September 4, 2023

एक सफल रेडियो अभियान के लिए क्या चाहिए?

समाजसेवी संस्था साहस द्वारा ई-वेस्ट से जुड़ी जागरुकता बढ़ाने के लिए चलाए गए रेडियो अभियान के अनुभव, प्रचार अभियानों के डिज़ाइन तैयार करना सिखाते हैं।
8 मिनट लंबा लेख

वैश्विक स्तर पर इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उपयोग बढ़ गया है लेकिन इन गैजेट्स का अपना जीवन चक्र कम हो गया है। नतीजतन, इससे पैदा होने वाले ई-वेस्ट की मात्रा अब तक के सबसे उच्च स्तर पर पहुंच गई है। विश्व स्तर पर,  भारत ई-वेस्ट उत्पादन में तीसरे स्थान पर आता है, और स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों ही पर इसका बहुत गंभीर प्रभाव पड़ा है। एक अध्ययन के अनुसार, जहां ई-वेस्ट इकट्ठा किया जाता है या उनका निपटान किया जाता है, उन इलाक़ों के आसपास रहने वाले लोग अलग-अलग समस्याओं का सामना करते हैं। इनमें हार्मोन-स्तर में होने वाले परिवर्तन, डीएनए क्षति, वैक्सीन की प्रतिक्रिया में आने वाली बाधा और खराब रोग-प्रतिरोधक क्षमता मुख्यरूप से शामिल हैं।

इस समस्या का हल निकालने के लिए 2011 ई-वेस्ट नियम तय करते हुए, विस्तृत उत्पादन ज़िम्मेदारी (एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पांसिबिलिटी) की अवधारणा पेश की गई। इसके मुताबिक, उत्पादकों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके उत्पाद के कारण पैदा होने वाले कचरे को औपचारिक रूप से एकत्रित और रिसायकल किया जाए। हालांकि अब भी अनौपचारिक क्षेत्र यानी घरों, दुकानों और छोटे व्यापारियों जैसे ग़ैर-थोक उत्पादकों से ई-वेस्ट इकट्ठा करना कम लागत वाला होता है। अनौपचारिक रूप से यह काम करने वाले लोग ई-वेस्ट को बेचकर अपनी आमदनी को बढ़ाना चाहते हैं। 2020 की एक रिपोर्ट बताती है कि कुल ई-वेस्ट का केवल पांच फ़ीसद कचरा ही आधिकारिक रिसायक्लरों द्वारा रिसायकल किया गया है।

इलेक्ट्रॉनिक सामानों का एक बड़ा हिस्सा ग़ैर-थोक उत्पादकों द्वारा उत्पादित किया जाता है – देश में उत्पन्न अनुमानित ई-कचरे का लगभग 82 फ़ीसद स्मार्टफोन और लैपटॉप जैसे व्यक्तिगत गैजेट के रूप में होता है। सही तरह के नियम लागू करना जहां एक बात है, वहीं छोटे स्तर के इन लाखों उत्पादकों के व्यवहार पर निगरानी रखना लगभग असंभव है।

खुदरा उत्पादक नियमों का पालन करें, इसके लिए रिसाइक्लिंग के दुष्प्रभावों के बारे में जागरुकता पैदा करना एक तरीका हो सकता है। साथ ही, उन्हें यह बताना भी ज़रूरी है कि कैसे ई-कचरे को बेचने से इसे औपचारिक रूप से संसाधित करना अव्यवहारिक हो जाता है। इस मामले को लेकर जागरूकता फैलाने के लिए किए जा रहे प्रचार अभियान यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं कि लोग समझें कि ई-कचरे का जिम्मेदारीपूर्वक निपटान क्यों महत्वपूर्ण है और वे इसमें कैसे योगदान दे सकते हैं। इस मुद्दे से निपटने के लिए चलाए गए अभियानों को लंबी अवधि तक व्यापक दर्शकों का ध्यान आकर्षित करना चाहिए। यहीं पर प्रिंट, टेलीविजन और रेडियो जैसे जनसंचार माध्यमों के पारंपरिक तरीके काम आते हैं।

