November 10, 2025

क्यों विकास सेक्टर को गेम्स की अन्य भूमिकाओं पर विचार करना चाहिए

विकास सेक्टर खेल के अलग-अलग स्वरूपों को सोच-विचार और सीखने के नए माध्यमों के तौर पर इस्तेमाल कर सकता है।
7 मिनट लंबा लेख

विकास सेक्टर में गेम्स को अब तक एक सशक्त विधि के रूप में गंभीरता से नहीं अपनाया गया है, जबकि उनमें अलग-अलग खांचों को जोड़ने, विश्वास की नींव रखने और विभिन्न दृष्टिकोणों को समझने की क्षमता निहित है। फिल्म, रेडियो और अन्य पारंपरिक एक-तरफा माध्यमों में, सामुदायिक भागीदारी की गुंजाइश नहीं होती है। वे केवल जानकारी प्रस्तुत करते हैं और दर्शक की समझने व व्याख्या करने की क्षमता पर निर्भर होते हैं। इसके विपरीत, गेम हमें सीधे एक परिस्थिति के भीतर ले आते हैं। इस परिस्थिति में हम केवल दर्शक न होकर क्रिया और निर्णय में भी सहभागी बनते हैं। यह भागीदारी का सबसे गहन और प्रभावशाली रूप है।

गेम्स की यही खासियत उन्हें जमीनी संगठनों और फेसिलिटेटर्स के लिए उपयोगी बनाती है। ये गतिविधियां लोगों के लिए सोचने, सीखने और सामूहिक कार्रवाई की ओर बढ़ने का माध्यम बन सकती हैं। उदाहरण के लिए, इस बात के कई प्रमाण मौजूद हैं कि शहरों की रूपरेखा और शहरी नियोजन की बेहतरी के लिहाज से गेम कितने उपयोगी हैं।

जब 1990 के दशक की शुरूआत में डिजिटल गेम ‘सिमसिटी’ लॉन्च हुआ था, तो किसी ने नहीं सोचा था कि यह खेल हजारों युवाओं को आर्किटेक्ट या अर्बन प्लानर बनने के लिए प्रेरित करेगा। आज सिमसिटी और सिटीज: स्काइलाइन्स जैसे गेम्स या फिर गेम बिल्डिंग इंजन अनरियल का इस्तेमाल काल्पनिक शहरों को रचने के लिए किया जा रहा है। इन गेम्स में हीट आइलैंड इफेक्ट, परिवहन, आवास और भविष्य में आने वाली अन्य शहरी समस्याओं के समाधान वर्चुअल स्तर पर खोजे जा रहे हैं।

फेसबुक बैनर_आईडीआर हिन्दी

मौजूदा स्थिति क्या है?

गेम कई तरह के होते हैं: शारीरिक गतिविधियों वाले खेल जिन्हें लाइव-एक्शन-रोल-प्लेइंग (एलएआरपी) भी कहा जाता है, बोर्ड गेम्स और डिजिटल गेम्स जो मोबाइल, कंसोल या कम्प्यूटर पर खेले जा सकते हैं। हर तरह के गेम के अपने यूजर, उपयोगिता और संभावनाएं हैं।

वर्तमान में भाषा सिखाने वाले एप, फिटनेस ट्रैकर्स से लेकर डेटिंग प्लेटफॉर्म्स और फायनेंशियल प्लानिंग टूल्स तक, गेम्स और गेमीफिकेशन अब हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन चुके हैं। गेमिफिकेशन का मतलब है किसी भी साधारण गतिविधि को रोचक और प्रेरक बनाने के लिए उसमें खेलों के तत्व जोड़ना, जैसे अंक देना, बैज देना या लीडरबोर्ड पर रैंक दिखाना आदि। गेमीफिकेशन को विकास सेक्टर में भी अब एक ऐसे समाधान की तरह देखा जा रहा है जो कई तरह से मददगार हो सकता है। एक ऐसा समाधान, जो हमारी बहुत सी व्यवहार संबंधी आदतों, जैसे टालबराई करना, गलत खान-पान और सामाजिक अलगाव वगैरह को भी चुनौतियों, पुरस्कारों और उपलब्धि की भावनाओं के जरिए संबोधित कर सकता है।

