May 18, 2022

लड़कियाँ और महिलाएँ राजनीति में अपना करियर क्यों नहीं बनाना चाहती हैं?

भारतीय राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व अभी दूर की कौड़ी है। चूँकि साल 2022 में पाँच राज्यों में और 2024 में आम चुनाव होने वाले हैं इसलिए ज़रूरी है कि हम ऐसे तरीक़े ढूँढें जिससे कि लड़कियाँ और महिलाएँ राजनीतिक प्रक्रियाओं में हिस्सा ले सकें।
6 मिनट लंबा लेख

ज़्यादातर किशोर लड़कियों के लिए करियर के रूप में राजनीति सोच में भी नहीं होता है। कुछ लोगों की रुचि इसमें है भी लेकिन उन्हें भारत में राजनीति में करियर बनाना असम्भव लगता है। ऐसा ही एक उदाहरण चेन्नई की 15 साल की उस छात्रा का है जिसने कहा था कि वह बड़े होने के बाद न्यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री बनना चाहती है। यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि उस लड़की की तरह ही कई ऐसी लड़कियाँ होंगी जो अपने देश की राजनीति में हिस्सा ना लेकर किसी दूसरे देश की प्रधानमंत्री बनना चाहती होंगी।

भारत को गणराज्य बने 73 साल हो चुके हैं लेकिन हम आज भी समान प्रतिनिधित्व को हासिल करने और युवा लड़कियों के लिए राजनीति को करियर का एक विकल्प बनाने से बहुत दूर खड़े हैं। वर्तमान में हमारे देश में 78 (कुल 543 में) महिला सांसद हैं। 14.3 प्रतिशत की दर वाला यह आँकड़ा 1947 से अब तक का सबसे बड़ा आँकड़ा है। राज्य-स्तर पर यह आँकड़ा और भी कम है—विभिन्न राज्यों की विधान सभाओं में महिला प्रतिनिधित्व का आँकड़ा औसतन 9 प्रतिशत है। भारत में छः राज्य ऐसे है जिसमें एक भी महिला मंत्री नहीं है।

एक देश के रूप में हमने काफ़ी प्रगति की है। भारत के पुरुष और महिलाएँ अब बराबर संख्या में मतदान करते हैं। लेकिन मतदान से परे महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी का मामला अब भी एक अछूता विषय है और इस क्षेत्र में महिलाओं को बहुत अधिक सक्रिय होने की ज़रूरत है। इसमें उम्मीदवारों के लिए प्रचार-प्रसार करना, पद के लिए भागदौड़ करना और राजनीतिक पद हासिल करना शामिल है। थोड़ी और छानबीन करने पर हमनें पाया कि 2019 के चुनावों में महिला उम्मीदवारों की संख्या 10 प्रतिशत से कम थी। राज्य स्तर पर भी हमें ऐसे ही आँकड़े देखने को मिले जहां 1980 और 2007 के बीच में राज्य विधान सभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 5.5 प्रतिशत था लेकिन महिला उम्मीदवारों का कुल प्रतिशत 4.4 था।

गुलाबी साड़ी में माइक लिए एक महिला महिलाओं के समूह से बात करती हुई-भारत की राजनीति महिला
महिलाओं के लिए ज्ञान, आत्मविश्वास, आवाज़ और आज़ादी राजनीति में उनकी भागीदारी पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। | चित्र साभार: फ़्लिकर

2019 में उत्तर प्रदेश में किए गए एक अध्ययन से यह बात सामने आई कि महिलाएँ राजनीतिक भागीदारी के कई निर्धारकों जैसे राजनीतिक संस्थानों के काम करने के तरीक़ों और अपने ख़ुद के नेतृत्व की योग्यताओं में विश्वास में पिछड़ी हुई हैं। महिलाओं के लिए ज्ञान, आत्मविश्वास, आवाज़ और आज़ादी राजनीति में उनकी भागीदारी पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। यह काम युवा लड़कियों के लिए जल्दी किए जाने की ज़रूरत है ताकि वे गम्भीर रूप से सोचने की क्षमता विकसित कर सकें और भारत के भविष्य को आकार देने में अपनी भूमिका निभा सकें।

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वर्तमान में हमारे देश में 78 (कुल 543 में) महिला सांसद हैं।

