मैं एक स्ट्रिंगर हूँ—एक फ्रीलैंस पत्रकार जो उत्तर प्रदेश के उन्नाव शहर में हाइपरलोकल मुद्दों पर पत्रकारिता करता है। मैं स्थानीय सभी ख़बरों पर रिपोर्टिंग करता हूँ। मेरे पास उन दूसरे पत्रकारों की तरह काम के चुनाव का विकल्प नहीं है जो किसी खास बीट की खबर पर ही रिपोर्टिंग करते हैं। एक स्वतंत्र पत्रकार सभी तरह की ख़बरों पर काम करता है—अपराध, राजनीति, और भी बहुत कुछ। हमें जैसे ही किसी घटना की खबर मिलती है हम जितनी जल्दी हो सके उस घटना-स्थल पर पहुँचने की कोशिश करते हैं और उसी समय स्टोरी को दर्ज करते हैं। और चूंकि हम लोग खुद भी यहीं के रहने वाले हैं इसलिए हमें इस बात की समझ होती है कि किसी भी विशेष मुद्दे का समुदाय पर कैसा असर पड़ेगा।
बचपन में मैं बहुत ज्यादा टीवी देखता था—अधिकतर दूरदर्शन। हर शाम 7 बजे जब मैं लखनऊ से प्रसारित होने वाले समाचारों के पत्रकारों को देखता था और सोचता था कि, “एक दिन मैं भी टीवी पर आऊँगा।” लेकिन मेरा पेशेवर जीवन टीवी पत्रकार के रूप में नहीं शुरू हो पाया। जब मैं अपने इंटरमिडिएट की पढ़ाई पूरी कर रहा था तब मेरी मुलाक़ात एक ऐसे पत्रकार से हुई जिन्होनें मुझे अखबारों में लिखने के लिए प्रोत्साहित किया। मुझे लगा कि यह एक अच्छा काम है और मुझे इसके लिए कोशिश करनी चाहिए, इसलिए मैंने डेली न्यूज एक्टिविस्ट के लिए काम करना शुरू कर दिया। प्रिंट मीडिया के साथ मेरा अनुभव मजेदार था—खबर वाली जगहों पर जाना, लोगों से बात करना, अपने हाथों से कहानी की रिपोर्टिंग करना और इसे प्रकाशित करवाना। यह सब 2014 की बात है। उसके बाद से मैंने कई मीडिया घरों के साथ काम किया है—समाचार डेस्क पर बैठकर, एक संवाददाता के रूप में, एक एंकर के रूप में। मैंने स्थानीय, राज्य संबंधी और राष्ट्रीय स्तर की खबरों पर लखनऊ और दिल्ली से पत्रकारिता की है।
![एक पुरुष पत्रकार तीन महिलाओं के साथ एक माइक के साथ बोल रहा है_जमीनी पत्रकारिता उन्नाव](https://hindi.idronline.org/wp-content/uploads/2022/03/A-male-journalist-with-a-mic-speaking-with-three-women.jpg)
जब 2020 की शुरुआत में कोविड-19 से जुड़े मामले वैश्विक रूप से दर्ज होने लगे थे, तब मैं लखनऊ के आमने सामने न्यूज के साथ काम कर रहा था। बीबीसी पर कोविड-19 से जुड़ी ख़बरों पर मेरी लगातार नजर बनी हुई थी और मैं जानता था कि पूरी दुनिया में स्थिति बदतर होती जा रही है। इसलिए 20 जनवरी को मैंने मुख्यमंत्री कार्यालय से संपर्क किया और उनसे लखनऊ में कोविड-19 से जुड़ी तैयारियां शुरू करने की बात कही। यह भारत में कोविड से जुड़े मामले मिलने से बहुत पहले की बात है। और जब कोविड-19 भारत पहुँच गया और स्थिति बदतर होने लगी तब मेरी तनख़्वाह भी रुक गई। मुझे लखनऊ में रहकर काम करने में कठिनाई होने लगी। इसलिए मैंने अपने गाँव वापस लौट जाने का फैसला किया। अब मैं टीवी9 भारतवर्ष नाम के राष्ट्रीय न्यूज चैनल के लिए एक स्ट्रिंगर के रूप में काम करता हूँ।
