भारत में लाखों लोगों के लिए खाद्य सब्सिडी की उपलब्धता लगातार अस्थिर होती जा रही है। इसका एक बड़ा कारण राशन कार्ड के लिए अनिवार्य इलेक्ट्रॉनिक नो योर कस्टमर (ई-केवायसी) सत्यापन प्रक्रिया में होने वाली गड़बड़ियां हैं। पिछले कुछ समय में कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनमें लोगों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत मिलने वाली सुविधाओं से वंचित कर दिया गया है, या फिर राज्य सरकारों ने बड़ी संख्या में उनके राशन कार्ड रद्द कर दिए हैं।
मई 2025 में लिबटेक के एक अध्ययन के तहत, हमने झारखंड के लातेहार जिले में प्रवासी मजदूरों के साथ बातचीत की। लिबटेक इंजीनियरों, समाज विज्ञानियों और नीति से जुड़े शोध करने वालों का एक समूह है, जो तकनीक के जरिए सार्वजनिक सेवाओं को बेहतर बनाने पर काम करता है। इस अध्ययन के दौरान कई मजदूरों ने बताया कि वे राशन अधिकार के तहत मिलने वाली सुविधाओं को लेकर दुविधा और चिंता में हैं।
इस अध्ययन में 25 वर्षीय पंकज सिंह* भी शामिल थे, जो गुजरात में बतौर निर्माण श्रमिक काम करते हैं। वे अपने काम की जगह के आसपास कोई ऐसी उचित मूल्य की दुकान (राशन दुकान) नहीं खोज पाए, जहां ई-केवायसी की प्रक्रिया पूरी की जा सके। मुंबई में रहने वाले 40 वर्षीय शांतनु सिंह* एक पेंटर हैं। वह अपने आसपास ऐसी जगह ढूंढने में सफल रहे, जहां ई-केवायसी करवाई जा सकती थी। लेकिन उन्हें यह कहकर लौटा दिया गया कि चूंकि उनके राशन कार्ड पर उनके झारखंड स्थित गांव का पता दर्ज है, इसलिए उन्हें वहीं जाकर यह प्रक्रिया पूरी करनी होगी। उम्र के तीसरे दशक में पहुंच चुकी प्राची कुमारी* त्रिपुरा में निर्माण श्रमिक हैं। वहपास की राशन दुकान पर जाकर ई-केवायसी करवाने में सफल तो रहीं, लेकिन पीडीएस पोर्टल पर उनकी यह जानकारी दिखाई नहीं देती है। इस पोर्टल पर हर राशन कार्ड धारक और उनके ई-केवायसी की स्थिति की जानकारी दर्ज होती है।
यह कहानियां बताती हैं कि देशभर में सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित तबकों के सामने एक नया संकट उभर रहा है। वे भोजन के अपने अधिकार का उपयोग करने के लिए जिस व्यवस्था पर निर्भर हैं, उसी में अचानक और अपारदर्शी बदलावों का सबसे बड़ा खामियाजा उन्हें उठाना पड़ रहा है।
25 मार्च, 2025 को उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय (एमओसीएएफपी) ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एक नोटिस जारी किया था। इसमें राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के तहत सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के पात्र सभी राशन कार्ड धारकों की ई-केवायसी प्रक्रिया को अप्रैल 2025 के अंत तक पूरा करने को कहा गया था। मंत्रालय ने यह भी स्पष्ट किया था कि हालांकि अधिनियम के तहत आने वाले लाभार्थियों की ई-केवायसी प्रक्रिया पहले से चल रही है, लेकिन निर्धारित समय सीमा तक 100 प्रतिशत सत्यापन नहीं होने पर सब्सिडी रोकी जा सकती है और खाद्यान्न आवंटन में कटौती की जा सकती है।