युवा लड़कियों में राजनीतिक भागीदारी और नेतृत्व के निर्माण के लिए काम करने वाली संस्था कुविरा की स्थापना के समय हमने यह पाया कि समाज के ध्रुवीकरण को देखते हुए ज़्यादातर विद्यालय (कुछ प्रगतिशील और वैकल्पिक लोगों को छोड़ कर) और अभिभावक छात्रों से राजनीति के बारे में बात करने से कतराते हैं। इसके कारण युवाओं को मिलने वाली ज़्यादातर राजनीतिक खबरें असत्यापित स्त्रोतों और सोशल मीडिया के माध्यम से होती हैं जिससे हमारे युवाओं में एक क़िस्म की निराशा पैदा हो गई है।

2021 के अक्टूबर में हम लोगों ने 13 साल की उम्र वाले बच्चों के एक समूह के साथ कार्यशाला आयोजित की थी। इसमें हम लोगों ने उनसे भारत के राजनेताओं को लेकर उनकी धारणा व्यक्त करने के लिए कहा। हमनें दो चीजें देखीं:

  1. किसी भी प्रतिभागी ने महिला नेता का चित्र नहीं बनाया। जब हमनें इसका कारण पूछा तब उनका कहना था कि वे किसी महिला राजनेता को नहीं जानते हैं।
  2. सभी प्रतिभागियों ने राजनेताओं को ‘स्वार्थी’ या ‘भ्रष्ट’ बताया और उनके पास हमारे चुने गए प्रतिनिधियों के बारे में कहने के लिए कुछ भी सकारात्मक नहीं था।

भारत भर में राजनीति को लेकर युवाओं ख़ासकर युवा लड़कियों की सोच को विस्तार से समझने के लिए हम लोगों ने 24 राज्यों के 11 से 24 वर्ष की उम्र वाले 400 बच्चों और व्यस्कों का आँकड़ा एकत्रित किया। हमें इन आँकड़ों में एक समानता दिखाई दी जिसमें इन लोगों ने भारत की राजनीति के लिए ‘भ्रष्ट’, ‘भ्रमित/जटिल’ और ‘गंदे’ जैसे विशेषणों का प्रयोग किया था।

लड़कियों और लड़कों की राजनीतिक आकांक्षा में अंतर है

हमने यह भी पाया कि भले ही लड़के और लड़कियों ने समान रूप से इस बात का जवाब दिया कि वे मतदान करेंगे (जब वे योग्य हो जाएँगे) लेकिन उनकी राजनीतिक आकांक्षाओं में एक महत्वपूर्ण अंतर था। 32 प्रतिशत पुरुष उत्तरदाताओं ने कहा कि वे भविष्य में राजनीति में हिस्सा लेना चाहेंगे वहीं केवल 19.7 प्रतिशत महिला उत्तरदाताओं ने ऐसी इच्छा जाहिर की। पुरुष उत्तरदाताओं की तुलना में महिला उत्तरदाताओं को राजनीतिक प्रक्रियाओं और उनके चुने गए स्थानीय प्रतिनिधियों के बारे में कम जानकारी थी। इसके अतिरिक्त, उनमें अपने दोस्तों और परिवार से राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा करने की सम्भावना कम पाई गई।

2019 के चुनावों में महिला उम्मीदवारों की संख्या 10 प्रतिशत से कम थी।

हालाँकि हमारे वर्तमान राजनीतिक नेताओं के प्रति हमारे युवाओं में विश्वास का स्तर बहुत कम है। लेकिन आँकड़ों के अनुसार लड़कियों की तुलना में दोगुनी संख्या में लड़कों का ऐसा मानना है कि हमारे वर्तमान राजनीतिक नेता प्रभावशाली है (16.4 प्रतिशत बनाम 8.9 प्रतिशत)।

हमारे अध्ययन से यह भी बात स्पष्ट होती है कि छोटी उम्र (11–17 साल) की लड़कियाँ लड़कों की तुलना में राजनीति में अधिक रुचि दिखाती हैं लेकिन जब वे मतदान के उम्र में पहुँचती है तब लड़कों की रुचि का प्रतिशत लड़कियों पर हावी हो जाता है (इस तथ्य के बावजूद कि उम्र के साथ दोनों ही समूह में रुचि का स्तर बढ़ता है)।

ऐसी ही स्थिति हाल ही में अमेरिकन पोलिटिकल साइयन्स रिव्यू में प्रकाशित एक अमेरिकी अध्ययन में भी पायी गई। इस अध्ययन से यह बात सामने आई कि बच्चे न केवल राजनीति को पुरुष-प्रधान क्षेत्र मानते हैं बल्कि बढ़ती उम्र के साथ लड़कियों की यह सोच पुख़्ता होती जाती है कि राजनीतिक नेतृत्व ‘पुरुषों की दुनिया’ है। शोध में यह भी कहा गया कि इसके फलस्वरूप लड़कों की तुलना में लड़कियों की रुचि और महत्वाकांक्षा निम्न स्तर की होती है।

