January 18, 2023

मनरेगा में हर साल बुज़ुर्ग कार्यबल का बढ़ना अनौपचारिक क्षेत्र की ख़राब रोज़गार नीतियों का संकेत है

भारत के कार्यबल की उम्र बढ़ने के साथ अनौपचारिक क्षेत्र की नीतियों में सुधार की जरूरत भी बढ़ रही है। बुज़ुर्ग श्रमिकों को बेरोजगारी से बचाने के लिए वित्तीय सुरक्षा उपाय अपनाए जाने चाहिए।
7 मिनट लंबा लेख

‘भारत के पास दुनिया का सबसे बड़ा युवा कार्यबल है,’ यह एक ऐसी बात है जिसे देश की जनसांख्यिकी के फ़ायदे गिनवाते हुए जब-तब दोहराया जाता है। भारत के युवाओं से जुड़ी सम्भावनाओं को लेकर पैदा हुए इस उत्साह ने, इस तथ्य को दबा दिया है कि देश में मृत्यु दर में आ रही गिरावट के कारण यहां बुज़ुर्ग लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा हाल ही में भारत में युवा 2022 रिपोर्ट ने इस बदलते जनसांख्यिकीय बदलाव की बात की है। रिपोर्ट के अनुसार, 2011 से 2036 की अवधि के उत्तरार्ध में गिरावट आने से पहले युवा आबादी (15-29 वर्ष की आयु) के बढ़ने की उम्मीद है। भारत की कुल जनसंख्या में युवाओं का अनुपात 1991 में 26.6 प्रतिशत था जो 2016 में बढ़कर 27.9 प्रतिशत हो गया। ऐसा अनुमान है कि 2036 तक जनसंख्या में उनकी हिस्सेदारी घटकर 22.7 फ़ीसद हो जाएगी। इसके विपरीत, कुल जनसंख्या में बुजुर्गों का अनुपात जो 1991 में 6.8 प्रतिशत था, वह 2016 में बढ़कर 9.2 प्रतिशत हो गया है। ऐसी उम्मीद की जा रही है कि यह आंकड़ा 2036 में 14.9 फ़ीसद तक पहुंच जाएगा। एक अन्य पूर्वानुमान के अनुसार, 2061 तक, भारत में हर चौथा व्यक्ति 60 से अधिक उम्र का होगा

जैसे-जैसे भारत की आबादी की उम्र बढ़ रही है, हमें अधिक उम्र के उन लोगों के बारे में सोचना शुरू करना होगा जो अपेक्षाकृत कमजोर और असुरक्षित हैं। इसमें असंगठित क्षेत्र के बुज़ुर्ग श्रमिक शामिल हैं जो देश की कुल कार्यबल का 90 फ़ीसद से भी अधिक काम सम्भालते हैं।

असंगठित क्षेत्र के बुज़ुर्ग श्रमिक बहुत असुरक्षित हैं

आंकड़ों में परेशान करने वाले संकेत पहले से ही दिखाई पड़ रहे हैं। 2020-21 में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) योजना के तहत 61 वर्ष और उससे अधिक आयु के कुल 138.54 लाख लोगों को रोज़गार मिला था। यह संख्या हर साल बढ़ रही है – 2019–20 में यह 100.08 लाख थी और 2018–19 में 93.85 लाख। बुज़ुर्ग श्रमिक मनरेगा से मिलने वाली आर्थिक सुरक्षा के लिए वापस लौट रहे हैं। उनका लौटना इस बात का संकेत है कि बुढ़ापे में उनकी उचित देखभाल नहीं हो रही है। वित्तीय सुरक्षा की कमी भी इन वयोवृद्ध लोगों के लिए एक बड़ा ख़तरा है जिनके पास पैसे कमाने के लिए पर्याप्त विकल्प एवं अवसर उपलब्ध नहीं हैं। वर्तमान में, असंगठित वर्ग की श्रेणी में लगभग 25 लाख लोगों को राष्ट्रीय पेंशन योजना का लाभ मिलता है। यह संख्या भारत में असंगठित क्षेत्र के कुल आकार का मात्र 0.6 फ़ीसद है। ये आंकड़े चिंता का कारण हैं क्योंकि वृद्ध जनसंख्या में केवल वृद्धि ही होने वाली है।

असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों के पास संगठित क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों की तरह सेवानिवृति या रिटायरमेंट की कोई तय उम्र नहीं होती है। असंगठित क्षेत्रों में मिलने वाली कम मज़दूरी और आय की असुरक्षा के कारण इस क्षेत्र में काम करने वाले लोग इस स्थिति में आ जाते हैं कि उन्हें दिहाड़ी मज़दूरी करनी पड़ती है। स्वनीति संस्था के लोग महाराष्ट्र में असंगठित श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा पर किए जाने वाले अपने अध्ययन के लिए पुणे शहर के एक नाका (श्रमिक बाजार) गए। अपनी इस यात्रा में हमने देखा कि नाका पर युवाओं का वर्चस्व है और बुजुर्गों को काम लेने के लिए कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। बढ़ती उम्र के साथ शारीरिक क्षमता में कमी आने लगती है और इसलिए ठेकेदारों को अधिक शारीरिक श्रम करने वाले युवाओं को काम पर लगाना फ़ायदेमंद लगता है। पुणे में उस नाका के एक वरिष्ठ नागरिक ने हमें बताया कि “हमारी देखभाल करने वाला कोई नहीं है इसलिए हमें काम की तलाश में यहां आना पड़ता है। और ठेकेदार हमें काम पर नहीं लेना चाहते हैं क्योंकि हमारी उम्र अधिक है – वो सोचते हैं कि हम भारी सामान उठाने का काम नहीं कर सकते हैं।”