ई-केवायसी सत्यापन में लाभार्थियों की पहचान बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण के जरिए की जाती है। इसके बाद उनके आधार कार्ड पर दर्ज व्यक्तिगत जानकारी को राशन कार्ड की जानकारी से मिलाया जाता है। इसके लिए राशन कार्ड से जुड़े हर सदस्य को सबसे पहले अपना आधार नंबर लिंक करना होता है। फिर उन्हें उचित मूल्य की दुकान पर लगी इलेक्ट्रॉनिक पॉइंट ऑफ सेल (ई-पॉस) मशीनों के जरिए बायोमेट्रिक या आइरिस स्कैन से सत्यापन करवाना होता है। लेकिन सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि हाशिए पर रह रहे समुदायों को इस प्रक्रिया में कई तरह की अड़चनों का सामना करना पड़ रहा है।
ई-केवायसी प्रक्रिया का विकास
ई-केवायसी को लेकर एमओसीएएफपी की पहली महत्वपूर्ण अधिसूचना 20 अगस्त, 2019 को जारी हुई थी। इसमें सत्यापन के उद्देश्य बताए गए थे और इसके कार्यान्वन से जुड़ी प्रक्रियाओं पर सुझाव दिए गए थे। मार्च 2023 में जारी एक अन्य एडवाइजरी में यह स्पष्ट किया गया था कि 95 प्रतिशत राशन कार्ड धारकों के आधार नंबर लिंक किए जा चुके हैं। लेकिन इसमें यह भी रेखांकित किया गया था कि इनका सत्यापन अब भी एक गंभीर चुनौती बना हुआ है।
मंत्रालय के मुताबिक, पहले हर राशन कार्ड धारक परिवार में से केवल एक सदस्य को ही उचित मूल्य की दुकान से राशन लेते समय बायोमेट्रिक सत्यापन करवाना होता था। इससे बाकी सदस्यों की पहचान की जांच नहीं हो पाती थी, जिसके चलते पूरी व्यवस्था में कुछ फर्जी या अपात्र लोगों के भी शामिल होने की आशंका रहती थी। इसलिए मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि राशन कार्ड पर दर्ज हर व्यक्ति का आधार नंबर सही व्यक्ति से जुड़ा हो और यह सिर्फ आधार आधारित बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण से ही संभव है। इसी कारण, जून 2024 में एक और पत्र जारी कर देशभर के सभी राशन कार्ड धारकों का 100 प्रतिशत ई-केवायसी सत्यापन अनिवार्य कर दिया गया।
25 मार्च, 2025 को संसद में दिए गए एक जवाब में बताया गया था कि देश के 100 प्रतिशत राशन कार्डों का डिजिटलीकरण हो चुका था, 99.3 प्रतिशत राशन कार्ड आधार से जुड़ चुके थे, और 99.6 प्रतिशत उचित मूल्य की दुकानों पर ई-पॉस मशीनें लगाई जा चुकी थी। देशभर में कुल राशन कार्ड धारकों में से 75.69 प्रतिशत का ई-केवायसी पूरा हो चुका था। इसमें कर्नाटक 98.2 प्रतिशत पूर्णता के साथ सबसे आगे था, जबकि दिल्ली में यह आंकड़ा सबसे कम, मात्र 6.6 प्रतिशत था।
ओडिशा उन शुरुआती राज्यों में से एक है जिसने अगस्त 2024 में ही ई-केवायसी अभियान शुरू कर दिया था। इसका उद्देश्य 50 लाख से अधिक फर्जी राशन कार्डों को रद्द करना और वितरण व्यवस्था को सुचारू बनाना था। लेकिन तब से इस प्रक्रिया की समय-सीमा कई बार बढ़ाई जा चुकी है। इसी दौरान सरकार ने ई-केवायसी पूरा न होने का हवाला देकर 20 लाख से अधिक पात्र लाभार्थियों के लिए चावल वितरण ‘अस्थायी तौर पर रोक’ दिया था। वहीं, दूसरी ओर कुछ ऐसे मामले भी सामने आए हैं जहां ई-केवायसी लंबित होने के बावजूद नए राशन कार्ड जारी कर दिए गए हैं।
आधार आधारित सत्यापन के कारण व्यवस्था से वंचित होते लोग
बायोमेट्रिक सत्यापन अक्सर उन लोगों के लिए विफल हो जाता है, जो लंबे समय से शारीरिक श्रम कर रहे हैं। जैसे, निर्माण श्रमिक, घरेलू कामगार और किसान। लगातार मेहनत के कारण उनके अंगूठों और उंगलियों के निशान मिट जाते हैं, जिससे पहचान दर्ज नहीं हो पाती। बच्चे और बुजुर्ग, जिनका बायोमेट्रिक डेटा अस्थिर या पूरी तरह विकसित नहीं होता, को भी ऐसी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। चूंकि भोजन तक पहुंच की पात्रता अद्यतन आंकड़ों पर निर्भर करती है, इसलिए इन समूहों को सबसे ज्यादा मुश्किल का सामना करना पड़ता है।