फेसबुक बैनर_आईडीआर हिन्दी

कचरा प्रबंधन पर काम करने वाले एक समाजसेवी संगठन के रूप में साहस ने ई-कचरे के निपटान के बारे में अधिक जागरूकता फैलाने के लिए रेडियो कैम्पेन और सामुदायिक सहभागिता के अन्य तरीकों को अपनाया। यह लेख दिसंबर 2021 से मई 2022 तक दो रेडियो अभियानों को चलाने के हमारे अनुभव से प्राप्त समझ को दिखाता है।

रेडियो ही क्यों?

कई सरकारी एवं निजी इकाइयां, सामाजिक अभियानों और संदेशों के प्रचार-प्रसार के लिए रेडियो को ही अपना माध्यम बनाती आई हैं। उदाहरण के लिए, भारत सरकार अपने ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ अभियान को देशभर के लोगों तक पहुंचाने के लिए रेडियो पर चलाती है। लैंसेट के एक अध्ययन ने बुर्किना फासो के ग्रामीण क्षेत्रों में रेडियो के इस्तेमाल का मूल्यांकन किया और पाया कि प्रभावी ढंग से उपयोग में लाये जाने पर यह व्यवहार परिवर्तन के लिए एक सशक्त उपकरण हो सकता है। इसके अलावा, प्रसारण के माध्यम के रूप में, हमारे अभियानों के लिए रेडियो के कुछ अन्य फायदे भी हैं:

  • प्रिंट और टेलीविजन की तुलना में यह सस्ता माध्यम था।
  • यह अभियान राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में कार्रवाई के लिए एक विशिष्ट कॉल के साथ भौगोलिक रूप से केंद्रित था, और शहर-आधारित रेडियो चैनल एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र  को अपना लक्ष्य बनाने में अच्छा काम करते हैं।
  • रेडियो के पास एक बंधा हुआ दर्शक वर्ग होता है – रेडियो जॉकी (आरजे) के अपने फॉलोवर होते हैं और लोग अक्सर चैनल नहीं बदलते हैं।
  • प्रिंट और टेलीविज़न के विपरीत रेडियो सभी सामाजिक स्तरों तक पहुंचता है।
रेडियो के सामने बैठी हुई कुछ महिलाओं के हाथ_रेडियो अभियान
प्रसारण माध्यम के रूप में रेडियो प्रिंट और टेलीविजन की तुलना में सस्ता है। | चित्र साभार: यूके डिपारमेंट ऑफ इंटरनैशनल डेवलेपमेंट / सीसी बीवाय

दो अभियान, एक संदेश

हमारी टीम ने रेडियो सिटी चैनल को एक तय क्षेत्र में इसके व्यापक श्रोता आधार और इसके कुछ उद्घोषकों (आरजे) की लोकप्रियता के कारण चुना था। पहले अभियान में स्वयंसेवकों, स्कूली बच्चों, शिक्षकों और निवासी कल्याण संघों (आरडब्ल्यूए) के सदस्यों द्वारा 25-सेकंड के टेस्टीमोनियल शामिल थे जिसमें बताया गया था कि उन्होंने अपना ई-कचरा साहस संस्था को क्यों दिया। सभी संदेशों में स्पष्ट कार्रवाई के लिए कहा गया था जहां श्रोताओं को एक हेल्पलाइन नंबर के बारे में बताया गया, जिस पर वे अपना ई-कचरा दान करने के लिए संपर्क कर सकते थे। दूसरा अभियान अधिक रचनात्मक था, जिसमें मानवरूपी इलेक्ट्रॉनिक्स और उनके मालिकों के बीच की बातचीत को दर्शाया गया था। दोनों अभियानों के बीच का मुख्य अंतर यह था कि बाद की सामग्री श्रोताओं की भावनाओं को आकर्षित करने और अधिक प्रासंगिक बनाने के लिए डिजाइन की गई थी।

