बीते कुछ समय से नदियों पर रिवर फ्रंट बनाने का चलन बढ़ा है। मसलन पिछले कुछ वर्षों में अहमदाबाद, लखनऊ, पटना और कोटा जैसे शहरों में इनका निर्माण किया गया है। वर्तमान में पुणे, महाराष्ट्र में भी रिवर फ्रंट निर्माण किया जा रहा है। इन दिनों पुणे नगर निगम नदी के लगभग 44 किलोमीटर बहाव के दोनों किनारों पर रिवर फ्रंट विकसित करने का कार्य कर रहा है। इस परियोजना का उद्देश्य नदी को पुनजीर्वित करना बताया जा रहा है। लेकिन पर्यावरण विशेषज्ञ, सामाजिक कार्यकर्ता और नागरिक संगठन इसे पुणे के लिए आने वाले समय में एक बड़ा खतरा बता रहे हैं।
रिवर फ्रंट क्या होते हैं?
रिवर फ्रंट नदी के तट पर कंक्रीट, सीमेंट, पत्थर और ईंटों से बनायी गई एक ठोस संरचना होती है। इसे पर्यटन और आम लोगों के उपयोग के लिए बनाया जाता है। इसमें आमतौर पर बैठने की व्यवस्था, पैदल मार्ग, साइक्लिंग ट्रैक, गार्डन, फूड स्टॉल, वाटर स्पोर्ट, सांस्कृतिक और मनोरंजक कार्यक्रम स्थल आदि का निर्माण किया जाता है।
पुणे शहर के आसपास पांच नदियां (मुला, मुठा, रामनदी, देवनदी और पवना) और सात बांध (खड़कवासला, पानशेत, वरसगाव, टेमघर, पवना, मुलशी और कासार साई) हैं। इस सबसे बहकर आने वाला पानी शहर से होकर गुजरता है। इसी प्रवाह को मुला मुठा नदी के नाम से जाना जाता है। इन दिनों पुणे नगर निगम नदी के लगभग 44 किलोमीटर बहाव के दोनों किनारों पर रिवर फ्रंट विकसित करने का कार्य कर रहा है।
विरोध की वजह क्या है?
पुणे रिवर रिवाइवल के बैनर तले पुणे के स्थानीय लोग और विभिन्न संगठनों के पर्यावरण कार्यकर्ता इसका विरोध कर रहे हैं। इनका कहना है कि पुणे शहर की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए यहां रिवर फ्रंट बनाना एक सही फैसला नहीं है।
पुणे तश्तरी के आकार का शहर है, जिसके केंद्र में गहराई है। शहर की ऊंचाई पर कई बांध हैं और शहर के बीच में नदियां हैं। इस वजह से नागरिक संगठनों का मानना है कि रिवर फ्रंट का निर्माण प्राकृतिक नहीं है। इससे नदी की जैव विविधता (बायोडायवर्सिटी) खत्म हो रही है और उसकी जगह कृत्रिम (बनावटी) चीजें बनाई जा रही हैं। विभिन्न संगठन इसके निर्माण और उसके दुष्प्रभावों को विभिन्न तरीके से देख रहे हैं:
1. प्लानिंग की कमी
अहमदाबाद में साबरमती नदी की स्वच्छता के लिए काम करने वाली स्वयंसेवी संस्था दृष्टि फाउंडेशन ट्रस्ट के फाउंडर दिनेश कुमार गौतम ने आईडीआर हिंदी से बातचीत में कहा, “इसका विकास अहमदाबाद के साबरमती रिवर फ्रंट की तर्ज पर किया जा रहा है। अहमदाबाद से पुणे और साबरमती से मुला-मुठा की तुलना नहीं की जा सकती, क्योंकि दोनों शहरों की संरचना और उनकी नदियों की प्रकृति में बहुत अंतर है। विविध भौगोलिक स्थितियों की दृष्टि से एक ही प्रेक्टिस हर जगह लागू नहीं की जा सकती। यही वजह है कि गुजरात के बड़ोदरा व सूरत जैसे अन्य बड़े शहरों में रिवर फ्रंट लागू नहीं किया गया था।”

गौतम बताते हैं कि 2024 में बड़ोदरा में बाढ़ का एक कारण यह था कि वहां शहर के कुछ हिस्सों को कंक्रीट से ढक दिया गया था। वहीं सूरत भौगौलिक रूप से समुद्र के करीब है। इन कारणों से भी वहां ऐसे प्रोजेक्ट लागू करना खतरनाक हो सकता है। इसलिए रिवर फ्रंट को लेकर पुणे के नागरिकों द्वारा उठाए जा रहे सवालों को संबंधित अधिकारियों व सरकार द्वारा सुना जाना चाहिए।