सुबह 7:00 बजे: सुबह जागने के बाद सबसे पहले किसी भी नई खबर या अपडेट के लिए मैं अपना व्हाट्सएप देखता हूँ। एक स्ट्रिंगर के लिए यह बहुत जरूरी है कि उसके पास एक मजबूत स्थानीय नेटवर्क हो। यही एकमात्र तरीका है जिससे आपके पास स्थानीय घटनाओं और मामलों से जुड़ी खबरें तुरंत पहुँचती हैं। अगर आपके पास एक मजबूत नेटवर्क नहीं है तो आपको ख़बर बनने लायक घटनाओं के बारे में पता नहीं चलेगा और आप समय पर न तो स्टोरी तैयार कर पाएंगे न ही उसे रिपोर्ट कर पाएंगे।
मैं स्थानीय अख़बारों, स्थानीय प्रधानों (गाँव के प्रमुख) और पंचायत के प्रतिनिधियों के संपर्क में रहता हूँ। विभिन्न प्रशासनिक कार्यालयों के अधिकारी—पुलिस विभाग, जिला अधिकारी और अन्य अधिकारियों के पास मेरा मोबाइल नंबर है और जब भी कुछ नया होता है तब वे मुझे फोन करते हैं। स्वतंत्र पत्रकारों के बीच में भी मेरा एक मजबूत नेटवर्क है। घटना स्थल पर सबसे पहले पहुँचने वाला स्ट्रिंगर बाकी अन्य पत्रकारों के साथ ख़बर साझा करता है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि मैं घटना स्थल पर समय पर नहीं पहुँच सकता। अगर ऐसा होता है तब मैं उन्नाव में काम करने वाले दूसरे स्वतंत्र पत्रकारों पर भरोसा कर सकता हूँ।
एक मजबूत नेटवर्क उस स्थिति में सबसे ज्यादा मददगार साबित होता है जब आप जांच के समय अफवाह और तथ्य को अलग-अलग करने का काम करते हैं।
और जब भी मैं किसी नई जगह पर जाता हूँ तब मैं वहाँ के स्थानीय लोगों से बातचीत करता हूँ और उन्हें अपना मोबाइल नंबर देता हूँ। मैं उनसे कहता हूँ कि वे मेरा नंबर अपने मोबाइल में दर्ज कर सकते हैं और जरूरत पड़ने पर या इलाके में कुछ ऐसा घटने पर मुझसे संपर्क कर सकते हैं जिसे ख़बरों में आना चाहिए या जिसकी रिपोर्टिंग होनी चाहिए। एक मजबूत नेटवर्क उस स्थिति में सबसे ज्यादा मददगार साबित होता है जब आप जांच के समय अफवाह और तथ्य को अलग-अलग करने का काम करते हैं। हाल ही में मेरे साथ बिलकुल ऐसा ही हुआ जब मैं उन्नाव में दो दलित लड़कियों की मौत पर रिपोर्टिंग कर रहा था। जहां बहुत सारे पत्रकार इस विषय पर रिपोर्टिंग कर रहे थे कि उन लड़कियों को बलात्कार के बाद मार दिया गया, वहीं मैंने स्थानीय पुलिस, डॉक्टरों और परिवार के सदस्यों से बातचीत करके सभी तथ्यों को इकट्ठा किया। इन तथ्यों के आधार पर मैंने यह रिपोर्ट बनाई कि लड़कियों की मौत जहर खाने से हुई थी। यह जरूरी है कि हम अपनी रिपोर्ट तथ्यों और सबूतों के आधार पर बनाएँ और भावनाओं और अफवाहों के प्रभाव में न आयें, विशेष रूप से आजकल जब सभी तरह की अफवाहें व्हाट्सएप और सोशल मीडिया के माध्यम से बहुत ही तेजी से फैलती हैं।
सुबह 8:30 बजे: मैं सुबह का नाश्ता करने के बाद मोटरसायकल से उन्नाव के लिए निकल जाता हूँ। मैं शहर से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर रहता हूँ इसलिए मुझे रोज ही शहर से गाँव जाना पड़ता है। शहर पहुँचने के बाद सबसे पहले मैं जिला अस्पताल जाता हूँ, और उसके बाद पुलिस अधीक्षक और जिला अधिकारी के कार्यालयों का दौरा करता हूँ। इन कार्यालयों से मैं विभिन्न कहानियों पर रिपोर्ट बनाता हूँ— दुर्घटनाएँ, जमीन से जुड़े मामले और अन्य मामले। इन सभी जगहों पर जाकर मैं मामले से प्रभावित आदमी और अधिकारियों से बात करता हूँ और सभी महत्वपूर्ण और प्रासंगिक सूचनाओं को लिख लेता हूँ। मैं इन रिपोर्ट को वहीं खड़े-खड़े अपने फोन में लिख लेता हूँ और उन्हें टीवी9 के समाचार डेस्क को भेज देता हूँ। मैं उन लोगों के फोन नंबर भी मांग लेता हूँ जिनसे मेरी बात हुई है ताकि आगे किसी ख़बर की जरूरत पड़ने पर मैं उनसे दोबारा संपर्क कर सकूँ।
