February 16, 2022

भुज की बहनों से मिलें 

पिछले दो दशकों से कच्छ के 200 गांवों में महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ रही एक अर्धन्यायिक (पैरालीगल) के जीवन में एक दिन।
7 मिनट लंबा लेख

पिछले 22 वर्षों से मैं गुजरात के कच्छ क्षेत्र के कुछ दूरदराज़ के गाँवों में स्वयंसेवी संस्था कच्छ महिला विकास संगठन (केएमवीएस) के साथ काम कर रही हूँ। कच्छ भारत का सबसे बड़ा ज़िला है और उसमें विविधता बहुत है—यहाँ कई समुदाय, भाषा, कपड़े, भोजन और धर्म हैं और यही कच्छ की ताकत है। हम ज़िले भर में काम करते है, कच्छ के लंबे और घुमावदार तट के करीबी गाँवों से लेकर भारत-पाक सीमा के करीबी गाँवों तक, जो कच्छ के रण के आंतरिक हिस्से में हैं।

मैंने स्वयं सहायता समूह के नेता के रूप में केएमवीएस के साथ अपनी यात्रा शुरू की, और बाद में एक अर्धन्यायिक (पैरालीगल) के रूप में प्रशिक्षण लिया। पिछले छह वर्षों से मैं संगठन के साथ पूर्णकालिक पैरालीगल के रूप में काम कर रही हूँ। केएमवीएस में हम घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं को न्याय दिलवाने के लिए सहायता करते हैं। हम कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से या झगड़ों को सुलझाने के लिए विश्वसनीय मध्यस्थों के रूप में काम कर के उनकी और उनके परिवारों की सहायता करते हैं।

हमारा काम यहीं खत्म नहीं होता। हम कच्छ पुलिस के साथ भी काम करते हैं। हमने 2010 में ‘हैलो सखी’ हेल्पलाइन शुरू की थी। यह हेल्पलाइन भुज के महिला पुलिस थाने से संचालित है और यह हमें अधिक महिलाओं तक पहुँचने में मदद करती है। इससे पहले, हम विभिन्न गाँवों की यात्रा करते थे और महिलाओं की सीमित संख्या तक ही अपनी सेवाएँ पहुँचा पाते थे। हम अभी भी अधिकारों और महिलाओं के हक़ों पर सेमिनार आयोजित करने के लिए, और महिलाओं (विशेष रूप से विधवाओं) की सरकारी योजनाओं और सेवाओं तक पहुँच बढ़ाने के लिए गाँवों में यात्रा करते हैं, लेकिन हेल्पलाइन के द्वारा हम तत्काल सहायता भी प्रदान कर पाते हैं।

अब मैं 400 से अधिक महिलाओं को केएमवीएस में पैरालीगल बनने के लिए प्रशिक्षित कर चुकी हूँ।

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जब मैंने 20 साल की उम्र में केएमवीएस में काम करना शुरू किया था, तब मैंने सातवीं कक्षा से आगे की पढ़ाई नहीं की थी। मेरे गाँव के स्कूल में इससे आगे की शिक्षा संभव नहीं थी, इसलिए चाहने के बावजूद मैं आगे पढ़ाई नहीं कर सकी। अब मैं 400 से अधिक महिलाओं को केएमवीएस में पैरालीगल बनने के लिए प्रशिक्षित कर चुकी हूँ। इसी वर्ष में मैंने दसवीं कक्षा पूरी करने के बारे में सोचा, जब मेरे पर्यवेक्षक ने सुझाव दिया कि मैं परीक्षा देकर अपना प्रमाण पत्र प्राप्त कर सकती हूँ। संगठन ने सोचा की इससे मुझे मदद मिलेगी, और साथ ही जो युवा मेरी देख-रेख में काम करते हैं उन्हें भी प्रेरणा मिलेगी। 42 साल की आयु होने के कारण मैं झिझक रही थी; आखिरी बार मैंने औपचारिक रूप से पढ़ाई बहुत साल पहले की थी। लेकिन मेरे सहयोगियों ने मेरा हौसला बढ़ाया और कुछ महीनों तक कठिन मेहनत के बाद, मैं उत्तीर्ण हुई।

अब मेरा ज्यादातर समय भुज के ऑफिस में या बाहर फ़ील्ड में बीतता है।

सुबह 7:30 बजे: मेरा काम आमतौर पर सुबह 10 बजे शुरू होता है, जब मैं पड़ोसी गाँवों का दौरा करने के लिए या सीधे कार्यालय जाने के लिए अपने स्कूटर पर निकलती हूँ। लेकिन आज के जैसे दिन, जब हैलो सखी हेल्पलाइन पर कॉल सुनने के लिए कोई भी उपलब्ध नहीं है, तो मैं इसके बजाय पुलिस स्टेशन जाती हूँ।

