कोविड-19 के दौरान और उसके बाद तथा भारत के आगे आए तिहरे संकट (स्वास्थ्यगत, आर्थिक और सामाजिक) के सामने, हमने कई समाजसेवी संस्थाओं को अपने प्रयासों को संयोजित करने और अपने समुदायों की सुरक्षा करने के प्रयास में एक साथ आते देखा।
यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि इस सहयोग के लाभ सर्वविदित हैं: ज्ञान बांटना, क्षमाता को बढ़ाना और व्यवस्थागत परिवर्तन के लिए कई मोर्चों को एक साथ साधने की क्षमता। हालांकि अक्सर ही दो या अधिक संगठनों के बीच एक सफल साझेदारी के संचालन में आने वाली बाधाएं इसे व्यापक रूप अपनाने से रोकती हैं। इसे देखते हुए किसी भी समाजसेवी संगठन को ऐसा क्या करना चाहिए जिससे उनकी साझेदारी की सफलता सुनिश्चित हो सके?
आंतरिक क्षमता के निर्माण से लेकर, संगठनात्मक रणनीति को साथ में लाने और एक नई साझेदारी शुरू करने तक—यह लेख उन पांच चरणों की रूपरेखा तैयार करता है जिन्हें समाजसेवी संगठन एक सफल साझेदारी के लिए अपना सकते हैं।
1. साझेदारी के लिए नेताओं को तैयार करना
अ) संगठनों के साथ आने से होने फायदों को पहचानें: एक ही डोमेन में काम करने वाले संगठनों के विश्लेषण से संगठन नेतृत्व को अपने और अपने साथियों की उन ताक़तों का पता चलता है जिनसे वे सामाजिक मुद्दों का हल निकालते हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए समाजसेवी संगठनों के नेतृत्व को संगठन के संभावित साझेदार के उस सहयोग को पहचानना चाहिए जो संगठनों के उद्देश्यों को हासिल करने में मददगार हो सकता है। कार्यक्रमों और भागीदारों में मूल्यों, समानताओं और अंतरों का आकलन, उनके द्वारा किए जाने वाले प्रयासों और दोहराव को कम कर सकता है। साथ ही, प्रतिस्पर्धी मानसिकता को सहयोगी मानसिकता में बदलने में भी मददगार साबित हो सकता है।
ब) सहयोग की संस्कृति बनाएं: फोकसिंग ऑन सॉफ़्ट स्किल्स में सुनने और समानुभूतिपूर्वक प्रतिक्रिया देने की क्षमता विकसित करना शामिल है। इससे एक ऐसा वातावरण बनाने में मदद मिलती है जिसमें टीम के सदस्य अपने विचार बांटने को लेकर आश्वस्त महसूस करते हैं। विभाग के प्रमुखों से सलाह-मशविरा करने से यह सुनिश्चित होता है कि टीम के सदस्यों के विचारों को सुना गया है। साथ ही यह भी सुनिश्चित होता है कि सहयोग की विचारधारा और सामान्य परिणामों को संगठन के सभी स्तरों तक पहुंचाया गया है।
स) टीम प्रयासों का जश्न मनाएं: मिले-जुले प्रयास और योगदान का जश्न मनाने वाले नेता एक साझा लक्ष्य को प्राप्त करने में विभिन्न सदस्यों की भूमिका को पहचानते हैं। इस दृष्टिकोण को अपनाने से एक मिसाल कायम होती है और ‘साइलो मेंटैलिटी’ यानी संगठन के भीतर एक-दूसरे से राज रखने की मानसिकता नहीं पनप पाती है।
2. साझेदारी के लिए आंतरिक क्षमता का निर्माण
अ) बड़े उद्देश्यों पर ध्यान दें: जब टीम के सभी सदस्यों को अपने संगठनों या सम्भावित साझेदारों द्वारा विस्तृत इकोसिस्टम में किए जा रहे योगदान और उसकी प्रक्रिया की समझ होती है तब वे विभिन्न संगठनों के साथ साझेदारी को अपेक्षाकृत अधिक स्वीकार करते हैं। जिस प्रकार नेतृत्व वाली टीम को अपने संगठनों की ताक़तों को पहचानने की ज़रूरत होती है, उसी तरह टीमों के लिए भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि वे उस मूल्य को पहचानें जो भागीदार उनके काम में जोड़ते हैं।
