उत्तराखंड के देहरादून में स्थित एक सामुदायिक मानसिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता की दिनचर्या, जो लोगों के साथ भरोसेमंद रिश्ता बनाकर मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता फैलाती हैं।
युवाओं से जुड़े मानसिक स्वास्थ्य के प्रयास तब अधिक प्रभावी होते हैं जब ये उनके लिए प्रासंगिक, लोगों पर ध्यान केंद्रित करने वाले और समुदाय द्वारा चलाए जाने वाले हों।
घुमंतू और विमुक्त जनजातियां भेदभाव, अन्याय और विकास योजनाओं के अभाव का सामना करती हैं। इन समुदायों के मानसिक स्वास्थ्य को इनके संघर्ष से अलग करके नहीं देखा जा सकता है।
बिहार सरकार द्वारा स्थापित बिमहास, उत्तर भारत में सार्वजनिक मानसिक स्वास्थ्य का केंद्र बन सकता है। इसके लिए मनोसामाजिक विकलांगता को लेकर जागरुकता अभियान और सहयोग की भी जरूरत होगी।