उदाहरण के लिए, वर्तमान में स्कैंडिनेविया में जलवायु लचीलेपन (क्लाइमेट रेजिलिएंस) से जुड़े कुछ सबसे दिलचस्प प्रयोग किए जा रहे हैं। वहां लोग भविष्य की जलवायु आपदाओं और उनसे बचने के तरीकों से जुड़े काल्पनिक परिदृश्यों का अभिनय कर रहे हैं। यह एलएआरपी (लाइव एक्शन रोल प्ले) का एक उदाहरण है। सहभागी तरीके से कहानी कहने की यह पुरानी विधा है। इसमें प्रतिभागी किसी अनुभवात्मक गतिविधि के माध्यम से एक कहानी से जुड़े मुख्य पहलुओं को उभारते हैं। लेकिन फिर भी, सामाजिक सेक्टर में गेम अभी भी एक बेहद कम इस्तेमाल किया जाने वाला माध्यम है।

खेल के कार्ड्स के बीच एक महिला का हाथ_विकास सेक्टर में खेल
खेल लोगों के लिए सोचने, सीखने और किसी सामूहिक कार्रवाई की ओर बढ़ने का माध्यम बन सकते हैं। | चित्र साभार: अबीर कपूर

विकास सेक्टर के लिए खेल बनाना

सिविक गेम्स लैब में हमारा उद्देश्य ऐसे गेम विकसित करना है जो सार्वजनिक स्वास्थ्य, लोकतंत्र, मीडिया, जेंडर और पर्यावरण जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को समझने और उन पर संवाद बनाने में मदद करें। हमारे हर गेम की आधारशिला तीन प्रमुख सिद्धांतों पर टिकी है: वैज्ञानिक गहनता, सांस्कृतिक प्रासंगिकता और सामुदायिक स्वामित्व।

ऐसे गेम तैयार करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक है:

1. भारतीय संदर्भों के मुताबिक भाषा, रूपक, उदाहरण, इतिहास और साहित्य का इस्तेमाल करना

एक गेम की संरचना, उसके विजुअल तत्व और उसकी कहानी (जिसे प्रतिभागी अनुभव करते हैं) को गढ़ने में भाषा, रूपक, इतिहास और साहित्य जैसे पहलुओं की भूमिका अहम होती है। उदाहरण के लिए, तमिलनाडु के कोटागिरी में हम एक ऐसा गेम बना रहे हैं जो जलवायु परिवर्तन से होने वाली तबाही और उसके कृषि व उससे जुड़ी आजीविकाओं पर पड़ रहे प्रभावों को समझने में मदद करेगा। इस गेम की कहानी और खेलने की प्रक्रिया फलदार पेड़ों के नुकसान के इर्द-गिर्द बुनी जा रही है। हर गेम में स्थानीयता का तत्व होना जरूरी है। यानी वह उस समुदाय की संस्कृति, भाषा और अनुभवों के अनुरूप ढला हो, जहां उसे खेला जाएगा। जब गेम्स को बिना इस संदर्भ के किसी और जगह ले जाया जाता है, तो यह स्थानीय जुड़ाव खो जाता है। उदाहरण के तौर पर, पश्चिम में ‘मार्केट’ की अवधारणा के उलट हमारे देश में ‘मंडी’ एक बिल्कुल अलग सामाजिक और सांस्कृतिक अनुभव का हिस्सा है।

2. सामाजिक परिवर्तन और बेहतर भविष्य के लिए भागीदारी को केंद्र में रखना

गेम लोगों को जटिल मुद्दों को समझने, सामूहिक रूप से खेलने के अनुभव तैयार करने और अपनी कहानियों में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रेरित करने का माध्यम बन सकते हैं। हमारा मूल विश्वास है कि गेम्स को इस तरह से डिजाइन किया जाना चाहिए कि वे लोग जो ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर हैं या जो अपनी पहचान को व्यक्त नहीं कर पाते हैं, उन्हें एक ऐसा साधन मिले जो उन्हें सामाजिक भागीदारी और अधिकार दे सके। इसके जरिए ऐसे समुदाय अपने स्तर पर बदलाव लाने के नए तरीके निकाल सकें।