ब) टीम समीक्षा में सहयोगी कौशल शामिल करें: सफलता की समीक्षा करते समय, संवाद और टीम वर्क की प्रक्रिया पर केंद्रित आत्म-चिंतन को शामिल किया जाना चाहिए। इससे टीम के सदस्यों को उनकी भूमिका, योगदान और भविष्य में सफलता के स्तर को बढ़ाने हेतु सहयोग को बेहतर बनाने के उपायों पर विचार करने में मदद मिलती है।
स) लचीलेपन और असफलता की गुंजाइश रहने दें: टीम को अपने ज्ञान को साझा करने के लिए मंच दिया जाना चाहिए। इसके अलावा अपने कर्मचारियों को अनुमति दें कि वह अपने समय का कुछ हिस्सा यानी रुचि के अनुसार वर्टिकल (सहयोगी संगठनों) या अपनी टीम के अलावा अन्य टीम में लगाएं। इसके अलावा किसी भी संगठन में असफलताओं को सबक़ के रूप में देखना सहयोगी मानसिकता को प्रोत्साहित करने की रणनीति होती है।
द) तैयारी में समय लगाएं: संगठनों के लिए यह ज़रूरी है कि वह साझेदारी (आंतरिक या बाह्य दोनों ही प्रकार की) में शामिल प्रक्रियाओं पर ध्यान केंद्रित करे। यानी वे इस पर ध्यान दें कि किस प्रकार साझा उद्देश्यों की पहचान की गई है, नियमित संवाद का स्वरूप कैसा है, संसाधनों को आपस में बांटना, बोर्ड को उद्देश्य की तरफ लगाकर रखना, नेतृत्व से सम्पर्क में रहना और संचालनात्मक क्षमता आदि क्यों महत्वपूर्ण है।
3. संगठनात्मक रणनीति संरेखित करना
अ) रणनीति में ‘साझेदारी का नज़रिया’ शामिल करें: समाजसेवी कार्यक्रमों और/या संगठनों को बनाए रखने, मजबूत करने या बढ़ाने के लिए साझेदारी की व्यवहार्यता का आकलन करें। संगठनात्मक रणनीतियों की समीक्षा करते समय समाजसेवी संगठन आत्मनिरीक्षण कर यह पता लगा सकते हैं कि सहयोगी प्रयास से उनके लक्ष्य को बेहतर तरीके से कैसे मदद मिल सकती है, और यह कैसे उनकी अल्पकालिक या दीर्घकालिक योजनाओं में अपना योगदान दे सकता है।
ब) साझेदारी समीकरणों पर ध्यान केंद्रित करें: संगठनात्मक लक्ष्यों के प्रमुख तत्व के रूप में साझी सफलता के समीकरण को रखना महत्वपूर्ण है। भागीदारों की पहचान करने, साझेदारी बनाने और उन साझेदारियों को बनाए रखने की सफलता का विश्लेषण शुरू से ही एक संगठन की साझेदारी यात्रा को ट्रैक करता है। साथ ही, रास्ते के साथ-साथ समायोजन के लिए जगह बनाता है।
4. एक साझेदारी रणनीति विकसित करना
साझेदारी की यात्रा आरंभ करने के लिए उद्देश्य स्थापित करना पहला कदम है। ऐसा करने के लिए समाजसेवी संस्थाओं को विचार करना चाहिए:
- सफलता के उपलब्ध प्रमाणों द्वारा समर्थित मौजूदा कार्यक्रम की विशिष्टता
- अनुपालन की जांच – इस बात को सुनिश्चित करना कि आपके साझेदार को यह क़ानूनन उचित लगे।
- वित्तीय स्थिरता को सुनिश्चित करना और जानना कि उनके पास साझेदारी से जुड़े कार्यक्रम के संचालन और वितरण के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन हैं।