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असंगठित क्षेत्र में सेवानिवृति की तय उम्र सीमा नहीं है इसलिए ये लोग जब तक शरीर साथ देता है तब तक काम करते हैं। मज़दूरी बहुत कम होती है और यह उस दिन मिलने वाले काम की प्रकृति पर निर्भर करता है। यह आर्थिक सच्चाई बहुत सारे बुज़ुर्ग श्रमिकों को रोज़ काम करने की स्थिति में लाकर खड़ा कर देती है। जैसे ही कोई मज़दूर बूढ़ा होने लगता है उसकी ‘मार्केट वैल्यू’ में कमी आने लगती है। बुज़ुर्ग श्रमिक अपने जीवनयापन के लिए हर दिन काम करना चाहते हैं लेकिन उन्हें नाकों पर खड़े युवाओं (जो खुद बेरोजगारी संकट का सामना कर रहे हैं और उन्हें अनौपचारिक क्षेत्र का सहारा लेना पड़ता है) की भीड़ से मुक़ाबला करने में परेशानी होती है।

मशीन पर लटकी लाल जैकेट-बुजुर्ग कार्यकर्ता
आर्थिक संकट के कारण अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले वरिष्ठ नागरिक बीमारी और दर्द के साथ जीवन बिताने को मजबूर होते हैं। | चित्र साभार: सुजय पान

सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की नीतियों को बनाने की आवश्यकता है

1999 में स्थापित, नेशनल पॉलिसी ऑन ओल्डर पर्सन्स (एनपीओपी) देश की उम्रदराज़ आबादी पर निर्देशित पहली प्रमुख नीतियों में से एक थी। वर्तमान में, देश की वरिष्ठ आबादी पर केंद्रित एक व्यापक नीति अटल वयो अभ्युदय योजना (जिसे पहले वरिष्ठ नागरिकों के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना या NAPSrC के रूप में जाना जाता था) है। यह योजना केवल वरिष्ठ नागरिकों की बुनियादी ज़रूरतों पर ही नहीं बल्कि जीवन के कई पहलुओं पर ध्यान देती है। लेकिन यह यहीं तक सीमित नहीं है। यह नीति युवा और वृद्धों के बीच अंतर-पीढ़ी संबंधों की बात भी करती है। इसका उद्देश्य पूरे देश में क्षेत्रीय संसाधन और प्रशिक्षण केंद्रों के माध्यम से सक्रिय और उत्पादक उम्र को सुनिश्चित करना है।

दो पेंशन योजनाएं भी हैं जो भारत में अनौपचारिक क्षेत्र पर केंद्रित हैं—प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन (पीएमएसवाईएम) और अटल पेंशन योजना (एपीवाई)। पीएमएसवायएम उन असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों पर ध्यान केंद्रित करता है जो 18-40 वर्ष की आयु के हैं और जिनकी मासिक आय 15,000 रुपये या उससे कम है। 60 वर्ष की आयु के बाद, उन्हें प्रति माह 3,000 रुपए की पेंशन का आश्वासन दिया जाता है। एपीवाई 18-40 वर्ष की आयु के गरीब और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों पर ध्यान केंद्रित करता है और प्रति माह 1,000-5,000 रुपये से लेकर सेवानिवृत्ति के बाद कई स्तरों पर पेंशन देता है। ये दोनों योजनाएं स्वैच्छिक और अंशदायी प्रकृति की हैं। हालांकि प्रति दिन काम खोजने वाले दिहाड़ी मज़दूरों के लिए अपनी गाढ़ी कमाई सरकार के पास जमा करने और कई सालों बाद उसका एक निश्चित हिस्सा ही पाने में सक्षम होने वाली बात स्वीकार कर पाना आसान नहीं होता है।

बुज़ुर्गों की ज़रूरतों पर हेल्पएज इंडिया द्वारा 2022 का एक अध्ययन ब्रिज द गैप बताता है कि भारत के बुज़ुर्गों को देखभाल और गरिमापूर्ण जीवन प्रदान करने का रास्ता बहुत लंबा है। बुज़ुर्गों के साथ किए गए सैम्पल सर्वे के अनुसार 47 फ़ीसद बुज़ुर्गों को अपने परिवारों से पैसे मांगने पड़ते हैं और 21 फ़ीसद को जीवनयापन के लिए काम का सहारा लेना पड़ता है। इसके अतिरिक्त, 57 फ़ीसद बुज़ुर्ग तात्कालिक वित्तीय असुरक्षा का सामना करते हैं। लगभग 45 फ़ीसद ने पेंशन की अपर्याप्तता और 38 फ़ीसद ने वित्तीय असुरक्षा के कारणों के रूप में रोजगार के अवसरों की कमी की बात कही है। ये आंकड़े इस बात को रेखांकित करते हैं कि उन विकल्पों की कमी है जो बड़े-बूढ़ों को स्वायत्ता और अपने जीवन पर नियंत्रण दे सकते हैं।

