May 18, 2022

ओड़िशा की एक शिल्पकार ने गढ़ी अपनी ही कहानी

ओड़िशा की एक शिल्पकार जो अपनी कहानी बता रही है कि कैसे उसने महिला शिल्पकारों के साथ मिलकर अपनी एक विश्वसनीय पहचान बनाई और समुदाय विकसित किया।
5 मिनट लंबा लेख

मेरा नाम निरुपमा जना है। मैं ओड़िशा के बालासोर ज़िले में पड़ने वाले बलियापल गाँव की रहने वाली हूँ। मेरे माता-पिता भी शिल्पकार ही थे। उन्होंने स्थानीय हस्तशिल्प और शिल्पकारों को सहायता देने वाले एक सामाजिक उद्यम कदम हाट से प्रशिक्षण लिया था और उनके लिए टोकरियाँ बनाते थे। मैं और मेरा भाई अक्सर अपने माता-पिता के ऑर्डर पूरा करने के लिए उनके काम में मदद किया करते थे। इसलिए हम दोनों ने बहुत छोटी उम्र में ही तरह-तरह के डिज़ाइन वाली टोकरियाँ बनाना सीख लिया था।

मैंने बालासोर में एफ़एम विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में एमए की पढ़ाई पूरी की है। मैं वकील बनाना चाहती थी और बीकॉम की पढ़ाई करना चाहती थी लेकिन मेरे पिता के पास मेरी शिक्षा के लिए उतने पैसे नहीं थे। एमए पूरा करने के कुछ ही दिनों बाद मेरी शादी हो गई। मैंने 2017 में केवल 20 शिल्पकारों के साथ मिलकर कदम के लिए काम करना शुरू किया था। आज कुल 180 महिला शिल्पकार मुझसे जुड़ी हैं जो आसपास के कई गाँवों में मेरे लिए काम करती हैं। हम झोले, रोटी रखने वाले डब्बे, गमले और बहुत कुछ बनाते हैं। हम अपने उत्पाद प्राकृतिक कच्चा माल जैसे बांस और सबाई घास से तैयार करते हैं।

सुबह 4.00 बजे: मैं अपना दिन घर के कामों से शुरू करती हूँ। मेरे साथ मेरी माँ और दो बहनें रहती हैं। मेरी दोनों बहनें स्कूल जाती हैं। मेरी माँ को डायबिटीज़ है इसलिए मैं सुबह सबसे पहले उन्हें कुछ खाने के लिए देती हूँ ताकि वह समय पर अपनी दवाईयाँ ले सकें। उसके बाद मैं घर की सफ़ाई और दोपहर के खाने का इंतज़ाम करती हूँ। मुझे आज करंज और सुरुदिया गाँव जाना है और मैं खाने के समय तक वापस नहीं लौट पाऊँगी। 

सुबह 7.00 बजे: घर का सारा काम ख़त्म करने के बाद मैं सुई और सबाई घास लेकर बैठती हूँ। मुझे झोलों का बचा हुआ काम पूरा करना है। प्रोडक्शन टीम के लोग कुछ दिनों बाद इन झोलों को लेने आने वाले हैं। बहुत छोटी उम्र से ही मैं सुईयों के साथ काम करती आ रही हूँ। मैंने सातवीं कक्षा से ही अपने माता-पिता की उनके काम में मदद करनी शुरू कर दी थी। जब दूसरे बच्चे बाहर खेलते थे तब मैं अपनी माँ से छुपकर उन झोलों या टोकरियों पर काम करने लग जाती जिन्हें वह बाहर छोड़ गई थीं। मेरे माता-पिता, मेरे भाई और मुझे बांस और सबाई घास से तरह तरह की कुर्सियाँ और मचियाँ बनाना अच्छा लगता है। एक शिल्पकार के रुप में मेरी यात्रा यहीं से शुरू हुई थी।

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निरुपमा अपनी टीम के साथ काम करती हुई_शिल्पकार ओड़िशा
हालाँकि हम अपना पहला ऑर्डर समय पर पूरा नहीं कर पाए थे लेकिन उसके बाद से मेरी टीम ने विकास ही किया है। | चित्र साभार: कदम हाट

शादी के बाद मैंने अपनी पति की छोटी सी दुकान में ही बिना पैसों के काम करना शुरू कर दिया था। मेरी दूसरी बेटी के पैदा होने के बाद मेरे पति ने दूसरी शादी कर ली। जब मेरी माँ ने मेरी समस्या देखी और पाया कि मैं घंटो तक बिना पैसे के काम करती हूँ तब उन्होंने पायल मैडम (कदम की सह-संस्थापक) से मुझे कुछ काम देने के लिए कहा। इस तरह 2016 में मुझे मेरा पहला ऑर्डर मिला था। अपने पहले ऑर्डर में मुझे लगभग 30 दिनों में 1,000 टोकरियाँ बनानी थीं। उन दिनों मेरे पास केवल 20 ही शिल्पकार थीं जो सुरुदिया गाँव की रहने वाली थीं। उन लोगों ने मेरे पिता के साथ काम किया था और जब मैंने उन्हें अपने साथ काम करने के लिए कहा तब वे खुश हो गई। दुर्भाग्य से हम लोग समय पर अपना काम पूरा नहीं कर पाए लेकिन उसके बाद से मेरी टीम ने वापस पीछे मुड़कर नहीं देखा।

