May 3, 2023

बैंक महिलाओं के वित्तीय समावेशन को कैसे संभव बना सकते हैं

पीएमजेडीवाय जैसी योजनाओं का लाभ उठाने के बावजूद निम्न आयवर्ग वाले घरों की महिलाएं बचत के लिए बैंकों के इस्तेमाल से क्यों झिझकती हैं और उनके नज़रिए को कैसे बदला जा सकता है?
7 मिनट लंबा लेख

उत्तर प्रदेश के नयागांव मोहम्मदपुर गांव की फूलबानो ज़री का काम करती हैं। अपने तीन बच्चों के साथ वे गांव में ही रहती हैं। जब से फूलबानो के पति काम की तलाश में दिल्ली गए हैं, तब से पूरे घर की जिम्मेदारी उनके कंधों पर ही आ गई है। वे कहती हैं कि “राजेश नाम के एक बिज़नेस करेसपॉन्डेंट ने मुझे बताया कि मेरे कपड़ों या खाने के डब्बों में छिपाए गए पैसे या तो चोरी हो सकते हैं या फिर खर्च हो सकते हैं। उन्होंने ही मुझे बताया कि इतने कम पैसों को भी बैंक में जमा करवाया जा सकता है। ऐसा करना अधिक सुरक्षित है और लम्बे समय तक बचत करने से भविष्य में मुझे बैंक से कर्ज़ा लेने में आसानी होगी।” फूलबानो की पड़ोसन शरीना बी एक छात्र होने के साथ-साथ अपना घर भी सम्भालती हैं। वे भी औपचारिक बचत के महत्व को समझती हैं। शरीना का कहना है कि “केवल बचत से ही कोई आगे बढ़ सकता है और तरक़्क़ी कर सकता है। अगर मैं बचत करूंगी तो उससे मैं आगे की पढ़ाई कर सकती हूं।”

बचत महिलाओं को जरूरी आर्थिक सुरक्षा और आज़ादी दे सकती है और मुश्किल वक्त में उनकी मदद कर सकती है। हालांकि, भारत में फूलबानो और शरीना जैसी महिलाओं की कहानी आम नहीं है। 2024–25 में 5 ट्रिलियन डॉलर वाली अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य रखने वाले इस देश को चाहिए कि यह वित्तीय समावेश (फायनेंशियल इन्क्लूजन) के जरिए महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण में निवेश करे। यदि महिलाएं उपयोगी और किफ़ायती वित्तीय उत्पादों और सेवाओं का लाभ उठा पाएंगी तो उनके सामने पैसे कमाने, सम्पत्ति बनाने और उनके जीवन से जुड़े फ़ैसले लेने के अधिक अवसर उपलब्ध होंगे। इसका सकारात्मक प्रभाव न केवल महिलाओं के जीवन पर पड़ेगा बल्कि उनके समुदाय और अर्थव्यवस्था पर भी होगा। इसके अलावा नियमित औपचारिक बचत से बीमा, पेंशन और क्रेडिट जैसी अन्य वित्तीय सेवाओं का भी लाभ मिलता है जिनसे महिलाओं में किसी बाहरी आपात स्थिति से उबरने की क्षमता विकसित होती है।

पुरुषों की तुलना में महिलाएं डिजिटल लेनदेन को लेकर कम सहज होती हैं।

प्रधानमंत्री जन-धन योजना (पीएमजेडीवाय) जैसी सरकारी पहलों का उद्देश्य पिछड़े समुदायों से आने वाले हर व्यक्ति को बैंकिंग सुविधाएं प्रदान करना है। यह उद्देश्य इस संदर्भ में भारत की विकास यात्रा के लिए महत्वपूर्ण है। विशेष रूप से, पीएमजेडीवाय ने लाखों देशवासियों को बैंक में पैसे जमा करने का अवसर दिया है। 2014 में अपने लॉन्च के बाद से इस योजना के तहत खुलने वाले बैंक खातों की संख्या मार्च 2015 में 14.72 करोड़ और अगस्त 2022 में 46.25 करोड़ हो गई थी।

यह भी गौर करने वाली बात है कि महिलाएं अपने पीएमजेडीवाय खातों का उपयोग बचत के अलावा, सरकारी पहलों से मिलने वाले लाभों के लिए भी सक्रियता से करती हैं। विमेंस वर्ल्ड बैंकिंग में हमारे शोध से इस बात की पुष्टि हुई है कि ग्रामीण तथा निम्न आय वर्ग की महिलाएं ऐसा मानती हैं कि बैंक उनके और उनकी छोटी बचतों के लिए नहीं होते हैं। इसके अलावा, इंक्लूसिव फ़ायनांस इंडिया रिपोर्ट 2022 के अनुसार 12.7 करोड़ वयस्कों ने पहली बार सीधे डिजिटल भुगतान सुविधा का इस्तेमाल कोविड-19 महामारी के दौरान किया था। रिपोर्ट यह भी बताती है कि पुरुषों की तुलना में महिलाएं डिजिटल लेनदेन को लेकर कम सहज होती हैं।

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वह क्या है जो महिलाओं को औपचारिक बैंकिंग से दूर रखता है?

