March 22, 2023

समाजसेवी संस्थाओं में नेतृत्व परिवर्तन के दौरान क्या ग़लतियां हो सकती हैं?

आईडीआर से बातचीत में सफीना हुसैन और महर्षि वैष्णव ‘एजुकेट गर्ल्स’ में नेतृत्व परिवर्तन (लीडरशिप ट्रांज़िशन) से जुड़े अपने अनुभव साझा कर रहे हैं और कुछ कारगर सुझाव भी दे रहे हैं।
7 मिनट लंबा लेख

सफ़ीना हुसैन एजुकेट गर्ल्स की संस्थापक और महर्षि वैष्णव इसके सीईओ हैं। एजुकेट गर्ल्स एक समाजसेवी संस्था है जिसकी स्थापना साल 2007 में हुई थी। यह संस्था भारत के शैक्षिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों में लड़कियों की शिक्षा के लिए समुदायों को एकजुट करने का काम करती है।

2022 में, संगठन ने नेतृत्व में बदलाव देखा – सफ़ीना ने सीईओ के पद से इस्तीफ़ा दिया और महर्षि ने उनकी जगह ज़िम्मेदारी संभाली। महर्षि एक दशक से एजुकेट गर्ल्स से जुड़े थे और इससे पहले संस्था के सीओओ और स्टाफ प्रमुख के रूप में अपनी सेवाएं दे चुके थे।

आईडीआर के साथ अपने इस इंटरव्यू में सफ़ीना और महर्षि हमें बता रहे हैं कि एजुकेट गर्ल्स में नेतृत्व परिवर्तन का समय क्यों आ गया था और परिवर्तन की इस पूरी प्रक्रिया का स्वरूप कैसा था। साथ ही, इन दोनों ने इस प्रक्रिया के दौरान आने वाली चुनौतियों के बारे में भी बात की है। इस बातचीत में इन्होंने उन संगठनों के लिए कुछ सुझाव भी दिए जो नेतृत्व परिवर्तन की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं। 

महर्षि वैष्णव (बाएं) और सफ़ीना हुसैन (दाएं)_एनजीओ लीडर
महर्षि वैष्णव (बाएं) और सफ़ीना हुसैन (दाएं)। | चित्र साभार: एजुकेट गर्ल्स 
हमें बताएं कि उस समय इस नेतृत्व परिवर्तन की आवश्यकता क्यों थी? 

सफ़ीना: मैंने इस बदलाव के बारे में बहुत पहले ही सोचना शुरू कर दिया था। और आखिरकार हमने इसे 2017 में अपनी पांच साल की रणनीति में शामिल कर लिया। यदि आप इसे संगठनात्मक यात्राओं के संदर्भ में देखें तो आप पाएंगे कि यह नेतृत्व परिवर्तन अपेक्षाकृत बहुत ही जल्दी हो गया। दरअसल, मेरा मानना है कि एक संस्थापक कभी-कभी संगठन के विकास या उसके द्वारा किए जाने वाले कामों से होने वाले प्रभाव के लिए सबसे बड़ी बाधा भी बन सकता है। संस्थापक संगठनों को शुरू करते हैं और उसके बाद वे उन्हें उस स्थिति में पहुंचाते हैं, जहां से वे तेजी से आगे बढ़ सकते हैं। लेकिन ऐसा ज़रूरी नहीं है कि संस्थापक के पास वे कौशल हों जिनकी उस समय संगठन को जरूरत है। एजुकेट गर्ल्स का आकार हर 18 महीने में दोगुना हो रहा था, और मुझे पता था कि इसे अब मुझसे अलग एक नए तरह के नेतृत्व की आवश्यकता है।  

फेसबुक बैनर_आईडीआर हिन्दी

संस्थापक एक बारीक समस्या खोजने और उसके लिए एक समाधान तैयार करने में अच्छे होते हैं। उनके पास जोखिम को सहने और नई चीजों को आजमाने की जबरदस्त क्षमता होती है। मैं एक बड़ी मशीनरी चलाने के बजाय उन चीजों पर ध्यान केंद्रित करना चाहती थी जिसके लिए मेरे पास कौशल नहीं था। नेतृत्व परिवर्तन की चाह रखने के पीछे की वास्तविक सोच यही थी। 

नेतृत्व परिवर्तन की प्रक्रिया शुरू करने के लिए आपने कौन से अन्य कदम उठाए? 

