गृह मंत्रालय ने 26 मई 2025 को एक अधिसूचना जारी कर विदेशी अंशदान (विनियमन) नियम, 2011, यानी एफसीआरए में संशोधन किए हैं।
ये संशोधन गैर-लाभकारी संगठनों के लिए वित्तीय जानकारी देने के तरीके को अधिक स्पष्ट बनाने और उनकी प्रकाशन से जुड़ी गतिविधियों के अनुपालन से संबंधित हैं।
विशेष रूप से, ये संशोधन निम्नलिखित ऑनलाइन फॉर्म्स में अतिरिक्त जानकारी देने की जरूरत से संबंधित हैं:
- FC-3A: एफसीआरए के तहत पंजीकरण के लिए आवेदन का ऑनलाइन फॉर्म
- FC-3B: एफसीआरए के तहत विदेशी अंशदान प्राप्त करने की पूर्व अनुमति के लिए आवेदन का ऑनलाइन फॉर्म
- FC-3C: एफसीआरए पंजीकरण के नवीनीकरण के लिए आवेदन का ऑनलाइन फॉर्म, और
- FC-4: वित्तीय वर्ष के दौरान प्राप्त और खर्च किए गए विदेशी अंशदान का विवरण देने का ऑनलाइन फॉर्म
मुख्य बदलाव
इन फॉर्मों में किए गए संशोधनों के तहत अब गैर-लाभकारी संगठनों से अधिक विस्तृत वित्तीय विवरण और रिपोर्टिंग की अपेक्षा की जाएगी, जिसमें प्रमाणन की जिम्मेदारी ऑडिटरों को सौंपी गयी है। उदाहरण के लिए, यदि किसी संगठन के एफसीआरए पंजीकरण के लिए किए गए आवेदन में पिछले तीन वित्तीय वर्षों के गतिविधि-खर्च का विवरण ऑडिट रिपोर्ट या वित्तीय विवरणों में शामिल नहीं है, तो एक चार्टर्ड अकाउंटेंट का प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करना अनिवार्य होगा। इसका निर्धारित फॉर्मेट एफसीआरए की वेबसाइट पर उपलब्ध है, जिसमें संगठन की गतिविधियों के खर्चों को आय-व्यय खाते और रसीद-भुगतान खाते के साथ मेल कर प्रस्तुत करना होता है।
संशोधित FC-3A फॉर्म में यह भी अनिवार्य किया गया है कि यदि संगठन प्रकाशन से जुड़ी गतिविधियों में संलग्न है, या यदि प्रकाशन कार्य उसके ज्ञापन/ट्रस्ट डीड में उल्लिखित उद्देश्यों में शामिल है, तो मुख्य पदाधिकारी द्वारा एफसीआरए अधिनियम, 2010 की धारा 3(1)(g) के अनुपालन के संबंध में एक घोषणा पत्र (अंडरटेकिंग) देना आवश्यक होगा। इसका फॉर्मेट एफसीआरए की वेबसाइट पर उपलब्ध है।
इसके अलावा, यदि संगठन का कोई प्रकाशन भारत के समाचारपत्र पंजीयक से पंजीकृत है, तो उसे एफसीआरए वेबसाइट पर उपलब्ध निर्धारित फॉर्मेट में “यह समाचार पत्र नहीं है” का एक प्रमाण-पत्र भी प्रस्तुत करना होगा।
एफसीआरए अधिनियम, 2010 की धारा 3(1)(g) के अनुसार, “कोई भी विदेशी अंशदान किसी ऐसे संगठन या कंपनी द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता, जो किसी भी इलेक्ट्रॉनिक माध्यम या सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 2(1)(r) में वर्णित किसी अन्य इलेक्ट्रॉनिक स्वरूप या जनसंचार के किसी भी अन्य माध्यम से ऑडियो समाचार, ऑडियो-विजुअल समाचार या समसामयिक विषयों पर कार्यक्रमों के निर्माण या प्रसारण में संलग्न हो।”
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 2(1)(r) के अनुसार, “इलेक्ट्रॉनिक स्वरूप का अर्थ है वह कोई भी सूचना, जो किसी भी माध्यम, जैसे मीडिया, मैग्नेटिक ऑप्टिकल, कंप्यूटर मेमोरी, माइक्रोफिल्म, कंप्यूटर-जनित माइक्रोफिश या इसी प्रकार की किसी अन्य तकनीक में उत्पन्न, भेजी, प्राप्त या संग्रहित की गई हो।

गैर-लाभकारी संगठनों के लिए इसका क्या मतलब है
कई गैर-लाभकारी संस्थाएं अपनी समाजसेवी या जनहित गतिविधियों की जानकारी देने के लिए प्रिंट या डिजिटल माध्यम से न्यूजलेटर और पत्रिकाएं प्रकाशित करती हैं। ये प्रकाशन उनके सदस्यों, दाताओं, लाभार्थियों और अन्य हितधारकों को जागरूक करने का माध्यम होते हैं। अगर ऐसा प्रकाशन भारत के समाचारपत्र पंजीयक (आरएनआई) से पंजीकृत है, तो संस्था को आरएनआई से “यह समाचारपत्र नहीं है” का प्रमाण-पत्र लेना जरूरी है।
कई गैर-लाभकारी संगठन रियायती डाक शुल्क का लाभ उठाने के लिए अपने न्यूजलेटर को ‘समाचारपत्र’ के रूप में प्रेस पंजीकरण और पुस्तक अधिनियम, 1867 के अंतर्गत पंजीकृत कराते हैं। हालांकि, डाकघर अधिनियम, 1898 के अंतर्गत ‘समाचारपत्र’ के रूप में पंजीकरण करना, आरएनआई से पंजीकरण कराने के समान नहीं है। फिर भी, केवल डाक शुल्क बचाने के उद्देश्य से इस तरह का पंजीकरण कराने से बचने की सलाह दी जाती है।
सोशल मीडिया पर चल रही गलत सूचनाओं के विपरीत, एफसीआरए के अंतर्गत पंजीकृत गैर-लाभकारी संगठन अपने न्यूजलेटर को प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रकाशित करना जारी रख सकते हैं। हालांकि,
- इनमें दी जाने वाली जानकारी केवल संगठन की अपनी परोपकारी गतिविधियों तक सीमित होनी चाहिए और इसे उसके सदस्यों, दाताओं, लाभार्थियों और अन्य हितधारकों के लिए प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
- यदि न्यूजलेटर पंजीयक से पंजीकृत है, तो गैर-लाभकारी संगठन को भारत के समाचारपत्र पंजीयक (आरएनआई) से “यह समाचार पत्र नहीं है” का प्रमाण पत्र प्राप्त करना आवश्यक है।
- यदि गैर-लाभकारी संगठन प्रकाशन से संबंधित गतिविधियों में संलग्न है या उसके उद्देश्य एवं उद्देश्यों में प्रकाशन गतिविधियां शामिल हैं — जैसा कि उसके संगठन ज्ञापन या ट्रस्ट डीड में उल्लिखित हो — तो उसके मुख्य कार्यकारी से विदेशी अंशदान (नियमन) अधिनियम, 2010 (2010 का अधिनियम संख्या 42) की धारा 3(1)(g) के अनुपालन के संबंध में एक घोषणा-पत्र, गृह मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध निर्धारित फॉर्मेट में प्रस्तुत करना आवश्यक है।
यह लेख मूल रूप से सेंटर फॉर एडवांसमेंट ऑफ फिलान्थ्रपी द्वारा अंग्रेजी में प्रकाशित किया गया था।
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