बेशक, महिलाएं सहज रूप से बचत करने वाली होती हैं लेकिन सभी महिलाएं बैंकों में औपचारिक रूप से बचत नहीं करती हैं। इसके लिए वे अपने घरों में पैसा रखने जैसे पारंपरिक तरीक़ों पर ही भरोसा करती हैं। बचत करने, खातों को चलाने और क्रेडिट हिस्ट्री या अन्य वित्तीय उत्पादों जैसे माइक्रो-इंश्योरेंस, पेंशन या लघु ऋण आदि के जरिए वित्तीय मामलों से गहराई से जुड़ना महिला ग्राहकों की प्राथमिकता नहीं होती है। इसके कई कारण हैं, सबसे बड़ा तो यह है कि महिलाएं अपनी आमदनी को नगण्य मानती हैं, और इसीलिए उन्हें लगता है कि उनके थोड़े से पैसे बैंकों में जमा करने लायक नहीं हैं। पारम्परिक रूप से भी महिलाओं को आर्थिक फ़ैसले लेने के लिए प्रशिक्षित नहीं किया जाता है और इसलिए स्वायत्ता को लेकर उन्हें संघर्ष करना पड़ता है। इससे अक्सर ही उन्हें बचत के अपने ऐसे तरीके विकसित करने पड़ते हैं जो उन्हें सबकुछ नियंत्रण में होने का एहसास करवा सकें। नतीजतन, महिलाएं बैंक को अपने लिए बचत करने की जगह के रूप में नहीं देखती हैं – विशेष रूप से ‘छोटी सी’ राशि के लिए – क्योंकि यह उन्हें अपरिचित और अपेक्षाकृत अधिक चुनौतीपूर्ण लगता है।

एक बीसी सखी दो अन्य महिलाओं से बात कर रही है_महिला बैंक
वित्तीय समावेशन से परे, बैंकों के लिए महिला ग्राहकों में निवेश करने की एक व्यावसायिक वजह भी है। | चित्र साभार: वीमेन्स वर्ल्ड बैंकिंग

उदाहरण के लिए, हमारे शोध से यह भी पता चला है कि ग्रामीण महिलाओं के अपने नाम से बैंक में खाते हैं लेकिन वे उनका उपयोग नहीं करती हैं। ग्रामीण महिलाओं के पास आमदनी के ऐसे कुछ ही स्त्रोत होते हैं जिन्हें वे अपना कह सकती हैं। अपने परिवार की खेती से जुड़ी गतिविधियों में शामिल होने और काम करने के बावजूद वे खुद को परिवार की आमदनी में योगदान देने वाले के रूप में नहीं देखती हैं। वे घर के आर्थिक तथा वित्तीय फ़ैसलों में भी सक्रियता से भाग नहीं लेती हैं और ना ही अपने पीएमजेडीवाय खातों में आने वाले डायरेक्ट बेनिफ़िट ट्रान्स्फ़र्स (डीबीटी) यानी सीधे आने वाले पैसों का लाभ ही उठा पाती हैं। सीधे शब्दों में कहें तो महिलाओं को बैंकिंग सेवाओं का कोई खास उपयोग या महत्व नहीं दिखाई देता है।

भारत के शहरों की स्थिति थोड़ी अलग है। शहर की महिलाएं काम से होने वाली आमदनी से अपना जीवनयापन करती हैं। साथ ही, वे अपने पीएमजेडीवाय खातों को विभिन्न सरकारी योजनाओं के तहत मिलने वाले लाभों के लिए उपयोग में लाती हैं। लेकिन आमतौर पर शहर की महिलाएं भी इन खातों में बचत के पैसे जमा नहीं करतीं हैं। हमारे शोध में यह बात सामने आई कि शहरी इलाक़ों में निम्न आयवर्ग की महिलाओं को बैंक में पैसे जमा करना सुविधाजनक नहीं लगता है और वे स्थानीय बिज़नेस करेस्पॉन्डेंट के बारे में नहीं जानती हैं। यह उनके व्यवहार और नज़रिए में बदलाव न आने का एक बड़ा कारण है।

बैंकों को महिलाओं में निवेश क्यों करना चाहिए?