सफ़ीना: एक बार जब हमने परिवर्तन की योजना बनानी शुरू की तब महर्षि की यात्रा बहुत तेज़ी से बदलने लगी। फंडरेंजिंग लीडर से चीफ ऑफ स्टाफ की भूमिका में चले गए, फिर सीओओ बन गए, और अंत में सीईओ की भूमिका में आ गए। 

महर्षि: मुझे इस बात की बिल्कुल जानकारी नहीं थी कि उत्तराधिकार की यह योजना 2017 में बन गई थी या फिर सफ़ीना इस पर सक्रियता से काम कर रही थीं। लेकिन सफ़ीना ने धीरे-धीरे मेरे कंधों पर बड़ी जिम्मेदारियां देकर मेरी परीक्षा लेनी शुरू कर दी थी। इसलिए फंडरेजिंग से संचार और सरकारी संबंधों तक, इस तरह के काम मेरी जिम्मेदारी बन गए। और, ये सभी काम बहिर्मुख पहलू वाले काम थे। उसके बाद सफ़ीना ने मेरे सामने यह विचार रखा कि “मुझे चीफ़ ऑफ स्टाफ की तलाश है, क्या आपको इसमें रुचि होगी?” मैंने उनसे इसका मतलब पूछा और यह भी पूछा कि मुझे क्या करना होगा। उन्होंने कहा “मेरे हर रोज़ के काम में तुम्हें मेरी मदद करनी होगी।” तो यह न केवल कामकाजी जिम्मेदारियां थीं बल्कि एक पूरे संगठन के लिए सपोर्ट सिस्टम था। मैंने कहा कि मैंने इससे पहले ऐसा कुछ नहीं किया है लेकिन मैं कोशिश करना चाहता हूं। इस भूमिका में आने के बाद संगठन में चल रही चीजों के बारे में मैंने जाना। एचआर, विस्तार, योजना, संचालन और वित्त पर प्रभाव और बजट सभी क्षेत्रों के बारे में जानकारियां हासिल हुईं। कर्मचारियों के प्रमुख के रूप में बिताए वे तीन साल मेरे लिए अनमोल रहे क्योंकि उन तीन सालों ने मुझे संगठन को एक इकाई के रूप में देखने के योग्य बनाया। 

जब हमारे पूर्व ऑपरेशन प्रमुख ने अपना पद छोड़ा था तब सफ़ीना ने मुझे पूरी तरह से ऑपरेशन्स का भार सम्भालने का सुझाव दिया। समय-समय पर इन छोटे बदलावों ने आख़िरकार मुझे सीईओ बनने के लिए तैयार कर दिया।

यह सीधे तौर पर हुआ परिवर्तन नहीं था। मुझसे कहा गया था कि “आप अस्थाई रूप से काम करेंगे और आपको बाहरी विशेषज्ञों की सहायता मिलेगी जो बोर्ड के साथ मिलकर संगठन के अगले सीईओ को ढूंढने का काम करेंगे। लेकिन इसमें आपका ही नुक़सान है।” उस समय तक मुझे एजुकेट गर्ल्स के साथ काम करते हुए लगभग आठ साल हो चुके थे।

सफ़ीना: एजुकेट गर्ल्स से परे अपने भविष्य के बारे में सोचने और जानने के लिए मैंने एक कोच की मदद ली। मुझे इस बात पर पूरा भरोसा था कि यदि मैंने अपने लिए एक नया भविष्य नहीं देखा तो मैं शायद इस नौकरी को कभी नहीं छोड़ पाऊंगी। हमने आंतरिक रूप से भी प्रतिभा का विकास किया। महर्षि को तैयार करने के अलावा, हमने ऐसा रास्ता बनाया जिस पर चलकर एक टीम विकसित हो सकती है। बाद में, हमने बोर्ड उपसमिति के साथ परिवर्तन की एक औपचारिक प्रक्रिया के निर्माण के लिए लीडरशिप एडवाइजरी फ़र्म, एगॉन जेंडर को शामिल किया।

किसी थर्ड पार्टी को शामिल करना आम बात नहीं है। उन्होंने किस प्रकार मदद की और ऐसा करने से किस तरह के फ़ायदे हुए?