मुझे याद है कि जब मैंने शुरुआत की थी, तो मैंने कभी बस में यात्रा नहीं की थी। कल्याणपुर में, जिस गाँव में मैं पली-बढ़ी हूँ, महिलाएँ अपने घरों की दहलीज से बाहर कदम नहीं रखती थीं। मैं मुसलमान हूँ और मेरे समुदाय में महिलाओं को अकेले और बिना घूँघट के बाहर जाने की अनुमति नहीं है। आश्रित और कम दुनिया देखे हुए जीवन की आदत होने के कारण मैं केएमवीएस से जुड़ने में संकोच कर रही थी।

लेकिन जब केएमवीएस की महिलाओं ने अपने काम के बारे में बताया, तो मैंने उनसे जुड़ने की हिम्मत जुटाई। शुरुआत में मेरे पति के परिवार के सदस्य बैठकों के वक़्त मेरे पीछे पीछे आते थे, यह देखने के लिए कि मैं कहाँ जा रही हूँ, मैं क्या कर रही हूँ। मेरी सास ने भी मेरे साथ आने पर ज़ोर दिया। लेकिन कुछ बैठकों के बाद उन्होंने स्वीकार किया कि सामूहिक काम रचनात्मक है और हमारी बहनों से बहुत कुछ सीखने को मिलता है। समय के साथ, मैं अपने परिवार का विश्वास और समर्थन हासिल कर पाई। अब जबसे लॉकडाउन हुआ है, तबसे मैं हर दूसरे दिन अपना काम पूरा करने के लिए अपने स्कूटर से पड़ोसी गाँवों की यात्रा करती हूँ।

पंजीकरण अभियान के एक काउंटर पर एक औरत। काउंटर की दो तरफ दो औरतें हैं और तीसरी औरत उनके पीछे बैठी हुई है। वे चारों तरफ से पोस्टर और पुस्तिकाओं से घिरी हुई हैं_केएमवीएस-महिला घरेलू हिंसा
अब भी ऐसी बुजुर्ग महिलाएं हैं जिन्हें अपनी बहु-बेटियों के घरों से बाहर निकलने, किसी भी महिला संगठन से जुड़ने और किसी भी मामले में आवाज़ उठाने पर एतराज होता है। | चित्र साभार: केएमवीएस

सुबह 8 बजे: एक बार महिला पुलिस स्टेशन पहुँचने के बाद मैं हेल्पलाइन पर कॉल का जवाब देती हूँ, जो कि प्रतिदिन सुबह 8 बजे से 9 बजे के बीच चलती है, यहाँ तक कि दिवाली और ईद की छुट्टियों में भी। मैं फोन करने वाले व्यक्ति से उनका विवरण—नाम, गाँव, उम्र, बच्चों की संख्या—का ब्यौरा लेती हूँ। साथ ही जिस मुद्दे का वह सामना कर रहे हैं उसका विवरण भी लेती हूँ। कच्छ के सभी दस तालुकों (ब्लॉक) में हमारे कार्यालय हैं, इसलिए फोन जहाँ से आ रहा है उसके अनुसार मैं उस तालुका के पैरालीगल और काउंसलर से संपर्क करती हूँ और उन्हें स्थिति से अवगत करवाती हूँ। आमतौर पर हम कॉल करने वालों को हमारे कार्यालयों में आने के लिए कहते हैं, लेकिन यदि वे नहीं आ सकते तो हम उनसे मिलने जाते हैं।

चूँकि मैं भुज में रहती हूँ, अगर कोई मामला पास में है, तो मैं खुद उसमें शामिल होती हूँ। हम आम तौर पर महिलाओं और उनके परिवारों के बीच सभी मामलों को सबकी सहमति बना कर हल करने का प्रयास करते हैं। लेकिन अगर महिला को फिर भी खतरा महसूस होता है या वह खतरे में है, तो हम मामले को पुलिस के पास ले जाते हैं।

सुबह 10 बजे: जब मैं पुलिस थाने में थी मुझे मेरे मोबाइल पर फोन आया। मैं औसतन लगभग 200 गाँवों के साथ काम करती हूँ, और चूँकि लोग मुझे अच्छी तरह से जानते हैं, इसलिए वे कभी-कभी हेल्पलाइन के बजाय सीधे मेरे फोन पर कॉल करते हैं।