हमें राजनीति को युवा लड़कियों की पहुँच तक लाना होगा

न्यूज़ीलैंड की प्रधान मंत्री बनने की इच्छा ज़ाहिर करने वाली उस छोटी सी बच्ची के उदाहरण से हमें भारतीय लड़कियों के लिए संबंधित आदर्श को सामने लाने की महत्ता को समझने में मदद मिली है। दुनिया भर की मीडिया ने प्रधानमंत्री जैसिंडा आर्डेन की प्रशंसा का बहुत अच्छा काम किया है ख़ासकर महामारी पर उनकी शुरुआती कुछ प्रतिक्रियाओं के बाद। इस काम ने दुनिया भर में लड़कियों के लिए उन्हें अपना आदर्श मानने में अपना योगदान दिया है। अमेरिका में किए गए शोध से यह पता चलता है कि समय के साथ समाचार पत्रों में महिला राजनेताओं पर अधिक खबरें प्रकाशित करने से युवा लड़कियों में राजनीतिक रूप से सक्रिय होने की सम्भावना प्रबल होती है।

हमारे सर्वेक्षण से यह बात भी स्पष्ट हुई कि अपने स्कूल या कॉलेज की लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में हिस्सा लेकर और किसी राजनेता को व्यक्तिगत रूप से जानने वाले युवा उन लोगों की तुलना में राजनीति में अधिक रुचि लेते हैं जिनके पास ऐसा कोई अनुभव नहीं होता है।

राजनीति को करियर का एक विकल्प बनाने के लिए हमें युवा लड़कियों और राजनीतिक शक्तियों से जुड़ी सोच को बदलने की ज़रूरत है। पश्चिमी देशों में हमने ऐसे कई उदाहरण देखे हैं जिसमें टीच ए गर्ल टू लीड और इग्नाईट नेशनल जैसे नागरिक समाज संगठन अगली पीढ़ी की ऐसी महिला मतदाताओं को तैयार करने का काम करते हैं जो आगे चलकर राजनीतिक नेता बनना चाहती हैं और अपने आसपास की राजनीति में सक्रिय होना चाहती हैं। कुविरा का उद्देश्य स्कूलों और स्वयंसेवी संस्थानों के साथ काम करके भारत में इस खाई को कम करना है ताकि युवा लड़कियों के लिए राजनीति को फिर से बनाया जा सके। इसके अलावा हम महिला राजनेताओं को आदर्श के रूप में स्थापित करके राजनीति के लिए सकारात्मक कहानियाँ बनाने और युवा लड़कियों को उनसे जुड़ने के अवसर प्रदान करने का काम भी करते हैं जिनसे उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा प्रज्वलित होंगी।

चूँकि 2022 में पाँच राज्यों में और 2024 में आम चुनाव होने वाले हैं इसलिए शिक्षकों, नागरिक समाजों और लोकोपकारों के लिए यह ज़रूरी है कि वे एक साथ आकर युवा लड़कियों के लिए एक ऐसे वातावरण का निर्माण करें जिससे राजनीतिक प्रक्रियाओं में उनकी सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित हो सके। यह इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि बिना समान प्रतिनिधित्व के कार्यात्मक लोकतंत्र नहीं हो सकता है।

इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ें

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लेखक के बारे में
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शिवीका एम

शिवीका एम कुविरा की संस्थापक हैं जो पूरे भारत में लड़कियों में राजनीतिक जुड़ाव और नेतृत्व का निर्माण करने वाली एक पक्षपात-रहित पहल है। इससे पहले शिवीका दक्षिण एशिया में अशोका की पहल चेंजमेकर स्कूल्स कार्यक्रम का हिस्सा थीं और सरकारी शिक्षकों के लिए क्षमता निर्माण विषय पर दिल्ली में शिक्षा निदेशालय में कार्यरत थीं। शिवीका इंडिया क्लाईमेट कोलैबोरेटिव में सलाहकार के रूप में काम करती हैं और शेवनिंग विद्वान के रूप में आक्स्फ़र्ड विश्वविद्यालय से इन्होंने पब्लिक पॉलिसी में एमए की पढ़ाई की है।

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