सुबह 9.00 बजे: जब मैं अपनी बेटी को स्कूल के लिए तैयार होते देखती हूँ तब मुझे एहसास होता है कि मैं पिछले दो घंटे से लगातार काम कर रही हूँ। मेरी बड़ी बेटी इस बात को समझती है कि मैं पूरे दिन बहुत ज़्यादा मेहनत करती हूँ इसलिए वह मुझे परेशान नहीं करती है। वह अपना और अपनी बहन दोनों के लिए टिफ़िन का डब्बा तैयार करती है और वे दोनों स्कूल चले जाते हैं। मुझे अपनी बेटियों पर बहुत ज़्यादा गर्व है और मैं चाहती हूँ कि वे अपनी पढ़ाई पूरी करें। 

सुबह 10.00 बजे: मुझे करंज और सुरुदिया जाने के लिए तैयार होना है। दोनों गाँव एक दूसरे के पास ही है लेकिन मेरे घर से वहाँ जाने में एक घंटा लगता है। एक समूह के प्रधान के रूप में मैं आसपास के सात गाँवों के शिल्पकारों के साथ काम करती हूँ। मुझे हर दिन बाहर नहीं जाना पड़ता है लेकिन सप्ताह में एक बार मैं हर गाँव का दौरा कर लेती हूँ ताकि काम का निरीक्षण कर सकूँ और समय पर काम ख़त्म हो सके। चूँकि ये गाँव मेरे घर से दूर हैं इसलिए मैं अपनी स्कूटी से जाऊँगी। मैंने ऋण लेकर अपनी ये स्कूटी ख़रीदी थी जिसका लगभग ज़्यादा हिस्सा मैंने चुका दिया है। 

आजकल हम लोग झोलों के एक बड़े निर्यात के ऑर्डर पर काम कर रहे हैं। इन झोलों को बनाने के लिए हम सबई घास को प्राकृतिक रंगों से रंगते हैं जो केवल बरसात के मौसम में ही मिलता है। आमतौर पर मैं बालासोर के नज़दीक वाले गाँव में साल में एक बार लगने वाले हाट (बाज़ार) से एक साथ ही सारा घास ख़रीद लेती हूँ। उसके बाद मैं ज़रूरत के हिसाब से विभिन्न गाँवों के शिल्पकारों को घास पहुँचाती हूँ। बचा हुआ घास पूरे साल किसी एक शिल्पकार के घर पर अच्छे से रखा जाता है।

हालाँकि इस साल बारिश बहुत कम हुई थी और घास के रंग पर इसका असर पड़ा था। ताजी काटी गई घास की क़ीमत कम होती है लेकिन इस साल हमें घास ख़रीदने के लिए थोड़ा इंतज़ार करना पड़ा था और यह महँगा भी था।

सुबह 11:00 बजे: मैं सुरुदिया पहुँच गई हूँ। मुझे आता देख बाहर खेल रहे बच्चें चिल्लाने लगते हैं: ‘निरू दीदी आ गई’। मुझे शिल्पकारों से मिलना है। विभिन्न गाँवों में शिल्पकारों के समूहों के लिए मैंने एक नेता चुना है। ज़्यादातर शिल्पकार अपने घर से ही काम करते हैं इसलिए मैं उनके नेता को अपने आने की सूचना पहले ही दे देती हूँ। इससे मेरे आने तक सभी शिल्पकार अपने उत्पादों के साथ एक जगह इकट्ठा हो जाते हैं।

इस निर्यात ऑर्डर को पूरा करने के लिए 120 से अधिक शिल्पकार काम कर रहे हैं। हालाँकि सभी के कौशल का स्तर एक जैसा नहीं है और कुछ लोग तेज काम करते हैं वहीं कुछ के काम करने की गति धीमी है। और कभी-कभी तो रंग ख़राब हो जाते हैं। सबई घास का रंग एक समस्या हो सकती है—सभी उत्पादों में एक सा रंग बनाए रखना हमारे लिए मुश्किल है। इस ऑर्डर को लेकर मैं थोड़ी परेशान हूँ क्योंकि सभी शिल्पकारों को रंगीन झोले ही तैयार करने हैं।

दोपहर 1:00 बजे: हम लोग थोड़ी देर आराम करते हैं और फिर दोपहर का खाना साथ में खाते हैं। इनमें से ज़्यादातर शिल्पकार मुझे तब से जानते हैं जब मैं बच्ची थी। वे सभी मुझे अपने परिवार का सदस्य मानते हैं और मुझे भी उनके साथ बहुत अच्छा लगता है। किसी भी तरह की समस्या आने पर ये शिल्पकार आमतौर पर मेरे पास आते हैं और मुझे अपनी बात बताते हैं। कभी कभी इन्हें शादी या परिवार के किसी सदस्य के श्राध के लिए पैसों की ज़रूरत होती है।

