शाम के चार बजकर पैंतीस मिनट। आपके लैपटॉप में 9% बैटरी बची है, वाई-फाई बार-बार डिस्कनेक्ट हो रहा है और आपकी कॉफी बर्फ की तरह ठंडी हो चुकी है। स्क्रीन पर एक नीले रंग का बार धीरे-धीरे लोड हो रहा है, जिस पर लिखा है ‘Connecting…’ ये नजारा तकनीकी गड़बड़ी कम और आपके सोशल सेक्टर के करियर का मेटाफर ज्यादा लगता है। स्वागत है विकास की उस दुनिया में, जहां ऑनलाइन मीटिंग्स ने न सिर्फ समय, बल्कि आपकी आत्मा, सब्र और बैटरी को भी हाईजैक कर लिया है।
हर सुबह ऐसे कैलेंडर इनवाइट आपके इनबॉक्स में किसी प्राचीन शिलालेख की तरह जड़े हुए होते हैं: ‘Impact Assessment Review, 10 AM IST. Link: meet.google.com/xyz-abc.’ उसके नीचे वही लाइन: ‘Please join 5 minutes early.’ मानो पांच मिनट पहले जॉइन करने से सामाजिक बदलाव की रफ्तार दुगुनी हो जाएगी। आप लिंक पर क्लिक करते हैं। स्क्रीन पर कोई अपनी बिल्ली को गोद में लिए उसे ‘मीटिंगएटिकेट’ समझा रहा है, तो कोई अपने बच्चे को चुपके से बिस्किट थमाकर कह रहा है कि, “भागो यहां से! पापा अभी दुनिया बदलने में बिज़ी हैं।”
मीटिंग शुरू होती है। प्रोजेक्ट लीड, जो आदतन होस्ट भी है, कहता है, “क्या मेरी आवाज आ रही है?” उसकी पहली स्लाइड पर लिखा होता है: एजेंडा: प्रोग्राम अपडेट्स, फंडिंग चैलेंजेस एंड नेक्स्ट स्टेप्स। आप मन ही मन सोचते हैं कि ये वही एजेंडा है, जो पिछले छह हफ्तों से रिसाइकल हो रहा है। बस तारीख पर तारीख बदल रही है। इतने में एक सीनियर मैनेजर, जो हमेशा नए-नए जार्गन से लैस रहता है, बोल पड़ता है, “हमें डिजिटल एंगेजमेंट को स्केल करना चाहिए, स्टेक होल्डर सिनर्जी क्रिएट करनी चाहिए।” तभी उसकी स्क्रीन फ्रीज़ हो जाती है और उसका चेहरा एक अजीब-सी मुस्कान के साथ अटक जाता है। जैसे वो मैनेजर नहीं, मैनेजर का मीम हो।

इस बीच मीटिंग में कुछ नए चेहरों को देखकर आप चौंकते हैं। ये हैं फील्डवर्कर। यानी वो पहिए, जो सारी दौड़-धूप कर गांव-गांव सर्वे करते हैं, घर-घर जाकर डेटा इकट्ठा करते हैं और वो भी इतने कम मेहनताने में कि आपकी ब्लू टोकाई की कॉफी का बिल भी उससे ज्यादा होता है। रमेश भाई, जो पिछले हफ्ते तक गांव में भूजल का सर्वे कर रहे थे, स्क्रीन पर दिखते हैं। वो चुपचाप बैठे हैं, क्योंकि ‘इम्पैक्टस्केलिंग’ और ‘सिनर्जी’ जैसे शब्द उनके लिए किसी एलियन भाषा से कम नहीं हैं। मीटिंग में उनकी राय पूछी जाती है, तो वो हड़बड़ाते हुए कहते हैं, “जी, गांव में लोग बोल रहे थे कि पानी तो है, लेकिन पंप नहीं हैं।” जवाब में प्रोजेक्ट लीड कहता है, “ग्रेट इनपुट, रमेश जी! इसे हम अगले क्वार्टर के स्ट्रैटेजिक फ्रेमवर्क में इंटीग्रेट करेंगे।” रमेश भाई बस सिर हिलाते हैं, लेकिन उनके चेहरे पर साफ है कि उन्हें ‘स्ट्रैटेजिकफ्रेमवर्क’ का मतलब उतना ही समझ आया, जितना आपको पिछले हफ्ते की मीटिंग का।
तभी एक नया जॉइनी, जो छा जाने के लिए बेताब है, पूरे उत्साह से बोलता है, “हम एक डिजिटल डैशबोर्ड बना सकते हैं, जो रियल–टाइम फील्ड इम्पैक्ट को ट्रैक करेगा।”सबके हाथ ताली-मुद्रा में जा चुके होते हैं, लेकिन रमेश भाई धीरे से पूछते हैं, “सर यहां तो बिजली ही गुल रहती है। पूरे दिन कंप्यूटर चलेगा कैसे?” जवाब में मिलती है एक लंबी खामोशी, जिसे भरने के लिए लीड तपाक से कहता है, “गुड पॉइंट! फिलहाल इसे हम ऑफलाइन मोड में डेवलप करेंगे।” यानी वही पुराना गुलाबी रजिस्टर, जिसमें रमेश भाई पहले से ही डेटा लिखते रहे हैं।
फिर आता है वो पल, जब डायरेक्टर पूछता है, “तो, एक्शन प्वाइंट्स क्या हैं?” जवाब में खुले हुए कैमरे और माइक एक-एक कर बंद होते दिखते हैं। प्रोजेक्ट कॉर्डिनेटर को एहसास होता है कि कैमरा बंद कर के नमकीन खाने के चक्कर में उसका माइक ऑन ही रह गया था और जवाब का दारोमदार अब उसके ऊपर है। पहले वो “आई एग्री” कहकर मामला निपटाने की कोशिश करता है। लेकिन डायरेक्टर का “एग्री विद व्हाट?” सुनकर उसे कहना पड़ता है कि,“आई थिंक हमें इस पर एक और मीटिंग करनी चाहिए।”
मीटिंग को अंजाम की ओर ले जाते हुए होस्ट अपनी स्क्रिप्ट पढ़ता है, “ग्रेट डिस्कशन, एवरीवन! मैं एक्शन आइटम्स का डॉक्यूमेंट शेयर कर दूंगा।” आप जानते हैं कि वो डॉक्यूमेंट अगली मीटिंग की सुबह तक नहीं आएगा। और जब आएगा भी, तो उसमें वही पुराने पॉइंट होंगे, बस नए फॉन्ट में।
मीटिंग खत्म होती है और चैट बॉक्स में एक मैसेज चमकता है: “Thanks for the insights! Let’s reconvene next week.” इससे पहले कि आप ‘Leave Meeting’ बटन दबाएं, एक नया कैलेंडर इनवाइट आपके इनबॉक्स में आ चुका है।
Follow-up: Impact Assessment Review, Next Monday, 10 AM IST.
आप एक गहरी सांस लेते हैं, चाय हो चुकी कॉफी का आखिरी घूंट पीते हैं और सोचते हैं: क्या ये मीटिंग कभी खत्म होगी?
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