मैंने फोन का जवाब दिया—रामलाल*, पास के गाँव का एक व्यक्ति, अपनी बेटी लक्ष्मी* की ओर से फोन कर रहा है। वह मुझे बताता है कि लक्ष्मी के ससुर ने कल रात उसे घर से निकाल दिया। उसने परिवार के लिए चाय बनाते समय थोड़ा ज़्यादा दूध डाल दिया था। उसके ससुर नाराज़ हो गए, और मौका मिलते ही उसे पीट कर घर से बहार निकाल दिया। लक्ष्मी अब अपने माता-पिता के घर पर है और इसलिए रामलाल मुझसे उसकी मदद करने और हस्तक्षेप करने का अनुरोध करता है।

सुबह 11.30 बजे: मैं उनके घर पहुँचती हूँ, और लक्ष्मी से बात करने बैठती हूँ। हम इस घटना पर चर्चा करते हैं, और मैं उसे बताती हूँ कि उसके ससुर को उसके साथ ऐसा व्यवहार करने का कोई अधिकार नहीं है। जब उससे इस सब में उसके पति की भूमिका के बारे में पूछा गया, तो उसने बताया कि उसके पति ने अपने पिता को रोकने की कोशिश की लेकिन वो असफल रहा। हम तय करते हैं कि यह सबसे अच्छा होगा यदि वे दोनों (पति और पत्नी) कुछ समय के लिए परिवार के बाकी लोगों से अलग रहें, ताकि लक्ष्मी अपने ससुर से कुछ दूर रह सके। उनकी अनुपस्थिति में उसके पति का भाई अपने माता-पिता की देखभाल करने के लिए सहमत हुआ।

जब इस तरह की स्थितियों को पुलिस में ले जाया जाता है, तो वह महिला के लिए अतिरिक्त तनाव का कारण बन सकता है। अक्सर इस मुद्दे को परामर्श के माध्यम से हल करना आसान होता है। हालाँकि आपातकालीन स्थितियों मे हम पुलिस की 181 महिलाओं की हेल्पलाइन वैन का उपयोग करते हैं, ताकि महिलाओं तक जल्दी पहुँच सकें और उन्हें तत्काल खतरे से बाहर निकाला जा सके।

दोपहर 2 बजे: मैं भुज में कुछ प्रशासनिक काम करवाने के लिए वापस कार्यालय जाती हूँ, और मेरी निगरानी में काम करने वाले कुछ पैरालीगल्स से बात करती हूँ। उनमें से कुछ, जो अन्य कंपनियों या होटलों में नौकरी करते हुए पैरालीगल के रूप में काम करते हैं, वे महामारी के कारण अपनी आय और बचत को लेकर चिंतित हैं। एक महिला को अपने 17 वर्षीय बेटे को काम करने के लिए कहना पड़ा, क्योंकि उसका पति, एक प्रवासी कामगार, लॉकडाउन के दौरान उन तक नहीं पहुँच पाया।

हम हर साल जनवरी में पैरालीगल के एक नए कैडर को भर्ती करते हैं। ऐसा करने के लिए हम एक गाँव से दूसरे गाँव जाते हैं। वहाँ हम महिलाओं से बात करते हैं, उन्हें हमारे काम के बारे में बताते हैं, और उन्हें हमारे साथ जुड़ने के लिए कहते हैं। हम आम तौर पर गाँव के साथ एक संबंध स्थापित करने के लिए गाँव के सरपंच या आशा कार्यकर्ता के साथ पहले बातचीत करते हैं, और उनकी मदद से यह पहचान करते हैं कि कौनसी महिलाएँ हमसे जुड़ने में दिलचस्पी ले सकती हैं।

वर्षों से परिवारों के साथ काम करने के कारण हम एक मध्यस्थ के रूप में अपनी भूमिका स्थापित करने में सक्षम रहे हैं।

एक बार जब नए पैरालीगल का काम शुरू होता है, तो मैं उन्हें घरेलू हिंसा, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पीओसीएसओ) अधिनियम, बाल हिरासत कानून, लिंग, महिलाओं के अधिकार, और इसी तरह की बातों पर प्रशिक्षित करती हूँ। हम प्रचलित सामाजिक मानदंडों और मानसिकता पर भी चर्चा करते हैं। अभी भी बहुत सारी बुज़ुर्ग महिलाएँ हैं जो अपनी बेटियों और बहुओं को घर से बाहर निकलने, महिलाओं के समूह का सदस्य बनने और सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर अपनी आवाज़ उठाने पर आपत्ति जताती हैं। हमें उन्हें समझाने और उन्हें आश्वस्त करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है कि हम कुछ भी गलत नहीं कर रहे हैं। पितृसत्तात्मक मानदंड महिलाओं को उनके घर छोड़ने से रोकते हैं, लेकिन हम उन्हें सलाह देते हैं, उनके डर को दूर करने में मदद करते हैं। हम परिवर्तन को अपनाने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करते हैं कि वे अभी तक जिसमें उन्हें सहूलियत लगती थी या जिसकी उन्हें आदत थी, उस विचारधारा को छोड़ें।