सफ़ीना: एक संस्थापक के रूप में आप यह तय कर सकते हैं कि आप कुछ करना चाहते हैं और फिर सीधे उस काम को कर सकते हैं। हालांकि, किसी बाहरी पक्ष द्वारा परिवर्तन की इस प्रक्रिया को शुरू करने से मुझे बहुत अधिक मदद मिली। इससे मेरी जिम्मेदारियां कम हुईं और मेरे साथ संगठन के बाक़ी लोग भी शामिल हुए, विशेष रूप से बोर्ड और टीम के सदस्य। यदि मैंने इस परिवर्तन को सीधे तौर पर लागू कर दिया होता तो इससे महर्षि के सामने मुश्किलों का एक पहाड़ खड़ा हो जाता और उनके असफल होने की सम्भावना बहुत अधिक होती। लेकिन चूंकि हमने इस तरीक़े को अपनाया, इसलिए सभी के पास परिवर्तन की इस प्रक्रिया को समझने, हर प्रकार की सम्भावनाओं के बारे में जानने और हमारे द्वारा लिए गए निर्णय के प्रति आश्वस्त होने का समय था। इस तरह, इस प्रक्रिया ने वास्तव में सभी को साथ लाने में मेरी मदद की।

दूसरा, मुझे लगा था कि एगॉन जेंडर महर्षि को उनके भविष्य के काम के लिए तैयार कर रहे हैं लेकिन वास्तव में वे मुझे मेरी भूमिका से निकलने के लिए तैयार कर रहे थे। इस तैयारी के बिना मैं सब गड़बड़ कर देती। और चूंकि संगठन में महर्षि की भूमिका कई बार बदली इसलिए टीम बड़ी ही सहजता से इसे स्वीकार करती गई। 

एक हाथ से दूसरे हाथ में बैटन_एनजीओ लीडर
एक संस्थापक कभी-कभी किसी संगठन के विकास या उसके प्रभाव के लिए सबसे बड़ी बाधा बन सकता है। | चित्र साभार: पेक्सेल्स
महर्षि, आप परिवर्तन प्रबंधन प्रक्रिया के बारे में क्या सोचते हैं?

महर्षि: जब परिवर्तन की प्रक्रिया शुरू हुई तब तक मुझे एजुकेट गर्ल्स से जुड़े कई साल हो चुके थे। मुझे संगठन को जानने या हमारे ऑपरेशन के विस्तार को जानने के लिए अलग से समय नहीं लगाना पड़ा। मैं सीधे काम शुरू कर सकता था। हालांकि मुझे सफ़ीना की जग़ह भी लेनी थी। इसलिए किसी सुखद एहसास की बजाय लगातार यह वास्तविकता पता चल रही थी कि मैं संस्थापक से पदभार ग्रहण कर रहा हूं। 

परिवर्तन की प्रक्रिया में सफीना द्वारा अपना नियंत्रण छोड़ना और मुझे इसे हासिल करना था। और, यह कई तरीक़ों से हुआ। हमारे स्टेट ऑपरेशन्स टीम के साथ पहली मुलाक़ात में सफ़ीना ने खुद को मुक्त कर लिया। उनके ऐसा करते ही मैं समझ गया कि मुझे पहले सीओओ की भूमिका वाले आक्रामक नज़रिए को छोड़कर अब सीईओ के रूप में एक अधिक परिपक्व, शांति स्थापित करने वाले संस्थापक की भूमिका निभानी थी। 