वित्तीय समावेशन के अलावा बैंकों के लिए अपनी महिला ग्राहकों में निवेश करने का एक व्यावसायिक कारण भी है। हमारा अनुमान है कि यदि निम्न आयवर्ग की लगभग 10 करोड़ महिलाएं बैंक में बचत के पैसे जमा करवाना शुरू करती हैं तो उस स्थिति में बैंक 2 करोड़ लाभार्थियों को 10,000 करोड़ रुपए का ओवरड्राफ़्ट और जमा में 20,000 करोड़ रुपए के इनफ्लो की स्थिति में आ सकते हैं।

हमने मुंबई, दिल्ली और चेन्नई में महिलाओं को उनके पीएमजेडीवाय खाते के विभिन्न इस्तेमालों के लिए जन धन प्लस प्रोग्राम चलाया। हमने पाया कि जब पुरुष एवं महिलाएं दोनों ही सक्रिय रूप से पीएमजेडीवाय (हर साल कम से कम चार बार खाते में लगभग 500 रुपए जमा करना) खातों का उपयोग करते हैं, तब महिलाओं का औसत बैंक बैलेंस पुरुषों की तुलना में 30 फ़ीसद अधिक होता है और महिला ग्राहक का आजीवन रेवेन्यू भी पुरुष ग्राहक के आजीवन रेवन्यू से 12 फ़ीसद ज़्यादा होता है। ऐसा महिलाओं के खातों में अधिक पैसे होने के कारण होता है। इससे यह और भी जरूरी हो जाता है कि बैंक अपने महिला ग्राहकों को अधिक गम्भीरता से लेना शुरू करें।

महिलाओं के साथ भरोसेमंद बैंकिंग संबंध बनाना

हमें भारत के शहरी, ग्रामीण एवं उपनगरीय इलाकों के सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंक के साथ काम करने का अनुभव है। अपने इन अनुभवों के दौरान हमने पाया कि सबसे पहले घरों और सार्वजनिक जगहों पर जाकर महिलाओं से बातचीत करना जरूरी है। ताकि उनके लिए उनसे संबंधित एवं सांस्कृतिक रूप से अनुकूल मार्केटिंग अभियानों के तहत उनमें जागरूकता फैलाई जा सके। यह सबसे मुख्य काम है क्योंकि निम्न आय वाली ज़्यादातर महिलाओं को अपने घरों से बाहर निकलने की अनुमति नहीं होती है लेकिन वे अन्य महिलाओं के साथ समूह बनाकर बाहर जा सकती हैं।

बैंकिंग करेसपॉन्डेंट (बीसी) और बीसी सखी (सामुदायिक स्तर पर महिला बैंकिंग एजेंटों के रूप में काम करने के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन द्वारा नियुक्त) महिला पीएमजेडीवाय ग्राहकों तक पहुंचने में सबसे अधिक प्रभावी नेटवर्क साबित होते हैं। शहरी इलाक़ों में बीसी के सम्पर्क में रहने वाली 32 फ़ीसद महिलाएं बैंक में बचत के बारे में सोचती हैं, वहीं 18 फ़ीसद महिलाओं ने बचत की अपनी इस आदत को बरकरार रखा है।

हालांकि, बैंक अंतिम व्यक्ति तक बैंकिंग सेवाएं पहुंचाने के लिए बीसी के नेटवर्क विकास में निवेश तो कर रहे हैं। लेकिन फिर भी सभी बैंक करेसपॉन्डेंट्स के पास यह कौशल नहीं होता कि वे सरकार से मिलने वाले लाभों के हस्तांतरण के अलावा ग्रामीण इलाक़ों में महिला पीएमजेडीवाय खाता धारकों को जोड़ सकें। अधिकांश बीसी केवल कैश-इन और कैश-आउट मुहैया करवाने पर ही ध्यान देते रहे। जन सुरक्षा बीमा और पेंशन योजनाओं जैसे अन्य उत्पादों में महिलाओं को निवेश के लिए सक्रियता से प्रोत्साहित करने वाले बीसी भी संख्या में बहुत कम मिले।

बैंकों को बीसी तथा बीसी सखियों की क्षमता को बढ़ाने में निवेश करने की आवश्यकता है।