शाम 4 बजे: मेरा फोन फिर से बजता है—इस बार, यह एक महिला है जो अपने पति की शराब की लत के बारे में चिंतित है और इसकी वजह से वह उसके साथ कैसा व्यवहार करेगा उसे लेकर परेशान है। वर्षों से परिवारों के साथ काम करने के कारण हम एक मध्यस्थ के रूप में अपनी भूमिका स्थापित करने में सक्षम रहे हैं; हम आँख बंद करके महिलाओं का साथ नहीं देते, लेकिन हम उन्हें बता देते हैं कि वे वास्तविक, निष्पक्ष सहायता के लिए हम पर भरोसा कर सकती हैं। ऐसा करने से हम घर के अन्य सदस्यों का विश्वास अर्जित कर पाए हैं, और यही कारण है हम झगड़ों को सुलझाने में मदद कर पाते हैं।

मैं उस महिला को सलाह देती हूँ, उसे आश्वस्त करती हूँ कि अगर उसे खतरा महसूस होता है, तो हम एक काउंसलर और पैरालीगल को भेजेंगे।

शाम 5 बजे: दिन का काम खत्म करने से पहले मैं हमारे पैरालीगल्स के लिए प्रशिक्षण सत्रों के अगले सेट की योजना बनाने में कुछ समय बिताती हूँ। इस बारे में सोचने से मुझे केएमवीएस के साथ अपने शुरुआती दिनों का ख़याल आता है। जब मैंने काम करना शुरू किया था, तो मुझे महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा, महिलाओं के अधिकारों और हमारे संगठन के बारे में जागरूकता सत्र आयोजित करने के लिए गाँव-गाँव जाना पड़ता था। गाँव भर की महिलाओं के साथ जुड़ने में मुझे जो मदद मिली थी उसका कारण यह था कि मैं उनकी तरह ही एक गाँव की लड़की थी, जिसने पहले कभी अपने घर से बाहर कदम नहीं रखा था।

हम अपने अधिकारों और क्षमता के बारे में जानने से ही पितृसत्तात्मक मानदंडों को पीछे छोड़ सकते हैं जो हमें अपने घरों में बाँध के रखते हैं। अगर मैं बाहर न निकली होती या नई चीज़ें न आज़माई होतीं, तो मैं आज जहाँ हूँ, वहाँ न होती। मैं खुद से भुज नहीं जा पाती, एक प्रबंधक के रूप में काम न कर पाती, खुद बैठकें न कर पाती, और अपनी बहनों को उनकी आवाज़ ढूँढने में मदद भी न कर पाती। एक समय पर हमें ‘भुज वली बहनें’ भी कहा जाता था और अपने काम के माध्यम से मैं कच्छ भर में 5,000 से अधिक बहनों के साथ जुड़ी हुई हूँ।

*गोपनीयता बनाए रखने के लिए नाम बदले गए हैं। 

जैसा कि आईडीआर को बताया गया है।

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  • इन तरीकों को दूसरों के साथ बाँटें जिनकी मदद से आप या आपके समुदाय का कोई भी सदस्य घरेलू हिंसा से पीड़ित व्यक्ति का सहयोग कर सकते हैं। 
  • भारत में घरेलू हिंसा और अपने जीवन साथी या करीबी साथी द्वारा की जाने वाली हिंसा से पीड़ित लोगों के लिए तैयार हेल्पलाइन की सूची को प्रसारित करें। इन हेल्पलाइन नंबरों की सूची को यहाँ, यहाँ और यहाँ से प्राप्त किया जा सकता है। 

लेखक के बारे में
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खाताबेन समेजा

खाताबेन समेजा कच्छ महिला विकास संगठन (केएमवीएस) की सदस्य हैं। वे पैरालीगल के नए कैडरों के प्रशिक्षण और प्रबंधन के साथ-साथ एक पैरालीगल के रूप में काम करती हैं। इन्होंने 1,000 से अधिक महिलाओं को हिंसा से बाहर निकलने में मदद की है। जहाँ वे काम करती हैं उन समुदायों के लिए और जिन पैरालीगल्स का वे प्रबंधन करती हैं उनके लिए एक कुशल नेता हैं।

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