![एक पत्रकार एक ऑटो में दो आदमियों के साथ हाथ में नोटबुक लिए बात कर रहा है_जमीनी पत्रकारिता उन्नाव](https://hindi.idronline.org/wp-content/uploads/2022/03/A-journalist-with-a-notebook-in-hand-speaking-with-two-men-in-an-auto.jpg)
किसी किसी दिन मैं आठ रिपोर्ट बनाता हूँ। हालांकि मेरी बनाई गई सभी रिपोर्ट प्रकाशित नहीं होती हैं। ख़बरों को प्रकाशित करने और उनके चुनाव का फैसला समाचार डेस्क करती है। चुनी गई ख़बरों पर स्ट्रिंगर का अधिकार नहीं होता है और न ही प्रकाशित हुई ख़बरों के अंतिम स्वरूप पर। कभी-कभी मुझे बुरा लगता है जब एक अच्छी रिपोर्ट को समाचार डेस्क प्रकाशित नहीं करता है लेकिन उस स्थिति में मैं खुद से कहता हूँ कि मैं अगली बार और अच्छा करूंगा। और भी कई तरह की चुनौतियाँ हैं। जैसे कि, हमारी कोई निश्चित मासिक आय नहीं है। हमें सिर्फ उन ख़बरों के ही पैसे मिलते हैं जो प्रकाशित होती हैं, न कि हमारे द्वारा भेजी गई सभी ख़बरों के। इन कहानियों को भेजने से मिलने वाले पैसों से मोटरसायकल के तेल का खर्च भी मुश्किल से निकल पाता है। इन ख़बरों तक पहुँचने और जानकारियाँ जुटाने में इससे ज्यादा खर्च होता है। और इन ख़बरों की बाईलाईन में उस आदमी का नाम जाता है जो समाचार डेस्क पर बैठकर इन्हें एक साथ लाने का काम करता है; हमारा नाम कभी-कभी लेख के अंत में दे दिया जाता है। लेकिन रिपोर्टिंग मेरा जुनून है और इसलिए मैं यह काम करता हूँ।
दोपहर 1:00 बजे: इस समय उत्तर प्रदेश में चुनाव हो रहे हैं, इसलिए मैं और दिनों की अपेक्षा ज्यादा व्यस्त हूँ। सभी सामान्य समाचारों के अलावा मुझे चुनाव से जुड़ी सभी ख़बरों की रिपोर्टिंग भी करनी पड़ती है। मुझे राजनीतिक दलों की रैलियों में जाना पड़ता है जहां मैं मतदाताओं और दलों के प्रतिनिधियों से बात करता हूँ। एक पत्रकार के रूप में मुझे यह लगता है कि नागरिकों से जुड़े मुद्दों पर ध्यान देना जरूरी है—वे क्या हैं, क्या उनका समाधान हो गया, पिछले पाँच वर्षों में क्या प्रगति हुई है, सत्ता में बैठे राजनीतिक दल ने कौन सी राहतें मुहैया की हैं? हमें प्रासंगिक स्थानीय खबरों के बारे में बात करनी चाहिए और किसी विशेष प्रत्यासी के समर्थन या विरोध में माहौल बनाने का काम नहीं करना चाहिए।
इस बार मतदाता खुलकर नहीं बता रहे हैं कि वे किसे अपना मत देंगे। पिछले तीन चुनावों में हम लोगों ने हर बार एक दल के पक्ष में जनता का लहर देखा ही—पहले बीएसपी, उसके बाद समाजवादी पार्टी और फिर बीजेपी। लेकिन इस चुनाव में हमें किसी भी एक दल के पक्ष में स्पष्ट बहुमत नहीं दिखाई पड़ रहा है।