कमजोर इंटरनेट कनेक्टिविटी और अन्य तकनीकी खामियों के चलते यह समस्या और गंभीर हो जाती है। ई-पॉस मशीनों, राशन डेटाबेस और आधार प्रणाली के बीच लोगों की जानकारियां फंस जाती हैं और सत्यापन बीच में ही अटक जाता है। नतीजतन, देश के सबसे वंचित नागरिक उसी खाद्य प्रणाली से बाहर हो जाते हैं, जो उन्हें भूख से बचाने के लिए बनाई गई थी।
लातेहार में फील्डवर्क के दौरान हमारी मुलाकात 45 वर्षीय किसान गंगाधर* से हुई थी। उन्हें एक दिन पता चला कि उनका आधार नंबर उनकी जानकारी के बगैर उनकी पत्नी के राशन कार्ड से जुड़ गया है। नतीजतन, जब वे ई-केवायसी करवाने उचित मूल्य की दुकान पर पहुंचे, तो डीलर ने उन्हें यह कहकर लौटा दिया कि उनकी पत्नी का नाम राशन कार्ड पर दो बार दिख रहा है। देश भर में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिसमें राशन कार्ड और आधार को जोड़ने (सीडिंग) की प्रक्रिया में गलतियां हुई हैं। कई बार ऐसे कार्ड बिना किसी जांच या शिकायत निवारण के रद्द कर देने की धमकी भी दी गई है। इससे गंगाधर जैसे लोग बिना किसी समाधान के व्यवस्था से बाहर हो जाते हैं।

एक दशक पहले जब पीडीएस में आधार को शामिल किया गया था, तब से अब तक इसमें हुई अनियमितताओं के बेहद गंभीर प्रभाव देखने को मिले हैं। 2017 में राइट टू फूड कैम्पेन (आरटीएफसी) के तहत ऐसे 20 से अधिक मामले दर्ज किए गए थे, जहां आधार से जुड़ी समस्याओं के कारण लोगों को पीडीएस से राशन नहीं मिल पाया था और उनकी भूख से मौत हो गई थी। स्टेट ऑफ आधार रिपोर्ट (2020) भी बताती है कि पीडीएस दुकानों पर जिन लोगों का सत्यापन विफल हुआ था, उनमें से 30 प्रतिशत से अधिक को बिल्कुल भी राशन नहीं मिल सका।
सुदूर ग्रामीण इलाकों में कमजोर नेटवर्क के कारण विफल होता सत्यापन
ग्रामीण और दूर-दराज के इलाकों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली में ई-केवायसी लागू करने में कमजोर नेटवर्क कनेक्टिविटी लंबे समय से बाधा बनी हुई है। उदाहरण के लिए, प्रतापगढ़ के आदिवासी क्षेत्रों में आशा कार्यकर्ताओं ने बताया कि आयुष्मान भारत योजना के पात्र लाभार्थियों का ई-केवायसी भी खराब इंटरनेट कनेक्टिविटी के कारण पूरा नहीं हो पा रहा है। ओडिशा में तो नेटवर्क की समस्या इतनी गंभीर है कि यह नियमित राशन वितरण में भी रुकावट डालती है। इसी वजह से सरकार को ई-केवायसी की समय-सीमा बढ़ानी पड़ी, क्योंकि 341 दुकानों पर राशन कार्ड धारक अपनी जानकारी अपडेट नहीं कर सके थे।
पिछले कई सालों से आधार सत्यापन सेवाओं में तकनीकी रुकावटें दर्ज की जाती रही हैं। 2023 में भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) ने स्वीकार किया था कि ओटीपी में देरी और सर्वर अस्थिरता जैसी दिक्कतों के कारण उनकी सेवाएं 54 घंटे से अधिक समय तक ठप रहीं, जिससे बायोमेट्रिक सत्यापन की विश्वसनीयता प्रभावित हुई। लेकिन यह कोई नई समस्या नहीं है। 2017 की एक रिपोर्ट में हैदराबाद में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत आधार-आधारित बायोमेट्रिक सत्यापन (एबीबीए) प्रणाली में ‘जटिलताएं और समस्याएं’ दर्ज की गई थी। इस रिपोर्ट के मुताबिक, सर्वे में शामिल 66 प्रतिशत परिवारों का कहना था कि उन्हें इस व्यवस्था के पांच तकनीकी हिस्सों में से कम से कम एक में गड़बड़ी का सामना करना पड़ा था।
अपने स्थायी पते से दूर रहने को विवश प्रवासी मजदूर