2. नदी के ग्राउंड वाटर रिचार्ज स्तर पर प्रभाव
पुणे के युवा नदी कार्यकर्ता अंगद पटवर्धन कहते हैं, “रिवर फ्रंट के नाम पर नदी के कंक्रीटीकरण से इसके पानी का स्रोत बाधित हो रहा है। कंक्रीटीकरण से नदी की चौड़ाई कम हो जाती है। जाहिर है कि जब किसी प्राकृतिक प्रवाह की चौड़ाई कम हो जाएगी, तो बाढ़ का खतरा भी बढ़ जाएगा।” नदी में प्राकृतिक रूप से मिट्टी, रेत, एक्वाफोर (भूमि की अलग-अलग चट्टानी परतें जो अपने अंदर पानी को संग्रहित रखती हैं) पाये जाते हैं, जो बारिश या ऊंचाई से बहकर आने वाले पानी को अवशोषित कर स्टोर करते हैं और जरूरत के हिसाब से उसे छोड़ते हैं। अंगद बताते हैं कि जब सीमेंटे और कंक्रीट की परतें बढ़ जाती है, तो ग्राउन्ड वाटर का रिचार्ज स्तर बहुत घट जाता है।
3. जैव विविधता व पर्यावरण में बाधक
दृष्टि फाउंडेशन ट्रस्ट के फाउंडर दिनेश कुमार गौतम बताते हैं, “नदी के तट कच्चे होने चाहिए। अगर उनका कंक्रीटीकरण हो जाएगा, तो वहां के जलीय-जीव, पेड़-पौधे व जैव विविधता पर भी उसका असर होगा। टेरी की वर्ष 2021 में प्रकाशित वाटर सस्टेनेबिलिटी रिपोर्ट ऑफ पुणे के अनुसार, शहर में हर साल आने वाला मानसून और बाढ़ की बढ़ती घटनाएं इस बात की गवाही देती हैं कि जल निकाय और हरित क्षेत्र लगातार सिकुड़ते जा रहे हैं। यहां तक की नदी के किनारे 200 से अधिक फूलों व पौधों की प्रजातियां लुप्त हो चुकी हैं।
बढ़ते शहरीकरण और प्रदूषण की चुनौतियां
पुणे नगर निगम के अनुसार, 2025 में शहर की जनसंख्या 45 लाख से अधिक होने का अनुमान है। एक रिपोर्ट के अनुसार, 1973 में नदी और झील का क्षेत्रफल 4.2 वर्ग किमी था, जो अब घटकर 2.47 वर्ग किमी होने का अनुमान है। नहर का कवर एरिया 2.5 वर्ग किमी से घटकर 1.5 वर्ग किमी हो गया है। वहीं निर्माण क्षेत्र 28.5 वर्ग किमी से बढ़कर 205.49 वर्ग किमी हो गया। इसका अर्थ है कि आबादी में आई वृद्धि से निर्माण की जगह बढ़ती गयी और पानी की निकासी की जगह कम होती गयी।
मुला मुठा नदी महाराष्ट्र की सबसे प्रदूषित नदियों में शुमार है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में पुणे शहर के सीवेज को इसका मुख्य कारण बताया गया है। इससे पानी का प्रवाह प्रभावित हुआ है और बाढ़ के खतरे बढ़े हैं। पुणे में 2019 में आयी बाढ़ में लगभग 20 लोगों की मृत्यु हो गई थी। जीवित नदी फाउंडेशन से शैलजा देशपांडे कहती हैं, “नदी पर बहुत सारे जीव निर्भर होते हैं। वह एक पूरा लिविंग इकोसिस्टम है, इसलिए सीवेज का उचित प्रबंध किया जाना चाहिए।” एक महिला ने अपनी पहचान गोपनीय रखने की शर्त पर बताया, “नदी का पानी गंदा है और हमारे घर इतने छोटे हैं कि हम पर्याप्त मात्रा में पानी इकट्ठा करके भी नहीं रख सकते हैं।” उक्त महिला ने बताया कि उनके पति मछली पकड़ने का काम करते हैं, लेकिन पुणे शहर में प्रदूषण की वजह से उन्हें यहां से 15 किमी दूर पिंपरी चिंचवड जाना पड़ता है।

बाढ़ की प्रबल संभावना
साउथ एशिया नेटवर्क ऑफ रिवर एंड डैम के को-ओर्डिनेटर और नदियों व बांधों के जानकार हिमांशु ठक्कर ने आईडीआर हिंदी से बातचीत में कहा, “पुणे एक बाढ़ संवेदनशील क्षेत्र है। इसलिए वहां ऐसी परियोजनाएं लागू नहीं करनी चाहिए। जब नदी के फ्लड प्लेन का कंक्रीटीकरण कर दिया जाएगा, तो वह नदी न होकर एक चैनल बन जाएगी। इससे नदी की बाढ़ को वहन करने की क्षमता कम होगी और खतरे बढ़ जाएंगे”।