हम लोगों ने आरजे मेंशन जैसे स्थानों को चुना, जहां आरजे हमारे द्वारा दिए गए बातचीत के बिंदुओं के आधार पर मुद्दे पर बात करेंगे।

हम लोगों ने दूसरे अभियान को चलाने के लिए संदर्भ के अनुसार प्रासंगिक दिवसों जैसे स्वास्थ्य दिवस, पृथ्वी दिवस और पर्यावरण दिवस को चुना। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि, हमने अभियान की लंबाई कम कर दी और कुल रेडियो स्पॉट्स या प्रचारों की संख्या को बढ़ा दिया। हालांकि दूसरे अभियान की कुल समयावधि कम थी, प्रत्येक स्लॉट को लंबा रखा गया था और सप्ताहांतों पर स्लॉटों की संख्या बढ़ा दी गई थी।

पहले अभियान के परिणामस्वरूप साझा किए गए नंबर पर लगभग 21 कॉल्स आईं। कॉल करने वालों का कहना था कि उन्होंने रेडियो पर हमारे बारे में सुना था। पहला कॉल, पहला प्रोमो ऑन एयर होने के अगले दिन ही आया। कॉल में ई-कचरा संग्रहण और जागरूकता सत्र आयोजित करने के बारे में पूछताछ की गई थी। दूसरे अभियान के परिणामस्वरूप हमें 34 कॉल्स प्राप्त हुईं। अभियान शुरू होने के दो दिन बाद से ही हमें ये कॉल्स आने लगीं। दोनों अभियानों के बीच एकत्रित ई-कचरे की मात्रा और गुणवत्ता में काफी बदलाव आया। पहले अभियान के दौरान लगभग 266 किलोग्राम ई-कचरा संग्रह किया गया था जबकि दूसरे अभियान में 1,370 किलोग्राम ई-कचरा इकट्ठा हुआ।

हालांकि, पहले अभियान के दौरान इकट्ठा किए गये कचरे में मुख्य रूप से कम-मूल्य वाला ई-कचरा जैसे कि तार आदि अधिक मात्रा में थे, वहीं दूसरे अभियान के परिणामस्वरूप एकत्रित किए गये ई-कचरे में कम-मूल्य वाले कचरे के साथ सूचना, प्रौद्योगिकी और संचार (आईटीईडब्ल्यू) से जुड़ी वस्तुएं शामिल थीं। इस बात को ध्यान में रखते हुए कि उपभोक्ताओं की नजर में आईटीईडब्ल्यू वस्तुओं का मूल्य अधिक होता है और वे आमतौर पर इसे मुफ्त में नहीं देते हैं, यह व्यवहार में आया एक बड़ा बदलाव था। हालांकि, इस बात पर गौर करना होगा कि दूसरा अभियान चाही गई प्रतिक्रिया प्राप्त करने के मामले में अधिक प्रभावी था, लेकिन इस बात की संभावना बहुत अधिक है कि पहले अभियान ने दूसरे अभियान के बेहतर संग्रह के लिए गति बनाने में मदद की हो।