प्रवासी मजदूर अक्सर अपने दर्ज पते से दूर रहते हैं। वहीं ई-केवायसी आधार से जुड़ी प्रक्रिया है, जिस पर उनका स्थायी पता दर्ज होता है। इस कारण अक्सर काम की तलाश में एक से दूसरी जगह पलायन करने वाले श्रमिकों को अपने अधिकार हासिल करने में दिक्कत आती है। आमतौर पर उनके पास न तो सही दस्तावेज होते हैं और न ही नई जगह पर ई-केवायसी से अपनी पहचान प्रमाणित करने की सुविधा होती है। नतीजतन, वे पीडीएस के तहत मिलने वाली सुविधाओं तक नहीं पहुंच पाते हैं।
जून 2024 में उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने एक आदेश जारी कर स्पष्ट किया था कि प्रवासी मजदूर अपने काम की जगह के निकट किसी भी उचित मूल्य की दुकान पर ई-पॉस मशीन से ई-केवायसी की प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं। इसके बाद उनकी जानकारी उनके गृह राज्य भेज दी जाएगी और वहां के अधिकारियों से मंजूरी मिलने के बाद ही सत्यापन पूरा माना जाएगा। लेकिन इस प्रावधान के बारे में जागरुकता की कमी और उचित मूल्य की दुकान के डीलरों द्वारा कई बार मनमाने तरीके से या बेवजह सत्यापन न करने जैसी घटनाओं के कारण, कई प्रवासी मजदूरों को ई-केवायसी करवाने के लिए अपने गृह राज्य जाना पड़ता है। इसके अलावा, मीडिया रिपोर्टों में यह भी सामने आया है कि कुछ डीलर प्रवासी मजदूरों से ई-केवायसी अपडेट करने के नाम पर भारी घूस भी वसूलते हैं।

राशन कार्ड से नाम कटने के डर से बेंगलुरु में सुरक्षा गार्ड की नौकरी कर रहे प्रवासी कामगार गिरिजा नायक* ई-केवायसी करवाने के लिए ओडिशा के नबरंगपुर स्थित अपने गांव गए थे। ठेके पर अस्थाई कर्मचारी के रूप में काम कर रहे गिरिजा ने हमें बताया कि इसके लिए छुट्टी लेते हुए उन्हें यह डर भी था कि कहीं उनकी नौकरी ही न चली जाए।
ई-पॉस मशीन तक न पहुंच पाने वाले लोगों की दिक्कतों को देखते हुए एमओसीएएफपी ने मेरा ई-केवायसी मोबाइल ऐप की शुरुआत की। यह ऐप, आधार आधारित फेस ऑथेंटिकेशन तकनीक और वन टाइम पासवर्ड (ओटीपी) सत्यापन का इस्तेमाल कर ई-केवायसी की प्रक्रिया पूरी करता है।
हालांकि यह ऐप उपयोगी है, लेकिन लिबटेक द्वारा किए जा रहे एक अध्ययन में पाया गया है कि इसका इस्तेमाल बहुत ही कम राशन कार्ड धारक कर पा रहे हैं। इनमें अधिकांश सिर्फ वे लोग शामिल हैं, जिनके पास स्मार्टफोन और इंटरनेट कनेक्टिविटी है और जिनका मोबाइल नंबर उनके आधार कार्ड से लिंक हो चुका है।
प्रक्रियाओं की स्पष्ट जानकारी की सीमित समझ
पीडीएस के तहत मिलने वाली सुविधाओं के लिए ई-केवायसी को अनिवार्य बनाने की कोशिशों के बाद भी इसकी जरूरत, समय-सीमा और नियमों का पालन न करने से जुड़े नतीजों के बारे में पर्याप्त जानकारी मौजूद नहीं है। इन प्रक्रियाओं को लेकर पारदर्शिता न होने के कारण राशन कार्ड धारकों में भ्रम और चिंता की स्थिति है । ज्यादातर लोग यह नहीं जानते हैं कि ई-केवायसी प्रक्रिया के चरण क्या हैं और इसे पूरा न करने का उनके जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
लाइसेंस की शर्तों के मुताबिक, पात्र लाभार्थियों का सत्यापन या पुनर्सत्यापन करना डीलर्स की जिम्मेदारी नहीं है।
