धोखाधड़ी का डर

बिजनेस कोर्रेस्पोंडेंट या एजेंट देश भर के गांवों में घर-घर जाकर लोगों को मौलिक बैंकिंग सेवाएँ दे रहे हैं। जिन लोगों का बैंक खाता उनके आधार कार्ड से जुड़ा है वे एक बिजनेस कोर्रेस्पोंडेंट के पास जाकर एक चरण वाले बायोमेट्रिक सत्यापन के माध्यम से बहुत ही आसानी से अपने खाते के बैलेंस की जानकारी या नकद निकासी जैसे काम पूरा कर सकते हैं।

हालांकि, राजस्थान में माजवारी गाँव में तीन बिजनेस कोर्रेस्पोंडेंट हैं। बावजूद इसके वहाँ के लोग 3 कीलोमीटर पैदल चलकर गोगुंडा के नजदीकी बैंक शाखा जाना पसंद करते हैं।

एक बुजुर्ग चाचा का कहना है कि “बैंक ही ठीक है। मुझे इन एजेंट पर भरोसा नहीं है।” उनके संदेह का कारण क्या है? धोखाधड़ी का डर। 

आप सोचकर देखिये कि एक दिन आपके एक सप्ताह के वेतन के बराबर पैसा आपके खाते से कट जाता है—आप नहीं जानते हैं कि यह पैसा कहाँ गया या किसने ऐसा किया। बिलकुल ऐसा ही कमला बाई* के बैंक खाते के साथ हुआ। कमला बाई ने दो दिन पहले अपना बैंक खाता विवरण गोगुंडा में एक बिजनेस कोर्रेस्पोंडेंट से अपडेट करवाया था और उसमें 7 जनवरी 2021 को 1900 रुपए का लेनदेन दिखाया गया। हालांकि, उनका दावा था कि उस तारीख को उन्होनें किसी भी तरह का लेनदेन नहीं किया था।

इसके लिए उन्होनें अपने बैंक से संपर्क किया। बैंक के अधिकारियों ने यह कह कर उन्हें लौटा दिया कि यह लेनदेन उनके बायोमेट्रिक्स विवरण के सत्यापन के बाद ही हुआ है। इस विषय में थोड़ी और खोजबीन के बाद यह बात सामने आई कि यह लेनदेन आधिकारिक रूप से बैंक के साथ पंजीकृत बिजनेस कोर्रेस्पोंडेंट द्वारा नहीं किया गया था, और इसलिए बैंक, उनके पासबुक में दर्ज विवरण के आधार पर उस एजेंट का पता नहीं लगा पाया। फिर कमला बाई को याद आया कि अपने भामाशाह कार्ड विवरण को अपडेट करने के लिए उन्होनें एक एजेंट को अपना बायोमेट्रिक दिया था। इसके बाद उस संदिग्ध एजेंट का पता लगाया गया और उससे कमला बाई के खाते से गायब हुए पैसे के बारे में पूछताछ की गई। कानूनी कार्रवाई की धमकी के बाद एजेंट ने धोखाधड़ी की बात मान ली और पैसे वापस करने के लिए तैयार हो गया।    

दुर्भाग्यवश, देश भर में हजारों लोग ऐसे ही एजेन्ट पर निर्भर होने के कारण धोखा खाते हैं। कठिन निवारण प्रणाली के साथ अपर्याप्त जांच लोगों को एजेन्टों से चौकन्ना करती है। बिजनेस कोर्रेस्पोंडेंट कई तरह की सेवाएँ प्रदान करते हैं। इसलिए एकल चरण बायोमेट्रिक सत्यापन लोगों के लिए अन्य सत्यापनों और बैंकिंग लेनदेन के बीच अंतर के काम को मुश्किल बना देता है। इस प्रक्रिया में संरचनात्मक सुधारों के अलावा, देश के दूर-दराज इलाकों में डिजिटल और वित्तीय साक्षरता में सुधार की तत्काल आवश्यकता है। 

*गोपनीयता बनाए रखने के लिए नाम बदल दिया गया है।

सिंधुजा पेनुमार्ती राजस्थान में एक जमीनी स्तर के वित्त संगठन श्रम सारथी के साथ काम करती हैं और 2020 इंडिया फ़ेलो रही हैं।