- संगठनात्मक रणनीति से जुड़े लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक मिला-जुला साझेदारी मॉडल।
- साझेदारी के लिए सही तरह के साझेदार
5. एक सहयोग की शुरुआत
जहां ऊपर बताए गए कारक साझेदारी की तत्परता की यात्रा के बारे में बताते हैं, वहीं साझेदारी में प्रवेश के लिए मुख्य फ़ैसलों तथा प्रतिबद्धता की ज़रूरत होती है। किसी भी दो या अधिक संगठनों को आपस में साझेदारी करने से पहले निम्नलिखित कारकों को ध्यान में रखना चाहिए:
अ) लक्ष्य: प्रत्येक साझेदार को तय किए गए समान लक्ष्य और उसकी पूर्ति के प्रति सहमत होना चाहिए। पहल के कार्यान्वयन और सहयोगी के कामकाज दोनों के लिए सफलता के मानदंड को परिभाषित करने से भागीदारों को प्रभावी ढंग से प्रगति पर नज़र रखने में मदद मिलती है।
ब) भूमिकाएं: कौशल एवं शक्ति के आधार पर प्रत्येक साझेदार की भूमिका को स्पष्ट कर देने से साझेदारी के मूल्य बरक़रार रहते हैं। ज़िम्मेदारियों के विभाजन का दस्तावेजीकरण प्रत्येक पक्ष के लिए सहयोग में समान रूप से योगदान करने के मौके तैयार करता है।
स) प्रतिभा: साझेदारी के लिए समर्पित कर्मियों को अपने संगठन की ओर से चर्चाओं में योगदान देने की ज़रूरत होती है। शुरुआत में वरिष्ठ नेता इस भूमिका को अपनाते हैं और महत्वपूर्ण निर्णय लेने के बाद सहयोगियों को सौंप देते हैं।
द) मॉडल/प्रारूप: अपने मौजूदा कार्यक्रम को विस्तार देने के इच्छुक समाजसेवी भागीदारों के बीच क्षमता निर्माण की क्षमता के साथ एक प्रतिकृति मॉडल की आवश्यकता होती है। अपनी पहल के भीतर अन्य कार्यक्रमों को एकीकृत करने की चाह रखने वाले साझेदार के लिए आवश्यक है कि वे इस बात की पहचान करें कि अपने लक्षित समुदायों को प्रभावित करने के लिए इसे कैसे टिकाऊ बनाया जा सकता है। दोनों पक्षों के बीच साझेदारी के प्रारूप या मॉडल को लेकर स्पष्टता होनी चाहिए।
ई) समीक्षा: निगरानी और मूल्यांकन प्रणालियां सहयोगी कार्रवाई की दिशा में सूचित करने और जवाबदेही बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण आंकड़े प्रदान करती हैं। बीच-बीच में होने वाली समीक्षाओं में संचालन के प्रभावी होने, परिभाषित लक्ष्यों को प्राप्त करने में प्रगति और सामूहिक रूप से भागीदारों के कामकाज जैसे पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। साझेदारों में आंकड़ों को लेकर पारदर्शिता रहने से प्रत्येक व्यक्ति को आम तथा संगठनात्मक लक्ष्यों को प्राप्त करने में अपने योगदान को लेकर सोचने में आसानी होती है और वह अपने योगदान के उचित आकलन में सक्षम हो पाता है।
इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ें।
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अधिक जानें
- यह लेख संकट में साझेदारी का विश्लेषण करने वाले एक पेपर पर आधारित है जो सामाजिक क्षेत्र के 13 नेताओं से भविष्य में सहयोगात्मक कार्रवाई के लिए अंतर्दृष्टि प्राप्त करता है।
- अंतर-क्षेत्रीय साझेदारी पर आधारित इस वेबिनार ऋंखला को देखें।
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