अच्छे से संवाद करने वाले और संबंधों को महत्व देने वाले बीसी, महिला ग्राहकों के साथ बेहतर सम्पर्क स्थापित करने में सक्षम थे और उन्हें अपने खातों में बचत का पैसा और बीमा या पेंशन जैसी योजनाओं में पैसे के निवेश को बरकरार रखने के लिए प्रोत्साहित कर रहे थे। चाहे यह ग्रामीण इलाक़ों में बीसी केंद्र से संचालित होने वाला बीसी हो या फिर शहरी इलाक़ों में किराना दुकानों से संचालित होने वाले बीसी। महिला ग्राहकों तक लाभ पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले मुख्य नेटवर्क के साथ भरोसेमंद रिश्ता बनाने की जरूरत है।

शहरी इलाक़ों में बीसी की सफलता दर तीन गुना अधिक है जहां वे निम्न-आयवर्ग की महिला ग्राहकों को अन्य वित्तीय सेवाओं में शामिल कर पाते हैं। बीसी सक्रिय रूप से महिला ग्राहकों को शामिल कर उन्हें बीमा और पेंशन की क्रॉस-सेलिंग करके बेहतर रेवेन्यू और कमीशन प्राप्त कर सकते हैं। इससे क्रेडिट हिस्ट्री बनाने, कर्ज और क्रेडिट प्राप्त करने और बचत को बढ़ावा देने में मदद मिलती है।

इसलिए बैंकों को बीसी तथा बीसी सखियों की क्षमता को बढ़ाने में निवेश करने की आवश्यकता है। इन एजेंटों, विशेष रूप से महिला एजेंटों को व्यापार प्रबंधन और निम्न आय वाले या ग्रामीण महिला ग्राहकों को सेवा देने के लिए लैंगिक संवेदनशीलता (जेंडर सेंसिटिविटी) का प्रशिक्षण दिया जाए। बैंकों और आजीविका मिशनों को बीसी और बीसी सखियों के पर्यवेक्षण का समर्थन करने के लिए निवेश करना चाहिए। साथ ही, उन्हें नेटवर्क को मजबूत करने और अधिक लोगों को बैंकिंग एजेंट बनने के लिए प्रोत्साहित करने के अलावा समय-समय पर उनकी सेवाओं को पहचानने के साथ-साथ उनके काम पर फीडबैक भी देना चाहिए।

महिला केंद्रित डिजाइनों की योग्यता

महिला-केंद्रित डिजाइन का नजरिया महिलाओं की ज़रूरतों को पूरा करने और बैंकों में बचत जमा करने में आने वाली बाधाओं से निपटने पर केंद्रित होता है। बचत करने के लिए एक सहज स्थान के रूप में बैंक का एक मेंटल मॉडल बनाना, महिलाओं के लिए सुलभ और विश्वसनीय चैनलों का उपयोग करके बैंकों में बचत करना आसान बनाना, बचत को सहज और फ़ायदेमंद बनाना, उन्हें औपचारिक रूप से बचत करने की आदत बनाने के लिए प्रेरित करना और याद दिलाते रहना, एक मजबूत महिला-से-महिला बैंकिंग नेटवर्क तैयार करना, और महिलाओं के लिए उपयुक्त और सरल बैंकिंग उत्पाद बनाना निश्चित रूप इस दिशा में लिए जाने वाले सही कदम हैं। डिजिटल तकनीकों का लाभ उठाने से भारत की अर्थव्यवस्था और लिंग-समावेशी वित्त की संभावनाओं को सामने लाया जा सकता है। अंत में, महिला ग्राहकों के व्यवहार में अंतर को समझने के लिए सेक्स-डिसएग्रीगेटेड आंकड़ों पर ध्यान देना सबसे महत्वपूर्ण है। इससे वित्तीय समावेशन को बेहतर करने में वित्तीय संस्थानों तथा नीति-निर्माताओं को मदद मिलेगी।

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लेखक के बारे में
कल्पना अजयन-Image
कल्पना अजयन

कल्पना अजयन विमेंस वर्ल्ड बैंकिंग में दक्षिण एशिया की क्षेत्रीय प्रमुख हैं और उनके पास वित्तीय सेवाओं में 25 से अधिक वर्षों का अनुभव है। इससे पहले कल्पना ने सिटीबैंक, एचएसबीसी और एडलवाइस फाइनेंशियल सर्विसेज के साथ काम किया है। रणनीति, बिक्री और वितरण, एचआर और ग्राहक अनुभव के प्रबंधन में अपनी विभिन्न भूमिकाओं में कल्पना ने ग्राहक केंद्रीयता और ग्राहक के नज़रिए के माध्यम से समाधान तक पहुंचने की समझ विकसित की है।

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