साल 2020 से 2022 के बीच, हमने ‘पोषण की पोटली’ नाम का एक कार्ड गेम बनाया था जो आहार विविधता, मातृ एवं शिशु पोषण और संतुलित भोजन बनाने व खाने की आदतों से जुड़ी सीखों पर आधारित है। यह गेम कोविड-19 महामारी के दौरान और उसके बाद बढ़ते कुपोषण को देखते हुए बनाया गया था। इस गेम को केंद्र और राज्य सरकारों के पोषण से जुड़े उद्देश्यों और संदेशों को ध्यान में रखते हुए बनाया गया था।

हमने ‘पोषण की पोटली’ को चार राज्यों में खेला और इसका एक पायलट प्रोजेक्ट जीविका (बिहार ग्रामीण आजीविका मिशन) के साथ गया जिले में संचालित किया।

इस गेम को बनाते हुए एक वैज्ञानिक और अकादमिक प्रक्रिया का सख्ती से पालन किया गया था। इसे बनाते हुए हमने सार्वजनिक शोध, वैश्विक मानकों, महत्वपूर्ण शैक्षणिक अध्ययनों, कई प्रमुख एनजीओ कार्यक्रमों और राष्ट्रीय पोषण संस्थान की जानकारियों को ध्यान में रखा था। इसके लिए हमने स्थानीय भोजन की जानकारी इकट्ठी की, फिर उन्हें सरकारी दिशानिर्देशों के साथ जोड़ा, उनकी कैलोरी की गणना की और आखिर में इन्हें ऐसे बिंदुओं में बदला जिन्हें आसानी से समझा और खेला जा सके।

लगातार सुधार और प्रयोग की प्रक्रिया के जरिए (जैसे, खेल के कई संस्करण बनाना, उन्हें अमली जामा पहनाना, संरचना व विजुअल रूप को बेहतर करना) हमने इस गेम में समुदाय की आवाजों, उनके जीवन के अनुभव और घर-परिवार की रोजमर्रा की तू-तू-मैं-मैं को भी शामिल किया। इन सब पहलुओं से गेम का स्वरूप तय हुआ: पहले आहार समूहों को समझना; फिर लोकप्रिय गेम ‘हेड्स अप!’ की तर्ज पर खिलाड़ी एक कार्ड अपने माथे पर लगाते हैं और बाकी खिलाड़ियों से सवाल पूछकर यह अनुमान लगाते हैं कि उस कार्ड पर क्या लिखा है; अंत में, खिलाड़ियों को दो कार्ड सेट बनाने होते हैं। एक सेट में पूछा जाता है कि ‘आपने कल क्या खाया’ और दूसरे सेट में पूछा जाता है कि ‘आप कल क्या खाएंगे।’

हमने क्या सीखा?

1. जुड़ाव के लिए स्थानीयकरण जरूरी है

जब हम यह गेम पहली बार गांवों में लेकर गए, तो हमें एक दिलचस्प बदलाव देखने को मिला। अमूमन पुरुषों की दुनिया तक सीमित माने जाने वाला ताश का खेल महिलाओं के पास पहुंच रहा था और वे उसे पूरे उत्साह से खेल रही थीं। शुरुआत में हमने खेल का सामान्य तरीका अपनाया और महिलाओं से कहा कि वे गड्डी से ऊपर वाला कार्ड उठाएं। लेकिन एक महिला ने कार्डों पर बने फलों और सब्जियों को ध्यान से देखते हुए पूछा, “क्या इसमें और भी (कार्ड) हैं?”

