ा अधिक समय होता,” एक शिक्षक ने कहा।

और अधिक शिक्षकों की नियुक्ति करके और शिक्षक-छात्र के अनुपात को बेहतर करके सरकार शिक्षकों पर बिना किसी अतिरिक्त बोझ के इस तरह की गतिविधियों को प्रोत्साहित कर सकती है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि विशेष रूप से कमजोर और हाशिये के समुदायों के छात्रों पर अधिक ध्यान दिया जाए। इसमें सीखने के परिणामों को बढ़ाने के साथ-साथ शिक्षक और छात्र दोनों की प्रेरणा में सुधार लाने की संभावना भी है।

6. शिक्षकों के सामाजिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना

महामारी ने दुनिया भर में शिक्षकों के सामाजिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर प्रकाश डालने का काम किया है। शिक्षकों के सामाजिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर आयोजित हमारे सत्रों को पहले की तुलना में ढाई गुना अधिक लोगों ने सुना था। पहली बार व्यवस्थित ढंग से शिक्षकों ने इन सत्रों में शामिल होकर अपने अनुभव साझा किए थे। कई शिक्षक समुदायों और छात्रों के घरों के दौरे पर गए थे जिससे उन्हें अपने छात्रों की पृष्ठभूमि को बेहतर ढंग से समझने का अवसर मिला।

दिल्ली महामारी के पहले से ही अपने स्कूलों में हॅप्पीनेस करीकुलम (खुशी का पाठ्यक्रम) आधारित पढ़ाई करवा रहा है और इस क्षेत्र में काम करने वाला पहला राज्य है। इसके माध्यम से शिक्षकों को सचेतन, ध्यान से सुनना और सामाजिक और भावनात्मक स्वास्थ्य के बारे में बताया गया। लेकिन कोविड-19 के दौरान ही इन अवधारणाओं ने जड़ें पकड़ीं और शिक्षक नेटवर्क बैठकों के केंद्र का हिस्सा बनीं जहां शिक्षक इन अवधारणाओं के बारे में बात करते थे और इसे प्रयोग में लाते थे। दूसरे राज्य भी अपने शिक्षकों के लिए परामर्श सेवा और सचेतन जैसे अभ्यासों का इंतजाम कर सकते हैं। यह शिक्षकों के लिए एक ऐसे मंच के रूप में काम करेगा जहां वे न सिर्फ अपने स्वास्थ्य के बारे में बातचीत कर सकते हैं बल्कि अपने छात्रों के सामाजिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर भी चर्चा कर सकते हैं।

कोविड-19 ने अब लगभग दो अकादमिक सत्रों के लिए शिक्षकों और छात्रों को स्कूल से बाहर रखा है। शिक्षकों को इस बदलाव को स्वीकार करने के लिए संघर्ष करना पड़ा लेकिन उन्होनें इस दौरान बहुत कुछ सीखा भी है—उनमें तन्मयता आई है, वे तकनीक के प्रति पैदा हुए डर से बाहर निकले हैं, उन्होनें नए उपकरणों का प्रयोग सीखा है, बड़े पैमाने पर नवाचार किया है, अपने सहकर्मियों से जुड़े हैं और उनके साथ मिलकर काम किया है और पेशेवर विकास के लिए समय निकाला है। हमारी शिक्षण प्रणाली को इन लाभों का फायदा उठाने और इन्हें लंबे समय तक टिकाऊ बनाने के लिए शिक्षकों का समर्थन करने की आवश्यकता है। बच्चों को स्कूल वापस लाना, सीखने की प्रणाली में आई असमानता को दूर करना और उनकी सामाजिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को सुनिश्चित करना हमारी व्यवस्था और खास कर शिक्षकों के लिए एक मुश्किल और लंबी अवधि वाला काम है। ऐसा करने के लिए एक सक्षम वातावरण बनाने में लंबा रास्ता तय करना पड़ेगा।

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अधिक​ जानें

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  • भारत के लिए UNESCO राज्य शिक्षा रिपोर्ट 2021 पढ़ें, जिसमें भारत के शिक्षकों पर महामारी के प्रभाव और उनकी सहायता के तरीकों पर चर्चा की गई है।

लेखक के बारे में
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स्वाहा साहू

स्वाहा साहू STiR एजुकेशन के लिए भारत देश की निदेशक हैं। यह एक अंतरराष्ट्रीय गैर-लाभकारी संस्था है जो हर बच्चे, शिक्षक और अधिकारी को सीखने और सुधारने के लिए प्रेरित करने पर केंद्रित शिक्षा प्रणालियों का समर्थन करती है। इससे पहले, स्वाहा ने पराग पहल का नेतृत्व करने वाले टाटा ट्रस्ट के साथ एक दशक तक काम किया है। स्वाहा विश्व बैंक की एक शोधार्थी हैं और उन्होनें ससेक्स विश्वविद्यालय से अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा और विकास में डिग्री हासिल की है।

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