इंडिया फ़ेलो आईडीआर पर #ज़मीनीकहानियाँ का सहयोगी है। मूल कहानी यहाँ पढ़ें।

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बत्तख दो, अंडे लो

मार्च 2021 की एक सुबह जब ज़्यादातर भारत कोविड-19-अनिवार्य लॉकडाउन के तहत बंद था, तब असम के सिवसागर जिले के एक गाँव में 31 वर्षीय प्रतिमा* को एक रात अंडे खाने का मन हुआ। लेकिन दिक्कत यह थी कि उसके पास घर में नकद पैसे नहीं थे। गाँव का एटीएम मशीन शायद ही कभी काम करता था और निकटतम बैंक कुछेक गाँव की दूरी पर था। लेकिन प्रतिमा के घर पर बत्तख थे। उस इलाके के अन्य परिवारों की तरह ही उसका परिवार भी बत्तख किसान है।

इस समस्या को सुलझाने के लिए वह स्थानीय समुदाय के एक सदस्य के पास गई। उसने चीजों की अदला-बदली के लिए दृष्टि नाम के एक स्वयंसेवी संस्था के बनाए गए आवेदन फॉर्म पर खुद को एक बत्तख विक्रेता के रूप में पंजीकृत करवा लिया।

प्रतिमा ने जिस महिला समुदाय सदस्य से संपर्क किया था उसे आवेदन पत्र को भरने का प्रशिक्षण दृष्टि से मिला था। उसने प्रतिमा की मदद दूसरे गाँव के एक ऐसे निवासी से जुड़ने में की जिसने अपना पंजीकरण मुर्गे के अंडे के विक्रेता के रूप में कराया था। कुछ ही घंटों में प्रतिमा एक दर्जन अंडे के बदले अपने बत्तख को बेच सकती थी।

कोविड-19 की शुरुआत और आमदनी में तेजी से आ रही गिरावट के साथ चीजों की अदला-बदली वाली व्यवस्था देश के कई नकदी-गरीब क्षेत्रों  में फिर से प्रचलन में आ गया है। हालांकि यह नकद का विकल्प नहीं है लेकिन चीजों की अदला-बदली वाली व्यवस्था समुदायों को संभले रहने में मददगार साबित हो रही है। यह व्यवस्था विशेष रूप से उस वक़्त फायदेमंद साबित हुई जब किसान और कारीगर पैसे या बाज़ार तक पहुँच के बिना अपने उत्पादों के साथ घरों में फंसे हुए थे।

असम में चीजों की अदला-बदली की यह व्यवस्था कोई नई बात नहीं है। राज्य के दूर-दराज इलाकों में लोग सदियों से चीजों की अदला-बदली कर रहे हैं। दरअसल, चीजों की अदला-बदली वाली व्यवस्था वाला मेला जोनबील मेला 15वीं शताब्दी से राज्य में होने वाला एक वार्षिक आयोजन रहा है। हालांकि डिजिटल प्रणाली की शुरुआत ने इस प्रथा को विस्तार दिया है। खास कर औरतों को इससे बहुत अधिक फायदा हुआ है। क्योंकि इसने चीजों को बेचने के लिए बाज़ार तक जाने की उनकी जरूरत को ख़त्म कर दिया है और अब उन्हें नकद रखने की भी जरूरत नहीं पड़ती है।

वे चीजों की अदला-बदली की अवधारणा को लेकर नई सोच भी विकसित कर रहे हैं। जैसे कि, जब रेखा* को अपनी बेटी के लिए फ्रॉक चाहिए थी तब उसने एप्लीकेशन के माध्यम से विनिमय के लिए टेडी बीयर बुना था। जमीला* कई महीनों से अपने बाल कटवाने के बाद उन्हें संभाल कर रख रही है। उसकी योजना इनके बदले एक पुराना इस्तेमाल किया गया फोन लेने की है।

*गोपनीयता बनाए रखने के लिए नाम बदल दिया गया है।

देबोजीत आईडीआर में संपादकीय सहयोगी हैं। स्मरिणीता आईडीआर की सह-संस्थापक और सीईओ हैं। इस कहानी को दृष्टि से बातचीत के आधार पर लिखा गया है।

लोचदार आजीविका निर्माण पर सबक और दृष्टि को उजागर करने वाली 14-भाग वाली शृंखला में यह चौथा लेख है। लाईवलीहूड्स फॉर ऑल, आईकेईए फ़ाउंडेशन के साथ साझेदारी में दक्षिण एशिया में अशोक के लिए रणनीतिक केंद्र बिन्दु वाले क्षेत्रों में से एक है। 

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