हमारे सहयोगी और फ़ंडर मेरी योजनाओं और संगठनात्मक इरादों को लेकर उत्सुक थे। इसलिए मुझे उन्हें आश्वस्त करने के लिए बिज़नेस कंटीन्यूटी प्लान्स को लाने पड़े ताकि उन्हें यह विश्वास हो जाए कि हम सही राह पर हैं। 

एगॉन जेंडर के मेरे मेंटॉर – गोविंद अय्यर और नमृता झंगियानी – ने मुझे सीईओ के रूप में पदभार लेने को तैयार करने के लिए 12 महीने का एक कठोर कार्यक्रम बनाया। पहला छह महीना मेरी ग़लतियों पर केंद्रित था। उसके बाद अगले छह महीने में मैंने यह सीखा कि एक सीईओ के रूप में मैं किसी काम को कैसे अलग तरीक़े से कर सकता हूं।

अगर मुझे गोविन्द और नमृता, और हमारे बोर्ड के अध्यक्ष सफीना और उज्जवल ठाकर से मिले कोर मैसेज पर काम करना होता तो यह बहुत आसान था। वे इस बात को लेकर बहुत स्पष्ट थे कि मेरी कार्यशैली, नेतृत्व, डेलिगेशन, कल्चर सेटिंग वगैरह, सफीना से अलग होना ही था। इसलिए उन्होंने सुझाव दिया कि मैं टीम को अपने तरीके से अभ्यस्त होने के लिए पर्याप्त समय दूं।

मूल बातों पर टिके रहें और शुरुआत में ही कुछ भी अपमानजनक करने से बचें।

मुझसे यह भी कहा गया कि शुरुआत में मूल बातों पर ही ध्यान दूं और कुछ भी आक्रामक करने का प्रयास न करूं। पहले कुछ महीनों के महत्व को कम नहीं समझना चाहिए। हालांकि मैं एक अंदर वाला ही हूं फिर भी संदर्भ समझना हमेशा ही जरूरी होता है। इसलिए मुझे सभी संबंधित आंतरिक और बाहरी दोनों प्रकार के हितधारकों को समझने के लिए समय लेने की ज़रूरत थी। मेरे पुराने सहयोगी अब मुझे रिपोर्ट करते थे इसलिए मुझे सब के साथ पेशेवर संबंध को बरक़रार रखना था।

ऐसा लगता है कि यह एक सहज परिवर्तन था लेकिन किसी भी प्रकार का परिवर्तन बिना चुनौतियों के सम्भव नहीं है। क्या आप परिवर्तन के समय की अपनी चुनौतियों के बारे में हमें कुछ बताना चाहेंगे? और, सफ़ीना, अपने हाथ से बागडोर छोड़ना आपके लिए कैसा था?

सफ़ीना: महर्षि के सीईओ बनने के बाद उनके साथ की गई पहली बोर्ड मीटिंग में उज्जवल ने मुझे एक कोने में ले जाकर बड़े ही आराम से कहा कि “अब आपको ये सब और नहीं करना है। आगे से आपको ये सब कहने की कोई ज़रूरत नहीं है।” और मैंने कहा “मैं समझी नहीं। आप मुझसे क्या चाहते हैं? मैं यहां बोर्ड मीटिंग में क्यों आई हूं?” और उन्होंने मुझे जवाब देते हुए कहा “मैं चाहता हूं कि आप बोर्ड मीटिंग में शामिल हों लेकिन मैं नहीं चाहता कि आप कुछ कहें या करें।” तब मुझे समझ में आया कि दरअसल बोर्ड के सदस्य मुझसे कहना चाह रहे हैं कि अब आपके लिए एक नया कोना है और आप वहां चुपचाप बैठी रहें।” शायद मैं यह भूलती रहूंगी और लोगों को मुझे सही समय पर याद दिलाकर पीछे करते रहना होगा। 