पुणे रिवर फ्रंट के निर्माण का विरोध करने वाले प्रमुख लोगों में सारंग यादवाडकर भी शामिल हैं, जो एक आर्किटेक्ट और पर्यावरण कार्यकर्ता हैं। यादवाडकर बताते हैं, “नदी के किनारे जो बाढ़ के प्रवाह की खाली जगह है, वहां कंक्रीट की दीवार खड़ी करने उसमें कृत्रिम तरीके से मलबा भरा जा रहा है”। यादवाडकर बताते हैं, “रिवर फ्रंट बनने से नदी की चौड़ाई 40 से 50 मीटर कम हो जाएगी (प्रोजेक्ट डीपीआर के अनुसार इन नदियों की चौड़ाई अभी 80 से 200 मीटर है)। वे कहते हैं, “पुणे की भौगोलिक स्थिति (टोपोग्राफी) को समझना जरूरी है। विशेषज्ञों के अनुसार, यहां पारिस्थितिकी तंत्र के क्षरण और जलवायु परिवर्तन से फ्लैश फ्लड (अचानक आने वाली बाढ़) और भूस्खलन जैसी आपदाओं को बढ़ावा मिलता है।
यादवाडकर, एसएएनडीआरपी में अपने एक लेख में बताते हैं कि रिवर फ्रंट की प्रोजेक्ट रिपोर्ट में कहीं भी क्लाइमेट चेंज (जलवायु परिवर्तन) शब्द का जिक्र नहीं है, जबकि टेरी ने अपनी रिपोर्ट महाराष्ट्र स्टेट एडॉप्टेशन एक्शन प्लान ऑन क्लामेट चेंज में कहा था कि पुणे में बारिश की मात्रा 37.5 प्रतिशत तक बढ़ सकती है।
पुणे रिवर फ्रंट की डीपीआर क्या बताती है?
पुणे नगर निगम द्वारा रिवर फ्रंट प्रोजेक्ट को 2018 में मंजूरी दी गयी थी। 2019 में इसे पहली बार स्टेट इनवॉयरमेंट इंपेक्ट एसेसमेंट ऑथोरिटी से पर्यावरणीय स्वीकृति मिली। फरवरी 2023 में पुणे रिवर रिजुवनेशन प्रोजेक्ट के नाम से फाइनल डीपीआर (डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) जारी की गयी।
डीपीआर में कहा गया है कि परियोजना के लिए राज्य सरकार, प्रेस, नागरिक समूहों, गैर सरकारी संगठनों, निर्वाचित जनप्रतिनिधियों, विशेषज्ञों की समिति और सिंचाई विभाग सहित सभी लोगों से परामर्श किया गया है।
डीपीआर में यह उल्लेख है कि पुणे नदी कायाकल्प परियोजना यह मानती है कि शहर का एक बड़ा हिस्सा बाढ़ की चपेट में आने की दृष्टि से संवेदनशील है। इसमें यह भी कहा गया है कि बाढ़ एक प्राकृतिक घटना है और इसलिए अधिक बाढ़ की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
रिवर फ्रन्ट निर्माण को लेकर सरकार का तर्क
पुणे शहर के अंदर मुला नदी का प्रवाह पुणे और पिंपरी चिंचवड महानगरपालिका के बीच की सीमा भी तय करता है। पुणे नगर निगम का तर्क है कि इस बदलाव से नदी से कट चुके शहरी लोग एक बार फिर उससे जुड़ पायेंगे, प्रदूषण कम होगा तथा बाढ़ के खतरे भी कम हो सकते हैं। इस परियोजना की लागत करीब 4700 करोड़ रुपये है।
केंद्र सरकार के नगर विकास मंत्रालय के संस्थान नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ अर्बन अफेयर व जल शक्ति मंत्रालय के नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा ने साथ तैयार किए गए दस्तावेज इको फ्रेंडली इंटरवेंशंस फॉर रिवरफ्रंट डेवलपमेंट में रिवर फ्रंट के विकास के पक्ष में तर्क देते हुए इसे वाजिब ठहराया गया है।
अंततः सरकारें बेशक रिवर फ्रंट के नाम पर विकास को बढ़ावा देने के दावे करती हों, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इनके नकारात्मक प्रभाव भविष्य में बेहद नुकसानदायक भी साबित हो सकते हैं।
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