ई-केवायसी से जुड़ी जानकारी पात्र लोगों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी अक्सर उचित मूल्य की दुकान के डीलरों पर डाल दी जाती है। लेकिन पर्याप्त प्रशिक्षण और जरूरी संसाधनों के अभाव में यह डीलर लोगों को सही जानकारी नहीं दे पाते हैं। इसके अलावा, भोजन के अधिकार पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं ने यह भी देखा है कि राशन दुकानदारों को ई-केवायसी सत्यापन करवाने की जिम्मेदारी भी दे दी गई है। इससे उन्हें राशन कार्ड जारी करने या रद्द करने का अधिकार मिल गया है, जो असल में खाद्य विभाग की जिम्मेदारी है।
डीलर खुद भी इस जिम्मेदारी को लेकर उलझन में हैं। दिसंबर 2024 में दिल्ली सरकारी राशन डीलर्स संघ ने इसे थोपा गया काम’ कहकर दिल्ली हाइकोर्ट में एक याचिका दायर की थी। इसमें साफ तौर पर कहा गया था कि राशन के डीलर प्राइवेट पार्टी हैं, जिनके पास केवल राज्य के खाद्य विभाग से राशन प्राप्त कर उसे अपनी दुकानों से जुड़े राशन कार्ड धारकों को बांटने का लाइसेंस है। लाइसेंस की शर्तों के मुताबिक, पात्र लाभार्थियों का सत्यापन या पुनर्सत्यापन करना डीलर्स की जिम्मेदारी नहीं है। यह काम खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के अधिकारियों और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत हर राज्य में बनी सतर्कता समितियों का है।
बीते जून में गुजरात फेयर प्राइस शॉप्स एंड केरोसिन लाइसेंस होल्डर्स एसोसिएशन ने भी राज्य में विरोध प्रदर्शन किया था। एसोसिएशन का कहना था कि ई-केवायसी की नई अनिवार्यता ‘अन्यायपूर्ण और अव्यावहारिक’ है। इस विरोध के चलते कुछ समय के लिए पीडीएस सेवाएं ठप्प हो गयी थी और हजारों लोग राशन से वंचित रह गए थे।
यह भोजन के अधिकार का हनन है
राशन कार्ड धारकों के लिए ई-केवायसी से जुड़ी अस्पष्ट प्रक्रियाएं और सत्यापन की लगातार विफलताएं उनकी खाद्य सुरक्षा में बाधा बन रही हैं। इसे देखते हुए सामाजिक कार्यकर्ताओं और आरटीएफसी जैसे संगठनों ने सरकार से मांग की है कि इस प्रक्रिया को तुरंत रोका जाए। उनकी राय है कि इसके बजाय मार्च 2024 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करते हुए आठ करोड़ प्रवासी और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को राशन कार्ड दिए जाएं। साथ ही यह भी मांग की गयी है कि पीडीएस से ई-केवायसी और आधार लिंकिंग जैसी बहिष्कारी डिजिटल प्रक्रियाओं को पूरी तरह समाप्त किया जाए।
जब सस्ती दरों पर अनाज पाने के लिए बायोमेट्रिक सत्यापन, लगातार नेटवर्क कनेक्टिविटी और जटिल सरकारी प्रक्रियाओं का पालन अनिवार्य बना दिया जाता है, तो भोजन का अधिकार महज एक सशर्तसुविधा भर बनकर रह जाता है। इस तरह का तकनीकी-समाधानवादी नजरिया लोगों के जीवन की वास्तविकताओं, व्यवस्थागत बहिष्कार और सार्वजनिक ढांचे की विफलताओं को भी नजरअंदाज कर देता है। नतीजतन, यह एनएफएसए की मूल भावना को ही कमजोर कर देता है, जो भोजन सुरक्षा को मौलिक अधिकार की तरह देखने की बात कहती है।
कार्यकुशलता और पारदर्शिता जैसे शब्दों के पीछे छिपी अनिवार्य ई-केवायसी व्यवस्था ने डिजिटल ढांचे को हथियार बनाकर लोगों को सीमित डिजिटल पहचान के आधार पर वंचित करने का काम किया है। ऐसा करते हुए प्रशासन, भोजन सुरक्षा सुनिश्चित करने के अपने अपने संवैधानिक दायित्व से मुंह मोड़ लेता है। भोजन का अधिकार किसी डिजिटल पहचान पर आधारित नहीं हो सकता है और न होना चाहिए। इस राह पर आगे बढ़ते रहना दरअसल सोची-समझी भुखमरी को नीतिगत स्वीकृति देने से कम नहीं है।
*गोपनीयता बनाए रखने के लिए नाम बदल दिए गए हैं।
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