जब कोई कर्मचारी फील्ड विजिट पर निकलता है, तो उसके हालात अक्सर एक आईपीएल मैच की तरह ही अनिश्चित, उतार-चढ़ाव से भरे और कभी-कभी रोमांचक भी होते हैं। कभी कोई मीटिंग सुपर ओवर जैसी होती है, तो कभी गांव की गली किसी स्लो पिच की तरह मुश्किल लगती है।
तो, पेश है फील्ड विजिट का एक मजेदार ‘मैच रिव्यू’, जिसमें ह्यूमर है, सच्चाई भी और थोड़ा-सी गूगली भी!
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फील्ड विजिट से पहले टीम प्लानिंग करते हुए।

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और जब जाने की बारी आए तो बस दो लोग ही तैयार मिलें।

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फील्ड पर जिस गाड़ी से जा रहे हैं, उसका एसी खराब हो और आपको मैनेजर की बहुत जोर से याद आए!

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खराब रास्ता देखकर गाड़ी वाला आगे जाने से मना कर दे और आप अपने साथी के साथ गिरते-पड़ते गांव में पहुंचे।

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जब पंचायत सचिव ने कहा — ‘हमने तो कभी आपकी संस्था का नाम नहीं सुना।

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फील्ड पर काम शुरू ही किया हो और मैनेजर आपसे रिपोर्ट मांगे।

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जब गांव का बच्चा पूछता है — ‘आपको कितने पैसे मिलते हैं ये सब करने के?’ और आप हंस के टाल देते हैं।

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फील्ड पर जब किसी और एनजीओ के फील्ड कर्मचारी भी मिल जाएं और वे भी आपकी ही तय थीम पर बात कर रहे हों।

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जैसे-तैसे काम खत्म करके गांव वालों से अलविदा लेते हुए।

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जाते-जाते पता चले गाड़ी का एसी भी काम कर रहा है, मैनेजर कल छुट्टी पर है और ट्रैवल रीइंबर्समेंट अप्रूव हो गया है।

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