नीति सुझाव

अनौपचारिक क्षेत्र के पूर्व श्रमिकों के लिए स्वास्थ्य देखभाल प्रावधानों पर विशेष ध्यान राष्ट्रीय योजना के लिए एक उपयोगी चीज़ हो सकती है। आर्थिक संकट के कारण अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले लोग बीमारियों और दर्द के साथ जीवन जीने पर मजबूर हो सकते हैं। हेल्पएज इंडिया की रिपोर्ट इस तथ्य को दर्शाती है कि 67 फ़ीसद बुजुर्गों के पास कोई स्वास्थ्य बीमा नहीं है और केवल 52 फ़ीसद बुज़ुर्ग ही स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े विकल्पों का उपयोग करने में सक्षम हो पाते हैं।

संकट पड़ने पर अनौपचारिक क्षेत्र में वृद्ध लोगों के काम करने का प्राथमिक कारण रिटायरमेंट के बाद जीवन जीने के लिए जरूरी धन और बचत की कमी है।

बुज़ुर्ग लोगों के लिए अधिक शारीरिक परिश्रमिक की मांग वाले काम करना उचित नहीं होता है। अनौपचारिक अर्थव्यवस्था का खराब विनियमित सुरक्षा वातावरण उनके लिए एक अतिरिक्त खतरा बन गया है। राष्ट्रीय योजना यह सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित कर सकती है कि ऐसे व्यक्तियों को वृद्धाश्रम और देखभाल के सुरक्षित घेरे में लाया जा सके।

संकट आने पर अनौपचारिक क्षेत्र में वृद्ध लोगों के काम करने का प्राथमिक कारण सेवानिवृति के बाद जीवनयापन के लिए आवश्यक धन और बचत का न होना है। यह अनौपचारिक क्षेत्र में वरिष्ठ नागरिकों के लिए एक न्यायसंगत और समावेशी सेवानिवृत्ति और पेंशन योजना प्रदान करने की आवश्यकता का संकेत देता है। राज्य द्वारा प्रदान की जाने वाली पेंशन योजनाओं में एक घटक शामिल किया जा सकता है जो 60 साल की उम्र में योजना से केवल एक फ्री एग्जिट देने की बजाय अलग-अलग समय पर यह सुविधा देता हो।

निजी क्षेत्र को भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए क्योंकि यह अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा किए गए कार्यों पर निर्भर होता है। उप-अनुबंधित इकाइयों के तहत काम करने वाले श्रमिकों को उन औपचारिक निगमों के तत्वावधान में रखा जाना चाहिए जिनके लिए वे अप्रत्यक्ष रूप से काम करते हैं। उन्हें पेंशन और स्वास्थ्य सुविधाओं के विकल्प प्रदान किए जा सकते हैं। निजी क्षेत्र में बड़ी संगठित कंपनियों के लिए काम करने वाली उप-अनुबंधित अनौपचारिक क्षेत्र की इकाइयों में निर्धारित समय तक काम करने वाले श्रमिकों को पेंशन योजना के विकल्प प्रदान किए जाने चाहिए। यह काम के प्रति उनकी निष्ठा को सम्मान देने का एक तरीक़ा हो सकता है। पेंशन योजनाएं, समय के साथ कंपनी के खर्च को काफी हद तक बढ़ा देती हैं। इसलिए वृद्धाश्रम और आश्रय स्थल जैसे अन्य विकल्पों पर विचार किया जा सकता है। जिन क्षेत्रों में कंपनियां सक्रिय हैं, वहां बुज़ुर्गों की आबादी की देखभाल करने के लिए सीएसआर फ़ंडिंग भी एक महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण घटक हो सकता है। आखिरकार, बुज़ुर्ग कार्यबल के इस सवाल का हल सरकार और बाजार दोनों को निकालना होगा ताकि उनकी देखभाल का बोझ किसी एक पक्ष पर न पड़े।

असंगठित क्षेत्र में वृद्ध श्रमिकों पर ध्यान देना जरूरी है क्योंकि वे बहुत तेजी से कमजोर हो रहे हैं। भारत बूढ़ा हो रहा है, और इसे अपनी क्षमताएं इतनी बढ़ानी होंगी कि यह गरिमापूर्ण तरीक़े से इस स्थिति से निपट सके।

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लेखक के बारे में
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सुजय पान

सुजय पान स्वनीति इनिशिएटिव में सीनियर डेटा एंड पॉलिसी एनालिस्ट हैं। वर्तमान में सुजय, महाराष्ट्र में प्रवासी और अस्थाई श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा में सुधार की दिशा में काम कर रहे हैं। इनकी रुचि कामकाज और श्रम की स्थिति और भविष्य, और उससे जुड़े आंकड़ों में है।

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