जब लोगों ने देखा कि मेरे साथ काम करने वाली शिल्पकारों को हमेशा काम मिलता है और उनके पैसे भी समय पर आ जाते हैं तब उन्होंने कहा कि वे भी अपने परिवार और दोस्तों सहित मुझसे जुड़ना चाहते हैं।

मैं ख़ुद उन्हें पैसे उधार नहीं दे सकती हूँ लेकिन मैं गाँव में बहुत सारे दुकानदारों को जानती हूँ; कभी-कभी मैं उनसे आग्रह करती हूँ कि वे इन शिल्पकारों को पैसे या सामान उधार दे दें। जब इन शिल्पकारों को बैंक से ऋण लेने की ज़रूरत होती है तब मैं उनके साथ बैंक भी जाती हूँ। जब मैंने काम शुरू किया था तब मेरे पास केवल 20 शिल्पकारों की टीम थी। जब लोगों ने देखा कि मेरे साथ काम करने वाली शिल्पकारों को हमेशा काम मिलता है और उनके पैसे भी समय पर आ जाते हैं तब उन्होंने कहा कि वे भी अपने परिवार और दोस्तों सहित मुझसे जुड़ना चाहते हैं। जब कोई नया हमारी टीम में शामिल होता है तब मैं उसे घास की चोटी बनाने का काम देती हूँ। अगली बार जाने पर जब उस टीम की मुखिया मुझसे कहती है कि उस नए शिल्पकार का काम अच्छा है तब हम उसे झोलों या टोकरियों पर काम करने के लिए कहते हैं। संतोषजनक काम न होने की स्थिति में हम उसे कुछ और दिनों तक अभ्यास करने के लिए कहते हैं।

दोपहर 3.00 बजे: मैं करंज गाँव में भी शिल्पकारों द्वारा तैयार किए जा रहे उत्पादों के निरीक्षण के लिए ही आई हूँ। झोले अच्छे दिख रहे हैं और इनकी गुणवत्ता दिए गए मानकों के अनुरूप है। इसलिए मैंने उत्पादन टीम से कहा है कि वे गुणवत्ता जाँच के लिए कोलकाता दफ़्तर से अपने कर्मचारी को भेज दें। जब उनके निरीक्षण में हमारा उत्पाद सफल हो जाएगा तब पैकेजिंग और निर्यात के लिए उन्हें गोदाम ले ज़ाया जाएगा।

शाम 6.00 बजे: घर पहुँचने के बाद मैं जल्दी से सब के लिए रात का खाना तैयार करती हूँ। हम साथ बैठकर खाना खाते हैं और अपने-अपने दिन के बारे में बातें करते हैं। मुझे यह समय सबसे अच्छा लगता है क्योंकि इस वक्त मैं अपनी माँ और बेटियों के साथ होती हूँ। अपनी बेटियों को सुलाकर मैं वापस झोले का काम पूरा करने बैठ जाती हूँ। मैं तब तक काम करती हूँ जब तक मुझे थकान महसूस नहीं होती है। कभी-कभी काम करते करते रात के दस या बारह बज जाते हैं। सुई हाथ में लेने के बाद मैं तब तक नहीं उठती जब तक काम पूरा न हो जाए। मुझे यह काम करने में मज़ा आता है; यह मेरा जुनून है। इस काम ने कठिन समय से निकलने में ही मेरी मदद नहीं की है बल्कि इससे मेरे परिवार और दोस्तों का दायरा भी बहुत बड़ा हो गया है। यह एक समुदाय बन चुका है।

इस काम के कारण मैं दूसरी अन्य महिलाओं से भी मिलती हूँ जिनके जीवन में ऐसी ही कठिनाइयाँ है। मुझे पहले लगता था मैं अकेली हूँ जिसे ये कठिनाई है। लेकिन अब मुझे उस बात का एहसास है कि ऐसी बहुत सारी औरतें हैं जो परेशानी से गुजर रही हैं और उन्हें इस काम से समर्थन मिल रहा है। 

जैसा कि आईडीआर को बताया गया।

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लेखक के बारे में
निरुपमा जना-Image
निरुपमा जना

निरुपमा जना एक शिल्पकार हैं जो 180 ग्रामीण औरतों के साथ मिलकर काम करती हैं। निरुपमा एक ग्रामीण उद्यम चलाती हैं जो स्थानीय घास से टोकरियाँ बनाने का काम करती है। वह ऐसी कई औरतों की आदर्श हैं और उनके मार्गदर्शन का काम भी करती हैं जो आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना चाहती हैं। निरुपमा ने ओड़िशा के एफ़एम विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में एमए किया है। वह ओड़िशा के बालासोर ज़िले के बलियापाल गाँव में अपनी माँ और दो बेटियों के साथ रहती हैं।

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