जनता को केवल राशन दे देने भर से विकास का काम पूरा नहीं होता है।
चुनावी रैलियों और अभियानों की रिपोर्टिंग करने के अलावा मैं उन्नाव जिले में पुरवा विधान सभा क्षेत्र से जुड़ी एक कहानी पर भी काम कर रहा हूँ। कुछ महीने पहले, मैं चुनाव आयुक्त की वेबसाइट पर कुछ शोध कर रहा था और मेरी नजर इस बात पर गई कि इस विधान सभा क्षेत्र में बीजेपी ने आज तक एक भी सीट पर जीत दर्ज नहीं की है। मेरी रुचि इस बात में जगी कि ऐसा क्यों है और मैंने इस पर आगे खोजबीन करने का मन बना लिया ताकि पता लगा सकूँ कि इससे जुड़ी कोई मजेदार रिपोर्टिंग बन सकती है या नहीं। इसलिए मैंने पुरवा का दौरा किया और वहाँ के स्थानीय लोगों से बातचीत की, खासकर उन बुजुर्गों से जो कई दशकों से मतदान कर रहे हैं। उन लोगों ने मुझे बताया कि पुरवा के लोग आज भी पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं जैसी मौलिक सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यहाँ न तो एक भी अच्छा अस्पताल है न ही उच्च शिक्षा संस्थान। यह एक ऐसी चीज है जिस पर अगली आने वाली सरकार को ध्यान देना चाहिए। जनता को केवल राशन दे देने भर से विकास का काम पूरा नहीं होता है।
शाम 6:00 बजे: घर पहुँचते ही मेरे फोन की घंटी बजी और मुझे खबर मिली कि हाईवे पर एक दुर्घटना हो गई है। मैं तुरंत वापस मुड़ा और घटना स्थल की तरफ निकल गया। आमतौर पर इस तरह की खबरें देर रात में आती हैं—बीच रात में या सुबह के 2 बजे करीब। इससे फर्क नहीं पड़ता है कि मेरे पास किस समय फोन आ रहा है; फोन आते ही मैं उस समय कर रहे अपने काम को बीच में छोडकर रिपोर्ट की फ़ाइल तैयार करने घटना स्थल पर जाने के लिए निकल जाता हूँ। अगर इन घटनाओं में किसी की मौत हो जाती है तब मुझे पोस्ट-मोर्टेंम रिपोर्ट के लिए अस्पताल भी जाना पड़ता है।
मैं इस काम को इसलिए कर रहा हूँ ताकि वहाँ तक पहुँचने का रास्ता मिल सके जहां मैं पहुँचना चाहता हूँ और तब तक करता रहूँगा जब तक मेरी रुचि खत्म नहीं हो जाएगी।
मेरी दिनचर्या अनिश्चित है और मुझे अपने परिवार के साथ बहुत कम समय मिलता है। शुरुआत में जब मैंने काम करना शुरू किया था तब मेरे पिता को लगता था कि मैंने गलत पेशा चुन लिया है। उनका कहना था कि, “तुमने इंटरमिडिएट की पढ़ाई पूरी कर ली है, तुम कंप्यूटर क्यों नहीं सीख लेते हो और उसके बाद इधर-उधर घूमने के बजाय एक अच्छी सी नौकरी क्यों नहीं ढूंढते हो?” अब जब लोग उन्हें मेरे काम के बारे में बताते हैं तब उन्हें राहत मिलती है। मेरे दोस्तों को लगता है कि मेरा काम सबसे अच्छा है क्योंकि मैं कहीं भी जा सकता हूँ, लोगों से मिल सकता हूँ और उनकी समस्याओं के बारे में बात कर सकता हूँ। लेकिन एक स्ट्रिंगर के काम में बहुत अधिक दबाव होता है, जिसमें मान्यता और मिलने वाले पैसे न के बराबर होते हैं। मैं इस काम को इसलिए कर रहा हूँ ताकि वहाँ तक पहुँचने का रास्ता मिल सके जहां मैं पहुँचना चाहता हूँ और तब तक करता रहूँगा जब तक मेरी रुचि खत्म नहीं हो जाएगी।
जैसा कि आईडीआर को बताया गया।
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