हमने जो सीखा

1. सही संदेश देना

हमारा मानना था कि किसी ऐसे अभियान के लिए रेडियो एक प्रभावी माध्यम हो सकता है जो किसी विशेष स्थान पर केंद्रित हो और जहां जनसांख्यिकी से परे, दिये जा रहे संदेश में एकरूपता हो। हमने एनसीआर के लिए अपने अभियानों को डिज़ाइन करके और यह सुनिश्चित करके इस परिकल्पना का परीक्षण किया कि कॉल टू एक्शन, उम्र या लिंग से परे, सभी प्रकर के श्रोताओं के लिए समान था। पहले अभियान ने ई-कचरा निपटान के लिए स्कूलों और आरडब्ल्यूए को साइन अप करने पर अधिक ध्यान केंद्रित किया था, जबकि दूसरे में उपयोगकर्ताओं को ई-कचरा निपटान को एक व्यक्तिगत जिम्मेदारी के रूप में देखने के लिए प्रोत्साहित किया गया। दूसरे अभियान में प्राप्त उल्लेखनीय रूप से बेहतर प्रतिक्रिया ने हमारी प्रारंभिक परिकल्पना की पुष्टि की। साथ ही, यह भी संकेत दिया कि व्यक्तिगत जिम्मेदारी की भावना पैदा करने वाली कॉल टू एक्शन रेडियो मैसेजिंग के लिए अधिक अनुकूल है। यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि किसी सामाजिक या पर्यावरणीय मुद्दे के लिए अभियान चलाते समय, मुद्दे को गंभीर नहीं दिखना चाहिए। ऐसी स्थिति में लोग यह सोच सकते हैं कि इस मामले को लेकर उनके द्वारा उठाये गये कदम निरर्थक साबित होंगे। यह इस तथ्य से प्रदर्शित होता है कि हल्के-फुल्के प्रोमो की तुलना में प्रशंसापत्रों को मिलने वाली प्रतिक्रियाओं की संख्या कम थी।

2. फॉर्मेट का चुनाव अपने अभियान के लक्ष्य के अनुकूल ही करें

रेडियो पर लंबी और छोटी अवधि, दोनों तरह के स्पॉट इस्तेमाल किए जा सकते हैं। लंबी अवधि के संदेश उन विषयों के लिए बेहतर काम करते हैं, जहां दर्शकों को व्यापक स्तर पर आकर्षित करने की तुलना में गंभीर दर्शकों को आकर्षित करना अधिक महत्वपूर्ण होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि लंबे स्पॉट को इतनी बार नहीं चलाया जा सकता है। परिणामस्वरूप इस प्रकार के अभियानों के सीमित दर्शकों तक ही पहुंचने की संभावना अधिक होती है। जहां हमने पहले अभियान में एक इंटरव्यू को भी शामिल किया था, वहीं दूसरे अभियान को अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाने के लिए हमने इसे लंबी अवधि का नहीं बनाया।

आरजे के पास अपनी एक फैन फॉलोइंग होती है जिससे वे व्यक्तिगत संदेश के माध्यम से सकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं।

हमने विभिन्न प्रकार के स्पॉट भी इस्तेमाल किए। उदाहरण के लिए, हमने आरजे मेंशन का उपयोग किया जहां आरजे अपनी ऑन-एयर बातचीत में मुद्दे पर चर्चा करते हैं। किसी प्रोमो के समय श्रोताओं के शांत होने की संभावना अधिक होती है, इसलिए आरजे मेंशन, जागरूक दर्शकों के सामने किसी मुद्दे पर चर्चा करने के एक तरीके के रूप में कारगर साबित हो सकता है। आरजे के पास एक समर्पित प्रशंसक भी है जो व्यक्तिगत संदेश के जरिए सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। हमने पूरे दिन चलने वाले छोटे प्रोमो भी शुरू किए जो अपने रिकॉल वैल्यू और बड़े दर्शकों तक पहुंचने की क्षमता के कारण उपयोगी थे।

3. गंभीर बातों को हल्के-फुल्के और रचनात्मक तरीक़ों से बताना

पहले अभियान के लिए हमारा उद्देश्य अनौपचारिक रीसाइक्लिंग के खतरों के बारे में जागरूकता पैदा करना था। इसे हासिल करने के लिए, हमने लोगों को ई-कचरे को जिम्मेदारी से संभालने के लिए प्रेरित करने के लिए स्कूली शिक्षकों, आरडब्ल्यूए के सदस्यों और रिसाइक्लर्स सहित विभिन्न हितधारकों के टेस्टीमोनियल प्रस्तुत किए। पहले अभियान की प्रतिक्रियाओं से हमने समझा कि अधिक रचनात्मक दृष्टिकोण से ही हम श्रोताओं को शिक्षित और जागरूक बना सकते हैं। इसलिए हमने अपने अभियान को उपदेशात्मक होने से बचाने के लिए अधिक उदार दृष्टिकोण अपनाया। अपने इस लक्ष्य को पाने के लिए हमने अपने दूसरे अभियानों को अनूठे संदेशों के साथ तैयार किया, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को भावनाओं के साथ जीवित प्राणियों के रूप में चित्रित किये जाने वाले प्रोमो का इस्तेमाल किया गया।

