शीतल साठे अपने संगीत के ज़रिए लगभग, दो दशकों से जाति विरोधी सांस्कृतिक आंदोलनों में सक्रिय रही हैं। वे मुख्य रूप से पश्चिमी भारत की लोककला ‘साहिरी’(काव्य लेखन) से संबंध रखती हैं। शीतल साठे ने कलासंगिनी मंच की स्थापना भी की है। यह मंच पूरे भारत में सांस्कृतिक आंदोलन खड़ा करने के तरीक़ों पर चर्चा करने, न्याय और समानता के मुद्दों पर काम करने और स्थानीय सामुदायिक समूहों का निर्माण करने के लिए विभिन्न क्षेत्रों के कलाकारों का साथ लाता है। दमन और भेदभाव के बावजूद शीतल साठे अपनी मंडली, नवयान महाजलसा के साथ पूरे भारत में प्रस्तुतियां देती रहती हैं।