आखिर में, मुझे खुद को याद दिलाते रहना है कि मैंने ऐसा किसी कारण से किया है। और, अब मैं वह करने के लिए स्वतंत्र हूं जो मैं करना चाहती थी। पिछड़ी युवा लड़कियों के लिए दूसरा-अवसर बनाने के लिए एक कार्यक्रम तैयार करने का काम। महर्षि के पदभार सम्भालने के बाद मेरे पास गांवों में जाकर लड़कियों के साथ बैठने और ज़मीनी-स्तर से चीजों को देखने का समय था। मुझे उम्मीद है कि इस बार मैं उन ग़लतियों को नहीं दोहराऊंगी जो मैंने 15 साल पहले एजुकेट गर्ल्स की स्थापना और उसके निर्माण के दौरान की थी। नेतृत्व परिवर्तन के बाद से मैंने अपना 50 फ़ीसद समय फ़ील्ड में बिताया है। मैंने लोगों से बातें की है, उनसे सीखा है और कॉर्पोरेट ऑफ़िस की इमारत से बाहर निकलकर अपना समय मस्ती से बिताया है जो मेरे लिए बड़ी बात है। मैं महर्षि की आभारी हूं।

महर्षि: यह मेरे लिए लगातार चलने वाले गहरे अहसासों की तरह रहा। एजुकेट गर्ल्स का मूल उद्देश्य सबसे पिछड़ी लड़कियों को वापस स्कूल जाने में उनकी मदद करना है। इसमें किसी तरह का परिवर्तन नहीं होता है। लेकिन कर्मचारियों के प्रमुख और सीओओ के रूप में मेरी पिछली भूमिका में मेरी सोच अलग थी। सफ़ीना हमेशा मुझे बचाने के लिए खड़ी थीं। लेकिन अब मैं ही हर बात के लिए ज़िम्मेदार था और यह समय वह था, जब जल्दी से सब ठीक करने की बजाय कोशिश और ग़लतियां की जाएं। इसका संबंध हमेशा ही मुख्य उद्देश्य के बारे में सोचने से होता है। मैंने पाया कि मैं ख़ुद से ही प्लान बी, सी या डी के बारे में पूछ रहा था।

चलिए, मान लेते हैं कि राजस्थान में हम ने अपना लक्ष्य प्राप्त कर लिया। लेकिन उस सरकार का क्या जो अब भी चाहती है कि हम उसके राज्य में काम करें? हमारी स्थानीय टीम और उस समुदाय का क्या होता है जिसके साथ वे काम करते हैं? इसलिए मेरा नज़रिया बदल गया। 

और, जहां तक चुनौतियों की बात है तो ऐसा एक भी दिन नहीं गुजरता जब मैं ख़ुद को यह याद नहीं दिलाता हूं कि हमारे पास 2,700 से अधिक कर्मचारी और 17,000 से ज़्यादा टीम सदस्य हैं। उन्होंने अपना जीवन और करियर हमें दे दिया ताकि हम अपना मिशन पूरा कर सकें। हम एक ऐसे संगठन का निर्माण कैसे कर सकते हैं जो मूल्यों से प्रेरित और लक्ष्य पर केंद्रित हो, और जिसके केंद्र में लड़कियां हैं। राजस्थान, यूपी, एमपी और बिहार सभी सरकारें, फंडर्स आदि के साथ काम करने की अपनी चुनौतियां होती हैं। तो, यह एक ऐसी झोली है जिसमें सब कुछ है।

नेतृत्व परिवर्तन की इसी प्रक्रिया से गुजरने की इच्छा रखने वाले अन्य भारतीय समाजसेवी संस्थाओं को क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए?

सफ़ीना: मैं उनसे कहूंगी कि इसके लिए एक डिज़ाइन तैयार करें और इस प्रक्रिया को सोच-समझ कर शुरू करें। इसके लिए पर्याप्त समय दें क्योंकि इस तरह की कोई प्रक्रिया रातों-रात नहीं हो सकती हैं। इसे करने के पीछे का कारण उचित होना चाहिए। ख़ुद से यह सवाल करें कि आप वास्तव में ऐसा क्यों करना चाहते हैं। यदि इसके पीछे का कारण सही नहीं होगा तो यह पूरी प्रक्रिया आपके और इस भूमिका में आने वाले नए व्यक्ति, दोनों के लिए परेशानी खड़ी करने वाली होगी। दूसरी सबसे महत्वपूर्ण चीज़ है संवाद। हमने नेतृत्व परिवर्तन की घोषणा के लिए तैयार किए गए ई-मेल के प्रत्येक शब्द पर विचार-विमर्श किया था। मैंने हमारे सभी फंडर्स से बात की और उन्हें इसके बारे में बताया। इस स्थिति में ज़्यादा बातचीत करना सही होता है। और सबको साथ लेकर चलना भी जरूरी है।