गेम हमें सीधे एक परिस्थिति के भीतर ले आते हैं, इसमें हम क्रिया और निर्णय में भी सहभागी बनते हैं। यह भागीदारी का सबसे गहन और प्रभावशाली रूप है।

हमने सारे कार्ड जमीन पर फैला दिए। ठीक वैसे ही, जैसे मंडी में सब्जियां सजाई जाती हैं। इसके बाद वहां मौजूद महिलायें सहज प्रवृत्ति से जमीन पर बैठकर कार्डों को वैसे ही देखने लगीं, जैसे वे मंडी में ताजा सामान चुन रही हों। इस तरह मंडी खेल का केंद्रीय प्रतीक बन गई, जिसने खेल को महिलाओं के जीवन और अनुभवों से गहराई से जोड़ने का काम किया। दो साल बाद, एक स्वतंत्र आईपीएसओएस मूल्यांकन से पता चला कि गया की महिलाओं ने इस खेल के अपने संस्करण बना लिए हैं। एक संस्करण ‘हेड्स अप’ से मिलता-जुलता था, जिसमें आम और उड़द दाल जैसे शब्द कार्ड पर लिखे होते थे। महिलाओं ने इसे ‘बिंदी गेम’ नाम दिया था, क्योंकि वे माथे पर बिंदी की जगह कार्ड रखकर खेलती थीं।

2. नियम जितने सरल, खेल उतना प्रभावी

हमारे अनुभव में एक अहम सीख यह रही कि लोगों में अक्सर जटिल नियमों के लिए धैर्य कम होता है। अगर गेम के नियम सहज न हों, यानी वे स्वाभाविक रूप से समझ में न आयें, तुरंत सीखे न जा सकें या उन्हें समझाने में बहुत समय लगे, तो पूरा गेम ही अपना आकर्षण खो देता है।

‘पोषण की पोटली’ के एक संस्करण में इसे साधारण पत्तों के खेल की तरह खेला जाता है: आप कार्ड चुनते हैं और कोई भोजन या व्यंजन बनाते हैं। यह करने के पीछे हमारा उद्देश्य था कि हम रसोई का माहौल बना सकें। लेकिन इसमें नियम थे कि कार्ड एक क्रम से ही चुने जाएंगे और यह खेल भागीदारी या समुदाय केंद्रित भी नहीं था। नतीजतन, यह संस्करण ज्यादा नहीं खेला जा सका।

बीते कुछ सालों में हमने कई गेम ऐसे बनाए हैं जो जागरुकता बढ़ाने, बदलाव और सुरक्षा के रास्ते बनाने और और नागरिक सहभागिता को प्रोत्साहित करने का काम करते हैं। ये खेल लोकतंत्र की समझ, लैंगिक हिंसा, डिजिटल अधिकार, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और जलवायु परिवर्तन जैसे विषयों पर केंद्रित रहे हैं।

जैसे-जैसे हम गेम्स को डिजाइन करने लगे और अलग-अलग उद्देश्यों के लिए उनका इस्तेमाल करने लगे, हमें इस पूरी प्रक्रिया में एक बड़ी कमी नजर आयी। विकास से जुड़ा संवाद आज भी अधिकतर एकतरफा है, जिसमें समुदाय या व्यक्ति की सक्रिय भागीदारी की जगह सीमित है। यह संवाद अक्सर लोगों की स्वाभाविक इच्छा को नहीं पहचानता, जिसके तहत वे खुद बदलाव लाना चाहते हैं। गेम इस यथास्थिति को चुनौती दे सकते हैं।

इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ें।

अधिक जानें

  • जानिए, बेहतरी के लिए सीखना: लर्निंग और डेवलपमेंट के आयाम।
  • जानिए, सामाजिक बदलाव के लिए कारगर गेम्स बनाने में फंडर्स कैसे मदद कर सकते हैं।
  • जानिए, जलवायु परिवर्तन से जुड़े गेम्स के बारे में।
लेखक के बारे में
अबीर कपूर-Image
अबीर कपूर

अबीर कपूर एक गेम डिजाइनर और लेखक हैं। वर्ष 2018 में उन्होंने सिविक गेम्स लैब की स्थापना की, जो नई दिल्ली स्थित गैर-लाभकारी संस्था स्मार्ट का एक उपक्रम है और सामाजिक परिवर्तन के लिए खेलों पर केंद्रित है। अबीर और उनकी टीम ने अब तक दस ऐसे खेल विकसित किए हैं, जिनका उद्देश्य सक्रिय नागरिकता को सशक्त करना और लोगों को बेहतर भविष्य की दिशा में नए रास्ते खोजने में मदद करना है।

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