संदेशों को सामयिक बनाने से भी मदद मिली। उदाहरण के लिए, हम लोगों का वैलेंटाइन डे वाला प्रोमो – जिसमें ‘प्रेमहीनता’ को उजागर किया जिसके साथ इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को त्याग दिया जाता है- ने दर्शकों का ध्यान आकर्षित किया था। इसी तरह के सामयिक प्रोमो हमने पर्यावरण दिवस और स्वास्थ्य दिवस पर चलाये थे।

हमारे अनुभवों के आधार पर हम कह सकते हैं कि बड़े स्तर पर लोगों तक पहुंचाये जाने वाले सामाजिक संदेशों के प्रसार के लिए टेलीविजन और प्रिंट माध्यम की तुलना में रेडियो अधिक प्रभावी साबित होता है। हालांकि, हमारा लक्ष्य एक समान संदेश को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाना था, वहीं आपके अभियान की जरूरतें भिन्न हो सकती हैं। इसलिए अपने अभियान के लिए अनुकूल और उचित प्लेटफॉर्म और माध्यम का चुनाव करते समय आपको सबसे पहले अभियान के उद्देश्य को उसके अपेक्षित प्रभाव के संबंध में परिभाषित करना चाहिए। इससे आपको सही माध्यम और मंच चुनने में मदद मिलेगी, और ऐसा संदेश तैयार करने में मदद मिलेगी जो आपके दर्शकों के लिए आकर्षक और प्रासंगिक, दोनों हो।

इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ें

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लेखक के बारे में
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दीपिका छेत्री

दीपिका छेत्री एक विकास व्यवसायी हैं। दीपिका वर्तमान में काजीरंगा-कार्बी आंगलोंग परिदृश्य में एक शोध-आधारित संरक्षण संगठन, आरण्यक में एक वरिष्ठ परियोजना अधिकारी के रूप में काम कर रही हैं। वह काजीरंगा में कार्बी-समुदाय के स्वामित्व वाले सामाजिक उद्यम पिरबी का प्रबंधन करती हैं। इसके अलावा वह एक समुदाय-केंद्रित पर्यावरण-सांस्कृतिक पर्यटन मॉडल जर्नी फॉर लर्निंग और प्रोजेक्ट के क्षेत्रों में महिला एवं बाल विकास से जुड़े काम भी देखती हैं।

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दिव्या तिवारी

दिव्या तिवारी साहस में प्रधान वैज्ञानिक और सलाहकार हैं। एक पर्यावरणविद् और एक शोधकर्ता और व्यवसायी, दिव्या एक चक्रीय अर्थव्यवस्था को चलाने और स्थायी संसाधन प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए स्थायी समाधान विकसित करने और लागू करने पर काम कर रही है। उन्होंने आईआईएमबी से आपूर्ति श्रृंखला अनुकूलन (सप्लाई चेन ऑप्टिमाईजेशन) में पीएचडी की है और उन्हें औद्योगिक, जीवन विज्ञान, पर्यावरण, आईटी, आतिथ्य और एफएमसीजी क्षेत्रों का व्यापक अनुभव है।

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पन्नी वर्मा

पन्नी वर्मा एक एचआर और एल&डी पेशेवर हैं। वह विभिन्न हितधारकों के लिए सीएसआर पहल, सामग्री परिशोधन, व्यवहार परिवर्तन, परियोजना प्रबंधन और जीवन कौशल विकास पर काम करते हुए टिकाऊ मॉडल को आगे बढ़ाने के लिए के क्षेत्र में कार्यरत हैं।

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