महर्षि: सबसे पहली चीज़ यह है कि इसके लिए आप तैयार हो जाएं। आप रातों-रात किसी संस्थापक की भूमिका में नहीं जा सकते हैं। जब सफ़ीना और उज्जवल ने मुझे इसकी घोषणा की तारीख़ के बारे में बताया और मुझसे कहा कि वे फ़ंडर्स को पहले ही इस बारे में सूचित करने वाले हैं और टीम को एकजुट करने वाले हैं, फ़ील्ड में काम कर रहे टीम के लिए एक वीडियो संदेश शूट करने वाले हैं तो ये सब सुनकर मैं कांप गया था।

संस्थापक एक अलग व्यक्ति है और आपको उनकी नकल करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।

संस्थापक एक अलग व्यक्ति है और आपको उनकी नक़ल करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। उनके बेस्ट प्रैक्टिस को अपनाना ठीक है लेकिन उस व्यक्ति की तरह बनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। अपने व्यक्तित्व को बनाए रखना चाहिए। जब तक आप स्वयं को संगठन की सोच और उसके लक्ष्य से जोड़कर रखेंगे तब तक आप उस सोच को सच करने की कोशिश करते रहेंगे जो संस्थापक ने संगठन के लिए तय किया था। 

गोविंद मुझसे लगातार पूछते रहते थे कि “यह सफ़ीना का संगठन है आप इसे अपना संगठन कैसे बनाएंगे?” मैं कहता था “मैं इसे अपने तरीक़े से चलाकर अपना संगठन बनाउंगा।” लेकिन 2025 तक 15.6 लाख लड़कियों के नामांकन को सुगम बनाने का अंतिम लक्ष्य बदलने वाला नहीं है। शायद, इसका रास्ता मेरा हो सकता है और यह मेरी टीम हो सकती है जो योजना को लागू कर रही हो, लेकिन कुछ और नहीं बदला है।

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  • इस लेख में समाजसेवी संस्थाओं में नेतृत्व परिवर्तन की प्रक्रिया को सहज बनाने के तरीक़ों के बारे में सीखें
  • समझें नई-लीडर पिच क्यों महत्वपूर्ण है और यह भी जानें कि इसमें क्या शामिल होना चाहिए।

लेखक के बारे में
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जैस्मीन बल

जैस्मीन बल आईडीआर में एक संपादकीय विश्लेषक हैं, जहां वह कंटेंट राइटिंग और संपादन से जुड़े काम करती हैं। इससे पहले इन्होंने वीवा बुक्स में एक संपादक के रूप में और सोफिया विश्वविद्यालय, जापान में एफएलए राइटिंग सेंटर में एक ट्यूटर के रूप में काम किया है। जैस्मीन ने वैश्विक अध्ययन और अंग्रेजी में एमए और सामाजिक विज्ञान में बीए किया है।

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रचिता वोरा

रचिता वोरा आईडीआर की सह-संस्थापक और निदेशक हैं। इससे पहले, उन्होंने 250 करोड़ रुपये के बहु-हितधारक मंच, दसरा गर्ल एलायंस का नेतृत्व किया, जिसने भारत में मातृ, किशोर और बाल स्वास्थ्य परिणामों में सुधार करने की मांग की। उनके पास वित्तीय समावेशन, सार्वजनिक स्वास्थ्य और सीएसआर के क्षेत्रों में टीमों का नेतृत्व करने और रणनीति, व्यवसाय विकास और संचार में कार्य करने का एक दशक से अधिक का अनुभव है। रचिता ने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के जज बिजनेस स्कूल से एमबीए और येल यूनिवर्सिटी से इतिहास में बीए किया है।

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